दोस्तो, मेरा नाम विनोद है. मैं राजस्थान के अलवर जिले में एक छोटे से गांव में रहता हूं.
गांव में मेरी फुटवियर की दुकान है जिससे मेरा गुजारा चल जाता है.
मेरे परिवार में मेरे मां, बाबा, पत्नी रम्या और मेरी एक मुँह बोली बहन अन्नू रहते हैं.
मेरी शादी अभी 2 साल पहले ही हुई थी.
मेरी दो बहनें और हैं, जिनकी शादी बहुत पहले हो गई थी.
वो अपने ससुराल में रहती हैं.
कहानी शुरू करने से पहले बता दूँ कि ये सेक्स कहानी कोरी कल्पना है, इस
कहानी के सभी किरदार भी केवल पसंद के नाम के अनुसार काल्पनिक चुने गए हैं.
किसी भी प्रकार की परिस्थिति इस कहानी को सच नहीं बनाती है.
देसी गर्ल सेक्स कहानी को सच्ची प्रतीत करने के लिए ही जीवंत किरदार
बनाए गए हैं और बड़ी होने के कारण मैं इसको कुछ भागों में आपके सामने पेश
करूंगा.
मेरी मां के एक मुँहबोले भाई हैं, जो यहीं हमारे गांव में काम करते हैं.
आर्थिक तंगी के कारण वो रहते हमारे घर ही हैं. उनकी दो बेटियां शुरू से ही यहीं रहती थीं.
बड़ी वाली का नाम सुमन है और छोटी वाली का नाम अन्नू है.
सुमन स्कूल की पढ़ाई के बाद पुनः अपने गांव चली गई और अन्नू अब भी यहीं रहती है.
दोनों बहनें एक दूसरे से दिखने और स्वभाव में अलग अलग हैं.
सुमन दिखने में भरी पूरी है जबकि अन्नू पतली है, पर देखने में सुंदर है.
सुमन शुरू से बिंदास टाइप है, लेकिन अन्नू उसके उलट शर्मीली है.
मैं, सुमन और अन्नू शुरू से ही साथ ही रहते थे. साथ खाना, साथ खेलना, साथ सोना, यहां तक कि साथ नहाना.
तीनों में मैं बड़ा था तो अक्सर मैं ही उनको नहलाता था.
लेकिन तब इतनी समझदारी नहीं थी.
मैं उनको हर जगह छूता था, लेकिन उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था और न ही उन दोनों को.
फिर अब जब हम बड़े हो गए तो सब अलग अलग नहाने लगे.
मैं और सुमन एक दूसरे से बातों में पूरे खुले थे.
अक्सर मैं और सुमन अन्नू को चिड़ाते रहते के लिए एक दूसरे के अंगों को हाथ
लगाते थे, तो वो शर्मा कर वहां से चली जाती या फिर नीचे गर्दन कर लेती.
और हम दोनों उस पर हंसने लग जाते.
लेकिन अन्नू किसी को ये सब बताती नहीं थी.
आज जब सोचता हूं तो पता चलता है कि हम तीनों में सबसे समझदार वो ही थी.
छोटी होने के बावजूद उसको ये पता था कि ऐसी बातें किसी को बताते नहीं हैं.
वैसे हम ऐसा सब कुछ इसलिए करते थे क्योंकि इस समय हम ये सब समझते नहीं थे.
अन्नू कुछ ज्यादा ही शर्मीली थी तो उसको चिढ़ाने के लिए ही ये सब करते थे.
अक्सर खेलते टाइम, नहाते टाइम भी हम उसको बहुत चिड़ाते थे.
ये समय बहुत जल्दी आगे बढ़ गया और मेरी मामी जी की तबियत खराब रहने लगी.
जिस वजह से सुमन को अपने गांव ही जाना पड़ा.
आगे की पढ़ाई उसने वहीं से की और अब उसकी शादी भी हो चुकी है. उसको अब एक लड़का भी है.
सुमन और मैं एक दूसरे के साथ सारी बातें शेयर करते हैं.
पहले हम नॉनवेज बातें कुछ लिमिट तक शेयर करते थे, बाद में एक बार ऐसा मौका आया, जिसके बाद हम हर बात बिंदास शेयर करने लगे.
अन्नू अब भी हमारे साथ ही है.
अब घर में हम दोनों ही थे तो हम दोनों साथ रहने लगे.
मैंने उसे चिड़ाना भी बंद कर दिया था. तो वो भी मेरे साथ अच्छे से रहने लगी थी.
अब मैं वो घटना बता रहा हूं, जिसके बाद मैं और सुमन एक दूसरे से सभी बातें शेयर करने लगे थे.
एक बार में देर रात मामा जी के घर गया था, तो वहां खाना खाकर मैं सोने चला गया.
तब सुमन मेरे पास आई.
इस बार मैं कोई चार पांच साल बाद मामा जी के घर आया था तो सुमन से भी अभी मिला था.
वो अब एक जवान भरी पूरी लड़की बन चुकी थी.
मैं तो उसे देखते ही रह गया था.
उसकी छाती इतनी अधिक फूल गई थी कि उसकी कुर्ती से बाहर आने की कोशिश कर रही थी.
उसकी बड़ी बहन भी उस दिन घर आई हुई थी.
उसका नाम संगीता था, दिखने में वो सुमन से ज्यादा गोरी थी, बस पतली थी. उसकी साइज भी औसत थी.
संगीता की शादी 7 साल पहले हो चुकी थी, उसको कोई बच्चा नहीं था; देखने में वो अब भी 18–20 साल की लग रही थी.
वो भी मेरे पास आकर बैठ गई.
हम तीनों बहुत देर तक बातचीत करते रहे.
फिर संगीता को नींद आने लगी तो वो हम दोनों को छोड़ कर सोने चली गई.
मैं भी बिस्तर पर लेट गया और सुमन को भी वहीं सो जाने को बोला लेकिन सुमन ने मना कर दिया.
मैंने कारण पूछा तो वो बोली- अब हम बड़े हो गए हैं, हम दोनों एक साथ नहीं सो सकते.
मैं समझ गया कि ये अब खेली खाई लड़की है.
मैंने उससे अनजान बनते हुए पूछा- ऐसी क्या बड़ी हो गई … उतनी ही तो है.
ऐसा बोलते हुए मैंने उसके हाथ को पकड़ कर मेरे पास खींच लिया.
मैं पीठ के बल लेटा हुआ था और वो मेरे ऊपर पेट के बल आ गिरी.
पहली बार मुझे उसके बूब्स का कोमल अहसास हुआ, लेकिन सुमन को गिरने के कारण दर्द हुआ.
वो धीरे से कराह उठी.
मैंने उससे पूछा- क्या हुआ?
वो बोली- चोट लगी मुझको!
मैंने पूछा- कहां लगी चोट?
तो वो शर्माने लगी.
मैंने जोर देकर पूछा तो उसने अपने बूब्स पर हाथ रख कर बताया.
तो मैं बोला- ला मैं दबा देता हूँ. दर्द अभी ठीक हो जाएगा.
ये कहते हुए मैंने अपने दोनों हाथ उसके दोनों मम्मों पर रख दिए और उनको दबा दिया.
जिंदगी में पहली बार मुझे किसी लड़की के बूब्स दबाने का मौका मिला था.
मेरे लिए वो अहसास बहुत ही कीमती था.
लेकिन फिर भी मैं अनजान बनते हुए बोला- सुमन, तेरे तो ये बहुत ज्यादा बड़े हो गए, पहले तो नहीं थे इतने बड़े.
वो शर्माती हुई बोली- तभी तो बोला था न कि हम बड़े हो गए.
मैं फिर भी अनजान बनते हुए बोला- बड़ा तो मैं भी हुआ हूं लेकिन मेरे तो ये इतने बड़े नहीं हुए हैं.
तो वो शर्माती हुई बोली- तुम्हारे ये नहीं कुछ और बड़ा होता है.
तो मैंने पूछा- तेरे को कैसे पता, तूने कुछ और बड़ा होता है ये देखा है क्या?
अब वो शर्माने लगी और कुछ नहीं बोली.
मैंने फिर से उसको मेरे पास बिस्तर पर सुला लिया.
अब हम दोनों के मुँह आमने सामने थे.
सुमन शर्मा रही थी.
मैं उससे बोला- मुझे सब पता है, बस मैं जानने की कोशिश कर रहा था कि
तुम्हें भी इन सब के बारे में पता है या नहीं, लेकिन लगता है तुम तो इस खेल
को खिलाड़ी हो गई हो.
इतना सुनते ही उसने शर्म से गर्दन नीचे कर ली.
मैंने अपनी उंगलियों से उसकी ठोड़ी को पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाया और कहा- क्या ऐसा कुछ है, जो तुम मुझे बताना चाहो?
तब उसने कुछ संशय से मेरी आंखों में देखा.
मैं समझ गया कि वो डर रही है.
मैंने उससे कहा- हम दोनों बचपन के दोस्त हैं और दोस्तों में सीक्रेट आउट नहीं होते. मैं तुम्हें किसी भी बात के लिए जज नहीं करूंगा.
वो हिम्मत करके बोली- मुझे शर्म आ रही है, तुम किसी से नहीं कहोगे न?
मैंने उससे वादा किया कि मैं किसी को कुछ भी नहीं बताऊंगा.
दोस्तो, यह कहानी भी मैं उसको पूछ कर ही लिख रहा हूं. आगे की कहानी आप उसी की जुबान सुनिए.
दोस्तो, मेरा नाम सुमन है. मेरा पूरा परिचय आपको मेरे भाई ने लगभग दे ही दिया है.
इसके अलावा मैं दिखने में ठीक हूं, फिगर और रूप किसी साधारण इंसान को लंड हिलाने पर मजबूर कर सकता है.
मेरी 10वीं तक की पढ़ाई मेरी बुआ के घर यानि मेरे भाई के घर हुई. उसके बाद की पढ़ाई मेरे गांव में हुई थी.
जब मैं यहां गांव आई, तब सभी दोस्त और जान पहचान वाले पीछे ही छूट गए थे.
मेरे गांव में मेरे लिए सब नए थे क्योंकि मैं शुरू से ही बुआ के घर रही थी.
यहां केवल मेरे जानने वालों में मेरी बहन थी, जिससे मैं बातचीत कर सकती थी.
गर्मी की छुट्टी खत्म होने के बाद पापा ने मेरा एडमिशन गांव के ही एक स्कूल में करवा दिया.
पढ़ने में मैं इतनी अच्छी नहीं थी तो मैंने आर्ट्स सब्जेक्ट लिया था.
शुरू शुरू में मुझे स्कूल में परेशानी हुई … यहां मेरा कोई दोस्त या कोई जान पहचान वाला नहीं था.
बस स्कूल के बाद मेरी दीदी से मिलने के बाद मुझे कुछ सुकून मिलता.
मेरी दीदी उस समय पास के शहर में कॉलेज कर रही थीं.
मेरा घर मेन रोड पर ही खुलता है, सामने ही बाजार है. घर के बाहर बैठने का चबूतरा बना हुआ है.
मैं अक्सर वहीं आकर बैठ जाती हूँ और आते जाते लोगों को व चहल-पहल को देखती रहती हूं.
ऐसे ही एक दिन स्कूल की छुट्टी थी, मैं बाहर बैठी हुई थी तो मुझे देख कर मेरी बहन भी अपना काम पूरा होने के बाद वहीं आकर बैठ गई.
हम दोनों अक्सर वहां बैठ कर बातें करते थे.
हम दोनों शुरू से दूर थीं तो दोनों में पटती भी अच्छी थी और एक दूसरे से लड़कों वाली बातें भी खुल कर कर लेती थीं.
उस दिन वो खुश नजर आ रही थी, तो मैंने उससे खुश होने का कारण पूछा.
उसने बताने में आना कानी की.
मुझे शक था कि मेरी दीदी का कहीं न कहीं चक्कर चल रहा है, लेकिन वो मुझे बताती नहीं थी.
उस दिन मैंने थोड़ा जोर लगाकर पूछा तो भी उसने नहीं बताया.
मैंने उसे चिढ़ाने के लिए यूं ही बोल दिया- मेरा एक ब्वॉयफ्रेंड है और
मैंने उसके साथ सब कुछ किया है. तू मुझसे बड़ी है और अभी तक कोई लड़का नहीं
पटाया.
वैसे मैं कभी किसी लड़के के साथ नहीं रही.
स्कूल में भी मेरा पहला मौका था.
बुआ के वहां मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी.
मैंने जैसे ही दीदी को ये कहा, तो उसको वो चैलेंज सा लगा.
वो बोली- तेरे को किसने बोला मेरा ब्वॉयफ्रेंड नहीं है और मैंने ये सब कुछ नहीं किया?
मैंने कहा- मुझको किसी ने नहीं कहा मगर किसी ने ये भी नहीं कहा कि तूने सब कुछ किया है.
तब उसने मेरे को अपने बॉयफ्रेंड और उसके साथ सभी रिश्तों के बारे में बताया, जो मैं आपको फिर कभी और बताऊंगी.
उसने मुझसे अपने ब्वॉयफ्रेंड और मेरे रिश्ते के बारे में पूछा, तो मैं कुछ सोच नहीं पाई क्योंकि मेरा कोई ब्वॉयफ्रेंड नहीं था.
तो मैं यूं ही सामने देख रही थी.
सामने की दुकान पर एक लड़का काम कर रहा था. वो दिखने में ठीक ठाक था.
तो मैंने उसी समय एक कहानी बनाई और उस लड़के के लिए बोल दिया.
दीदी ने उसको देखा और पूछा- तू इससे कब मिली?
मैंने बोल दिया- पिछली बार छुट्टियों में जब गांव आई थी, तब मिली थी. तब हमारे बीच दोस्ती हो गई थी.
दीदी ने जिज्ञासु टाइप में सीधे ही पूछ लिया- इसके साथ सेक्स कब किया?
अब मेरे लिए ये भी मुसीबत थी तो बोल दिया कि इस बार जब आई थी, तब हुआ था.
उस टाइम मैंने दीदी को कैसे जैसे करके टाल दिया.
अब उस लड़के को तो मैं जानती भी नहीं थी कि ये कौन है. इसलिए मैंने दीदी को चूतिया बना कर उधर से अन्दर चली गई.
उन दिनों मेरा वो ही रूटीन था. घर, स्कूल और चबूतरे पर बैठना.
शुरू के कुछ दिन बीत गए.
मुझे स्कूल में कुछ भी अच्छा नहीं लगता था.
मेरा कोई दोस्त भी नहीं था.
हमारे स्कूल में सुबह प्रार्थना के समय हर क्लास से कोई एक लड़का या लड़की कोई अच्छे मैसेज वाली बात बताने के लिए आगे आते हैं.
उस दिन रोज की तरह में नीचे गर्दन करके मिट्टी में उंगली से कुछ बना रही थी.
तभी रोज की तरह एक लड़का आगे गया और अपना प्रेरक किस्सा सुनाने लगा.
उस आवाज ने मुझे ऊपर देखने पर मजबूर कर दिया.
मैंने ज्यों ही देखा तो ये तो वही लड़का था, जिसके लिए मैंने दीदी को बोला था.
अब तो मुझे दीदी को बताने के लिए एक और मजबूत प्वाइंट मिल गया था कि ये लड़का मेरे साथ स्कूल में पढ़ता है.
उसी बारे में सोचते रहने के कारण उस लड़के में मेरी दिलचस्पी और बढ़ने लगी.
मैं अब हमेशा स्कूल में उसे ही खोजती रहती.
एक लड़की से मैंने उसकी क्लास का पता किया, वो मेरे से एक क्लास आगे था.
मैं अब कुछ हद तक उसके बारे में सोचने लगी और वो अहसास मेरे लिए नया था तो वो मुझे उस अकेलेपन की आदत लगने लगी.
अक्सर मैं खाना खाकर छत पर टहलने आ जाती थी और उसके ख्यालों में खोई रहती थी.
ऐसे ही घूमते हुए मुझे एक रात पड़ोसियों के घर से लड़ने झगड़ने की आवाजें आने लगीं.
पहले मैंने गौर नहीं किया और मकान की दीवार पर बैठ गई.
हमारे मकान से लगभग 10 मकानों की छत जुड़ी हुई है, कोई भी किसी भी मकान की छत पर आ जा सकता है.
उनको केवल हर मकान की एक छोटी दीवार पार करनी होती है.
हमारे मकान की उसी दीवार पर बैठी बैठी मैं उस लड़के के बारे में सोच रही थी.
तभी उस झगड़े वाले घर से एक आवाज तेज होने लगी और उस आवाज ने मेरा ध्यान खींच लिया.
वो आवाज वाला शक्स धीरे धीरे ऊपर आ रहा था.
मुझे आवाज जानी पहचानी लगी लेकिन अंधेरे में मैं उसे पहचान नहीं सकी.
वो मुझे ऊपर देख कर मेरी तरफ आने लगा.
अब मुझे वहां बैठने का अफसोस होने लगा कि ये अब मुझसे कुछ बात करेगा, कुछ पूछेगा.
मुझे किसी से बात नहीं करनी थी, मैं तो बस उन ख्यालों में ही खोई हुई रहना चाहती थी.
तभी उसने मेरी पीठ पर एक जोर से धौल लगाई और मेरे पास बैठ गया.
मुझे दर्द हुआ और मुँह से आह निकल गई.
मैंने गुस्से से उसकी ओर देखा, तो उसने भी मेरी तरफ देखा.
मैं उसको देखते ही हक्की बक्की रह गई.
ये वही लड़का था, उसको देखते ही मेरे मुँह से निकल गया- तुम!
उसने भी मुझे देखा और बोला- तुम कौन हो?
मैंने अपने आपको संभाला और उसको डांटने के अंदाज में बोली- तुमने मुझे मारा क्यों?
अब वो लड़का डरने लग गया.
उसने मुझसे सॉरी कहा और बोला- मुझको लगा कि संगीता है, इसलिए मैंने आपको मारा था.
तब मुझे अहसास हुआ कि वो यहीं पास में रहता है और दीदी को भी जानता है.
मेरे पूछने पर उसने बताया कि आज घर में कुछ समस्या हो गई थी और इन सबसे
बचने के लिए मैं ऊपर आ जाता हूं. लगभग हर बार मुझे तुम्हारी दीदी ऊपर मिलती
है, बस इसी लिए तुम्हें संगीता समझकर मार दिया.
तभी मुझे सीढ़ियों से किसी के आने की आहट सुनाई दी, वो दीदी थी.
उसने आते ही हमें देख लिया.
उसको पहले ही मैंने झूठ बोल रखा था और वही लड़का मेरे साथ बैठा था.
तो दीदी को लगा कि इन दोनों के बीच सच में कुछ है.
दीदी ने मेरे ऊपर ताना कसते हुए कहा- तुम दोनों यहीं पर मत शुरू हो जाना, घर के और कोई भी ऊपर आते जाते रहते हैं.
मैं उस समय झेम्प गई क्योंकि मैं दीदी की बात समझ गई थी.
लेकिन उस लड़के को कुछ समझ नहीं आया; वो हमारी तरफ देखने लगा.
तभी दीदी ने दूसरा मुद्दा छेड़ दिया और बोली- ओए राकेश, तू क्यों रोज रोज लड़ता है. आज फिर से क्या हो गया?
तब मुझे पता चला कि उसका नाम राकेश है.
वो बोला- वही रोज रोज का लफड़ा यार!
इस तरह वो दोनों बातें करने लगे और मैं राकेश को देखने लगी.
उसका बोलना देखना मुझे सब अच्छा लग रहा था.
तभी दीदी को मम्मी ने आवाज लगाई, तो वो नीचे चली गई.
मैं भी राकेश को चलने के लिए बोलकर उठी, तभी मैंने यूं ही पूछ लिया- वैसे तुम्हारा नाम क्या है?
वो मुझे घूरकर देखते हुए बोला- तुम जानती तो हो!
मैं हकला गई और बोली- मैं कैसे जानूंगी तुम्हारा नाम?
वो बोला- मेरा नाम राकेश है और ये तुम जानती हो … और ये ‘यहीं पर शुरू
नहीं हो जाना’ वाला क्या लफड़ा है, जो तेरी दीदी ने बोला था. मैं कब से सोच
रहा था कि तुम देखी हुई लग रही हो, अब मुझे सब याद आ गया. तुम शायद मेरे
स्कूल में ही पढ़ती हो.
उसका एकदम से ये रूप देख कर मैं हैरान रह गई.
मुझे लगा था इसे कुछ नहीं पता होगा.
मैंने कुछ नहीं कहा और नीचे आ गई.
अब मेरे लिए ये सब कुछ नया था और मेरा मन अन्दर ही अन्दर उछल रहा था कि
जिसे मैं बाहर ढूंढ रही थी, वो मेरे ही घर के बगल में रहता है.
दूसरे दिन स्कूल में हम दोनों की आंखें कई बार मिलीं और वो हर बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता.
मैं भी जवाब में मुस्कुरा देती.
इसी तरह कुछ दिन बीत गए.
अब हम अक्सर छत पर मिलते और बस इधर उधर की बातें करते.
मुझे पता चला कि उसके मामा की कपड़ों की दुकान है. स्कूल के बाद वो वहीं
रहता है. वो यहां बचपन से रह रहा है. उसका गांव बहुत छोटा है, वहां पर उस
समय स्कूल नहीं था, तो उसको मामा के यहां भेज दिया था.
वो भी पढ़ाई में इतना अच्छा नहीं था तो उसके मामा उसको डांटते रहते थे.
उस डांट से बचने के लिए वो ऊपर आ जाता था, दीदी वहां पहले ही मिल जाती थी और वो उसको समझाती थी.
वो दोनों खूब देर तक बातें करते रहते थे.
घर पर भी वो सबसे मिला-जुला था, तो अक्सर वैसे भी आ जाता था. कभी कभार मामा ज्यादा डांटते, तो वो बिना खाना खाए हमारे घर आ जाता था.
उसके मामा की लड़की पहले ही हमारे घर आकर बता जाती थी कि उसने खाना नहीं
खाया है, तो मेरी मम्मी उसको खाना खिला देती थीं और उसको कमरे में सोने को
बोल देती थीं.
ये सब मुझे दीदी ने बाद में बताया था.
एक रात यूं ही हम छत पर बैठे थे और बातचीत कर रहे थे.
जब रात को हम जाने लगे तो उसने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर उन्हें चूम लिया.
मेरे लिए ये पहला मौका था, जब किसी लड़के ने मुझको किस किया था.
उस वक्त उसका मुझे इस तरह से किस करने का आभास भी नहीं था, तो मैं उसे किस
करते ही एकदम से डर गई और एक अजीब से अहसास से अन्दर से हिल गई.
डर के कारण मेरी आंखों से आंसू भी आ गए.
मेरी आंखों में आंसू देख कर राकेश डर गया और मुझसे माफ़ी मांगने लगा.
वो किसी को नहीं बोलने के लिए बोलने लगा.
उस समय मुझे उस पर गुस्सा भी आ गया और मैं गुस्से में नीचे चली गई.
उस रात के बाद मैंने कुछ दिनों तक उससे बात नहीं की. उसने स्कूल में भी
मेरे से बात करने की कोशिश की, लेकिन मैंने उससे बात नहीं की.
वो अब मुझसे डरने लगा और मेरे सामने डर से गर्दन नीचे कर लेता.
फिर धीरे धीरे मुझे उस पर दया आने लगी और मुझे अहसास होने लगा कि वो गलत नहीं था.
मैं भी उसकी तरफ आकर्षित होने लगी थी. हमारा रोज मिलना, एक दूसरे के बिना अच्छा नहीं लगना, ये सब उस हालात के कारण थे.
मैंने भी उसे माफ करने का मन बना लिया था.
इस दौरान मुझे पता चला कि दो दिन बाद राकेश का बर्थडे है, तो मैंने मन ही मन प्लान बना लिया था.
उस समय आज की तरह स्कूल में टेबल, स्टूल नहीं होते थे.
क्लास में केवल एक कुर्सी होती थी, जो अध्यापक के लिए होती थी, बाकी
बच्चों के लिए दरी पट्टी होती थी. जिनको क्लास के एक बच्चे को अपनी बारी के
अनुसार छुट्टी के बाद समेटकर एक जगह रखना होता था.
मैंने दो दिन तक भी उससे बात नहीं की. मैंने उसके बर्थडे वाले दिन शाम को छुट्टी का इंतजार किया.
राकेश का दरी पट्टी समेट कर रखने का नंबर बर्थडे वाले दिन से दो दिन बाद आने वाला था.
उससे पहले दो और लड़कियों का नंबर था.
मैंने उन लड़कियों को बहाना बना कर निकल जाने के लिए मना लिया था.
स्कूल की छुट्टी होने के बाद प्लान के अनुसार दोनों लड़कियां बहाना बना कर
निकल गईं जिस वजह से राकेश को दरी समेटने के लिए रुकना पड़ा.
मेरी क्लास में एक लड़की का नंबर था तो मैं उसका साथ देने के बहाने रुक गई.
कुछ देर मैं उसके साथ दरियां समिटवाने लगी.
चूंकि हम दो थीं, तो काम से जल्दी फ्री हो गई थीं.
मैंने उस लड़की को भेज दिया और बाहर किसी को नहीं पाकर मैं सीधा राकेश की क्लास में आ गई.
उसने भी अपना काम लगभग कर दिया था और सभी दरियों को एक जगह रखने में बिजी था.
मेरे आ जाने का उसे बिल्कुल भी पता नहीं चला.
मैंने मौके का फायदा उठाया और राकेश को पीछे से जाकर पकड़ लिया.
इस तरह अचानक से मेरे पकड़ने से वो घबरा गया और एकदम से पीछे मुड़ा.
मैं भी उसको पकड़ी हुई थी, तो मैं भी उसके साथ घूम गई.
हम दोनों का बैलेंस नहीं बन पाया और हम दोनों उन समेटी हुई दरियों पर ही गिर गए.
मैं राकेश के नीचे दब गई, मेरे मुँह से चीख निकल गई.
राकेश को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है.
उसने उठने के लिए अपने हाथ को सहारे के लिए नीचे दबाया तो उसका हाथ सीधे मेरे एक स्तन पर गिरा.
उसके उठने के कारण मेरा स्तन दब गया और फिर से मेरे मुँह से चीख निकल गई.
लेकिन तब तक राकेश संभल गया था तो उसने मेरा मुँह दबा लिया और मेरे को उंगली से चुप रहने का इशारा करने लगा.
तब तक मैं भी अपने होश में आ गई थी.
मुझे सब कुछ समझ में आया तो मुझे हंसी आ गई कि यहां क्या प्लान होने वाला था और क्या हो गया.
मुझे हंसते हुए देख कर राकेश की जान में जान आई.
तब उसने खड़ा करने के लिए मुझे अपना एक हाथ दिया.
मैं ज्यों ही खड़ी हुई, मेरे स्तन में दर्द हुआ … जिससे मैं लड़खड़ा गई और राकेश की बांहों में गिर गई.
इसी बहाने मैंने उसे कस कर पकड़ लिया.
फिर उसने मुझे अलग किया तो मैंने गुस्से वाला चेहरा बना दिया.
उसने मुझसे पूछा- कहां दर्द हो रहा है?
मैंने शर्माते हुए मेरे स्तन की ओर इशारा किया.
तो उसने बोला- दबा दूं क्या?
मैंने गुस्से और प्यार से उसे उसकी छाती पर एक मुक्का मारा.
उसने मुझसे फिर से माफी मांगी और मुझे कस कर गले लगा लिया.
तब मैंने उसे बर्थडे विश किया, वो बोला मेरा बर्थडे गिफ्ट कहां है?
मैंने कहा- आज रात को छत पर खाना खाने के बाद मिलना.
ये कह कर मैं चली आई और उसको वो बिखरी हुई दरियां फिर से समेटनी पड़ीं.
शाम को खाना खाकर मैं जल्दी से ऊपर आ गई.
मैंने एक टाइट टी-शर्ट और टाइट लैगी पहन रखी थी.
लैगी इतनी टाइट थी कि उसमें से मेरी चूत के दोनों होंठों को आराम से महसूस किया जा सकता था.
लेकिन रात को किसी ने ध्यान नहीं दिया.
ऊपर छत पर राकेश पहले से वहीं इंतजार कर रहा था.
मैंने उससे कहा- इतनी जल्दी है क्या गिफ्ट की?
वो कुछ बोलता, उससे पहले मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसके होंठों को अच्छे से चूम लिया.
आज आश्चर्यचकित होने की बारी उसकी थी लेकिन फिर वो भी मेरा साथ देने लगा.
उसने अपना मुँह खोल दिया और मेरी जीभ को अन्दर जाने दिया.
मेरे लिए ये सब नया था, लेकिन इतना मुझे पता चल गया था कि राकेश के लिए भी ये सब कुछ पहली बार और नया था.
वो लगातार मेरा साथ देने लगा.
मैं उससे सटी हुई खड़ी थी तो मुझे उसकी पैंट में उभार महसूस होने लगा था और वो उभार बढ़ता ही जा रहा था.
किस करते करते राकेश के हाथ मेरी पीठ पर घूमने लगे.
मैं तो जैसे सातवें आसमान में घूमने लगी.
मुझे ये सब इतना अच्छा लग रहा था कि मैं किसी और दूसरी बात को सोचना भी नहीं चाहती थी.
धीरे धीरे उसका एक हाथ मेरे दूध को टी-शर्ट के ऊपर से मसलने लगा.
मैं बस पूरी तरह से खो गई थी.
राकेश ने मेरे बूब्स को ऊपर से ही जोर से दबा दिया था.
मेरे निप्पल कड़े हो गए थे, तो दबाने से उनमें दर्द होने लगा था.
एक बूब में पहले से दर्द हो रहा था लेकिन आज मैं रुकना नहीं चाहती थी.
राकेश ने एक हाथ को मेरी कमर पर लगाया और अपने औजार को मुझ पर दबाने लगा.
वो एक हाथ से मेरे सिर को पकड़ कर किस कर रहा था और अपना कमर वाला हाथ धीरे धीरे टी-शर्ट के अन्दर ऊपर उठाने लगा था.
मेरी टी-शर्ट टाइट थी, तो उसे हाथ ऊपर ले जाने में दिक्कत हो रही थी.
उसने टी-शर्ट को खोलने के लिए ऊपर उठाया, लेकिन मैंने मना कर दिया क्योंकि दोनों में से किसी के घर से कोई भी ऊपर आ सकता था.
मैंने अपनी टी-शर्ट को बिंदास तरीके से बूब्स तक ऊपर कर दिया और अपने दोनों मम्मों को आजाद कर दिया.
मैंने आज पहले से सब कुछ प्लान कर रखा था तो अन्दर ब्रा और पैंटी नहीं पहनी थी.
राकेश के हाथ सीधे मेरे बूब्स पर चले गए, वो मेरे दोनों मम्मों को मसलने लगा.
इस सबसे मेरे शरीर में बहुत ज्यादा सनसनाहट पैदा होने लगी.
ऊपर वो मेरे होंठों को किस कर रहा था और एक हाथ से मेरे बूब्स दबा रहा था.
नीचे उसका औजार खड़ा हो गया था और मुझे छू रहा था.
मेरे चूचुक बहुत ज्यादा टाइट हो गए थे. मुझे लग रहा था कि बस अभी मेरे चूचे फट जाएंगे.
उसने धीरे धीरे अपने औजार को मुझसे रगड़ना शुरू कर दिया.
रगड़ से उसमें भी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई.
अब वो मुझे और गहरा किस करने लगा और अपने हाथों से मेरे बूब्स को और जोर से दबाने लग गया.
साथ ही वो मेरे निप्पलों को भी दबाने में लग गया.
फिर उसने अपना मुँह मेरे होंठों से हटा कर मेरे एक दूध पर रख दिया और उसे चूसने लगा.
आज समझ सकती हूं कि वो इस काम के लिए एकदम नया था लेकिन उस समय तो वो ही मेरे लिए जॉनी सीन्स था.
वो जो कुछ भी कर रहा था, जहां भी छू रहा था, मेरे शरीर में उत्तेजना पैदा हो रही थी.
ऐसे में उसने मेरे दोनों बूब्स को हाथ में ले लिया और दोनों को बारी बारी से चूसने लगा.
मेरे शरीर की हालत पूरी तरह से बिगड़ गई थी.
मेरी सांसें उखड़ गई थीं, धड़कन तेज हो गई थीं, गला सूख गया था.
तभी उसका एक हाथ धीरे धीरे नीचे मेरी लैगी की ओर जाने लगा.
मैं अपने होश खो बैठी थी.
ये सब कुछ इस तरीके से हो रहा था कि मैं अपने बस में नहीं थी.
उसने अपना एक हाथ मेरी लैगी के अन्दर डालना शुरू कर दिया.
मुझे पता नहीं, कुछ कुछ होने लग गया था … तो मैंने उसके हाथ को पकड़कर खींचने की असफल कोशिश की.
उसने अपना हाथ अन्दर डाल दिया और ज्यों ही उसकी उंगली अन्दर मेरी चूत ले
दाने तक पहुंची, मेरे मुँह से एक तेज आवाज के साथ मादक सिसकार निकली.
उसी पल मुझे एक भयंकर झटका सा लगा और मैं वहीं पर खड़ी खड़ी झड़ने लगी.
मुझे कुछ भी पता नहीं चल रहा था.
कुछ पल के लिए जैसे मेरे लिए सब कुछ थम सा गया था.
यही जन्नत थी मेरे लिए!
इससे पहले मैंने कभी कभार उंगली से भी अपने आपको शांत किया था.
लेकिन ये जो अहसास अब हो रहा था, उसका कोई विवरण नहीं था.
मैं वहीं खड़ी खड़ी कांपने लगी और मेरी चूत से पानी बाहर आने लगा.
मैंने अपने शरीर को पूरी तरह से राकेश की बांहों में छोड़ दिया था, उसने जैसे तैसे करके मुझे संभाला.
मेरी चूत से पानी निकलने लगा था, जो मेरी टांगों के साथ नीचे आने लगा.
आज से पहले मेरी चूत ने इतना पानी कभी नहीं छोड़ा था, मैं बस सब कुछ भूल कर उसी पल में रहना चाहती थी.
लेकिन राकेश ने मुझे नीचे बिठा दिया और लिटा दिया.
मैं समझ गई थी कि अब मेरी चूत फटने की बारी है.
मैंने राकेश को कुछ देर रुकने को कहा क्योंकि मुझमें अब ताकत ही नहीं बची थी.
राकेश मुझे किस करने लगा और मेरे मम्मों को फिर से दबाने लगा.
अब राकेश ने अपना मुँह मेरे निप्पल पर रख दिया और उसे चूसने लगा.
मेरे निप्पल बहुत ज्यादा कड़े हो चुके थे.
वो उसे किसी बच्चे की तरह चूस रहा था और अपने हाथों को मेरे शरीर पर घुमा रहा था.
मैंने उसको अपनी बांहों में दबा कर भर लिया था और उसकी पीठ को मसलने लगी थी.
धीरे धीरे उसका हाथ मेरी जांघों पर आ गया था और वो हल्के हाथों से सहला रहा था.
इस सबसे मेरी चूत फिर से तैयार होने लगी थी.
धीरे धीरे उसने अपने हाथ को ऊपर उठाना शुरू कर दिया और मेरी चूत के चारों ओर घुमाने लगा.
मैं अब उत्तेजित हो चुकी थी.
मेरी चूत तो पहले से बहुत गीली थी.
उसने अपनी एक उंगली मेरी चूत के ऊपर रख दी और उसे चूत के दोनों होंठों के बीच घुमाने लगा.
मैं अब पूरी तरह से तैयार थी तो उसकी उंगली को मेरी चूत में लेने के लिए मैंने अपनी गांड को ऊपर उठा दिया.
लेकिन राकेश ने पहले ही अपनी उंगली हटा ली.
उसका प्लान कुछ और था.
उसे पता चल गया था कि मैं अब तैयार हूं और वो मौका गंवाना नहीं चाहता था.
वो ऊपर हुआ और सीधे अपनी पैंट और अंडरवियर नीचे घुटनों तब खोल दिया.
मैंने पहली बार किसी लड़के का लंड देखा था, वो फिल्मों वाले लंड से बहुत छोटा था.
उसका लंड करीब 5 इंच का रहा होगा और वो ज्यादा मोटा भी नहीं था.
राकेश का लंड इस समय सीधा खड़ा था और वो इस समय अपने घुटनों पर खड़ा हुआ था.
मैं उसके नीचे अपने पैरों को चौड़ा करके लेटी हुई उसके लंड को अन्दर डालने का इंतजार कर रही थी.
वर्जिन देसी गर्ल Xxx चुदाई के लिए एकदम तैयार थी लेकिन वो थोड़ा हिचकिचा रहा था.
फिर उसने अपने लंड को मेरी चूत पर सैट किया और धक्का देने लगा.
उसने मेरी चूत के ऊपरी हिस्से पर लंड को सैट किया था, जो धक्का देने से फिसल गया था.
तब मैं पूरी तरह से समझ गई थी कि इसको पता नहीं है कि लंड कहां डालना होता है.
मैं भी नहीं चाहती थी कि वो अपने आपको बेइज्जत महसूस करे.
मैंने उसके लंड को पकड़ लिया.
जिंदगी में पहली बार मैंने लंड को अपने हाथ में पकड़ा था तो जोश जोश में थोड़ा दबा दिया.
उसके मुँह से दर्द भरी आवाज निकल गई- आह उई!
फिर मैंने उसके लंड के सुपाड़े को मेरी चूत पर सैट किया और उससे धक्का लगाने को बोला.
उसने धक्का लगाया तो चूत गीली होने से उसके लंड का सुपारा मेरी चूत में आसानी से घुस गया.
पहली बार कोई असली वाला लंड मेरी चूत में गया था, मुझे दर्द भी बहुत हुआ तो मैंने राकेश को वहीं रुकने का इशारा किया.
लेकिन मैंने सुना था कि पहली बार में बहुत दर्द होता है.
वो ही हुआ.
हालांकि वो दर्द कुछ समय में ही कम हो गया.
अब मैं निश्चिंत हो गई थी कि अब बस मजा ही आने वाला है, दर्द तो हो चुका है.
मैं झिल्ली फटने की बात को भूल गई थी तो जोश जोश में मैंने राकेश को धक्का लगाने को बोल दिया.
राकेश ने मेरा इशारा पाते ही अपने लंड को जोर से अन्दर धकेला.
राकेश का लंड भी पतला था और वो धक्का इतना तेज था कि मेरी झिल्ली को तोड़ते हुए पूरा अन्दर चला गया.
झिल्ली फटने के दर्द से मेरे मुँह से जोर से चीख निकल गई.
राकेश ने मेरे मुँह को जल्दी से अपने हाथ से दबाया.
दर्द के मारे मेरी आंखों में से आंसू आने लगे.
राकेश ने अपना हाथ हटा कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और लगभग आधा मिनट लंड को वैसे ही पेले रखा.
मेरा भी दर्द कम हो रहा था और मैं भी अपने होश में आने लगी थी.
राकेश ने बिल्कुल धीरे धीरे अपने लंड को अन्दर ही आगे पीछे किया जिससे मुझे दर्द भी नहीं हुआ और मैं वापस उत्तेजित होने लगी.
एक दो मिनट बाद ही राकेश मुझे तेज तेज चोदने लगा.
मैं भी अपनी गांड उठा कर उसका साथ देने लगी.
मेरे हाथ राकेश की पीठ पर घूमने लगे और मैंने दोनों पैरों से राकेश को बांध लिया था.
राकेश अब बहुत ज्यादा हांफ रहा था और मुझे किस करते हुए धकापेल चोद रहा था.
हम दोनों के मुँह से आह आह की आवाज आ रही थी.
ये सब कुछ मेरे लिए जन्नत सी थी.
मैं बस जिंदगी भर यूं ही चुदना चाहती थी.
बस मन कह रहा था कि ये चुदाई कभी पूरी ही न हो.
राकेश का भी ये मौका पहला था और मैं भी गांड उठा उठा कर उसका साथ दे रही थी.
कुछ देर बाद राकेश बोला- मेरा होने वाला है, कहां निकालूं?
मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और मुझे पता था कि इसको अन्दर डालने से मैं प्रेगनेंट हो सकती हूँ.
तो मैंने उसको बाहर निकालने को बोला.
उसने आनन-फानन में झट से अपने लंड को चूत से बाहर निकाल दिया और एक तेज
पिचकारी के साथ उसका सामान झटकों के साथ अपने माल को मेरे ऊपर डालने लगा.
उसकी पिचकारी मेरे चेहरे से भी आगे तक जाकर गिरी.
मेरा चेहरा भी उसके माल से भीग गया और मेरी टी-शर्ट पर भी उसका माल लग गया.
राकेश का माल निकलते ही वो मेरे पास में निढाल होकर गिर गया और जोर जोर से हांफने लगा.
फिर जैसे ही उसने मेरी तरफ देखा, तो मैं पहले से ही उसे देख रही थी.
उसने उखड़ी हुई आवाज में मुझसे कहा- ये मेरी जिंदगी की सबसे बढ़िया वाली गिफ्ट है, जिसे में कभी भूल नहीं सकता.
ऐसा बोल कर उसने मुझे किस कर लिया.
फिर हम कुछ टाइम वैसे ही लेटे रहे.
तभी मेरी मम्मी ने मुझको पुकारा तो हम दोनों को होश आया और हम दोनों ने जल्दी जल्दी कपड़े ठीक किए.
मैंने टी-शर्ट से अपने चेहरे को भी साफ किया.
टी-शर्ट अन्दर से गंदी हुई थी क्योंकि वो ऊपर पलटी हुई थी तो टी-शर्ट को नीचे कर लिया.
मेरे खड़े होते ही राकेश को मेरे नीचे खून दिखा, वो कुछ बूंदें ही थीं, तो उसे कुछ डर लगा.
उसने मुझे बताया तो डर मुझे भी लगा लेकिन मैं उसके सामने खुद को कमजोर नहीं
बताना चाहती थी और पता भी था कि पहली बार में ये सब हो सकता है.
मैंने उसे समझाया और वो सामान्य हो गया.
फिर हम दोनों ने एक जोरदार किस की और एक दूसरे को कस कर बांहों में भर लिया.
फिर मैं ज्यों ही चलने लगी तो दर्द के मारे मेरे पैर उखड़ने लगे.
मैंने दीवार का सहारा लिया.
राकेश तब तक जा चुका था.
मैं कैसे भी करके नीचे पहुंची.
नीचे दीदी सीढ़ियों के पास मेरा इंतजार कर रही थी.
मां सोने चली गई थीं.
मैंने पैरों को अच्छे से रखने की कोशिश की लेकिन थोड़ा बहुत बदलाव रहता ही है और मैं जैसे तैसे कमरे तक पहुंच गई.
मेरी दीदी ने मुझसे कहा- पहली बार में ये सब होता है, छुपाने से नहीं छुपता ये!
इतना सुनते ही मैं चौंक गई और समझ गई कि दीदी को आज की घटना के बारे में पता चल गया.
मैंने अनजान बनते हुए कहा- क्या पहली बार … किस बारे में बात कर रही हो तुम?
दीदी ने कहा- बड़ी हूं तेरे से और तेरे से ज्यादा एक्सपीरियंस है मुझे … अब चल तुझे सुसु करवा लाऊं, तुझसे तो चला नहीं जाएगा.
ऐसा बोल कर दीदी ने मुझे पकड़ा और सुसु करवाने ले गई.
वापस आकर दीदी ने मेरे को एक गोली दी.
मैंने बिना कुछ बोले वो गोली ले ली और हम दोनों सो गए.
दोस्तो इस प्रकार से पहली बार मैंने किसी से चुदाई की थी.
मैंने बाद में कई बार और भी राकेश के साथ सेक्स किया था.