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Monday, 30 September 2024

पराये मर्द के लण्ड का नशा

 शब्दों का गढ़न भी एक कला है, जो हर एक के पास नहीं होती। बहरहाल उनकी कहानी उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ, कहानी कैसी लगी, उन्हें ज़रूर बताएँ।  इस मंच पर मैं अपना नाम तो नहीं बता सकती, मिसेज सिद्दीकी कह सकते हैं। बाकी चीज़ें वैसी की वैसी लिख रही हूँ। मेरी उम्र पच्चीस साल है, सामान्य लम्बाई, रंग साफ़, फिगर भी साधारण, 34 नंबर की ब्रा पहनती हूँ और कबूल सूरत हूँ। शादी हुए तीन साल हो गए, डेढ़ साल की बेटी है। पति सरकारी नौकरी में हैं, अच्छे हैं, सीधे-सादे, वैसे तो मैं लखनऊ की रहने वाली हूँ और पति गोरखपुर के, पर नौकरी के चलते इधर-इधर होते रहते हैं और अब फ़िलहाल हम कानपुर में हैं।  यह तो हुआ मेरा परिचय और अब आते हैं असली कहानी पर।  कानपुर मुझे तो कोई खास नहीं लगा, मगर मेरे पति को पसन्द है, वो यहीं रहना चाहते हैं तो खुद का मकान भी खरीद लिया था और उन दिनों उस नए घर में पहले की वायरिंग हटा कर नई अन्डरग्राउंड वायरिंग करा रहे थे रफीक नाम के एक मिस्त्री से। इन्हीं दिनों में मेरे जीवन में किसी पराये मर्द की परछाई पड़ी, वरना मेरी बाईस की उम्र में शादी होने तक किसी ने मेरे यौनांग की झलक भी नहीं पाई थी और सील भी पति ने ही तोड़ी थी जो मुझसे उम्र में तेरह साल बड़े हैं।  हालांकि वो बहुत कम सेक्स कर पाते हैं और जल्दी ही शिथिल पड़ जाते हैं मगर चूंकि मैंने कभी किसी और के साथ शरीर का सुख नहीं भोगा था इसलिए न जानने की वजह से शिकायत भी कभी नहीं हुई।  बहरहाल, रफीक तीस के आस-पास का साधारण शरीर और ठीकठाक सूरत वाला युवक था, पति सुबह चले जाते और वो दिन भर छेनी-हथौड़ी से दीवार तोड़ता रहता। मैं घर के कामों में मसरूफ़ रहती या बेटी के साथ मस्त रहती।  वैसे तो मुझे वो नज़रें झुकाए रहने वाला, सीधा सादा शरीफ इन्सान लगा, पर एक दिन दोपहर को नहाते वक़्त मैंने महसूस किया क़ि मुझे वो चाबी के छेद से देख रहा है। मैंने तौलिया लपेटा और दरवाज़े तक आई। मुझे ऐसा लगा जैसे वो दरवाज़े के पास से हटा हो।मैंने दरवाज़ा खोल कर बाहर झाँका तो वो सामने की दीवार पर कुछ करता दिखा। मेरी नज़र उसकी पैंट पर गई तो वहाँ उभरी हुई नोक साफ़ नज़र आई।  गुस्से से मेरे तन बदन में आग लग गई, दिल तो किया के अभी तबियत से झाड़ दूँ, पर जैसे-तैसे सब्र करके वापस दरवाज़ा बंद किया और स्नान पूरा किया। उस दिन वो मुझसे नजरें ही चुराता रहा और मुझे रह-रह कर गुस्सा आता रहा। अगले दिन भी उसने वही पर हरकत की जब मैं अपने बेडरूम में कपड़े बदल रही थी।  मैंने महसूस किया मेरे अंदर दो तरह की विरोधाभासी कशमकश चल रही थी, एक तरफ तो मुझसे गुस्सा आ रहा था और दूसरी तरफ मन में यह अहंकार भी पैदा हो रहा था कि मैं हूँ देखने लायक… वह मुझे देखे और ऐसे ही जले। इससे ज्यादा क्या कर लेगा मेरा।ज़िन्दगी में पहली बार किसी पराये मर्द के द्वारा खुद को नंगी देखे जाने का एहसास भी अजीब था। शादी से पहले ऐसा होता तो शायद एहसास और कुछ होता पर अब तो मैं कुँवारी नहीं थी।  मुझे अपनी सोच पर शर्म और हंसी दोनों आई। खैर उस दिन भी मैंने कुछ नहीं कहा और तीसरे दिन नहाते वक़्त मैं मानसिक रूप से पहले से ही देखे जाने के लिए तैयार थी।  मैं खास उसे दिखाने के लिए नहाई मल-मल कर, अपने वक्षों को उभार कर, मसल कर, यौनांग के बालों को भी दरवाज़े की ओर रुख करके ही साफ़ किया ताकि वो ठीक से देख सके। मैं ये सोच-सोच कर मन ही मन मुस्कराती रही कि पता नहीं बेचारे का क्या हाल हो रहा होगा।  उस दिन उसने नज़रें नहीं चुराईं, बल्कि देख कर अर्थपूर्ण अंदाज़ में मुस्कराया, पर मैंने तब कोई तवज्जो नहीं दी।  उसी दिन चार बजे के करीब मैं बेटी के साथ लेटी टीवी देख रही थी, तब बाहर उसका शोर बंद हुआ तो मुझे कुछ शक सा हुआ, मैंने बाहर झांक कर देखा तो वो नहीं था, बाथरूम का दरवाज़ा बंद दिखा, शायद वो उसमें था। मैंने चाबी वाले छेद से वैसे ही देखने की कोशिश की जैसे वह मुझे देखता होगा।  वह कमोड के सामने अपना लिंग थामे खड़ा उसे सहला रहा था, पता नहीं पेशाब कर चुका था या करनी थी अभी, पर उसका लिंग अर्ध-उत्तेजित अवस्था में था और उसके लिंग का आकार देख कर मेरी सिसकारी छूट गई।  मेरे पति का लिंग करीब चार साढ़े चार इंच लम्बा और डेढ़ इंच मोटा था और बेटी के जन्म से पहले वो भी बहुत लगता था। उससे बड़े तो सिर्फ पति की दिखाई ब्लू फिल्मों में ही देखे थे जो किसी और दुनिया के लगते थे। बेटी के जन्म के बाद से योनि इतनी ढीली हो गई थी कि सम्भोग के वक़्त पानी से गीली हो जाने पर कई बार तो घर्षण करते वक़्त कुछ पता ही नहीं चलता था।  अब इस वक़्त जो लिंग मेरे सामने था वो ब्लू फिल्मों जैसा ही कल्पना की चीज़ था। अर्ध-उत्तेजित अवस्था में भी दो इंच से ज्यादा मोटा और आठ इंच तक लम्बा, पूर्ण उत्तेजित होने पर और भी बढ़ता होगा।  मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई और ऐसा लगा जैसे एकदम से किसी किस्म का नशा सा चढ़ गया हो। जिस्म पर पसीना आ गया। योनि में भी अजीब सी कसक का एहसास हुआ और मैं वह से हट आई। अपने कमरे में पहुँच कर बिस्तर पर लेट कर हांफने लगी।  तब से लेकर पूरी रात और अगली सुबह तक उसका स्थूलकाय लिंग मेरे दिमाग में चकराता रहा और अगले दिन जब वह काम पर आया तो मेरी नज़र किसी न किसी बहाने से उसकी पैंट पर ही चली जाती, उसने भी इस चीज़ को महसूस कर लिया था।  अगले दिन मैंने पति के जाने के बाद उससे पूछा- तुम्हारा काम कब तक का है?  उसने बताया कि अभी तीन दिन और लगेंगे। फिर मैं अपने कामों में लग गई। मतलब अभी तीन दिन उसे और झेलना पड़ेगा, मेरी अब तक की ज़िंदगी एक पतिव्रता स्त्री की तरह ही गुजरी थी, मगर अब वो मेरे दिमाग में खलल पैदा कर रहा था। जैसे-तैसे करके दोपहर हुई, मैं बार-बार ध्यान हटाती, मगर रह-रह कर उसका मोटा सा अंग मेरी आँखों के आगे आ जाता। दोपहर में मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुसी तो दिमाग में कई चीज़ें चल रही थीं। दिमाग इतना उलझा हुआ था कि दरवाजे की कुण्डी लगाना तक न याद रहा।  फिर नहाने के वक़्त भी दिमाग अपनी जगह नहीं था, झटका तब लगा जब किसी के दरवाज़े पर जोर देने से वो खुल गया। मैंने पीछे घूम कर देखा तो सामने ही रफीक खड़ा उलझी-उलझी साँसों से मुझे देख रहा था।  “क्या है? तुम अन्दर कैसे आये?” मुझे एकदम से तो गुस्सा आया पर साथ ही एक डर भी समा गया मन में।

फिर नहाने के वक़्त भी दिमाग अपनी जगह नहीं था, झटका तब लगा जब किसी के दरवाज़े पर जोर देने से वो खुल गया। मैंने पीछे घूम कर देखा तो सामने ही रफीक खड़ा उलझी-उलझी साँसों से मुझे देख रहा था।

“क्या है? तुम अन्दर कैसे आये?” मुझे एकदम से तो गुस्सा आया पर साथ ही एक डर भी समा गया मन में।

“कुछ नहीं मैडम, बस आपको नहाते हुए सामने से देखना चाहता था।”

“दिमाग ख़राब हो गया है क्या? बाहर जाओ फ़ौरन…जाओ।” मैं एकदम से ऐसे घबरा सी गई थी कि खुद को समेटने के लिए घुटनों के बल बैठ गई थी, अपना सीना हाथों से छुपाये थी और टांगें चिपका ली थीं कि योनि न दिखे।

“कोई बात नहीं मैडम, मैं किसी को बताऊँगा थोड़े ही, आप नहाओ न।” वो मेरे पास आ कर बैठ गया और मेरे कंधे पकड़ लिए।

“मैं साहब को बता दूँगी, जाओ यहाँ से।” बेबसी से मेरी आँखों में आँसू आ गए।

पर वह नहीं गया और मेरे अपने वक्षों को ढके हाथ हटाने के लिए जोर लगाने लगा। मैंने उसे हाथ खोल कर उसे दूर धकेलने की कोशिश की, मगर वो मुझसे ज्यादा ताक़तवर था, नहीं हटा बल्कि फिर मेरी कलाइयाँ पकड़ कर ऐसा जोर लगाया कि मैं बाथरूम के गीले फर्श पर फैल गई। मेरी समझ में नहीं आ रह था कि मैं कैसे खुद को बचाऊँ।

“मुझे छोड़ दो…प्लीज़ !”

“हाँ मैडम, छोड़ दूँगा, आप डरो नहीं, कुछ नहीं होगा… मैं अभी चला जाऊँगा।” वह मुझ पर छाता चला गया। उसने मेरे ऊपर लदते हुए मेरे हाथ ऊपर करते हुए, एक हाथ से उन्हें जकड़ लिया और दूसरे हाथ से मेरे स्तन मसलने लगा और मेरे होंठ चूसने की कोशिश करने लगा। मैंने चेहरा इधर-उधर करके अपने होंठों को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन बचा न सकी और उसके होंठों ने मेरे होंठ पा ही लिए। मुझे सिगरेट की गंध आई, पर अब बचना मुश्किल था।

अपने तन पर एक अजनबी के बदन के एहसास के साथ यह एहसास भी था कि जो हो रहा था, वह अनचाहे मैंने ही होने का मौका दिया था। बदन में अजीब सी सनसनाहट भर रही थी।

मेरी मांसपेशियों का तनाव ढीला पड़ते देख उसने दोनों हाथों से मेरे वक्षोभारों को आटे की तरह गूंथना शुरू कर दिया। मैंने फिर एक कमज़ोर से विरोध के साथ उसे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी न मिली।

उसने मेरी बाँहों को अपनी पकड़ में लेकर अपने होंठों से मेरे होंठ आज़ाद किये और मेरी ठोढ़ी और गर्दन से होते मेरे भरे-भरे वक्ष तक पहुँच गया और चूचुकों को एक-एक कर चूसने लगा। अब मेरे जिस्म में भी चिंगारियाँ उठने लगीं।

मगर अब भी मेरे शरीर में विरोध रूपी ऐंठन बाकी थी, जिसे वह भी महसूस कर रहा था इसलिए उसने अपनी पकड़ ढीली न होने दी और मेरे वक्षों से अपना मुँह हटाया तो उन्हें दोनों हाथों से थाम कर खुद एकदम से नीचे चला गया और जब मेरे यौनांग तक पहुँच गया, तो हाथ सीने से हटा कर मेरी जाँघों में ऐसे फँसा लिए कि मैं पैर न चला सकूँ।

फिर वो होंठों से चूमने लगा और मैंने अगले कुछ पलों में उसकी खुरदरी जीभ का अनुभव अपनी योनि के ऊपरी सिरे पर किया।

एकदम से मेरी सिसकारी छूट गई।

कुछ देर की चटाई में ही मैं ढीली पड़ गई और मेरा विरोध कमज़ोर पड़ते देख उसने भी अपनी पकड़ ढीली कर दी और अब एक हाथ तो ऊपर ले आया, जिससे मेरी छाती सहला सके और दूसरे की बीच वाली उंगली मेरी योनि के गर्म छेद में उतार दी।

ऐसा लगा जैसे चिंगारियाँ सी उड़ने लगी हों। थोड़ी देर में ही मैं आग का गोला हो गई, जायज नाजायज़, सही गलत, अपना गुस्सा, नफरत सब कुछ भूल गई और रह गया तो दिमाग में बस यही कि वो ब्लू फिल्मों जैसा स्थूलकाय लिंग अब मेरे पास है।

जब उसने यह महसूस कर लिया कि मैं अच्छी तरह गर्म हो गई हूँ, तब उसने मुझे छोड़ा। बाथरूम के गीले फर्श के कारण उसके कपड़े भी जहाँ-तहाँ गीले हो गए हो गए थे, मैं देखती रही और उसने मुझे अपनी बांहों में उठा लिया और बाथरूम से बाहर निकाल लाया। मैंने अब कोई ऐतराज़ करने वाली हरकत नहीं की। वह मुझे बेडरूम में ले आया और बिस्तर पर डाल दिया। बेटी अपने पालने में सो रही थी।

फिर उसने अपने कपड़े उतारे। मेरे दिमाग पर एक अजीब सा नशा हावी हो रहा था और बदन में एक आनन्ददायक सनसनाहट भर रही थी। मेरी नज़र उसके जिस्म के उसी हिस्से पर थी जहाँ मेरे मतलब की चीज़ थी। फिर वो मुझे दिखी, अब इस वक़्त पूरी उत्तेजित अवस्था में उसकी जननेंद्रिय उतनी ही विशालकाय थी, जितनी मैंने अपनी कल्पना में कई बार देख डाली थी।

मेरी नज़रों ने उसे बता दिया कि मुझे वह चीज़ बहुत पसन्द आई थी, वह मेरे सर के पास आकर घुटनों के बल बैठ गया और अपना मोटा सा लिंग मेरे चेहरे पर रगड़ने लगा।

मैं समझ रही थी कि वह क्या चाहता था, मगर मैं उसे ग्रहण नहीं कर पा रही थी। उसने मेरे बाल पीछे से पकड़ कर मेरा चेहरा एक जगह रोक कर जब उसे मेरे होंठों पर रगड़ा तो होंठ जैसे खुद-ब-खुद खुल गए और उसके शिश्नमुंड के छेद से रिसता नमकीन द्रव्य मेरी जुबान पर लगा।

पहले तो उबकाई सी होने को हुई पर फिर उसे ग्रहण कर लिया और उस गैर मर्द के लवड़े को अपने मुँह में कबूल कर लिया।
फिर मुझे खुद ही यह एहसास न रहा कि कब मैं उस पूरे लिंग को मज़े ले-ले कर पूरी दिलचस्पी से चूसने लगी… वो एक हाथ से मेरा सर संभाले था, तो दूसरे हाथ से मेरी योनि को सहला रहा था, मेरी भग्न को रगड़ रहा था।

कुछ देर बाद एक ‘प्लाप’ की आवाज़ के साथ उसने अपना लिंग बाहर खींच लिया और मेरी टांगों के बीच पहुँच गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैं थोड़ी घबराहट के साथ एक हमले के लिए तैयार हो गई।

“कुछ चिकनाहट के लिए लगा लूँ क्या मैडम जी, आप को दर्द न हो !” उसने बड़े प्यार से कहा।

“नहीं, ज़रूरत नहीं, मैं एक बच्चा पैदा कर चुकी हूँ।”

उसने अपने सुपारे को योनि पर कुछ देर रगड़ा और फिर बीच छेद पर टिका कर हल्का सा धक्का दिया। यह और बात है कि इस हल्के धक्के के बावजूद भी मेरी ‘कराह’ निकल गई और उसका लिंग करीब एक इंच तक योनि में धंस गया।

उसने इससे ज्यादा घुसाने की कोशिश करने के बजाय खुद को मेरे बदन पर गिरा लिया और एक हाथ से एक वक्ष दबाते हुए दूसरे वक्ष को अपने मुँह में ले लिया और चूचुक को चुभलाने लगा। मेरे हाथ भी खुद-बखुद उसकी पीठ पर फिरने लगे।

दर्द पर आनन्द हावी होने लगा। मैं महसूस कर रही थी कि उसका XL साइज़ का लिंग लगातार योनि के संकुचित मार्ग को धीरे-धीरे फैलाता अन्दर सरक रहा है। मैंने आँखे भींच ली थी और खुद को उसके हवाले कर दिया था।

फिर शायद आधा अन्दर घुसाने के बाद, वो ऊपर से हट कर अन्दर घुसाए-घुसाए ही वापस उसी पोजीशन में बैठ गया। फिर उसने लिंग को वापस खींचा, ऐसा लगा जैसे राहत मिल गई हो लेकिन यह राहत क्षणिक थी, उसने वापस एक जोरदार धक्का मारा और इस बार तीन चौथाई लिंग योनिमार्ग को भेदता हुआ अन्दर धंस गया।

दर्द पर आनन्द हावी होने लगा, मैं महसूस कर रही थी कि उसका XL साइज़ का लिंग लगातार योनि के संकुचित मार्ग को धीरे-धीरे फैलाता अन्दर सरक रहा है। मैंने आँखे भींच ली थी और खुद को उसके हवाले कर दिया था।

फिर शायद आधा अन्दर घुसाने के बाद, वो ऊपर से हट कर अन्दर घुसाए-घुसाए ही वापस उसी पोजीशन में बैठ गया। फिर उसने लिंग को वापस खींचा, ऐसा लगा जैसे राहत मिल गई हो लेकिन यह राहत क्षणिक थी, उसने वापस एक जोरदार धक्का मारा और इस बार तीन चौथाई लिंग योनिमार्ग को भेदता हुआ अन्दर धंस गया।

इस आकस्मिक हमले से मैं खुद को संभाल न पाई और मेरी चीख निकल गई। मैंने छूटने की कोशिश की, उसे धकेलने की कोशिश की, लेकिन इस बार उसने मेरी जाँघों को मजबूती से थाम लिया था।

तीन चौथाई अन्दर डालने के बाद फिर वापस खींच कर एक और ज़ोरदार धक्का मारा और पूरा ही अन्दर धंसा दिया। मेरी जान सी निकल गई, जिस्म पर पसीना छलछला आया। इस बार चीख तो मैंने रोक ली थी मगर सर चकरा गया था।

वो फिर मेरे ऊपर लद कर मेरे वक्षों से खिलवाड़ करने लगा।

मैंने समझ रही थी, वो मौका दे रहा था कि योनि लिंग के हिसाब से व्यवस्थित हो जाए।

थोड़ी देर की रगड़ा-रगड़ी के बाद उसने अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास लाकर कहा- कैसा लग रहा है जानेमन, मुझे पता है कि तुम्हें मेरा लंड बहुत पसंद आया है ! बोलो न?”

“ठीक है ! अब बकवास मत करो।”

“अब बकवास लग रही है और अभी तो ऐसे चूस रही थी, जैसे छोड़ने का इरादा ही न हो?”

मैंने खिसिया कर चेहरा घुमा लिया। अपने बदन पर उसके नंगे बदन की सरसराहट और योनि में ठुंसे हुए लिंग का एहसास… मुझे अपना दर्द भूलते देर न लगी। आनन्ददायक लहरें उस दर्द पर हावी होती गई और मैंने उसकी पीठ सहलाने लगी, अपनी टांगों को और फैला कर उसकी जाँघों पर चढ़ा लिया।

उसे समझते देर न लगी कि अब मैं पूरी तरह तैयार थी, इस समागम के लिए और वो उठ गया, उसने फिर पहले जैसी पोजीशन बनाई और अपने हाथ के पंजों को मेरे नितम्बों पर कस कर पूरा लिंग बाहर निकाल लिया और फिर वापस अन्दर एक धक्के से घुसाया…

अब योनि उसे स्वीकार कर उसके हिसाब से जगह बना चुकी थी और वो भी मेरे रस से सराबोर था। सो आराम से योनि की दीवारों को एक आनन्ददायक रगड़ देता जड़ तक सरकता चला गया। उसके शिश्नमुण्ड की ठोकर मुझे अपनी बच्चेदानी पर महसूस हुई।

कुछ धक्कों के बाद जब लिंग आसानी से समागम करने लगा तो उसने नितम्ब छोड़ के अपने हाथों से मेरे पेट पर पकड़ बना ली, हर धक्के के बाद ऐसा लगता जैसे बाहर जाते वक़्त लिंग के साथ उस पर कसी हुई योनि भी बाहर निकल जाना चाहती है पर वो फिर उसे अन्दर ठूंस देता।

हर धक्के पर मेरी ‘आह’ निकल जाती। मैंने चेहरा एक तरफ़ घुमा रखा था और मुट्ठियों में बेड की चादर भींच ली थी, पर वो मेरे जिस्म में उठती आनन्द की लहरों को महसूस कर सकता था, जो उसे और उत्तेजित कर रही थी।

“जिस दिन से काम पर आया हूँ, कसम से ईमान डोला हुआ है। आज जाकर मेरे पप्पू को तसल्ली हुई है। एक बच्चे के बाद भी इतनी कसी हुई है। लगता है साहब जी सामान कुछ ख़ास नहीं।”

“तेरे से आधा है।” मेरे मुँह से बेसाख्ता ही निकल गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

“हाँ, होगा ही !” वह अजीब से अंदाज़ में हंसा- इसीलिए तो इतनी भूखी निगाहों से देख रही थी।

मैंने कुछ नहीं कहा और उन ‘गचागच’ लगते धक्कों से पागल होती रही, मेरे मुँह से उल्टे-सीधे शब्द निकलना चाहते थे, पर बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को कंट्रोल किया हुआ था।

बस ‘आह-आह’ करती रही और वो जोर-जोर से धक्के लगाता रहा और इसी तरह मैं अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर बुरी तरह ऐंठ गई। योनि से निकले काम-रस ने उसके बेरहमी से वार करते लिंग को नहला दिया। उसके लिए रास्ता कुछ और आसान हो गया।

फिर कुछ देर के ठण्डे पलों के बाद मैं फिर से गर्म हो गई और अपने नितम्ब उठा-उठा कर उसे पूरा अन्दर कर लेने की कोशिश करने लगी। तब उसने लिंग को एक झटके के साथ बाहर निकाल लिया।

“क्या हुआ?”

“एक ही आसन में कराओगी क्या? उलटी हो जाओ, उसमें ज्यादा मज़ा आता है।”

मुझे पता है ज्यादा मज़ा आता है, पर फिर भी एक डर था उसके अंग की लम्बाई मोटाई का, बहरहाल मैंने विरोध करने का मौका तो कहीं पीछे छोड़ दिया था। मैं घोड़ी बन गई।

उसने मेरी कमर पर दबाव बना कर मुझे अपने हिसाब से नीचे कर लिया, अब मेरी योनि उसके सामने हवा में खुली थी, मगर वो उंगली मेरी गुदा द्वार पर फिरा रहा था।

“वहाँ नहीं, प्लीज़, मैं मर जाऊँगी…”

मैंने बेड पर लेट जाना चाहा मगर उसने मेरी कमर थाम ली थी।

“नहीं, डरो मत मेरी जान, अभी इसका नंबर नहीं है।” वह हँसते हुए बोला।

“शक्ल से तो बड़े शरीफ लगते हो, पर हो बड़े कमीने किस्म के इन्सान।”

“एक इसी मामले में तो तो कोई साधू हो मौलाना, सब कमीने होते हैं और तुम जैसी शरीफ औरतें हम कमीनों को ही पसंद करती हैं।”

सही कह रहा था कमीना ! फिर एक ठोकर में उसने मेरी खुली हवा में फैली योनि में अपना लिंग ठूंस दिया और नितम्बों को थाम कर बेरहमी से धक्के लगाने शुरू कर दिए।

जब मैं वापस फिर अपने चरम पर पहुँचने लगी तो इस बार अपना मुँह बंद न रख पाई।

“और जोर से-और जोर से… हाँ-हाँ ऐसे ही… ऐसे ही… और और… फक मी हार्ड… कम ऑन , बास्टर्ड फक मी हार्ड…!”

“लो और लो मेरी जान… यह लो… पर यह पीछे वाला छेद भी चखूँगा… इसे भी चोदूँगा… बोलो न जान, डालने दोगी?”

“हाँ हाँ… उसे भी मत छोड़ना… डाल देना उसमें भी !”

उसने धक्के लगाते-लगाते अपनी एक उंगली गुदा द्वार में सरका दी और साथ में उसे भी अन्दर-बाहर करने लगा… इससे धक्कों की तूफानी रफ़्तार कुछ थम सी गई।

“छेद में कुँवारेपन का कसाव नहीं है मेरी जान, मतलब इसमें भी डलवाती हो न!”

“हाँ… हाँ…पर तुम कल कर लेना उसमें… वादा करती हूँ… पर आज आगे ही करो प्लीज़।”

“नहीं, आज ही, कल का क्या भरोसा… अभी वक़्त है, एक राउंड अभी और हो जायेगा। जल्दी बोलो !”

“नहीं, आज नहीं कल… अब करो न ठीक से।”

“आज, वरना…!”

उसने एकदम से अपना लिंग बाहर निकाल लिया। मैं तड़प कर रह गई… मैंने घूम कर उसे देखा। वो अजीब सौदेबाज़ी वाले अंदाज़ में मुझे देख रहा था।

“ओके, पहले अभी करो… दूसरे राउंड में कर लेना।” मैंने हथियार डाल दिए।

उसने फिर मेरे नितम्बों पर पकड़ बनाई और लिंग अन्दर ठूंस दिया। एक मस्ती भरी ‘कराह’ मेरे मुँह से निकल गई और उसने फिर तूफानी रफ़्तार से जो धक्के लगाए तो मुझे अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचते देर नहीं लगी मगर वो भी साथ में ही चरम पर पहुँच गया।

“मेरा निकलने वाला है… कहाँ निकालूँ?”

“मैं अँग्रेज़ नहीं, जहाँ हो वहीं निकालो।”

और उसने जोर से कांपते हुए मुझे कमर से भींच लिया। पहले मेरा पानी छूटा और फिर उसके अंग से गर्म वीर्य की पिचकारी छूटी। फिर दोनों ही कराहते हुए बेड पर फैल गए। एकदम से दिमाग पर ऐसा नशा छाया के नींद सी आ गई।

फिर कुछ पलों बाद होश आया तो हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे पड़े थे और वो अब फिर से मेरी छातियाँ सहला रहा था। मैंने उसे दूर करने की कोशिश की पर कर न सकी और वह हाथ नीचे ले जाकर फिर उसी ज्वालामुखी के दहाने से छेड़-छाड़ करने लगा। मैं कसमसा कर रह गई।
कुछ देर की कोशिश के बाद मैं फ़िर से गर्म हो गई और खुद को उसके हवाले कर दिया।

“कुछ चिकनी चीज़ है, जैली या तेल?”

“सरसों का तेल है… वो रखी है शीशी।”

उसने ड्रेसिंग टेबल से शीशी उठाई और उंगली पर लेकर गुदा-द्वार पर लगाने लगा, सामने से बैठ कर मेरी टाँगें मेरे सीने तक पहुँचा दी और तेल को छेद में डालने लगा… कुछ देर में ही वो बेहद चिकना हो गया और उसकी 3 उँगलियाँ तक अन्दर जाने लगीं।

फिर उसी अवस्था में लेट कर वह अपनी जीभ से मेरी योनि के दाने को सहलाने चुभलाने लगा और उंगली को गुदा के छेद में चलाता रहा। जब मैं बुरी तरह गरम हो कर सिसकारने, ऐंठने लगी तो वो उठ कर मेरे सर के पास चला आया और अपना मुरझाया हुआ लिंग मेरे होंठों के आगे कर दिया।

अब इन्कार की गुंजाईश कहाँ बची थी, मैंने उसे मुँह में ले लिया और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।

कुछ ही देर में वो लकड़ी जैसा हो गया तो वह फिर मेरे पैरों के बीच पहुँच गया।

“जैसे पहले पोजीशन बनाई थी वैसे ही बनाओ अब।”

मैं फिर से बिल्ली जैसी अवस्था में हो गई और उसने मेरे नितम्ब थाम कर उन्हें अपने हिसाब से कर लिया और फिर अपने लिंग की नोक को छेद पर रख के हल्के से दबाया… सुपाड़ा अन्दर फंस गया और मेरी सांस गले में, पर मैं संभल पाती उससे पहले एक झटका लगा कर उसने आधा लिंग अन्दर कर दिया।

मेरे मुँह से एकदम से चीख निकल गई, मैंने झटके से आगे होने को हुई लेकिन उसने कूल्हे पकड़ रखे थे।

मैं कराह कर रह गई।

उसने फिर कुछ देर उसे अन्दर रहने दिया और एक हाथ नीचे डाल कर योनि के दाने को सहलाने लगा। फिर थोड़ी सनसनाहट पैदा हुई तो दर्द से ध्यान हटा और उसने इसी हालत में धीरे-धीरे सरकाते हुए पूरा लिंग अन्दर डाल दिया।

“गया पूरा… अब संभालो।”

कुछ धक्के उसने बड़े प्यार से धीरे-धीरे लगाए और रास्ता बनते ही उसकी रफ़्तार तेज़ होती गई, अब उसने दोनों हाथों से मेरे नितम्ब पकड़ लिए और जोर-जोर से धक्के लगाने लगा। मैं भी गर्म होती गई… और हर धक्के पर एक कराह छोड़ते मैं जल्दी ही फिर अपने चरम पर पहुँच कर बह गई और पीछे के छेद के कसाव उसे भी मार गया।

वो पहले जितनी देर न टिक सका और जल्दी ही कूल्हों को मुट्ठियों में भींच कर सारा माल अन्दर निकाल दिया और फिर पूरी ट्यूब खाली होते ही अलग हट कर ढेर हो गया।

वह था मेरी जिंदगी में पहला परपुरुष, पराया, गैर मर्द… और पहला अवैध सम्भोग, लेकिन उसने मुझे एक अलग दुनिया दिखा दी जो मुझे इतनी भायी कि फिर तो मैं कई अलग-अलग मर्दों की गोद तक पहुँच गई।

चुद गई 18 बरस की लड़की

 

घटना को लिपिबद्ध करने में कामुकता पैदा करना आवश्यक हो जाता है और उद्देश्य भी यही होता है कि लड़कों के लंड से रस टपकने लगे और वे सब मुट्ठ मारे बिना न रह पायें तथा सब लड़कियों की चूत रसीली हो जाए और उनके हाथ भी जबरदस्ती उनकी चूत में घुस जाएँ.

हमारे परिवार में कुल तीन सदस्य हैं, मैं बाईस साल का मेरी बहन 18 साल की और माता जी. मेरे माँ नौकरी करतीं हैं.

हम लोग मम्मी के साथ ही रहते हैं. वे भी अक्सर सरकारी काम से बाहर जाती रहती हैं. मम्मी को एक सरकारी नौकर मिला हुआ है, उसका नाम जुगल है. वो एक दुबला पतला लड़का बुंदेलखंड का रहने वाला था. घर की साफ़-सफाई, और खाना आदि बानाने का काम उसका ही है और वो सर्वेंट क्वार्टर में रहता है.

उसकी इसी साल शादी हुई है. उसकी बीवी मन्जू बड़ी कमाल की चीज है. देखने में उसकी उम्र 18 साल से कम ही लगती है. उसके सारे शरीर के अंग बड़े बारीकी से बने हुए दिखते हैं. देखने में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लगती है. उसकी टाँगें केले के तने की तरह, कमर पतली और लहरदार, कटि एकदम क्षीण, भारी नितम्ब, उठावदार चूचियाँ जैसे दो उन्मत्त पर्वत शिखर, जो हमेशा उसके ब्लाउज को फाड़ कर बाहर आने को आतुर हों, सुराही की तरह गला, कोमल से हाथ, लाल गुलाबी होंठ, सुतवां नाक, कमल पंखुरियों से नयन, चौड़ा माथा, घने काले बाल, जिसमें फँस कर कोई भी अपने होश गवां बैठे. उसको देख कर बड़े-बड़ों के होश गुम हो जाएँ.

मैं चोरी-छुपे मन्जू को देखा करता था और मन में बड़ी तमन्ना थी कि बस एक बार वो मेरे लौड़े की सवारी कर ले, पर कामयाबी नहीं मिल रही थी. मैंने न जाने कितनी बार उसको देख देख कर मुट्ठ मारी होगी पर वो मेरे हाथ नहीं आ रही थी.

वो घर में खाना बनाने का काम करती थी तथा अपने पति के काम में हाथ बंटाती थी. मेरी बहन के हम-उम्र होने के कारण वो उससे तो खूब बात करती थी पर मुझसे कोई बात नहीं करती थी.

एक बार मेरी मम्मी किसी काम से बाहर जाना पड़ा. उसी समय अचानक जुगल के किसी रिश्तेदारी में किसी की मृत्यु हो जाने के कारण उसने मम्मी से गाँव जाने की इजाजत मांगी.

मम्मी ने कहा- ठीक है तुम चले जाओ, पर तुम्हारे पास ट्रेन का रिजर्वेशन भी नहीं है और तुम मन्जू को कैसे ले जाओगे? उसको यहीं रहने दो, वैसे भी घर का खाना आदि का काम भी कैसे हो पायेगा?

वह मान गया और मन्जू को छोड़ कर चला गया. मेरी बहन सुबह ही कॉलेज चली जाती है और दोपहर तक लौटती है. घर पर सिर्फ में ही अपने खड़े लंड के साथ रह गया था. मैं अपने कमरे में था.

मन्जू ने घर की सफाई करना शुरू की, सभी जगह झाड़ू आदि लगाने के बाद वो मेरे कमरे में आई. मैं उसे चोर नज़रों से देख रहा था. जब वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी, तो उसके दोनों संतरे हिल रहे थे.

मेरा तो कलेजा उछल रहा था, मेरा लौड़ा मुझे उकसा रहा था कि इसी समय पटक लो साली को और चोद दो, पर गांड फट रही थी कि कहीं बिदक गई तो हंगामा कर देगी और फिर सब गड़बड़ हो जायेगा.

इसीलिए मैंने अपने लंड को समझया कि बेटा अभी मान जा, अभी पहले इसको पटाना जरूरी है. फिर इसकी चूत का भोग लगाना उचित होगा. पटाने के लिए सबसे पहली जरूरी चीज है कि उससे बातचीत हो, सो मैंने उससे बातचीत करने का निर्णय किया.

मैंने उससे बड़े ही अच्छे ढंग से पूछा- मन्जू किसकी मौत हुई है?

शायद वो भी मुझसे बातचीत तो करना चाहती थी पर झिझकती थी, मन्जू बोली- भैया जी, मेरी दूर की ननद थीं. उनको कैंसर हुआ था और वो बहुत दिनों से अस्पताल में भी भरती थीं.

मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?
वो बैठ गई और बताने लगी- भैयाजी, हम चार बहनें और दो भाई हैं. मैं सबसे बड़ी थी, सो मेरी ही शादी हुई है अभी.
मैंने पूछा- तुम्हारी शादी बड़ी जल्दी इतनी कम उम्र में ही हो गई?
मन्जू बोली- हाँ भैया जी, हमारे गाँव में शादी जल्दी कम उम्र में ही हो जाती है. पर मेरी शादी तो अठरह पूरे होने पर ही हुई थी.

मैंने पूछा- तुमने इधर दिल्ली में क्या-क्या घूमा है?
बोली- मैं कहीं घूमने गई ही नहीं.
मैंने पूछा- क्यों?
मन्जू बोली- इनको कभी काम से फुरसत ही नहीं मिलती है. मैं कैसे जाऊँ घूमने? जब भी कहो तो कहते हैं कि हजारों काम पड़े हैं और तुम्हें घूमने की पड़ी है.

मैंने उसको एकटक देख रहा था, उसका अंग-अंग मादकता से भरा हुआ था.

मैंने अपने लौड़े पर हाथ फेरते हुए कहा- जब तुम अपने घर वापिस जाओगी, और कोई तुमसे पूछेगा कि तुमने क्या क्या घूमा? तो तुम क्या जवाब दोगी?
मन्जू बोली- सो तो है भैया जी. अब हमने तो देखा है नहीं कि किधर क्या घूमने का है. अकेले कैसे घूमने कैसे जाऊँ?
मैंने कहा- अरे चिंता काहे करती हो, मैं तुमको दो दिन सब घुमा दूँगा. बस तुम मेरे साथ चलने को राजी हो जाओ तब तो कुछ बात बने.
वो बोली- मुझे तो आपसे बात करने में ही डर लगता था कि कहीं आप मुझसे नाराज न हो जाओ.
मैंने अपने लौड़े को और जोर से खुजाते हुए कहा- अरे मुझसे कैसा डर? मैंने कोई गैर हूँ क्या?

वो एकटक मेरे लौड़े की देखने लगी.
मैंने फिर उससे पूछा- तुम्हारा पति तुमको ठीक से रखता तो है या नहीं?
वो एक दीर्घ श्वास लेकर बोली- हाँ, रखते तो हैं, और न भी रखें तो क्या कर सकते हैं, माँ-बाप ने जीवन की डोर तो उनसे ही बाँध दी है.
मैंने कहा- अरे ऐसा क्यों कहती हो क्या जुगल में कोई कमी है? मारता तो नहीं है तुमको?

वो कुछ नहीं बोली, बस उसने अपना सर झुका लिया, उसकी आँखें दुःख का भान कराने लगीं.
मैंने उठ कर उसके कंधे पर हाथ रखा और उसको दुलारते हुए पूछा- क्या हुआ मन्जू तुम रो क्यों रही हो?

वो सुबकने लगी. मैंने उसके सर पर हाथ फेरा, मेरा मन तो हो रहा था कि उसको उठा कर सीने से लगा लूँ, पर अभी कुछ जल्दबाजी लगी सो फिर उससे पूछा- बताओ मुझे बताओ क्या बात है? कोई दिक्कत है क्या? क्या जुगल दारु पीता है? या तुमको परेशान करता है? मैं उसको ठीक कर दूंगा, तुम मुझसे खुल कर कहो. मुझसे डरो मत. अरे मुझसे नहीं कहोगी तो फिर समस्या कैसे दूर होगी?
मन्जू बोली- हाँ भैया जी आप बात तो सही कह रहे हैं. आप ही मेरी समस्या दूर कर सकते हैं.

मैंने उसको उठाया और कहा पहले इधर बैठो, पानी पियो और फिर मुझे बताओ कि मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ. मैं तुम्हारी हर तरह से मदद करूँगा. तन से, मन से, धन से, तुम किसी बात की चिंता मत करो.

उसने मेरी तरफ नजर उठा कर देखा और कहा- भैया जी वो बात ऐसी है कि… और उसने अपनी नजरें नीचे झुका लीं और अपनी साड़ी के छोर को अपनी उँगलियों में गोल-गोल घुमाने लगी.

मुझे बात कुछ समझ में नहीं आई किये क्या कहना चाहती है. मैंने उससे दोनों कंधे पकड़े, उसको थोड़ा हिलाया और एक हाथ से उसकी ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा अपनी तरफ उठाया और उसकी आँखों में झाँक कर देखा.
उससे पूछा- क्या बात है मन्जू? तुम मुझसे खुल कर कहो तुमको क्या दिक्कत है?

उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे. मैंने उसके गालों पर हाथ फेरा, और इसी बहाने मुझे पहली बार उसके नर्म और मुलायम गालों पर अपना हाथ फेरने का मौका मिल गया. उसके नर्म गालों के स्पर्श से मेरा लौड़ा और भी कड़क हो गया.
मैं उसके और करीब आ गया. वो भी मेरे हाथों का प्यार भरा स्पर्श पाकर मुझ से लिपट गई. मेरी तो बुद्धि ही फिर गई. मन्जू भी मेरे हाथों का प्यार भरा स्पर्श पाकर मुझ से लिपट गई, मेरी तो बुद्धि ही फिर गई।

उसकी और मेरी स्थिति पर जरा निगाह डालिए कि वो बिस्तर पर बैठी थी और मैं उसके सामने खड़ा था।

मेरा लौड़ा उसके चेहरे के बिल्कुल सामने था। जब वो मुझसे लिपटी तो उसके दोनों हाथ मेरी कमर के पीछे जाकर मुझे अपनी बाँहों के घेरे में ले लिया था। इस परिस्थिति में मेरा लौड़ा उसके मुँह से लग गया था। एक तरह से उसने अपना चेहरा मेरे खड़े हथियार से लगा दिया था। मैं गनगना गया।

मैंने उसके सर को और भी अपने नजदीक खींच लिया और उसको दुलारने लगा। एक हाथ से उसकी पीठ को सहलाने लगा। मुझे कुछ-कुछ समझ में आ रहा था।

मैंने उससे पूछा- जुगल तुमको खुश नहीं करता क्या?
बोली- हाँ भैया जी, वे कमजोर हैं, रोज जल्दी सो जाते हैं, कहते हैं मैं बहुत थक गया हूँ।
मैंने उसको और खोला- क्या उसका खड़ा नहीं होता?
वो सकुचाई और बोली- आज तक खड़ा नहीं हुआ।
मैंने कहा- तुमने कभी अपने हाथ से कोई कोशिश नहीं की?
बोली- खूब कोशिश की हाथ से, मुँह से पर वो सब बेकार की कोशिश साबित हुई।
मैंने कहा- कितना बड़ा है उसका?
उसके स्वर में वितृष्णा थी, बोली- बड़ा?? मेरे तो करम ही फूटे थे कि उससे पाला पड़ गया.

मैंने उसके हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसके चेहरे के पास लाया। इससे हुआ ये कि उसकी हथेलियाँ मेरे लौड़े के पास आ गईं। उसने अपनी आँखें मेरी तरफ कीं और मैंने उसकी हथेलियों को अपने खड़े लण्ड से टिका दीं और अपनी हथेलियों से उसकी हथेलियों को लौड़े पर दबा दिया।

उसने मेरे लौड़े का स्पर्श किया। मेरा लण्ड फनफना उठा। उसने मेरी नजरों को देखते हुए मेरे हथियार को कुछ दबाया। अब सब खेल का खुलासा होने लगा था।

मैंने भी अब देर नहीं की और उसको उठा कर अपने सीने से लगा लिया, वो मेरे सीने से लिपट गई। मन्जू अब फफक-फफक कर रो रही थी, बोली- भैया जी, आप ही मेरे दुःख को समझ सकते हो। गाँव में मेरी सास को मेरी कोख से मेरे होने वाले बच्चे का बड़ी बेसब्री से इन्तजार है.

मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। मैं तो सोच रहा था कि इसको सिर्फ लण्ड की खुराक चाहिए पर इसको तो मेरा बीज भी चाहिए था.

मेरा मन बल्लियों उछल रहा था, जिसको याद कर के हस्त-मैथुन करता था वो आज मेरी बाँहों में थी और मुझसे बच्चा मांग रही है। मुझे और मेरे लौड़े को बस एक ही ठुमरी का वो अंश याद या रहा था-

आजा गिलौरी, खिलाय दूँ किमामी,
लाली पे लाली तनिक हुई जाए.

मैंने अब देर करना उचित न समझा। उसको बाँह पकड़ कर उठाया और खड़ा करके अपने सीने से लगा लिया। वो मुझसे लता सी लिपट गई। मैंने भी उसको अपनी बाँहों में समेट लिया। कुछेक पलों के बाद उसकी हिचकियाँ बंद हुंईं। मैंने उसके चूतड़ों पर अपनी हथेलियाँ फेरीं। एकदम गोल और ठोस चूतड़ थे, चूतड़ों को दबा कर उसे अपनी तरफ खींचा।

उसने भी लाज और हया छोड़ कर अपने होंठ मेरी तरफ किये, मैंने उसके रसीले होंठों को अपने होंठों में दबा लिए। उसके होंठों की तपिश ने मुझे एहसास करा दिया कि मन्जू गर्म हो चली थी।

उसके अंगों पर अपने हाथ फेरते-फेरते पता ही नहीं चला कि कब कपड़ों ने कब साथ छोड़ दिया था। मैंने उसको बिस्तर पर लेटा दिया.

मन्जू का बेमिसाल हुस्न जिसकी मैंने तारीफ की थी, दरअसल मेरे बाहुपाश में था और यही वो समय था जब मैंने उसको जी भर कर देखा था।

एक बार फिर महसूस कीजिये- उसकी टाँगें केले के तने की तरह, कमर पतली और लहरदार, कटि एकदम क्षीण, भारी नितम्ब उठावदार, चूचियाँ जैसे दो उन्मत्त पर्वत शिखर, सुराही की तरह गला, कोमल से हाथ, लाल गुलाबी होंठ, सुतवां नाक, कमल पंखुरियों से नयन, चौड़ा माथा, घने काले बाल, बिल्कुल गोरी और झांटों रहित चूत।

उसकी चूत बिल्कुल एक अनचुदी और अनछुई थी। चूत की दोनों फाँकें चिपकी हुई थीं। दरार के बीच में चने के दाने सा उभरा हुआ उसकी भगनासा, उसकी भगन को देख कर मुझे कमलगटा के बीज की याद आ जाती है जो हरे रँग का होता है.

हम दोनों एक दूसरे इतने खोये थे कि कोई सुध-बुध ही न थी, मेरे लंड पर उसका हाथ बार-बार जा रहा था। मन्जू की इस चाहत को देख कर मैंने उससे कहा- इसको चखना है?
उसकी आँखों में सहमति थी.

मैंने सिर्फ कहा था और उसने हाँ में जबाब देकर मेरी इजाजत का इन्तजार भी नहीं किया। उलट कर नीचे हो गई और मेरे लौड़े पर अपनी रसना लगा दी।

उसकी चूत मेरे सामने खुली पड़ी थी। मैंने अपनी उंगली उस पर लगाई, तो उसका रस निकलने लगा था। मैंने भी अपनी एक उंगली उसकी दरार में तनिक सी घुसेड़ी।

मेरी तर्जनी की एक पोर बमुश्किल उसकी चूत में पेवस्त हुई, रस की चाशनी से मेरी पोर गीली हो गई थी। मैंने उंगली को निकाल अपनी जिह्वा से लगाया, मस्त नमकीन स्वाद था।

उंगली चाट कर अपने थूक से गीली की, और दोबारा उसकी दरार में डाली। अबकी बार मेरी उंगली उसकी चूत में अन्दर तक गई, भट्टी सी तप रही थी साली.
कुछ देर में मेरे लवड़े को भी उसके मुँह की गर्मी का अहसास होने लगा।

मैंने उससे पूछा- मन्जू अब मुँह से ही बच्चा लोगी क्या?
वो मुस्कुरा दी, बोली- भैया जी… मुँह से कैसे?
‘ओये, भैया मत बोल, अब मेरा लौड़ा चचोर रही है तू रानी!’
‘हा हा हा हा, मैं तो भूल ही गई थी, क्या बोलूँ आपको?
‘पिया जी बोल दे.’

वो उलट कर फिर एक बार मेरे सीने पर अपने पयोधरों की चुभन देने लगी थी। मैंने उसके गुलाबी चूचुकों को अपने होंठों से दबा लिया। वो सिसकारने लगी।

उसके कंठ से आवाज निकल रही थी, और उन आवाजों को मैं भली भांति जानता था कि अब इसको खुराक चाहिये। मैंने तुरंत ही चुदाई की पहली मुद्रा ली, और उसकी टाँगों को फैला कर अपना शिश्न-मुंड उसकी दरार पर रखा।

मुझे उसने बताया तो था कि सील पैक है, पर फिर भी गुलाबी चूत देख कर मैं अपना आपा खो बैठा। एक झटका मारा, उसकी चीख निकल गई- ‘आअ… आईई… ऊओई… मर ईइ दैयाआ… अअरे… ‘

मैंने झट से उसके होंठों को हाथ से दबाया। मेरा लौड़ा अभी भी उसकी चूत में फँसा था। वो छटपटा रही थी। मैंने कुछ देर रुक कर उसके होंठों को चूसा और अपने हाथ से उसकी घुंडियों को मसला।

अब वो कुछ संयत हुई। उसने भी अपनी चूत को चौड़ा कर मेरे लंड के लिये रास्ता बनाया। मैंने अपने लंड को थोड़ा बाहर खींचा।

‘मत निकालो, होने दो दर्द, अंदर कर दो…’ उसकी आवाज भारी हो गई थी।

मेरा लंड अब उसकी चूत की दीवारों को चौड़ा करता हुआ अंदर जाने लगा। जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत को चीरता हुआ आगे बढ़ा उसके मुँह से एक बार फिर ‘आआऽऽऽहहऽऽऽ’ की आवाज निकली और लंड पूरा का पूरा चूत में धंस गया।

‘अच्छा लगा?’

‘हूँ’ उसने अपने दाँतों से चबाते हुए कहा।

मैंने फिर अपने जिस्म को उठा कर लंड को उसकी चूत को रगड़ते हुए बाहर की ओर निकाला और फिर वापस पूरे जोर से चूत में अंदर तक ठांस दिया.
‘ऊऊ… ऊहहऽऽऽ दर्द कर रहा है। आपका वाकई काफी बड़ा है। मेरी चूत छिल गई है.’ उसने मेरे आगे-पीछे होने की रिदम से अपनी रिदम भी मिलाई।
हर धक्के के साथ मेरा लंड उसकी चूत में अंदर तक घुस जाता और उसकी चूत की मुलायम त्वचा पर मुझ से रगड़ खा जाती।

वो जोर-जोर से मुझे ठोकने के लिए उकसाने लगी। मेरे हर धक्के से पूरा बिस्तर हिलने लगता। काफी देर तक मैं ऊपर से धक्के मारता रहा।
मैंने नीचे से उसकी टाँगें उठा कर अपनी कमर पर लपेट ली थीं। मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर लगा कर अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी।

इसी तरह उसको लगातार चोदे जा रहा था और वो ‘आआऽऽ… हहऽऽऽ माँआऽऽऽ मममऽऽऽ ऊफफऽऽऽ’ जैसी आवाजें निकाले जा रही थी।

मैं लगातार इसी तरह पंद्रह मिनट तक ठोकता रहा और उसकी आँखों में झाँका, वो भी पस्त पड़ चुकी थी। मैंने उससे कहा रस छोड़ दूँ?
बोली- उसी का तो इन्तजार है।

मैंने कुछ और दमदार शॉट मारे और अपना लावा उसकी चूत में भर दिया।

उसकी हसरत पूरी हो गई। जब कुछ देर बाद उठना हुआ, तो देखा लण्ड खून से सना था।

मन्जू की सील तोड़ने का खिताब मेरे लंड के नाम हो गया था। उसके बाद उसे कई बार चोदा। समयानुसार एक लड़का पैदा भी हो गया। वो बहुत खुश थी, और जुगल भी खुश तो था पर बेबस था, उसे जानकारी थी कि यह मेरे बीज की फसल थी।

चुद गई नौकरानी मुझसे

 

दोस्तो, लड़की को उत्तेजित करके चोदने में बड़ा मज़ा आता है। बस उसे गर्म करने का तरीका ठीक होना चाहिये।

मैंने अपनी घर की नौकरानी को ऐसे ही कामोत्तेजित करके खूब चोदा। अब सुनाता हूँ उसकी दास्तान।

जयपुर से वापस आने के बाद मैंने अपने मकान मालिक से बोला- कोई अच्छी नौकरानी हो तो बताइयेगा।

मेरे घर में उल-ज़लूल नौकरानियों के काफ़ी अरसे बाद एक बहुत ही सुन्दर और सेक्सी नौकरानी काम पर लगी। उसका नाम आरती था। 22-23 साल की उमर होगी। सांवला सा रंग था। मध्यम ऊंचाई की और सुडौल बदन, फ़िगर उसका रहा होगा 33-26-34 का, शादीशुदा थी। उसका पति कितना किस्मत वाला था, साला उसे खूब चोदता होगा। बूब्स यानि चूचियाँ ऐसी कि हाय, बस दबा ही डालो। ब्लाऊज में चूचियाँ समाती ही नहीं थी।

कितनी भी साड़ी से वो ढकती, इधर उधर से ब्लाऊज से उभरते हुए उसकी चूचियाँ दिख ही जाती थी। झाड़ू लगाते हुए जब वह झुकती, तब ब्लाऊज के ऊपर से चूचियों के बीच की दरार को छुपा ना पाती थी।

एक दिन जब मैंने उसकी इस दरार को तिरछी नज़र से देखा तो पता लगा कि उसने ब्रा तो पहना ही नहीं था। कहाँ से पहनती, ब्रा पर बेकार पैसे क्यों खर्च किये जायें। जब वो ठुमकती हुई चलती, तो उसके चूतड़ बड़े ही मोहक तरीके से हिलते और जैसे कह रहे हों कि मुझे पकड़ो और दबाओ।

अपनी पतली सी सिन्थेटिक साड़ी को जब वो सम्भालती हुई सामने अपनी बुर पर हाथ रखती तो मन करता कि काश उसकी चूत को मैं छू सकता, दबा सकता। करारी, गरम, फ़ूली हुई और गीली गीली चूत में कितना मज़ा भरा हुआ था। काश मैं इसे चूम सकता, इसके मम्मे दबा सकता और चूचियों को चूस सकता और इसकी चूत को चूसते हुए जन्नत का मज़ा ले सकता।

और फिर मेरा तना हुए लौड़ा इसकी बुर में डाल कर चोद सकता। हाय मेरा लण्ड ! मानता ही नहीं था। बुर में लण्ड घुसने के लिये बेकरार था। लेकिन कैसे? वो तो मुझे देखती ही नहीं थी, अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुई चली जाती।

मैंने भी उसे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मेरी नज़र उसे चोदने के लिये बेताब है। अब चोदना तो था ही। मैंने अब सोच लिया कि इसे उत्तेजित करना ही होगा। धीरे धीरे गर्म करना पड़ेगा वरना कहीं मचल जाये या नाराज हो जाये तो भाण्डा फ़ूट जायेगा।

मैंने आरती से थोड़ी थोड़ी बातें करना शुरु किया। एक दिन सुबह उसे चाय बनने को कहा, चाय उसके नर्म नर्म हाथों से जब ली तो लण्ड उछला।

चाय पीते हुए कहा, “आरती, चाय तुम बहुत अच्छी बना लेती हो।”

उसने जवाब दिया, “बहुत शुक्रिया बाबूजी।”

अब करीब करीब रोज़ मैं चाय बनवाता और उसकी बड़ाई करता। फिर मैंने एक दिन कॉलेज जाने के पहले अपनी कमीज इस्तरी करवाई।

“आरती तुम इस्तरी भी अच्छी ही कर लेती हो।”

“ठीक है बाबूजी।” उसने प्यारी सी आवाज़ में कहा।

जब घर में कोई नहीं होता, तब मैं उसे इधर उधर की बातें करता। जैसे- आरती, तुम्हारा आदमी क्या करता है?

“साहब, वो एक मिल में नौकरी करता है।”

“कितने घण्टे की ड्यूटी होती है?” मैंने पूछा।

“साहब, 10-12 घण्टे तो लग ही जाते है न। कभी कभी रात को भी ड्यूटी लग जाती है।”

“तुम्हारे बच्चे कितने है?” मैंने फिर पूछा।

शरमाते हुए उसने जवाब दिया, “अभी तो एक लड़की है, 2 साल की।”

“उसे क्या घर में अकेला छोड़ कर आती हो?” मैं पूछता रहा।

“नहीं, मेरी बूढ़ी सास है ना, वो सम्भाल लेती है।”

“तुम कितने घरों में काम करती हो।?” मैंने पूछा।

“साहब, बस आपके और एक नीचे घर में।”

मैंने फिर पूछा, “तो तुम दोनों का काम तो चल ही जाता होगा।”

“साहब, चलता तो है, लेकिन बड़ी मुश्किल से। मेरा आदमी शराब में बहुत पैसे बरबाद कर देता है।”

अब मैंने एक इशारा देना उचित समझा, मैंने सम्भलते हुए कहा, “ठीक है, कोई बात नहीं। मैं तुम्हारी मदद करूँगा।”

उसने मुझे अजीब सी नज़र से देखा, जैसे पूछ रही हो– क्या मतलब है आपका?

मैंने तुरन्त कहा, “मेरा मतलब है, तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ, मैं उसे समझाऊँगा।”

“ठीक है साहब,” कहाते हुए उसने ठण्डी सांस भरी।

इस तरह मैंने बातों का सिलसिला काफ़ी दिनो तक जारी रखा और अपने दोनों के बीच की झिझक को मिटाया। एक दिन मैंने शरारत से कहा, “तुम्हारा आदमी पागल ही होगा। अरे उसे समझना चाहिये। इतनी सुन्दर पत्नी के होते हुए उसे शराब की क्या ज़रूरत है।”

औरत बहुत तेज़ होती है दोस्तो ! उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी तक अहसास नहीं होने दिया अपनी ज़रा सी भी नाराजगी का। मुझे भी ज़रा सा हिन्ट मिला कि अब तो ये तस्वीर पर उतर जायेगी, मौका मिले और मैं इसे दबोचूँ। चुदवा तो लेगी और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा।

कहते है ऊपर वाले के यहाँ देर है लेकिन अन्धेर नहीं।

रविवार का दिन था। वो आई और लौड़ा खड़ा होने लगा। उसने दरवाज़ा बन्द किया और काम पर लग गई। इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बन्द कर दिया था। मैंने हमेशा की तरह चाय बनवाई और पीते हुए चाय की बड़ाई की। मन ही मन मैंने निश्चय किया की आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी। कैसे पहल करें? आखिर में ख्याल आया कि भैया सबसे बड़ा रुपैया।

मैंने उसे बुलाया और कहा, “आरती, तुम्हें पैसे की ज़रूरत हो तो मुझे ज़रूर बताना। झिझकना मत।”

“साहब, बाद मैं आप वो पैसा मेरी तनखा काट लोगे और मेरा आदमी मुझे डांटेगा।”

“अरे पगली, मैं तनख्वाह की बात नहीं कर रहा। बस कुछ और पैसे अलग से चाहिये तो मैं दूंगा मदद के लिये। और किसी को नहीं बताऊँगा। बशर्ते तुम भी ना बताओ तो।”

और मैं उसके जवाब का इनतज़ार करने लगा।

“मैं क्यों बताने चली? आप सच में मुझे कुछ पैसे देंगे?” उसने पूछा।

बस फिर क्या था, कुड़ी पट गई। बस अब आगे बढ़ना था और मलाई खानी थी।

“ज़रूर दूँगा आरती। इससे तुम्हें खुशी मिलेगी ना?” मैंने कहा।

“हां साहब, बहुत आराम हो जायेगा।” उसने इठलाते हुए कहा।

अब मैंने हल्के से कहा, “और मुझे भी खुशी मिलेगी। अगर तुम भी कुछ ना कहो तो और जैसा मैं कहूँ वैसा करो तो? बोलो, मंज़ूर है?”

यह कहते हुए मैंने उसे 500 रुपये थमा दिये। उसने रुपये मेज पर रखे और मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या करना होगा साहब?”

“अपनी आँखें बन्द करो पहले।” मैं कहते हुए उसकी तरफ़ थोड़ा सा बढ़ा, “बस थोड़ी देर के लिये आँखें बन्द करो और खड़ी रहो।”

उसने अपनी आँखें बंद कर ली। मैंने फिर कहा, “जब तक मैं ना कहूं, तुम आँखें बंद ही रखना, आरती। वरना तुम शर्त हार जाओगी।”

“ठीक है, साहब,” शरमाते हुए आँखें बंद कर वो खड़ी थी। मैंने देखा की उसके गाल लाल हो रहे थे और होंठ कांप रहे थे। दोनों हाथों को उसने सामने अपनी जवान चूत के पास समेट रखा था।

मैंने हलके से पहले उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन लिया। अभी मैंने उसे छुआ नहीं था। उसकी आँखें बंद थी। फिर मैंने उसकी दोनों पलकों पर बारी बारी से चुम्बन लिया। उसकी आँखें अभी भी बन्द थी। फिर मैंने उसके गालों पर आहिस्ता से बारी बारी से चूमा। उसकी आँखें बन्द थी। इधर मेरा लण्ड तन कर लोहे की तरह कड़ा और सख्त हो गया था।

फिर मैंने उसकी ठोड़ी पर चुम्बन लिया। अब उसने आँखें खोली और सिर्फ़ पूछते हुए कहा, “साहब?”

मैंने कहा, “आरती, शर्त हार जाओगी। आँखें बन्द।” यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उसने झट से आँखें बन्द कर ली। मैं समझ गया, लड़की तैयार है, बस अब मज़ा लेना है और चुदाई करनी है। मैंने अबकी बार उसके थिरकते हुए होठों पर हलका सा चुम्बन किया। अभी तक मैंने छुआ नहीं था उसे। उसने फिर आँखें खोली और मैंने हाथ के इशारे से उसकी पलकों को फिर ढक दिया।

अब मैं आगे बढ़ा, उसके दोनों हाथों को सामने से हटा कर अपनी कमर के चारों तरफ़ लपेट लिया और उसे अपनी बाहों में समेटा और उसके कांपते होठों पर अपने होंठ रख दिये और चूमता रहा। कस कर चूमा अबकी बार।

क्या नर्म होंठ थे मानो शराब के प्याले। होठों को चूसना शुरु किया और उसने भी जवाब देना शुरु किया। उसके दोनों हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे और मैं उसके गुलाबी होठों को खूब चूस चूस कर मज़ा ले रहा था।

तभी मुझे महसूस हुआ कि उसकी चूचियाँ जो कि तन गई थी, मेरे सीने पर दब रही थी। बायें हाथ से मैं उसकी पीठ को अपनी तरफ़ दबा रहा था, जीभ से उसकी जीभ और होठों को चूस रहा था, और दायें हाथ से मैंने उसकी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दिया। दायाँ हाथ फिर अपने आप उसकी दाईं चूची पर चला गया और उसे मैंने दबाया।

हाय हाय ! क्या चूची थी। मलाई थी बस मलाई।

अब लण्ड फुंकारें मार रहा था। बांएँ हाथ से मैंने उसके चूतड़ को अपनी तरफ़ दबाया और उसे अपने लण्ड को महसूस करवाया। शादीशुदा लड़की को चोदना आसान होता है क्योंकि उन्हें सब कुछ आता है, घबराती नहीं है।

ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, ब्लाऊज के बटन पीछे थे, मैंने अपने दायें हाथ से उन्हें खोल दिया और ब्लाऊज को उतार फेंका। चूचियाँ जैसे कैद थी, उछल कर हाथों में आ गई। एकदम सख्त लेकिन मलाई की तरह प्यारी भी। साड़ी को खोला और उतारा। बस अब साया बचा था।

वो खड़ी नहीं हो पा रही थी, उसकी आँखें अभी भी बन्द थी। मैं उसे हल्के हल्के से खींचते हुए अपने बेडरूम मैं ले आया और लेटा दिया, अब मैंने कहा, “आरती रानी अब तुम आँखें खोल सकती हो।”

“आप बहुत पाजी है साहब !” शरमाते हुए उसने आँखें खोली और फिर बन्द कर ली। मैंने झट से अपने कपड़े उतारे और नंगा हो गया। लण्ड तन कर उछल रहा था। मैंने उसका साया जल्दी से खोला और खींच कर उतारा। जैसे वो चुदवाने को तैयार ही थी, कोई कच्छी नहीं पहनी थी उसने !

मैंने बात करने के लिये कहा, “ये क्या, तुम्हारी चूत तो नंगी है। चड्डी नहीं पहनती क्या।”

“नहीं साहब, सिर्फ़ महीना में पहनती हू।” और शरमाते हुए कहा, “साहब, परदे खींच कर बन्द करो ना। बहुत रोशनी है।”

मैंने झट से परदों को बन्द किया जिससे थोड़ा अन्धेरा हो गया और मैं उसके ऊपर लेट गया।

होठों को कस कर चूमा, हाथों से चूचियाँ दबाई और एक हाथ को उसके बुर पर फिराया। घुंघराले बाल बहुत अच्छे लग रहे थे चूत पर। फिर थोड़ा सा नीचे आते हुए उसकी चूची को मुंह में ले लिया।

अहा, क्या रस था। बस मज़ा बहुत आ रहा था।

अपनी एक अंगुली को उसकी चूत के दरार पर फिराया और फिर उसके बुर में घुसाया अंगुली ऐसे घुसी जैसे मक्खन मैं छुरी। चूत गर्म और गीली थी। उसकी सिसकारियाँ मुझे और भी मस्त कर रही थी। मैंने उसकी चूत चीरते हुए कहा, “आरती रानी, अब बोलो क्या करूँ?”

“साहब, मत तड़पाईये, बस अब कर दीजिये।” उसने सिसकारियाँ लेते हुए कहा।

मैंने कहा, “ऐसे नहीं, बोलना होगा, मेरी जान।”

मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा, “साहब, डाल दीजिये ना !”

“क्या डालूँ और कहाँ?” मैंने शरारत की।

दोस्तो, चुदाई का मज़ा सुनने में भी बहुत आता है।

“डाल दीजिये ना अपना यह लौड़ा मेरी चूत के अन्दर।” उसने कहा और मेरे होठों से अपने होंठ चिपका लिये। इधर मेरे हाथ उसकी चूचियों को मसलते ही जा रहे थे। कभी खूब दबाते, कभी मसलते, कभी मैं चूचियों को चूसता कभी उसके होठों को चूसता। अब मैंने कह ही दिया, “हाँ रानी, अब मेरा ये लण्ड तेरी बुर में घुसेगा। बोलो चोद दूँ।”

“हाँ हाँ, चोदिये साहब, बस चोद दीजिये मुझे !” और वो एकदम गर्म हो गई थी।

फिर क्या था, मैंने लण्ड उसके बुर पर रखा और घुसा दिया अन्दर। एकदम ऐसे घुसा जैसे बुर मेरे लण्ड के लिये ही बनी था। दोस्तो, फिर मैंने हाथों से उसकी चूचियों को दबाते हुए, होठों से उसके गाल और होठों को चूसते हुए, चोदना शुरु किया। बस चोदता ही रहा। ऐसा मन कर रहा था कि चोदता ही रहूँ !

खूब कस कस कर चोदा। बस चोदते चोदते मन ही नहीं भर रहा था। क्या चीज़ थी यारो, बड़ी मस्त थी। वो तो खूब उछल उछल कर चुदवा रही थी।

“साहब, आप बहुत अच्छा चोद रहे हैं, चोदिये खूब चोदिये, चोदना बन्द मत कीजिये।” और उसके हाथ मेरी पीठ पर कस रहे थे, टांगें उसने मेरी चूतड़ पर घुमा कर लपेट रखी थी और चूतड़ों से उछल रही थी, खूब चुदवा रही थी और मैं चोद रहा था।

मैं भी कहने से रुक ना सका, “आरती रानी, तेरी चूत तो चोदने के लिये ही बनी है रानी, क्या चूत है, बहुत मज़ा आ रहा है। बोल ना कैसी लग रही है ये चुदाई?”

“बस साहब, बहुत मजा आ रहा है, रुकिये मत, बस चोदते रहिये, चोदिये चोदिये चोदिये।”

इस तरह हम ना जाने कितनी देर तक मज़ा लेते हुए खूब कस कस कर चोदते हुए झड़ गये।

क्या चीज़ थी, वो तो एकदम चोदने के लिये ही बनी थी। अभी मन नहीं भरा था, 20 मिनट के बाद मैंने फिर अपना लण्ड उसके मुँह में डाला और खूब चुसवाया। हमने 69 की पोजिशन ली और जब वो लण्ड चूस रही थी मैंने उसकी चूत को अपनी जीभ से चोदना शुरु किया। खास कर दूसरी बार तो इतना मज़ा आया कि मैं बता नहीं सकता क्योंकि अब की बार लण्ड बहुत देर तक चोदता रहा। लण्ड को झड़ने में काफ़ी समय लगा और मुझे और उसे भरपूर मज़ा देता रहा।

कपड़े पहनने के बाद मैंने कहा, “आरती रानी, बस अब चुदवाती ही रहना। वरना यह लण्ड तुम्हें तुम्हारे घर पर आकर चोदेगा।”

“साहब, आप ने इतनी अच्छी चुदाई की है, मैं भी अब हर मौके में आपसे चुदवाऊँगी। चाहे आप पैसे ना भी दो।”

कपड़े पहनने के बाद भी मेरे हाथ उसकी चूचियों को हल्के हल्के मसलते रहे और मैं उसके गालों और होठों को चूमता रहा।

एक हाथ उसके बुर पर चला जाता था और हल्के से उसकी चूत को दबा देता था।

“साहब अब मुझे जाना होगा।” कहा कर वो उठी।

मैंने उसका हाथ अपने लण्ड पर रखा, “रानी एक बार और चोदने का मन कर रहा है, कपड़े नहीं उतारूँगा।”

दोस्तो, सच में लण्ड कड़ा हो गया था और चोदने की लिये मैं फिर से तैयार था। मैंने उसे झट से लेटाया, साड़ी उठाई और अपना लौड़ा उसके बुर में पेल दिया।

तृष्णा की तृष्णा पूर्ति

 

इससे पहले कि मैं अपनी उस घटना का वर्णन करूँ, मैं आप सबको अपना परिचय देना चाहूँगी। मेरा नाम तृष्णा है, मैं एक विवाहित स्त्री हूँ। आज से 16 वर्ष पहले जब मैं 20 वर्ष की थी तब मेरा विवाह मेरे पति के साथ हुआ था। आजकल हम उत्तराखण्ड में रहते हैं और मेरे पति का कंप्यूटर और मोबाइल का व्यवसाय है। मेरी बेटी मसूरी के एक जाने माने बोर्डिंग स्कूल की छात्रा है तथा कक्षा 10 में पढ़ती है और स्कूल के छात्रावास में ही रहती है, हर सप्ताह शनिवार शाम को वह घर आती है और सोमवार सुबह वापिस मसूरी चली जाती है!

एक आलीशान इलाके में हमारा घर है जिसकी पहली मंजिल में हम रहते हैं और निचली मंजिल में हमने पास ही के एक मेडिकल कॉलेज की दस छात्राओं को मैंने पेइंग गेस्ट रखा हुआ है। लगभग पांच वर्ष पहले मैंने उन लड़कियों के लिए खाना बनाने और पूरे घर के बाकी सब काम करने के लिए एक बुजुर्ग औरत रखी ली थी जो दिन भर सारा काम करती रहती है और रात को अपने पोते के साथ नीचे बने स्टोर में ही सो जाती है। उस बुजुर्ग औरत का 20 वर्षीय पोता जिसका नाम तरुण है, जो तब स्कूल में पढ़ता था और घर के काम में अपनी दादी का हाथ भी बंटा देता था।

लगभग दो वर्ष पहले तरुण ने 10+2 की परीक्षा पास करने के बाद जब आगे पढने से मना कर दिया तब उसकी दादी ने मुझसे और मेरे पति से उसके लिए कुछ काम के लिए मदद मांगी। हम दोनों ने दादी के आग्रह पर सोच विचार करके उसे घर और दुकान में काम करने के लिए रख नौकरी पर लिया।

तरुण रोज़ सुबह 6 बजे से 10 बजे तक अपनी दादी के साथ नीच की मंजिल में झाड़ पोंछ और कपड़ों की धुलाई का काम करता है तथा 10 बजे से 1 बजे तक ऊपर की मंजिल में काम करता है। काम समाप्त कर के वह मेरे पति के लिए दोपहर का खाना लेकर दुकान पर चला जाता है और शाम तक वह दुकान में मेरे पति की मदद करता रहता तथा रात को उनके साथ ही घर वापिस आता है।

उसे ऊपर की मंजिल में काम करते हुए लगभग तीन माह ही बीते थे, जब एक दिन उसे काम समाप्त करने में कुछ अधिक समय लग गया और उसे दुकान जाने के लिए काफी देरी हो गई थी, तब मैंने उसे कह दिया कि वह ऊपर ही बाहर वाले गुसलखाने में ही नहा कर तैयार हो जाए !

उसके बाद वह रोज़ ही काम ख़त्म करने के बाद ऊपर ही नहा लेता और तैयार हो कर खाना लेकर दुकान पर चला जाता !

यह सिलसिला लगभग अगले तीन माह तक इसी तरह चलता रहा और फिर एक दिन वह घटना घटित हुई जिसका विवरण मैं आपको बताना चाहती हूँ। मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है जब तरुण सारे कपड़े धो कर तथा नहा कर गुसलखाने में से सिर्फ तौलिया बांधे हुए बाहर निकला और धुले कपड़ों को बाहर बंधी रस्सी पर सुखा रहा था। मैं उस समय रसोई में थी और उसे खिड़की में से उसे देख रही थी कि वह हर कपड़े को अच्छी तरह झटक कर उसे रस्सी पर डाल रहा था या नहीं !

तभी जब उसने मेरे पति की एक जीन्स को सुखाने के लिए जोर से झटका दिए तो वह उसके तौलिये से उलझ गई जिससे उसकी कमर में बंधा तौलिया एकदम से खुल कर नीच गिर गया। तरुण ने सकपका कर इधर उधर देखा और किसी को आसपास न देख कर उसने इत्मिनान से झुक कर तौलिया उठाया तथा फिर से कस कर कमर में बाँध लिया और बाकी के कपड़े सुखाने लगा।

तौलिये के नीचे गिरने से ले कर उसके दोबारा कमर के बाँधने तक के दौरान मुझे तरुण बिल्कुल नग्न दिखाई दिया और उसके आठ इंच लम्बे तथा ढाई इंच मोटे लिंग के भरपूर दर्शन भी किये। उसके इतने लम्बे और मोटे लिंग को देख कर थोड़ी देर के लिए तो मैं अवाक ही रह गई थी लेकिन फिर अपने आप को संभाला और रसोई के काम में तथा दोपहर का खाना बनाने में व्यस्त हो गई।

जब तरुण तैयार हो कर खाना लेने रसोई में आया तब मैंने उसे समझाया कि नहाने के बाद वह गुसलखाने में ही कपड़े पहन कर बाहर आया कर। तरुण झट से समझ गया कि मैंने वह तौलिया गिरने वाला दृश्य देख लिया था और इसीलिए मैंने उसे यह बात कही थी। उसने तुरंत मुझसे क्षमा मांगी और आगे से ध्यान रखने का आश्वासन दे कर चला गया।

तरुण के दुकान जाने के बाद मैं खाना खाकर सुस्ता रही थी तब नग्न तरुण का दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमने लगा ! मुझे ऐसा लगता था कि तरुण का आठ इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लिंग जैसे मुझे चिढ़ा कर कह रहा था कि “तृष्णा, देखो मैं तो तुम्हारे पति के लिंग से ज्यादा शक्तिशाली हूँ, क्या तुम मुझे चखोगी नहीं? तुम्हारा नाम तो तृष्णा है फिर भी तुम्हारे मन में मुझे लेने की तृष्णा क्यों पैदा नहीं हो रही है?”

मेरे इन विचारों ने मेरे अन्दर की वर्षों से क्षीण हो रही कामवासना को झिंझोड़ दिया और मेरी अन्दर की काम-अग्नि को फिर से प्रज्ज्वलित करने के लिए मुझे प्रेरित करना शुरू कर दिया।

असल में तीन वर्ष पहले ही मेरे पति को मधुमेह का रोग हो जाने ले कारण उनके लिंग में सख्त और खड़ा होने की शक्ति में कुछ शिथिलता आ गई थी, इससे हमारे बीच होने वाले यौन सम्बन्ध से मुझे बिल्कुल संतुष्टि नहीं मिल पाती थी और इसी कारण मेरी कामुकता भी धीरे धीरे ठंडी पड़ने लगी थी। जहाँ हम दोनों रोज़ संभोग करते थे वहाँ अब संसर्ग किये कई दिन बीत जाते थे लेकिन उस दिन तरुण के लिंग को देखने के बाद मेरी कामुकता का फिर से पुनर्जन्म हो गया और अगले तीन दिन सोते-जागते वह दृश्य बार बार मेरी आँखों के सामने आने लगा ! नहीं चाहते हुए भी मेरा व्याकुल मन मेरे दिमाग को तरुण के बारे में सोचने को मजबूर कर देता ! अन्त में चौथे दिन मेरे अधीर मन ने मेरे दिमाग पर विजय प्राप्त के ली और मैंने तरुण के साथ सम्बन्ध बनाने का प्रयास करने का निर्णय ले लिया तथा उसे कार्यान्वित करने की योजना बनाने लगी।

तरुण के लिंग को देखने के बाद मेरी कामुकता का फिर से पुनर्जन्म हो गया और अगले तीन दिन सोते-जागते वह दृश्य बार बार मेरी आँखों के सामने आने लगा ! नहीं चाहते हुए भी मेरा व्याकुल मन मेरे दिमाग को तरुण के बारे में सोचने को मजबूर कर देता ! अन्त में चौथे दिन मेरे अधीर मन ने मेरे दिमाग पर विजय प्राप्त के ली और मैंने तरुण के साथ सम्बन्ध बनाने का प्रयास करने का निर्णय ले लिया तथा उसे कार्यान्वित करने की योजना बनाने लगी।

अगले दिन से मैंने तरुण की निगरानी रखनी शुरू कर दी और घर की निचली तथा ऊपरी मंजिल में जहाँ कहीं भी वह काम कर रहा होता, मैं उस पर नज़र रखने लगी। एक सप्ताह बीतने के बाद मैंने पाया कि तरुण की निचली मंजिल की एक पेइंग गेस्ट छात्रा निशा के साथ उसकी कुछ अधिक घनिष्ठता थी। निशा की एक ही आवाज़ पर वह भाग कर उसके कमरे में चला जाता था तथा उसका सब काम भी बहुत ही स्फूर्ति के साथ निपटाता था !

मैंने यह भी देखा कि तरुण निशा के कपड़े धोते समय उसके अन्य कपड़ों के साथ उसकी ब्रा और पैंटी भी धोता था जबकि अन्य छात्राओं की ब्रा और पैंटी छोड़ कर सिर्फ अन्य कपड़े ही धोता था।

उस निगरानी के दिनों में एक दिन रात के खाने से पहले मैंने तरुण को निशा के कमरे जाते हुए देखा और लगभग दस मिनट तक वह बाहर ही नहीं आया। यह जानने के लिए कि अन्दर क्या कर रहा मैं निशा के कमरे के दरवाज़े पर कान लगा कर सुनने की चेष्टा करने लगी। जब मुझे अन्दर से कोई भी आवाज़ सुनाई नहीं दी तब मैंने दरवाज़े को हल्का सा धक्का दिया।

अन्दर से बंद नहीं होने के कारण दरवाज़ा थोड़ा सा खुल गया और मैंने जैसे ही कमरे के अन्दर झाँक कर देखा तो दंग रह गई !

अन्दर निशा बैड पर सिर्फ पैंटी पहने हुए अर्ध-नग्न लेटी हुई थी और तरुण निशा के स्तनों की मालिश कर रहा था !

यह जानने के लिए कि आगे क्या होता है मैं वहीं से खड़ी हो कर अन्दर का नज़ारा देखती रही। लगभग दस मिनट तक स्तनों की मालिश करने के बाद तरुण ने निशा की बाजू, गर्दन, पेट, नाभि, टांगों और जाँघों की मालिश की। इसके बाद तरुण ने निशा को पेट के बल लिटा कर उसके कन्धों और पीठ की मालिश की! दस मिनट तक कन्धों और पीठ की मालिश करने के बाद तरुण ने निशा की पैंटी भी उतार दी और उसके नितम्बों की कस कर मालिश करने लगा !

तरुण नितम्बों के साथ साथ उनके बीच की दरार में हाथ डाल कर निशा की गुदा तक की भी मालिश कर रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

जब शरीर के पीछे की मालिश पूरी हो गई तो निशा सीधी हो टाँगें चौड़ी करके लेट गई और तब तरुण ने उसके जघनस्थल और योनि पर तेल लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया !

लगभग पांच मिनट तक बाहर से मालिश करने के बाद तरुण ने निशा की योनि के मुख को खोल कर उसके अन्दर तेल से भीगी हुई अपनी दो उंगलियाँ डाल कर उसके अन्दर की मालिश करने लगा ! फिर कुछ देर के बाद तरुण ने निशा के भगांकुर पर तेल लगाया और अंगूठे से उसे भी रगड़ने लगा। उँगलियों से योनि की और अंगूठे से भगांकुर की संयुक्त मालिश से निशा उत्तेजित होने लगी और उसके मुँह से जोर जोर से उन्ह.. उन्ह.. की आवाजें निकलने लगी।

तब निशा अपना हाथ बढ़ा कर तरुण की जींस की ज़िप खोल कर उसके लिंग को बाहर निकल कर उसे मसलने लगी। अधिक उतेजना के कारण कुछ ही देर में निशा का शरीर अकड़ गया और उसका योनि में से रस का स्राव होने लगा और जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने तरुण को उसके लिंग को उसकी योनि में डालने के लिए कह दिया !

इसके बाद तरुण फुर्ती से अपने सारे कपड़े उतार कर नग्न हो गया और बैड पर चढ़ कर निशा की टांगों के बीच में बैठ गया, फिर उसने अपनी उँगलियों से निशा की योनि का मुँह खोला और अपने लिंग को उस पर रख कर एक हल्का सा धक्का दिया, धक्के से तरुण का लिंग मुण्ड निशा की योनि के अन्दर चला गया तथा निशा के मुख से बस एक बहुत ही हल्की सी आह ही निकली !

यह देख कर मैं समझ गई कि निशा तरुण के साथ पहले भी कई बार सम्भोग कर चुकी होगी इसीलिए उसे कोई तकलीफ या दर्द नहीं हुई !

उसके बाद तरुण ने एक जोर से धक्का लगाया और अपने पूरा का पूरा लिंग निशा की योनि के अन्दर धकेल दिया और तेज़ धक्के लगा कर अन्दर बाहर करने लगा।

पांच मिनट के बाद निशा जोर जोर से सिसकारियाँ लेने लगी और तरुण के हर धक्के के जवाब में नीचे से उछल कर धक्का देने लगी। बीच बीच में वह अकड़ जाती और योनि में से रस छोड़ देती तथा उससे योनि में उत्पन हुए गीलेपन के कारण तरुण के धक्कों से फच फच की आवाजें कमरे में गूंजने लगी !

अगले पांच मिनट तक उनकी यह क्रिया उसी तरह चलती रही और उसके बाद तरुण बहुत ही तेज़ी से धक्के लगाने लगा। इस बार जैसे ही निशा का शरीर अकड़ा और उसके मुँह से आवाज़ निकली तरुण ने तुरंत अपने लिंग को बाहर निकल कर जोर की अह्ह्ह्हह… करते हुए अपने लिंग में से वीर्य रस की बौछार निशा के शरीर पर कर दी !

निशा ने उस वीर्य को अपने हाथों से अपने स्तनों और जघन-स्थल पर मल लिया और हंसती हुई उठ खड़ी हुई, उसने तरुण के होंठों पर चुम्बन किया तथा अपने पर्स में से सौ रूपये का एक नोट निकाल कर उसे दिया और गुसलखाने में चली गई !

क्योंकि पिछले 40 मिनट से दरवाजे के पास खड़े हो कर मैं यह दृश्य होते देख रही थी इसलिए इतनी उत्तेजित हो गई थी कि मैंने वहीं पर खड़े खड़े अपनी योनि में दो ऊँगली डाल कर अपनी योनि से कई बार रस का स्राव करा दिया !

उस रस के नीचे की ओर बहने से मेरी जांघें और टाँगे गीली हो गई थी, इसलिए मैंने भाग कर ऊपर अपने गुसलखाने में जाकर अपने आपको अच्छी तरह से साफ़ किया। तरुण को निशा के शरीर की मालिश अथवा उसके साथ सम्भोग करते देख कर मुझे उसे पाने की लालसा और भी अधिक बढ़ गई तथा मेरा मन उसके साथ यौन संसर्ग के लिए बहुत ही अधीर हो उठा !

मुझे अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए सही अवसर का इंतज़ार था।

क्योंकि पिछले 40 मिनट से दरवाजे के पास खड़े हो कर मैं यह दृश्य होते देख रही थी इसलिए इतनी उत्तेजित हो गई थी कि मैंने वहीं पर खड़े खड़े अपनी योनि में दो उंगलियाँ डाल कर अपनी योनि से कई बार रस का स्राव करा दिया !

उस रस के नीचे की ओर बहने से मेरी जांघें और टाँगें गीली हो गई थी, इसलिए मैंने भाग कर ऊपर अपने गुसलखाने में जाकर अपने आपको अच्छी तरह से साफ़ किया। तरुण को निशा के शरीर की मालिश अथवा उसके साथ सम्भोग करते देख कर मुझे उसे पाने की लालसा और भी अधिक बढ़ गई तथा मेरा मन उसके साथ यौन संसर्ग के लिए बहुत ही अधीर हो उठा !

मुझे अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए सही अवसर का इंतज़ार था और उसके लिए एक सप्ताह तक प्रतीक्षा भी करनी पड़ी !

एक दिन सुबह 9:30 बजे पति देव दुकान से वापिस आए और बताया कि मार्किट के किसी बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई है, इस वजह से पूरा बाज़ार बंद हो गया है। उन्होंने यह भी बताया कि सब दुकानदार उस व्यापारी की अंत्येष्टि के लिए उसके शव के साथ अंतिम संस्कार के लिए शमशान घाट जा रहे हैं। क्योंकि पूरा दिन दुकान बंद रहेगी इसलिए उन्होंने दोपहर को तरुण को उनका खाना लेकर दुकान पर भेजने के लिए मना कर दिया तथा घर में ही अन्य काम करवाने के लिए कह दिया !

पति देव की यह बात सुन कर तो मैं गदगद हो गई और मुझे ऐसा लगा कि मेरी लाटरी निकल पड़ी हो !

मेरे पति जैसे ही उस व्यापारी की अंत्येष्टि के लिए घर से निकले मैंने झट से अपने कपड़े उतार कर अपने कांख तथा जघन-स्थल के बाल साफ़ किये, उसके बाद मैंने गर्म पानी से स्नान किया और शरीर को पौंछ कर ब्रा, पैंटी तथा उनके ऊपर नाइटी पहन ली ! तरुण के ऊपर आने के समय से पहले ही मैंने अपने सिर पर चुन्नी बाँध कर बैड पर लेट गई !

थोड़ी देर के बाद तरुण ऊपर आ कर झाड़-पोंछ तथा सफाई करते हुए जब मेरे कमरे में आया और मुझे लेटे हुए देखा तो मुझ से पूछा कि मुझे क्या हुआ है, तब मैंने उसे बताया कि मेरे सिर में तथा पूरे शरीर में दर्द हो रहा है।

यह सुन कर उसने कहा कि वह मेरे सिर में तेल लगा कर अच्छी तरह से मालिश कर देता है जिससे दर्द दूर हो जायेगा और झट से ड्रेसिंग टेबल में से आंवले का तेल ले आया।

मैंने बैड से उठते समय शरीर में दर्द के कारण उठने में कठिनाई होने को दर्शाते हुए तरुण की ओर देखा तब मजबूरन उसे हाथ बढ़ा कर मुझे सहारा देना पड़ा। उसका सहारा लेते समय मैंने अपना सारा बोझ उस पर डाल दिया जिसके कारण मेरा पूरा शरीर उसकी बाहों में झूल गया लेकिन मैंने जल्द ही अपने को संभाल कर उससे अलग कर लिया ताकि उसे कोई शक न हो कि मैं नाटक कर रही हूँ।

जब मैं ठीक से बैड पर बैठ गई तब तरुण ने मेरे सिर पर तेल लगाया और मेरे सिर को कस कर दबाया और उसकी मालिश की। कुछ देर मालिश होने के बाद मैंने तरुण को मालिश बस करने और उसे घर की सफाई का काम समाप्त करने को कहा।

तरुण ‘अच्छा’ कह कर फर्श पर पोछा लगाने के लिए दूसरे कमरों में चला गया और मैं फिर से बैड पर लेट गई और उसका मेरे कमरे में आने की प्रतीक्षा करने लगी। जब वह मेरे कमरे में पोछा लगाने के लये आया तो मैंने हल्का हल्का कहराना शुरू कर दिया। तरुण ने जब मेरा कराहना सुना तो मुझसे पूछा कि क्या मेरे सिर का दर्द कम नहीं हुआ तो मैंने उसे बताया कि सिर का दर्द तो अब ठीक है लेकिन शरीर में दर्द बहुत ज्यादा हो रहा है !

यह सुन कर जब तरुण चुप हो गया तब मैंने उसे पूछा कि क्या वह मेरे शरीर की मालिश भी कर देगा जिससे उसका दर्द भी दूर हो जाए !

मेरी बात सुन कर तरुण कुछ देर तक मौन रहा और फिर मुझे टालने कह दिया कि शरीर की मालिश के लिए तो मुझे नाइटी उतारनी पड़ेगी ! मैंने उसकी बात सुन कर पहले तो थोड़ी सी हिचकिचाहट दिखाई लेकिन फिर दर्द से कराहते हुए उसे बाहर का दरवाज़ा बंद करने और ड्रेसिंग टेबल से बादाम के तेल लाकर मेरी मालिश करने को कहा।

जब तरुण दरवाज़ा बंद करके और तेल लेकर आया तब मैंने बैड से उठी और अपनी बाहें ऊपर करी तथा उसे नाइटी उतारने में मेरी मदद करने के लिए कहा। तरुण ने झुक कर नाइटी उतारने में मेरी मदद की और फिर अपने हाथों में तेल लगा कर मेरी गर्दन, बाजुओं और कन्धों की मालिश करने लगा !

दस मिनट के बाद तरुण मुझे लेटने को कहा और मेरे शरीर के बीच के भाग यानि मेरे पेट, नाभि और कमर पर तेल लगा कर थोड़ा कस कर मालिश करने लगा। जब वहाँ का सारा तेल शरीर में समां गया तब वह मेरे शरीर के निचले भाग यानि की टांगों और जाँघों की ओर जाने लगा !

यह देख कर मैंने उसे रोक कर कहा कि पहले वह मेरे वक्ष की मालिश करे और उसके बाद में शरीर के नीचे के भागों की मालिश करे !

मेरी यह बात सुन कर तरुण थोड़ा सकपका गया और जड़ होकर मुझे देखने लगा !

जब मैंने उससे पूछा- क्या हो गया? ऐसे क्यों देख रहा है?

तब उसने कहा कि इसके लिए मुझे अपनी ब्रा भी उतारनी पड़ेगी। मैंने उसे कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो वह उसे उतार सकता है और मैंने दूसरे ओर करवट कर ली ताकि वह मेरी ब्रा के हुक खोल सके! जब उसने आगे बढ़ कर हुक खोल दिया तब मैं सीधी होकर लेट गई और उसे अपनी ब्रा को मेरे शरीर से अलग करने दिया !

इसके बाद तरुण ने मेरे स्तनों पर तेल लगाया और अपने तेल से सने हुए हाथों से मेरे स्तनों की अच्छी तरह से मालिश करने लगा। उसके हाथ बहुत ही फुर्ती से गोल गोल मेरे स्तनों पर चल रहे थे जिसकी वजह से मेरे स्तनों के अन्दर हो रही गुदगुदी से मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था! दस मिनट तक स्तनों की मालिश करने के बाद तरुण ने मेरे स्तनों के ऊपर चुचूक पर कुछ बूँदें तेल डाल कर अपने अंगूठे और उंगली के बीच में पकड़ कर उनकी मालिश करने लगा और बीच बीच में उन्हें ऊपर की ओर खींचने लगा। तरुण का ऐसा करना मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था लेकिन मेरे शरीर के अंदर वक्ष से लेकर योनि तक उत्तेजना की एक लहर दौड़ने लगी थी !

लगभग पन्द्रह मिनट तक मेरे वक्ष की मालिश करने के बाद तरुण मेरे शरीर के निचले भाग की ओर पहुँचा और मेरे पैरों, टांगों, घुटनों तथा जाँघों की मालिश करने लगा।

दस मिनट तक उनकी मालिश करने के बाद उसने मुझे करवट बदल कर पेट के बल लेटने को कहा। उसके कहे अनुसार जब मैं लेट गई तब अगले दस मिनट तक उसने मेरी पीठ, रीढ़ की हड्डी, कन्धों तथा कमर की मालिश की और फिर तेल उठा कर जाने लगा ! उसे जाते देख मैंने उससे रुकने को कहा और पूछा कि नितम्बों और जघन-स्थल की मालिश तो उसने अभी नहीं की है, तो उसने कहा कि वो तो उसे आती नहीं है !

जब मैंने उससे पूछा कि अगर उसे वहाँ की मालिश करनी नहीं आती तो उसने उस रात निशा की मालिश कैसे की थी?

तो वह भौंचक्का सा रह गया और मेरी ओर सिर झुका कर हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने लगा !

मैं उठ कर उसके पास गई और उसके हाथों को पकड़ कर अपने स्तनों पर रख दिए और उसके दोनों गालों पर चुम्बन किया, फिर उसको अपने आलिंगन में लेकर मैंने उसके कान में मेरे नितम्बों और जघन-स्थल की मालिश करने के लिए कहा। जब तरुण बहुत देर तक बिना हिले-डुले अपनी जगह पर ही दयनीय हालात में खड़ा रहा तब मैं उसे खींच कर बैड के पास ले आई और उसे मेरी आगे की मालिश करने का आदेश सुना दिया तथा बैड पर उल्टी होकर लेट गई। मेरा आदेश सुन कर तरुण धीरे धीरे हरकत में आया और उसने मुझे पैंटी उतारने को कहा लेकिन मैंने मना कर दिया और उसे खुद ही उतारने को कहा।

अंत में जब उसे कोई और रास्ता नहीं सूझा तो उसने मुझे चूतड़ ऊँचे करने को कहा और मेरा ऐसा करने पर उसने मेरी पैंटी उतार दी।

अब मैं बिल्कुल नग्न उसके सामने लेटी थी और तरुण मेरे नितम्बों की कस कर मालिश करने लगा था, वह नितम्बों के साथ साथ उनके बीच की दरार में हाथ डाल कर मेरी गुदा तक की भी मालिश करने लगा था।

जब उसने मेरे पीछे की मालिश को पूरी तरह से कर दी तब मैं सीधा हो कर लेट गई और उसे आदेश दिया कि मेरी बाकी की मालिश वह नग्न हो कर ही करे !

तरुण के पास कोई भी चारा नहीं होने के कारण उसने अपने सब कपड़े उतार दिए और मेरे जघन-स्थल और योनि पर तेल लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया।लगभग पांच मिनट तक बाहर से मालिश करने के बाद उसने मेरी योनि के मुख को खोल कर उसके अन्दर तेल से भीगी हुई अपनी दो उंगलियाँ डाल कर उसके अन्दर से भी मालिश करने लगा !

कुछ देर के बाद तरुण ने मेरी योनि के भगांकुर पर तेल लगाया और अंगूठे से उसे भी रगड़ने लगा। उंगलियों से योनि की और अंगूठे से भगांकुर की संयुक्त मालिश से मैं उत्तेजित होने लगी और मेरे मुँह से सी.. सी.. और उन्ह.. उन्ह.. की आवाजें निकलने लगी !

मेरी तरह तरुण भी मेरी इस तरह मालिश करने से बहुत ही उत्तेजित हो गया और उसका लिंग खड़ा हो कर मेरी जाँघों को छूने लगा था।तब मैंने उसके खड़े लिंग को पकड़ लिया और मुंड के बाहर निकल कर कर मसलने लगी। पांच मिनट में ही उसका लिंग लोहे की रॉड की तरह हो गया ! तब मैंने उसे खींच कर अपने बिस्तर पर लिटा लिया और उस पर चढ़ कर अपनी योनि को उसके मुँह पर रख दी तथा उसे उसको चाटने को कहा !

क्योंकि तरुण भी अब मेरे साथ यौन प्रसंग के लिए सम्पूर्ण रूप से तैयार हो चुका था इसलिए उसने कोई विरोध नहीं किया और बहुत ही प्यार से मेरी योनि तथा भगांकुर को चाटने लगा तथा अपनी तीखी जिह्वा को योनि के अन्दर बाहर करने लगा !

फिर मैंने भी आगे झुक कर उसके लिंग को अपने मुँह में ले लिया और कुल्फी की तरह उसे चूसने लगी। लगभग दस मिनट की इस क्रिया के बाद जब मेरी योनि में से पहली बार स्राव हुआ तो तरुण ने वह सारा रस पी लिया।

इसके बाद मैं तरुण के ऊपर से हट कर उसके बगल में लेट गई और उसे अपने ऊपर चढ़ने को कहा। तरुण के उठते ही मैंने अपनी दोनों टाँगें चौड़ी कर दी और वह उन दोनों के बीच में बैठ कर अपने लिंग के मेरी योनि के द्वार तथा भगांकुर पर रगड़ने लगा जिससे मेरी उत्तेजना और भी बढ़ गई। जब उत्तेजना मेरे बस से बाहर हो गई तब मैंने तरुण के लिंग को पकड़ कर योनि द्वार पर स्थित किया और उसे धक्का मारने को कहा।

तरुण ने बड़े ही प्यार से हल्का सा धक्का लगा कर अपने लिंग के आगे का दो इंच भाग मेरी योनि के अन्दर सरका दिया। उसके मोटे लिंग को पहली बार योनि के अन्दर लेने में मुझे थोड़ी तकलीफ तो महसूस हुई लेकिन उत्तेजना के कारण मैं वह सब सहन कर गई और तरुण को लिंग का बाकी भाग भी अन्दर डालने को उकसाया।

मेरे इस निर्देश पर तरुण ने आहिस्ता आहिस्ता अपने लिंग को आगे पीछे करते हुए धक्के देने लगा और अगले पांच-छह धक्कों में ही अपना पूरा लिंग मेरी योनि में भीतर प्रविष्ट कर दिया। फिर तरुण ने मेरे होटों का चुम्बन लिया तथा मेरे स्तनों को चूसने लगा और अपने लिंग को अहिस्ता अहिस्ता मेरी योनि के अन्दर बाहर करने लगा।

तरुण द्वारा मेरे स्तनों का चूसना और योनि के अन्दर उसके लिंग का गमनागमन से मेरी योनि के अन्दर गुदगुदी होने लगी थी। तरुण के हर धक्के पर मुझे योनि के अन्दर उत्तेजना होती और मेरी योनि तरुण के लिंग को जकड़ कर अन्दर की ओर खींचती, इस खींचातानी से जो रगड़ लगती उस आनन्द का विवरण करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि वह एक आंतरिक आनन्द जिसको सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है, उसको लिख कर शब्दों में विवरण नहीं किया जा सकता !

दस मिनट के बाद तरुण ने अपनी गति बढ़ा दी और मुझे मिल रहे उस अत्यंत ही सुखी आनन्द की अनुभूति को दुगना कर दिया। जब योनि के अन्दर हो रही उत्तेजना बहुत ही तेज़ हो गई और मेरे बर्दाश्त के बाहर होने लगी तब मेरे मुँह से अह्ह्ह… अह्ह्ह…. की ध्वनि निकलने लगी। मैं उस ध्वनि को रोकने के लिए अपने पर काबू पाने की कोशिश कर ही रही थी कि मेरा जिस्म अकड़ गया तथा मेरी योनि के अन्दर से एक तेज़ लहर निकली जिस के कारण मेरे मुँह से आईईईईई….. की चीख निकली !

इस चीख के साथ ही मेरी योनि में से रस का स्राव होने लगा और उस गीलेपन के कारण योनि में से फच फच की आवाजें कमरे में गूंजने लगी !

इन आवाज़ों ने हम दोनों को बहुत अधिक रोमांचित कर दिया जिसके कारण हम दोनों ने संसर्ग की गति को बहुत ही तेज़ कर दिया और दोनों उछल उछल कर उस क्रीड़ा में लीन हो गए ! जब हमें यौन संसर्ग करते हुए 15 मिनट बीत गए और तीन बार मेरी योनि से स्राव हो गया तब मैंने महसूस किया कि तरुण का लिंग भी फूलने लगा है तथा वह भी उस संसर्ग के अंतिम क्षणों के करीब पहुँच चुका है, उस समय मैंने तरुण को सम्भोग की गति को बहुत ही तेज़ करने को कहा और खुद भी उसी गति से उसका साथ देने लगी !

दो मिनट के बाद ही मेरी योनि में बहुत ही जोर की खिंचावट हुई और मेरा पूरा शरीर अकड़ गया और मेरे मुख से बहुत जोर की अह्ह्ह… अह्ह्ह्ह… और उन्ह्ह्हह… उन्ह्ह्ह… की आवाज़ें निकलने लगी, तभी तरुण के मुँह से भी आह्ह्हह्ह… की आवाज़ निकली और उसके लिंग में से गर्म गर्म लावा मेरी योनि के अन्दर भरने लगा !

एक स्त्री को यौन संसर्ग के अंत में जिस आनन्द तथा संतुष्टि की चाहत होती है मुझे उसी आनन्द और संतुष्टि की अनुभूति उस समय हो रही थी ! योनि के अन्दर तरुण के लिंग से निकले उस लावे की गर्मी ने पिछले कुछ दिनों से मेरे अन्दर की सुलग रही सारी आग और तृष्णा को शांत कर दिया !

अब मेरे दिल में तरुण के लिए असीम प्यार की एक लहर उठी रही थी जिसमें बह कर मैंने तरुण को अपने बाहुपाश में भर लिया और उस पर चुम्बनों की बौछार कर दी !

कुछ देर हम दोनों वैसे ही लेटे रहने के बाद उठे और गुसलखाने में जाकर एक दूसरे को साफ़ किया तथा कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकले और अपने अपने काम में व्यस्त हो गए !

आप सब पाठक-गण से हाथ जोड़ कर मेरी एक विनती है कि आप सिर्फ घटना पर ही प्रतिक्रिया ही भेजें और यौन संसर्ग, दोस्ती तथा चैट आदि के लिए कृपया अपने निमंत्रण भेजने का कष्ट ना करें !

Thursday, 26 September 2024

मेरी अनारकली

 

पहली बार चुदवाने में हर लड़की या औरत जरूर नखरा करती है लेकिन एक बार चुदने के बाद तो कहती है आ लंड मुझे चोद।

अब अनारकली को देखो, साली ने पूरे 2 महीने से मुझे अपने पीछे शौदाई सलीम (पागल) बना कर रखा था।
पुट्ठे पर हाथ ही नहीं धरने देती थी।
रगड़ने का तो दूर चूमा-चाटी का भी कोई मौका आता तो वो हर बार कुछ ऐसा करती कि गीली मछली की तरह मेरे हाथ से फिसल ही जाती थी।

अकेले में एक दो बार उसके अनारों को भींचने या गालों को छूने या चुम्मा लेने के अलावा मैं ज्यादा कुछ नहीं कर पाया था। पर मैंने भी सोच लिया था कि उसे प्रेम की अनारकली बना कर ही दम लूँगा।
साली अपने आप को सलीम वाली अनारकली से कम नहीं समझती।
मैंने भी सोच लिया था चूत मारूँ या न मारूं पर एक बार उसकी मटकती गांड जरूर मारूंगा।

आप सोच रहे होंगे अनारकली तो सलीम की थी फ़िर ये नई अनारकली कौन है।
दर असल अनार हमारी नौकरानी गुलाबो की लड़की है। उसके घरवाले और मधु (मेरी पत्नी) उसे अनु और मैं अनारकली बुलाता हूँ। अनार के अनारकली बनने की कहानी आप जरूर सुनना चाहेंगे।

अनार नाम बड़ा अजीब सा है ना। दर असल जिस रात वो पैदा हुई थी उसके बाप ने उसकी अम्मा को खाने के लिए अनार लाकर दिए थे तो उसने उसका नाम ही अनार रख दिया।

अनु कोई 18-19 साल की हुई है पर है एकदम बम्ब पटाखा पूरा 7.5 किलो आर डी एक्स। ढाई किलो ऊपर और उम्मीद से दुगना यानि 5 किलो नीचे। नहीं समझे अरे यार उसके स्तन और नितम्ब।
क्या कयामत है साली।
गोरा रंग मोटी मोटी आँखे, काले लंबे बाल, भरे पूरे उन्नत उरोज, भरी पर सुडोल जांघें पतली कमर। और सबसे बड़ी दौलत तो उसके मोटे मोटे मटकते कूल्हे हैं।

आप सोच रहे होंगे इसमे क्या खास बात है कई लड़कियों के नितम्ब मोटे भी होते है तो दोस्तों आप ग़लत सोच रहे हैं।
अगर एक बार कोई देख ले तो मंत्रमुग्ध होकर उसे देखता ही रह जाए।

खुजराहो के मंदिरों की मूर्तियों जैसी गांड तो ऐसे मटका कर चलती जैसे दीवानगी में ‘उर्मिला मातोंडकर’ चलती है।
नखरे तो इतने कि पूछो मत।

अगर एक बार उसे देख लें तो ‘उर्मिला मातोंडकर’ या ‘शेफाली छाया’ को भूल जायेंगे। और फ़िर मैं तो नितम्बों का मुरीद (प्रेम पुजारी) हूँ।

कभी कभी तो मुझे शक होता है इसकी माँ गुलाबो तो चलो ठीक ठाक है, हो सकता है जवानी में थोड़ी सुंदर भी रही होगी पर बाप तो काला कलूटा है। तो फ़िर ये इंतनी गोरी चिट्टी कैसे है।
लगता है कहीं गुलाबो ने भी अपनी जवानी में मेरे जैसे किसी प्रेमी भंवरे से अपनी गुलाब की कली मसलवा ली होगी।

खैर छोड़ो इन बातों को हम तो अनु के अनारकली बनने की बात कर रहे थे।

अरे नए पाठकों को अपना परिचय तो दे दूँ। मैं प्रेम गुरु माथुर। उमर 32 साल। जानने वाले और मेरे पाठक मुझे प्रेम गुरु बुलाते हैं। मैं एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में काम करता हूँ।

मेरे लंड का आकार लगभग 7″ है। सुपारा ज्यादा बड़ा नहीं है पर ऐसे सुपाड़े और लंड गांड मारने के लिए बड़े मुफीद (उपयुक्त) होते हैं।
मेरे लंड के सुपाड़े पर एक तिल भी है। पता नहीं आप जानते हैं या नहीं ऐसे आदमी बड़े चुद्दकड़ होते हैं और गांड के शौकीन।

मेरी पत्नी मधुर (मधु ) आयु 28 साल बला की खूबसूरत 36-28-36 मिश्री की डली ही समझो, चुदाई में बिल्कुल होशियार। पर आप तो हम भंवरों की कैफियत (आदत) जानते ही हैं कभी भी एक फूल से संतुष्ट नहीं होते।

एक बात समझ नहीं आती साली ये पत्नियाँ पता नहीं इतनी इर्ष्यालू क्यों होती हैं जहाँ भी कोई खूबसूरत लड़की या औरत देखी और अपने मर्द को उनकी और जरा सा भी उनपर नज़रें डालते हुए देख लिया तो यही सोचती रह्रती हैं कि जरूर ये उसे चोदना चाहते हैं।

कमोबेश मधु की भी यही हालत थी। अनार को अनारकली बनाने में मेरी सबसे बड़ी दिक्कत तो मधु ही थी। मुझे तो हैरत होती है पूरी छान बीन किए बिना उसने गुलाबो को कैसे काम पर रख लिया जिसके यहाँ आर डी एक्स जैसी चीज भी है जिसका नाम अनार है।

मुझे तो कई दिनों के बाद पता चला था कि अनु बहुत अच्छी डांसर है। आप तो जानते हैं मधु बहुत अच्छी डांसर है।
शादी के बाद स्कूल कार्यक्रम को छोड़ कर उसे कोई कम्पीटीशन में तो नाचने का मौका नहीं मिला पर घर पर वो अभ्यास करती रहती और अनु भी साथ होती है।

अनु तो 10-15 दिनों में ही उससे इतना घुलमिल गई थी कि अपनी सारी बातें मधु उससे करने लग गई थी। दो दो घंटे तक पता नहीं वो सर जोड़े क्या खुसर फुसर करती रहती हैं।

वैसे तो ये कभी कभार ही आती थी और मैंने पहले कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।
आप ये जरूर सोच रहे होंगे ये कैसे हो सकता है।
कोई खूबसूरत फूल आस पास हो और मेरी नज़र से बच जाए ये कैसे हो सकता है। दर असल उन दिनों मेरा चक्कर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी से चल रहा था।

लेकिन जबसे गुलाबो बीमार हुई है पिछले एक महीने से अनार ही हमारे यहाँ काम करने आ रही है। मुझे तो बाद में पता चाल जब मधु ने बताया कि गुलाबो के फ़िर लड़की हुई है।

कमाल है 38-40 साल की उमर में 5-6 बच्चों के होते हुए भी एक और बच्चा? अगर माँ इतनी चुदक्कड़ है तो बेटी कैसी होगी!

माँ पर बेटी नस्ल पर घोड़ी!
ज्यादा नहीं तो थोड़ी थोड़ी!!

एक दिन जब मैं बाथरूम से निकल रहा था तो अनु अपनी चोटी हाथ में पकड़े घुमाते हुए गाना गाते लगभग तेजी से अन्दर आ रही थी:

मैं चली मैं चली देखो प्यार की गली!
मुझे रोके ना कोई मैं चली मैं चली!!

वो अपनी धुन में थी अचानक मैं सामने आ गया तो वो मुझसे टकरा गई। उसके गाल मेरे होंठो को छू गए और स्तन भी सीने से छू कर गए। मैंने उसकी चोटी पकड़ते हुए कहा- कहाँ चली मेरी अनु रानी? कहीं सचमुच ससुराल तो नहीं जा रही थी?

वो शरमा कर अन्दर भाग गई।

हाय अल्लाह… क्या कमायत है साली। मैं भी कितना गधा था इतने दिन इस आर डी एक्स पर ध्यान ही नहीं दिया।

उस दिन के बाद मैंने अनु को चोदने का जाल बुनना शुरू कर दिया। अनु ने तो मधु पर पता नहीं क्या जादू कर दिया था कि वो उसे अपनी छोटी बहन ही समझने लगी थी।

अनु भी लगभग सारे दिन हमारे घर में मंडराती रहती थी हलाँकि वो एक दो जगह पर और भी काम करती थी।
मधु ने उसे अपनी पुरानी साड़ियाँ, चप्पल, सूट, मेक-अप का सामान आदि देना शुरू कर दिया।
उसे अपनी पहनी पैंटी ब्रा और अल्लम-गल्लम चीजें भी देती रहती थी।

अनु हमारे यहाँ झाडू पोंछा बर्तन सफाई कपड़े आदि सब काम करती थी।
कभी कभी रसोई में भी मदद करती थी।
वो तो यही चाहती थी कि किसी तरह यहीं बनी रहे।

मैं शुरूआत में जल्दी नहीं करना चाहता था।

जब वो ड्राइंग रूम में झाडू लगाती तो उसके रसभरे संतरे ब्लाउज के अन्दर से झांकते साफ़ दिख जाते थे। पर निप्पल और एरोला नहीं दिखते थे पर उसकी गोलाइयों के हिसाब से अंदाजा लगना कहाँ मुश्किल था।

मेरा अंदाजा है कि एक रुपये के सिक्के से ज्यादा बड़ा उसका एरोला नहीं होगा। सुर्ख लाल या थोड़ा सा बादामी। उसकी घुंडी तो कमाल की होगी।

मधु के तो अब अंगूर बन गए है और चूसने में इतना मज़ा अब नहीं आता।
पता नहीं इन रस भरे आमों को चूसने का मौका कब नसीब होगा। शुरू शुरू में मैं जल्दबाजी से काम नहीं लेना चाहता था। अनु इन सब से शायद बेखबर थी।

आज शायद उसने मधु की दी हुई ब्रा पहनी थी जो उसके लिए ढीली थी।
झाडू लगाते हुए जब वो झुकी तो मैंने देख लिया था, मेरी नज़रें तो बस उन कबूतरों पर टिकी रह गई।
मुझे तो होश तब आया जब मेरे कानों में आवाज आई- साहब अपने पैर उठाओ मुझे झाडू लगानी है।’ अनु ने झुके हुए ही कहा।

‘आंऽऽ हाँ…’ मैंने झेंपते हुए कहा, मैं सोच रहा था कहीं उसने मुझे ऐसा करते पकड़ तो नहीं लिया।
लेकिन उसके चेहरे से ऐसा कुछ नहीं लगा और अगर ऐसा हुआ भी है तो चलो आगाज तो अच्छा है।
मेरा लंड तो पजामे के अन्दर उछल कूद मचाने लगा था।
मैंने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी। पजामे के बाहर उसका उभार साफ़ नज़र आ रहा था।

मधु ने उसको समझा दिया था कि वो उसे (मधु को) दीदी बुलाया करेगी और मुझे भइया।

मैं तो सोच रहा था कि जब मधु उसकी दीदी हुई तो वो मेरी साली हुई ना और मैं उसका जीजा, मुझे भइया की जगह सैयाँ नहीं तो कम से कम जीजू ही बुलाये। ताकि साली पर आधा हक, जो जीजू का होता ही है, मेरा भी हो जाए, पर मैं तो लड्डू पूरा खाने में विश्वास रखता हूँ।
पर मधु के हिसाब से साहब ही कहलवाना ठीक था मैं मरता क्या करता।

मधु इस समय बाथरूम में थी। आज वो अकेले ही नहा रही थी। कोई बात नहीं कभी कभी अकेले नहाना भी सेहत के लिए अच्छा होता है।

मेरा अनार से बात करने का मूड हो आया- अनु! चाय तो पिला दो एक कप!

‘हाँ… बनाती हूँ!’ अनु ने कोयल जैसी मीठी आवाज में कहते हुए मेरी और इस तरह से देखा जैसे कह रही हो चाय क्या पीनी है कुछ और भी पी लो। वो कमर पर हाथ रखे खड़ी थी चाय बनाने नहीं गई।

‘अरे अनु! आज ये तुमने ढीले ढीले कपड़े क्यों पहन रखे हैं?’
‘नहीं! ढीले कहाँ हैं? ठीक तो हैं!’ उसने अपना कुरता नीचे खींचते हुए कहा।
‘अरे ये ब्रा कितनी ढीली है! इसके स्ट्रेप्स दिख रहे हैं!’ मैंने हँसते हुए कहा।

‘धत… आप भी!’ वो शरमा गई।
या अल्लाह… क्या अदा है!!

‘क्यों मैंने झूठ कहा?’
‘वो दीदी भी यही कह रही थी!’ वो अपनी आँखें नीची किए बोली।
‘तो अपने साइज़ की पहना करो न उनमें तुम बहुत सुंदर लगोगी।’
‘पर हमारे पास इतने पैसे कहाँ हैं नई ब्रा खरीदने के लिए?’

‘कोई बात नहीं इतनी सी बात मैं तुम्हारे लिए ला दूंगा म ऽऽ म्… मेरा मतलब मधु से कह दूंगा!’
‘पर दीदी… पैसे..??’

‘अरे तुम पैसों की क्यों चिंता करती हो, बाद में दे देना’ मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
मेरा कुतुबमीनार पजामे के अन्दर उफन रहा था और बाहर आने को मचलने लगा। मैंने जल्दी से अखबार गोद में रख लिया नहीं तो अनु जरूर देख लेती और मेरे इरादों की भनक उसे लग जाती तो आगाज (श्री गणेश) ही ख़राब हो जाता। पर मैं तो इस मामले में पूरा खिलाड़ी हूँ।

अनु रसोई में चली गई, मधु बाथरूम में थी, मेरा मन किया उसके साथ नहा ही लिया जाए। मौसम भी है, मौका भी अच्छा है और लंड भी कुतुबमीनार बना है।

मैं जैसे ही उठा सामने से मधु अपने बाल तौलिए से रगड़ते हुए बाथरूम से निकल कर मेरी ओर ही आ रही थी। मैंने मधु की ओर आँख मारी और सीटी बजाने के अंदाज़ में ओये होए कहा।

मेरे इस इशारे को वो अच्छी तरह जानती थी। जब हम लोग कामातुर हैं मतलब चुदाई की इच्छा होती है इसी तरह सीटी बजाते हैं।
मैंने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की तो वो मुझे परे धकेलते हुए बोली- हटो, लाल बाई आ गई है।

पहले तो मैं कुछ समझा नहीं मैंने सोचा कहीं वो गुलाबो की बात तो नहीं कर रही पर बाद में जब उसके माहवारी की और इशारे को समझा तो मेरा सारा उत्साह ही ठंडा पड़ गया।
अब तो 5-6 दिन मुझे अपना हाथ जगन्नाथ ही करना पड़ेगा, मधु तो चूत और गांड पर हाथ भी नहीं फेरने देगी।

दूसरे दिन मैंने बाज़ार से 2 स्टाइलिश ब्रा और काले रंग की पैंटी खरीदी।

मधु सुबह जल्दी स्कूल चली जाती है।
अनु रोज सुबह 8 बजे आ जाती है, हमारे लिए चाय नाश्ता बना देती है बाद में सफाई और बर्तन आदि साफ़ करती है।
मैं ऑफिस के लिए कोई 9.30 बजे निकलता हूँ।

आज प्रोग्राम के मुताबिक मुझे 9.30 तक जाने की कोई जल्दी नहीं थी। मैं तो अपना जाल अच्छी तरह बुनता जा रहा था।
मधु के जाते ही मैंने अनु को आवाज दी- अरे मेरी अनारकली, देखो वो मेज़ पर क्या रखा है!’

‘साहब कोई पैकेट लगता है क्यों?’
‘देखो तो सही क्या है इसमें?’

अनु ने पैकेट खोला तो उसमे से ब्रा, पैंटी और दो तीन खुशबू वाली फेस क्रीम देखकर वो खुश हो गई पर बोली कुछ नहीं।
वो कुछ नहीं बोली मेरी तरफ़ बस देखती रही।

मैंने कहा- भई ये सब हमारी अनारकली के लिए है। कल मैंने तुमसे वादा किया था न।
उसे तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ।

‘क्यों अच्छी है न?’
‘हाँ बहुत सुंदर है। मैं भी ऐसी ही चाहती थी…’ अनजाने में उसके मुंह से निकल ही गया।
‘देखो अपनी दीदी से मत कहना…’
‘क्यों?’

‘अरे वो तुम्हारे पैसे काट लेगी!’
‘तो क्या आप नहीं काटोगे? छोड़ दोगे?’
‘तुम कहो तो नहीं काटूँगा… चोद दूंगा… पर…?’ मैंने जानबूझ कर छोड़ को चोद कहा था।

पर पता नहीं अनारकली ने ध्यान दिया या नहीं वो तो बस उन्हें देखने में ही लगी थी।
‘पर एक शर्त है!’ मैंने कहा।
‘वो क्या?’
‘ये पहन कर मुझे भी दिखानी होगी…’

‘इस्स्स्स…’ अनु शरमाकर पैकेट लेकर बाहर की और भाग गई।
मेरा दिल उछलने लगा।
या अल्लाह…

आज के लिए इतना ही काफी था। मैंने बाथरूम में चला गया और कोई दो साल के बाद आज जमकर मुठ मारी तब जाकर पप्पू महाराज कुछ शांत हुए और मुझे ऑफिस जाने दिया।

अगले दो दिनों पता नहीं अनारकली काम पर क्यों नहीं आई।
मैं तो डर ही गया। पता नहीं क्या हो गया।
कहीं उसने घरवालों या मधु को कुछ बता तो नहीं दिया? पर मेरी आशंका ग़लत निकली।

उसे तो घर पर ही कुछ काम था। अपनी माँ और नए बच्चे से सम्बंधित।

पिछले दो तीन दिनों से मधु की माहवारी चल रही थी और मुझे चोदने नहीं दिया था, सेक्रेटरी भी नौकरी छोड़ गई थी।

आप को तो पता ही है हम लोग शनिवार की रात बड़ी मस्ती करते हैं।
यह दिन मेरे लिए तो बहुत ख़ास होता है पर मधु के लिया सन्डे ख़राब करने वाला होता है।
ऐसा इसलिए कि शनिवार को मैं मधु की गांड मारता हूँ बाकी दिनों तो वो मुझे गांड के सुराख पर अंगुली भी नहीं धरने देती।

हम लोगों ने आपस में तय कर रखा है की स्वर्ग के इस दूसरे द्वार यानि कि मधु की चूत की प्यारी पड़ोसन की मस्ती सिर्फ़ शनिवार को या होली, दीवाली, जन्मदिन या फ़िर शादी की वर्षगांठ पर ही की जायेगी।

दूसरे दिन हम लोग बाथरूम में साथ साथ नहाते हैं और अलग मौज मस्ती करते हैं। रविवार के दिन मधु जिस तरीके से टांगें चौड़ी करके चलती है कई बार तो मुझे हँसी आ जाती है और फ़िर रात को मैं चूत से भी हाथ धो बैठता हूँ।

इन दिनों मैं अपना लंड हाथ में लिए किसी चूत की तलाश में था और मुठ मार कर ही गुजारा कर रहा था। भगवन ने छप्पर फाड़ कर जैसे अनारकली को मेरे लिए भेज तो दिया था, पर जाल अभी कच्चा था।

पिछले एक डेढ़ महीने से मैं अपना जाल बुन रहा था। जल्दबाजी में टूट सकता था। और मेरे जैसे खिलाड़ी के लिए ये शर्म की बात होती की कोई चिडिया कच्चे जाल को तोड़ कर भाग जाए, मैं जल्दी नहीं करना चाहता था। पहले लोहा पूरा गरम कर लूँ फ़िर हथोड़ा मारूंगा।

आप सोच रहे होंगे एक नौकरानी को चोदना क्या मुश्किल काम है। थोड़ा सा लालच दो बाथरूम में पेशाब करने के बहने लंड के दर्शन करवाओ और पटक कर चोद दो। घर में सम्भव ना हो तो किसी होटल में ले जाकर रगड़ दो।

आप ग़लत सोच रहे हैं। अगर कोई झुग्गी बस्ती में रहने वाला कोई लौंडा लापड़ा हो या अनु की सोसायटी में रहने वाला हो तो कोई बात नहीं है जानवरों की पुँछ की तरह कभी भी लहंगा या साड़ी पेटीकोट उठाओ और ठोक दो। अब गुलाबो को ही लो 38-40 साल की उमर में 5-6 बच्चों के होते हुए भी एक और बच्चा?

हम जैसे तथाकथित पढ़े लिखे समझदार लोग अपने आप को मिडल क्लास समझाने वालों के लिए भला इस तरीके से इतनी आसानी से किसी और लड़की को कैसे चोदा जा सकता है। खैर आप क्यों परेशान हो रहे हैं।

आज शनिवार था। रिवाज के मुताबिक तो आज हमें रात भर मस्ती करनी थी पर अभी मधु को चौथा दिन ही था और अगले दो दिन और मुझे मुठ मार कर ही काम चलाना था। अनारकली को चोदना अभी कहाँ सम्भव था।

मैंने मधु को जब अपने खड़े लंड को दिखाया तो वो बोली- ऑफ़ ओ! आप तो 3-4 दिन भी नहीं रह सकते!
‘अरे तुम क्या जानो तीन दिन मतलब 72 घंटे 4320 मिनट और…’

‘बस बस अब सेकंड्स रहने दो…’ मधु मेरी बात काटते हुए बोली।
‘प्लीज़ मेरी शहद रानी (मधु) आज तो बस मुंह में लेकर ही चूस लो या फ़िर मुठ ही मार दो अपने नाज़ुक हाथों से?’

मधु कई बार जब बहुत मूड में होती है मेरा लंड भी चूसती है और मुठ भी मार देती है।
पर आज उसने लंड तो नहीं चूसा पर अपने हाथों में अपनी नई कच्छी लेकर मुठ जरूर मार दी। मेरा सारा वीर्य उसकी पेंटी में लिपट गया।

मधु जब हाथ धोने बाथरूम गई तो मेरे दिमाग में एक योज़ना आई। मैंने वो पेंटी गेस्ट रूम से लगे कोमन बाथरूम में डाल दी। अनारकली इसी बाथरूम में कपड़े धोती है।

दूसरे दिन रविवार था, मधु और मैं देरी से उठे थे, अनारकली रसोई में चाय बना रही थी।

चाय पीकर मधु जब बाथरूम चली गई तो मैंने अनारकली से कहा- अनारकली, तुमने जो वादा किया था उसका क्या हुआ?’
‘कौन सा वादा साहब?’
‘अरे इतना जल्दी भूल गई वो पैंटी और ब्रा पहन कर नहीं दिखानी??’

‘ओह… वो… इस्स्स स्स्स…’ वो एक बार फिर शरमा गई, मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया।

‘उईई माँ…’ वो जोर से चिल्लाई, अगर मधु बाथरूम में न होती तो जरूर सुन लेती।
‘वो… वो… मधु… दीदी…’ मैंने इधर उधर देखा इतने में तो वो रसोई की और भाग चुकी थी।

मेरा आज का आधा काम हो गया था। बाकी का आधा काम कपड़े धोते समय अपने आप हो जाएगा।

नाश्ता आदि बनने के बाद जब अनारकली बाथरूम में कपड़े धोने जाने लगी तो मेरी आँखें उसका ही पीछा कर रही थी। वो जब बाथरूम में घुसी तो मैं जानता था उसकी नज़र सीधी पेंटी पर ही पड़ी होगी। उसने इधर उधर देखा। मैं अखबार में मुंह छिपाए उसे ही देख रहा था। जैसे ही उसने दरवाजा बंद किया मैं बाथरूम की ओर भागा।

मधु अभी बेडरूम में ही थी। मैं जानता था उसे अभी आधा घंटा और लगेगा। मैंने बाथरूम के की होल से देखा तो मेरी बांछे ही खिल गई। योजना के मुताबिक ही हुआ। अनारकली ने वोही पेंटी हाथ में पकड़ रखी थी और बड़े ध्यान से उस पर लगे कम को देख रही थी।

पता नहीं उसे क्या सूझा, एक ऊँगली कम में डुबोई और नाक के पास लेजा कर पहले तो सुंघा फ़िर उसे मुंह में लेकर चाटा।

अपनी आँखें बंद कर ली और एक सीत्कार सी लेने लगी। फ़िर उसने अपनी सलवार उतार दी। हे भगवन उस काली पैन्टी में उसकी भरपूर जांघें बिल्कुल मक्खन मलाई गोरी चिट्टी। और 2 इंच की पट्टी के दोनों ओर झांटे छोटे छोटे काले बाल। डबल रोटी की तरह फूली हुई उसकी बुर।

वो रुकी नहीं उसने पेंटी नीचे सरकाई और उसकी काले रेशमी बालों से लकदक चूत नुमाया (प्रकट) हो गई।
चूत के मोटे मोटे बाहरी होंठ।
अन्दर के होंठ पतले थोड़े काले और कोफी रंग के आपस में चिपके हुए।

चूत का चीरा कोई 4 इंच का तो होगा। संगमरमरी जांघों के बीच दबी उसकी चूत साफ़ दिख रही थी। लाजवाब जांघें और दांई जांघ पर काला तिल।

पूरी क़यामत!

उसने धीरे से अपनी अंगुलियों से अपनी चूत की दोनों फांकों को खोला जैसे कोई तितली अपने छोटे छोटे पंख फैलाती है, अन्दर से लाल चट्ट उसकी चूत का छेद साफ़ नज़र आने लगा।

अनु ने एक अंगुली पर थूक लगाया और फ़िर गच से अपनी चूत के नाज़ुक छेद में अन्दर डाल दी और जोर से एक सीत्कार मारी, फ़िर उसने धड़ धड़ अपनी अंगुली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी।

उसकी काले झांटो से भरी चूत और मोटे मोटे नितम्बों को देखकर मेरा दिल तो गाना ही गाने लगा ‘ये काली काली झांटे ये गोरी गोरी गांड!’

कोई 10 मिनट तक वो अपनी अंगुली अन्दर बाहर करती रही, फ़िर एक किलकारी मारते हुए वो झड़ गई। अपनी अंगुली भी उसने एक बार चाटी और अचार की तरह चटकारा लेते हुए अपनी पैंटी पहन ली।

अब वहाँ रुकने का कोई अर्थ नहीं था। मैं दौड़ कर वापस ड्राइंग रूम में आ गया। मेरा जाल पक्का बन गया था और शिकार ने चारे की ओर बढ़ना शुरू कर दिया था।

आज तो छठा दिन (माहवारी का छठा) दिन … नहीं रात थी और मैं मधु को कहाँ छोड़ने वाला था।
मैंने पूरी तैयारी कर ली थी।
आज मैंने कस कस कर 2 बार उसकी चूत मारी और एक बार गांड।
मधु तो जैसे बेहोश होते होते बची। पता नहीं ये औरतें गांड मरवाने में इतना नखरा क्यों करती हैं।

गुरूजी कहते हैं ‘औरत के तीन छेद होते हैं और तीनो ही छेदों का मज़ा लेना चाहिए। चूत, गांड और मुंह।
इसीलिए उसने मनुष्य जन्म लिया है।
क्या आपने कभी दूसरे प्राणियों को गुदा मैथुन करते हुए देखा है ये गुण तो भगवन ने सिर्फ़ मनुष्य जाति को ही दिया है।’

वो कहते हैं ना ‘जिस आदमी ने लाहौर नहीं देखा और अपनी बीवी की गांड नहीं मारी वो समझो जीया ही नहीं।’

चलो लाहौर देखने की तो मजबूरी हो सकती है गांड मारने में कैसी लापरवाही। जो औरतें गांड नहीं मरवाती वो अगले जन्म में किन्नर या खच्चर बनती हैं और सम्भोग नहीं कर पाती।
आप तो जानते ही हैं कि खच्चर सम्भोग नहीं कर सकते और किन्नर सिर्फ़ गांड ही मरवा सकते हैं सम्भोग नहीं कर सकते।

अब ये आपके ऊपर है कि अगले जन्म में आप क्या बनाना चाहते हैं और ऊपर जाकर भगवान को क्या मुंह दिखाओगे या दिखाओगी…’

उस दिन अनारकली ने तो जैसे बम्ब ही फोड़ दिया। मधु ने बताया कि घरवाले अनु का अगले महीने गौना करने वाले हैं।
हे भगवन जाल में फंसी मछली क्या इतनी जल्दी निकल जायेगी।
हाथ आया शिकार छिटक जाएगा।

मैंने मधु से कहा- पर अनारकली तो अभी छोटी ही है। अभी तो मुश्किल से 17-18 की हुई होगी!’

मैं जानता हूँ वो एक साथ दो दो लंड अपनी चूत और गांड में लेने लायक बन गई है पर मधु के सामने तो उसे बच्ची ही कहना ठीक था।

‘अरे आप इन लोगों की परेशानी नहीं जानते। गरीब की लुगाई हरेक की भाभी होती है। जवान होने से पहले ही मोहल्ले, पड़ोस और रिश्तदारों के लौंडे लपाड़े तो क्या घर के लोग ही उनका यौन शोषण कर लेते हैं। चाचा, ताऊ, जीजा, फूफा यहाँ तक कि उसके सगे भाई और बाप भी कई बार तो नहीं छोड़ते हैं।’ मधु ने बताया।

‘पर अनारकली को तो ऐसी कोई समस्या थोड़े ही है। तुम गुलाबो को समझाने कि कोशिश क्यों नहीं करती?’ मैंने कहा।

‘तुम नहीं जानते उसका बाप एक नम्बर का शराबी और चुद्दकड़ है। अनु बता रही थी कि कल उसकी मासी घर आई थी उसके बापू ने उसे पकड़ लिया था। मासी ने शोर मचा कर अपने आप को छुड़ाया। अनु डर रही थी कि कहीं उसे ही ना…’

मैं तो सुनकर ही हक्का बक्का रह गया।

एक और मैं अनारकली को चोदने के चक्कर में लगा था और दूसरी और उसका बाप ही उसकी वाट लगाने पर तुला था। अगर उसका गौना हो गया तो मेरी पिछले 2 महीनों की सारी मेहनत बेकार चली जायेगी। मेरा तो मूड ही ख़राब हो गया।

गुरूजी कहते हैं ‘समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता ‘ पता नहीं भाग्य में कब कहाँ कैसे क्या लिखा है।

उस दिन शाम को मधु ने बताया कि उसकी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है। भइया का फ़ोन आया था वो भी जा रहे हैं और मुझे भी जयपुर जाना पड़ेगा।
अब ग्वालियर से जयपुर कोई ज्यादा दूर तो है नहीं मैंने झटपट दूसरे दिन ही उसकी रेल की टिकेट कन्फर्म करवा दी। मैंने ऑफिस में जरूरी काम का परफेक्ट बहाना बना दिया।

उसने जाते हुए अनु को मेरा ध्यान रखने को समझाया कि कब नाश्ता देना है, खाना कब देना है, क्या क्या बनाना है। बस तीन चार दिनों की बात है। मजबूरी है। किसी तरह काट लेना।

मैंने मन में भगवान का धन्यवाद किया और थोड़ी सी आशा मन में जगी कि अब अनार को अनारकली बनने का माकूल (सही) समय आ गया है।

मैंने स्टेशन पर उसे छोड़ते समय इतनी बढ़िया एक्टिंग की जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से बिछुड़ रहा हो।
अगर दिलीप कुमार उस वक्त देख लेता तो कहता मधुमती में उसकी एक्टिंग भी ऐसी नहीं थी।
मधु एक बार तो बोल ही पड़ी कि ‘वैसे भइया तो जा ही रहे हैं तुम मेरे बिना इतने उदास हो रहे हो तो मैं जाना कैंसिल कर दूँ?’

मैं घबरा गया अच्छी एक्टिंग भी कई बार महंगी पड़ जाती है।
मैंने कहा- अरे बूढ़ा शरीर है ऐसे समय में जाना जरूरी होता है।
कल को कोई ऐसी वैसी बात हो गई तो हमें जिन्दगी भर पछतावा रहेगा तुम मेरी चिंता छोडो किसी तरह 3-4 दिन तुम्हारे बिना काट ही लूँगा पर लौटने में देरी कर दी तो मुझे जरूरी काम छोड़ कर भी तुम्हें लेने आना पड़ेगा हनी डार्लिंग!’

आप तो जानते ही हैं जब मुझे मधु को गोली पिलानी होती है मैं उसे हनी कहता हूँ।
मधु ने मेरी और ऐसे देखा जैसे मैं कोई शहजादा सलीम हूँ और वो अनारकली जो मुझसे दूर जा रही है।

रात अनारकली के सपनों में ही बीत गई।

सुबह मुझे अनारकली की मीठी आवाज ने जगाया, वो आते ही बोली- दीदी के पहुँचने का फोन आया क्या??
‘क्यों हम अकेले अच्छे नहीं लगते क्या?’

‘ओह… वो..वो.. बात नहीं…’ अनारकली थोड़ा झिझकते हुए बोली- आपके लिए चाय बनाऊँ?

‘नहीं पहले मेरे पास बैठो मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है…’ मैंने आज पहली बार उसे बेड पर अपने पास बैठाया।'छोटी कहाँ हूँ ! पूरी 18 की हो गई हूँ। और फ़िर गरीब की बेटी तो घरवालों, रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों, शोहदों की नज़र में तो इससे कम की भी जवान हो जाती है। हर कोई उसे लूटने खसोटने के चक्कर में रहता है।

चुदक्कड़ परिवार

 

अजय अग्रवाल सुबह का अखबार पढ़ रहे थे, सामने मेज़ पर गर्म चाय की प्याली रखी हुई थी, वो चाय की चुस्की के साथ साथ अखबार भी पढ़ रहे थे।

तभी उनके कानों में आवाज आई- सर, आपका फोन !

उन्होंने अखबार से नजर उठाई, सामने सफेद शर्ट, काली पैन्ट में उनका नौकर खड़ा था।

“किसका फोन है अंकित?”

अंकित- सर, रमेश सर का फोन है।

अजय- इस वक्त? इतनी सुबह?

… हैलो, हाँ रमेश ! बोलो, इतनी सुबह-सुबह? क्या हो गया भई?

अजय बात करते हुए- अच्छा अच्छा ! हम्म ! यह कब की बात है? … फिर तुमने क्या किया? … चलो अभी कुछ भी करने की जरुरत नहीं है, मैं आता हूँ थोड़ी देर में और जब तक मैं न पहुँचु, तुम लोग कुछ मत करना ! समझे न?

यह कह कर अजय ने फोन रख दिया और वहीं मेज़ पर अखबार रखते हुए उठ खड़ा हुआ और अंकित से पूछा- मेमसाब कहाँ हैं?

अंकित ने जवाब दिया- सर, वो मार्निंग-वॉक के लिए गई हैं।

अजय ने कहा- ठीक है, वो आ जाएँ तो उन्हें बता देना कि मैं किसी जरूरी काम से जा रहा हूँ, लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी।

यह कह कर अजय अपने कमरे की ओर चले गए और तैयार होने लगे …

अंकित ने पूछा- साहब, नाश्ता लगाऊँ?

अजय ने जवाब दिया- नहीं, मैं बाहर ही कर लूँगा, तुम गाड़ी निकलवाओ।

अजय अपने आलीशान चेम्बर में बैठे थे, सामने एक बड़ी सी मेज रखी थी, एक तरफ़ लैपटॉप खुला हुआ था और वो उस पर बड़े गौर से कुछ पढ़ रहे थे। सामने की कुर्सी पर रमेश बैठे थे और बगल में रीमा खड़ी थी। रीमा अजय की सेक्रेटरी थी, गोरी, गदराया बदन, बड़ी-बड़ी चूचियाँ उसके टॉप से बाहर आने को तरस रही थी और उसने बिल्कुल कसा हुआ मिनी-स्कर्ट पहना हुआ था, जिसमें से उसकी गाण्ड साफ दिख रही थी।

अजय ने अपनी नजरों को लैपटॉप से हटाया और रमेश की तरफ देखते हुए बोले- रमेश ये सब क्या है ?… इतना बड़ा घपला तुम्हारी नाक के नीचे चलता रहा और तुम्हें पता तक नहीं चला? तुम्हें पता है रमेश कि कितने का घपला है यह?

रमेश- हाँ सर, पता है ! पूरे डेढ़ सौ करोड़ का मामला है यह !

अजय ने मेज पर हाथ पटकते हुए कहा- मुझे जल्द से जल्द इसकी पूरी रिपोर्ट चाहिए, कौन-कौन इसमे शामिल है, वो सब ! जितनी जल्दी हो सके पता करो रमेश।

रमेश- ज….जी सर ! आप चिन्ता न करें !

अजय- (गुस्से में) चिन्ता न करूं? इतना सब-कुछ होने के बाद भी चिन्ता न करूँ? मैं वो सब नहीं जानता, मुझे सच्चाई जाननी है, जो भी करना है करो … और हाँ यह बात मीडिया में नहीं जानी चाहिए रमेश ! समझ गए? अब तुम जा सकते हो !

अजय- रीमा, मेंरे लिए एक सैंडविच और कॉफी भिजवाओ।

रीमा- यस सर ! अभी भिजवाती हूँ …

कहते हुए रीमा भी बाहर चली गई।

अजय की बीवी लक्ष्मी घर लौटती है :

अंकित ! अंकित ! अजय कहाँ है?

अंकित तेज कदमों के साथ आता है और अदब के साथ खड़ा होकर जवाब देता है- मैडम, साहब के पास रमेश साहब का जरूरी फोन आया था तो वो ऑफिस चले गए हैं।

लक्ष्मी- साहब ने कुछ खाया या नहीं?

अंकित- नहीं मैडम, साहब ने कहा कि वो बाहर ही खा लेंगे।

लक्ष्मी- अच्छा, ऐसी भी क्या इमरजेंसी थी उन्हें? … साहब से बात करवाना मेरी !

अंकित- जी मैडम, अभी फ़ोन लगाता हूँ।

लक्ष्मी- अजय, तुम कहाँ हो यार? इतनी सुबह ऑफिस में क्या कर रहे हो?

अचानक लक्ष्मी चिन्तित दिखने लगी और कहा- ठीक है, लेकिन ज्यादा परेशान मत होना तुम।

लक्ष्मी अपने कमरे में चली गई अपने कमरे में पहुँचकर उसने अंकित को आवाज लगाई।

अंकित अब लक्ष्मी के कमरे में था।

लक्ष्मी ने कहा- मेरी मालिश की मेज़ तैयार करो, मैं आती हूँ अभी कपड़े बदल कर !

अंकित वहाँ से दूसरे कमरे में चला गया।

थोड़ी देर में वहाँ लक्ष्मी भी पहुँच गई, उसने गाउन पहन रखा था। सामने मालिश की मेज़ थी और मेज़ के एक तरफ़ तेल और क्रीम की कई शीशियाँ रखी थी। अंकित वहीं पास में सिर्फ एक छोटे सी हाफपैंन्ट पहने खड़ा था। गठीला सांवला बदन था, अंकित की उम्र यही कोई 23 की रही होगी।

लक्ष्मी ने अपने गाउन की नॉट को खोल दिया और सिर्फ काले रंग की पैंटी में वहाँ से मेज़ की ओर बढ़ गई।

लक्ष्मी- अंकित, पूरा बदन टूट रहा है ! आज जरा बढ़िया मालिश करना मेरी !

अंकित- जी मैडम… इससे पहले कभी शिकायत का मौका दिया है कभी आपको? आप बिल्कुल बेफिक्र रहें ! एन्ड जस्ट रिलेक्स।

लक्ष्मी पेट के बल लेट गई..

बगल से उसकी चूची साफ झलक रही थी और गोरे जिस्म पर उसकी काली पैंटी बहुत सेक्सी लग रही थी। गाण्ड काफी मुलायम और उभरी हुई थी …

अंकित एकदम ललचाई हुई नजरों से उसे देख रहा था।

अंकित ने अपने हथेली में थोडा ऑलिव-आयल लिया और हल्के-हल्के कंधों की मालिश करने लगा। मालिश करते करते वो लक्ष्मी की पीठ पर पहुँच गया और बडे प्यार से पूरी पीठ की मालिश करने लगा। मालिश करते करते उसकी उंगलियाँ बगल से लक्ष्मी की चूचियों को स्पर्श करने लगी। जैसे ही बगल से अंकित ने चूचियों को छुआ, मस्ती से लक्ष्मी की आँखें बंद होने लगी।

अंकित समझ गया था कि मैडम अब मस्त हो रही हैं !

वो धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ने लगा। अब वो लक्ष्मी की कमर की मालिश कर रहा था, कभी कभी उसके हाथ लक्ष्मी की पैंटी की इलास्टिक को भी छू जाते थे।

अंकित ने धीरे से मालिश करते करते लक्ष्मी की पैंटी को थोड़ा नीचे सरका दिया। अब उसकी आँखों के सामने लक्ष्मी की गाण्ड की दरार साफ दिखाई दे रही थी…

मालिश करते करते उसकी उंगलियाँ बगल से लक्ष्मी की चूचियों को स्पर्श करने लगी। जैसे ही बगल से अंकित ने चूचियों को छुआ, मस्ती से लक्ष्मी की आँखें बंद होने लगी।
अंकित समझ गया था कि मैडम अब मस्त हो रही हैं !

वो धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ने लगा। अब वो लक्ष्मी की कमर की मालिश कर रहा था, कभी कभी उसके हाथ लक्ष्मी की पैंटी की इलास्टिक को भी छू जाते थे।

अंकित ने धीरे से मालिश करते करते लक्ष्मी की पैंटी को थोड़ा नीचे सरका दिया। अब उसकी आँखों के सामने लक्ष्मी की गाण्ड की दरार साफ दिखाई दे रही थी…

वो गाण्ड की दरारों पर खूब अच्छी तरह से तेल की मालिश करने लगा।

अंकित धीरे धीरे मालीश करते करते लक्ष्मी के गाण्ड की छेद को भी मलने लगा … लक्ष्मी अब सांसें तेजी से लेने लगी थी।

अंकित ने आगे बढ़कर पूछा- मैडम, आपकी पैंटी खराब हो जाएगी, इसमें तेल लग जाएगा, आप कहें तो उतार दूँ?

लक्ष्मी पूरी मस्ती में थी, उसने सिसियाते स्वर में कहा- हाँ, उतार दे !

अंकित ने धीरे से उसकी काली पैंटी बड़े प्यार से गाण्ड से अलग कर दी। अब लक्ष्मी पूरी तरह से नंगी लेटी हुई थी। अंकित का लण्ड भी उसकी छोटी सी हाफपैंन्ट में हिलोरें मारने लगा, बिल्कुल तन गया था, उसके लण्ड से उसकी पैन्ट तंबू सी लगने लगी थी।

अंकित के हाथ फिर से चलने लगे, वह अब अपने अंगूठे को लक्ष्मी की गाण्ड के छेद को मसलने लगा और अपनी उंगली से लक्ष्मी की चूत का हलका स्पर्श किया।

लक्ष्मी एकदम मस्ती में आ गई और पलट गई। अब उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ अंकित की आँखों के सामने थी। लक्ष्मी ने अपनी टांगें भी खोल दी थी, उसकी चूत से पानी भी बहने लगा था।

तभी लक्ष्मी की नजर अंकित की पैंट में बने तम्बू पर पड़ी …

लक्ष्मी ने अपने एक हाथ से अंकित के लण्ड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। अंकित को भी काफ़ी मजा आ रहा था।

लक्ष्मी- अंकित इसे उतार दे ! मेरी मालिश के लिए इसका भी इस्तेमाल कर ना ! कितना तगड़ा है यह तेरा लौड़ा।

अंकित ने बिना किसी देरी के अपनी पैंट को अपने से अलग कर दिया …

अब उसका लम्बा और मोटा लण्ड लक्ष्मी के सामने था … लक्ष्मी उसे अपने हाथों में लेकर सहलाने लगी। अंकित थोड़ी देर यू हीं मजा लेता रहा फिर उसने आपको छुड़ाया और वहीं पास के मेज़ पर रखी शहद की शीशी को लेकर लक्ष्मी की चूत के पास पहुँच गया। उसने बहुत सारा शहद लक्ष्मी की चूत पर टपका दिया …

लक्ष्मी ने झांटें साफ कर रखी थी, शहद सीधे चूत की दरार में जाता दिखने लगा। अंकित वहीं पैरों पर झुक गया और अपनी जीभ से लक्ष्मी की दरार को चाटने लगा। अंकित को लक्ष्मी की चूत का स्वाद काफी अच्छा लग रहा था और लक्ष्मी भी पूरी मस्ती में आ चुकी थी। अंकित अपनी जीभ दरार के भीतर घुसाने का प्रयास कर रहा था ..

लक्ष्मी- चाट चाट ! ऐसे ही चाट ! बड़ा मजा आ रहा है … वाह, क्या चाटता है तू ! हाँ हाँ ! ऐसे ही ! ऐसे ही ! और अन्दर तक ! बहुत अच्छा लग रहा है।

अंकित चाटता ही जा रहा था।

अचानक लक्ष्मी कांपने लगी, उसका बदन झटके खाने लगा और उसने हाथ बढ़ाकर अंकित के सर को पकड़ लिया और जोर से अपनी चूत पर दबाने लगी…

लक्ष्मी ने कहा- अंकित ऐसे ही चाट ! मैं झड़ रही हूँ ! हाँ हाँ ! चाटता रह ! रुकना मत ! हाँ हाँ ! बड़ा अच्छा लग रहा है रे !

और फिर वो पूरी तरह से झड़ चुकी थी … उसने अपनी आँखें खोली … अंकित का लण्ड लोहे की तरह खड़ा था, लक्ष्मी ने उसे बड़े प्यार से अपने हाथ में थाम लिया और हिलाने लगी। अंकित की आँखों में मस्ती साफ दिखने लगी थी।

लक्ष्मी- बड़ा प्यारा लण्ड है रे तेरा …

यह कह कर लक्ष्मी ने उसे अपनी ओर खींच लिया और अपने मुँह के करीब ले गई, उसने जबान निकालकर उसे चाटना शुरु कर दिया, फिर धीरे से पूरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया, उसे चुसने लगी।अंकित अपनी कमर हिलाए जा रहा था और उसके मुँह में अपना लण्ड पेले जा रहा था।

अंकित- मैडम, आप बहुत अच्छी हैं ! कितना ख्याल रखती हैं हम लोगों का…

लक्ष्मी- अरे पगले ! मैं तुम्हारा ख्याल नहीं रखूँगी तो कौन रखेगा? बता ! देख, तूने मेरी चूत का क्या हाल बना दिया है? कितनी पसीज रही है यह ! तू कुछ कर ना !

अंकित- जी मैडम, मैं अभी अपने लण्ड से इसको ठीक करता हूँ।

लक्ष्मी- अरे प्यार से रे ! तेरा लण्ड काफी बड़ा और मोटा है।

अंकित- आप चिन्ता मत करो मैडम !

अंकित लक्ष्मी की चूत के पास जाकर अपना लण्ड उस पर घिसने लगा … पानी से उसकी चूत एकदम लथपथ थी …

फिर अंकित अपना लण्ड अपने हाथ में लेकर चूत के छेद पर भिड़ा कर अन्दर डालने लगा और अन्दर-बाहर करने लगा लक्ष्मी एकदम से मस्ती में आ गई …

अब अंकित ने अपना पूरा लण्ड बाहर निकाला और उसकी चूत के पास झुककर उसे चाटने लगा। कुछ देर तक चाटने के बाद वो उठा और अपना लण्ड उसकी चूत में फ़िर से पेल दिया। इस बार पूरा का पूरा लण्ड लक्ष्मी की चूत के अन्दर जा चुका था, अंकित अपने लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा …

लक्ष्मी- अंकित, काहे तड़पा रहा है रे ! जम कर चुदाई कर न ! और जोर से पेल ! हाँ हाँ ! ऐसे ही … वाह क्या लण्ड है तेरा ! इतना बड़ा ! बड़ा मजा आ रहा है ! कर कर ! और जोर से कर न … अंकित भी अब पूरी रफ़्तार से उसे पेले जा रहा था।

लक्ष्मी- सी…. सी…. बहुत मजा आ रहा है मेरे राजा ! थोड़ी रफ़्तार बढ़ा ना ! हाँ, ऐसे ही ! देख रुकना नहीं ! मैं झड़ने वाली हूँ ! … ह ह ह ! ऐसे ही ! ओह, हाँ सी सी ! करता रह ! करता रह … लक्ष्मी जोर से चिल्लाए जा रही था उसका बदन काम्पने लगा और वो झड़ गई।

अंकित वैसे ही पेलता रहा, चोदता रहा … फ़िर उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया … उसका लण्ड अब भी वैसे ही तन कर खड़ा था।

अंकित- मैडम क्या मैं आपकी गाण्ड मार सकता हूँ? बहुत अच्छी गाण्ड है आपकी !

लक्ष्मी- मैने कभी मना किया है तुझे? पर पहले तेल लगा लेना अच्छी तरीके से और धीरे धीरे घुसाना ! तेरा बहुल बड़ा मूसल जैसे लण्ड है…

अंकित- आप बस देखती जाओ !

फिर अंकित ने लक्ष्मी की दोनों टांगों को उठाकर अपने कंधे पर रखा और अपने उंगली पर ऑलिव ऑयल के लेकर उसकी गाण्ड में अंदर-बाहर करने लगा … थोड़ी देर तक अंदर-बाहर करने के बाद उसी अवस्था में उठा अपने पैर थोड़ा मोड़ कर अपना लण्ड लक्ष्मी की गाण्ड के छेद पर टिका दिया और हल्के से धक्का दिया। उसके लण्ड का टोपा अब लक्ष्मी की गाण्ड में था। लक्ष्मी ने अपने होंठ भींच लिये, उसे थोड़ा दर्द हो रहा था।

अंकित वैसे ही अपने लण्ड के टोपे को लक्ष्मी की गाण्ड में घुसाए खड़ा रहा और लक्ष्मी के बदन का निहारता रहा। फिर उसने हाथ बढ़ाकर लक्ष्मी की चूचियों को सहलाना शुरु कर दिया…

थोड़ी देर तक यही सब चलता रहा, फिर उसने अपने लण्ड को थोड़ा और अन्दर डाला, लक्ष्मी को इस बार दर्द कुछ हुआ था। अंकित अब अपने लण्ड को हौले-हौले अन्दर-बाहर करने लगा। फिर देखते ही देखते उसने अपना पूरा का पूरा लण्ड लक्ष्मी की गाण्ड में घुसा दिया, लक्ष्मी बेसुध हो गई…

अंकित ने अब लक्ष्मी की गाण्ड मारनी शुरु की और धीरे धीरे रफ़्तार पकड़ता चला गया। अब लक्ष्मी भी मजा लेने लगी था, उसे भी मजा आने लगा था। अंकित अपनी पूरी रफ़्तार में आ चुका था और वो लक्ष्मी की गाण्ड जोरदार तरीके से मार रहा था। थोड़ी देर तक चुदाई करने के बाद उसका शरीऱ अकड़ने लगा और वो लक्ष्मी के गाण्ड में झड़ने लगा। लक्ष्मी ने अब अपनी आँखें खोली और देखा कि अंकित बुरी तरह से हांफ रहा है।

अंकित ने अपना लण्ड उसकी गाण्ड से बाहर निकाला और थोड़ी देर वैसे ही खड़ा लक्ष्मी को निहारता रहा। फिर उसने भीगे हुए तौलिये से लक्ष्मी की गाण्ड की सफाई की और अपने जीभ से चूत को अच्छी तरह से चाट कर साफ किया।

लक्ष्मी अब उठने लगी और वहीं पड़े गाउन को पहन लिया और पास खड़े अंकित के सर पर हाथ फेरते हुए वहाँ से अपने कमरे की ओर चली गई।

लक्ष्मी सीधे बाथरूम में घुस गई … अंकित भी मसाज-रूम के भीतर से अपने आपको अच्छी तरह साफ करके अपनी वर्दी पहनकर बाहर आ गया था।

लक्ष्मी जब बाहर निकली तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी, कोई उसे देख कर यह नहीं कह सकता था कि उसकी उम्र 49 के आसपास है। सेक्स उसे अच्छा लगता था या यूं कहें कि सेक्स उसकी हॉबी थी। अपने से कम उम्र के लड़कों के साथ खास तौर पर सेक्स करती थी। हालांकि उसका और अजय का सेक्स जीवन खासा अच्छा था। इनको दो बच्चे भी थे, बेटी जिसका नाम रेणुका, उम्र 18 साल और बेटा रॉकी उम्र 17 साल ! दोनों ही लंदन में रहते थे और पढ़ते थे। रुपये पैसे की कमी नहीं थी, अजय एक बड़े ईंडस्ट्रयलिस्ट थे जिनकी कई फैक्ट्रियाँ थी और कम्पनियाँ थी, देश भर में बिजनेस फैला हुआ था। दिल्ली की डिफेन्स कॉलोनी में यह परिवार रहता था। आलीशान बंगला कई नौकर-चाकर रहते थे मगर इन सबमें अंकित सबसे ज्यादा चहेता नौकर था।

लक्ष्मी नाश्ते के लिए आकर मेज़ पर बैठी और नाशता करने लगी। तभी सामने लक्ष्मी की नौकरानी आई और लक्ष्मी के सामने रखे ग्लास में जूस डालने लगी।

लक्ष्मी- मालती, यह मैं क्या सुन रही हूँ? … तेरा और रामू का क्या चक्कर चल रहा है? कल तुम दोनों रसोई में ही शुरु हो गए थे?

मालती एक छरहरे बदन की लड़की थी उसकी भी उम्र कोई 18-19 की रही होगी …

लक्ष्मी ने उसे हल्के से झिड़क दिया और कहा- आगे से यह सब अपने क्वाटर में किया कर ! रामू को भी समझा दूंगी।

रामू लक्ष्मी का ड्राईवर था। अक्सर ही दोनों मिला-जुला करते थे और उनके चुदाई की दास्तानें भी प्रचलित थी। रामू हट्टा-कट्टा जवां मर्द था, उम्र 26 वर्ष थी और चुदाई के मामले में तो वो अव्वल दर्जे का चुद्दकड़ था, यह बात घर के सभी सदस्य जानते थे।

ज्योतिषी बन कर भाभी को बच्चा दिया

  मेरे पास जॉब नहीं थी, मैं फर्जी ज्योतिषी बनकर हाथ देख कर कमाई करने लगा. एक भाभी मेरे पास बच्चे की चाह में आई. वह माल भाबी थी. भाभी की रंड...