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Saturday, 2 November 2024

मौसी की चूत चुदाई देखते पकड़ी गई

 

मेरे दिल में हलचल मचने एक बड़ा कारण यह है कि मेरे घर में आज कल मेरी छोटी मौसी और मौसा जी आये हुए हैं। मैं रात को रोज़ उनकी चुदाई देखती हूँ, और मजा लेती हूँ। पर हाँ, उसके एवज में मुझे हाथ से अपनी प्यास बुझानी पड़ती है। मेरा घर पुराना और साधारण सा है, अब्बा एक परचूनी की दुकान चलाते हैं, भाई जान उनकी मदद करते हैं।

मेरे घर पर कमरों के बीच में दरवाजा नहीं है, बस एक परदा रहता है। रात अधिक बीत जाने के बाद यह निश्चित हो जाने के बाद कि सभी सो गये होंगे तभी चुदाई का कार्यक्रम चालू किया जाता था। अभी तो मौसा और मौसी रात को छत पर चले जाते थे, और वहाँ पर चुदाई किया करते थे।

मेरे लिये भी यह और सरल था कि मैं चुपके से ऊपर जा कर मजे देखती। मुझे ऊपर आकर उन्हें झांक कर देखना पड़ता था। यही मुझसे बस गलती हो गई। मेरे पड़ोस के लड़के शफ़ीक ने मुझे देखते हुए पकड़ लिया और मौके का पूरा फ़ायदा उठा कर मुझे उसने चोद दिया।

वैसे यह कोई नई बात नहीं थी मेरे लिये। मेरे साथ ऐसा कितनी ही बार हो चुका था और मैं कई बार चुद भी चुकी हूँ, पर अधिकतर मेरी गाण्ड ही मारी है। शायद यहा गाण्ड मारना सभी को अच्छा लगता है। मुझे ठीक से तो याद नहीं पर चुदी तो मैं दस बारह बार ही हूँ, पर मेरी गाण्ड तो लोगों ने पता नहीं कितनी बार बजाई है।

अब आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि कोई तवायफ़ या वेश्या हूँ, जी नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं एक साधारण सी लड़की हूँ, सुन्दर भी हूँ और सबकी चहेती भी हूँ। किसी का भी लण्ड खड़ा होता है तो एक बार तो वो मुझ पर ट्राई करने तो जरूर ही आता है।

यहाँ कानपुर में हमारी घनी बस्ती में सारे घर आपस में जुड़े हुए हैं और यह तो यहा आम बात है, बस जिसका सिक्का चला वही मजे कर जाता है, सबसे बड़ी बात- कुंवारी को चोद जाओ, कोई कुछ नहीं कहेगा पर शादीशुदा को कोई चोद जाये तो हंगामा हो जाता है।
पर हाँ, मैं अपना चुनाव खुद करती थी।

यहाँ हर बात में गाली देना तो आम बात थी, यानि यही हमारी बोलचाल की भाषा थी, बिना गाली के तो बात पूरी होती ही नहीं थी। मैं भी इससे अछूती नहीं थी, साधारण सी बातों में भी खूब गालियाँ देने की मेरी भी आदत थी, बात बात पर गन्दी गालियाँ देती थी और गालियाँ देने की इतनी अभ्यस्त हो गई थी कि मुझे लगता ही नहीं था कि मेरे बोल गालियों से भरे हुये हैं।

शफ़ीक ने मुझे हाथ हिलाया। मैंने उसे ऊपर की ओर देखा।
‘दीदी, शीऽऽऽ , इधर आओ!’ शफ़ीक ने फ़ुसफ़ुसा कर कहा।
‘हाय, मैं मर गई, तुम…?’ मैं धीरे से दीवार कूद कर उसके पास आ गई।
‘आओ जल्दी आओ, मामला चल रहा है।’

मुझे ले कर वो दूसरी मन्जिल की छत पर आ गया। ऊपर दीवार के पास से चांदनी रात में सब कुछ ठीक से दिख रहा था।
‘दीदी, यहा से देखो, मौसा जी लगता है पोंद के शौकीन है’ उसने बताया।
देख कर मैं शरमा गई। काफ़ी दिनों से शफ़ीक मेरे पीछे था, मुझे पता था कि अब यह भी मुझे नहीं छोड़ेगा।
‘तू रोज़ देखता है क्या?’

‘हाँ, और आपको भी देखता हूँ। भेन-चोद बड़ा मजा आता है ना, वो देखो तो सही!’ मौसा जी, अब गाण्ड मार रहे थे। मौसी के बड़े बड़े चूतड़ नजर आ रहे थे। शफ़ीक ने मुझे इशारों से दिखाया।

पर मेरा ध्यान तो शफ़ीक पर था कि भेनचोद ये मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा, शायद मुझे चोदने की सोच रहा होगा। इतना कुछ हो जाये तो और मेरी जैसी लड़की को कोई छोड़ दे तो मुझे वो चूतिया ही लगेगा।

इतना सब देखने से मेरा मन भी मचल उठा था और मैं ऊपर उसके पास आई ही चुदने के लिये थी। मौसा जी कुत्ते की तरह मौसी की गाण्ड चोद रहे थे। मेरी चूत भी गीली हो उठी।

इतने में शफ़ीक ने उत्तेजित हो कर मेरी गाण्ड की गोलाई पर हाथ फ़ेर दिया, मेरे तन में झुरझुरी छूट गई। मैंने उसे सीधे देखा, शायद कोई इशारा करे, वो चूतिया तो नहीं था, उसने मेरी तरफ़ देखा और और एक गोलाई में धीरे से हाथ मार दिया।

मुझे यकीन हो गया कि अब ये मेरी मारेगा जरूर।
मैंने हंस कर कहा- धीरे मार, चपटी हो जायेगी, भेनचोद तू भी मजा ले रहा है?’

‘हाँ आपा, कितना मजा आ रहा है ना!’ शफ़ीक अब बार बार मेरे चूतड़ों का जायजा ले रहा था। मुझे मजा आने लगा था। मुझे उसका लण्ड भी खड़ा हुआ नजर आने लगा था। यानि कि मैं चुदूंगी तो जरूर ही अब, लौड़ा भी उफ़ान पर आ रहा था।

मैंने उसे और बढ़ावा देने के लिये उससे चिपक सी गई, और अपनी बड़ी बड़ी आंखे उठा कर उसे देखा और कहा- देख किसी को कहना नहीं कि अपन ने ये सब देखा है।’ मैंने उसे धीरे से कहा।
‘अरे ये कोई कहता है क्या? तेरे पोन्द तो मस्त है री!’ मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए बोला।
‘और सुन तू जो कर रहा है वो भी मत बताना!’ मैंने झिझकते हुए कहा।

उसने यह सुनते ही मेरी गाण्ड दबा डाली और मसलने लगा। मुझे मस्ती आने लगी।
‘बानो, अपन भी ऐसा करें?’ मौसा मौसी को चोदते देख कर उसने मेरे शरीर पर लौड़ा दबाते हुए कहा।
‘क्या करें…?’ मैंने जान कर उसके मुख से कहलवाया।

‘तुम पोन्द मराओगी?’ मेरे चूंचक जोर से दबा दिये।
‘पर बताना नहीं किसी को कि मैंने पोन्द मराई है।’ मेरी चुदवाने की इच्छा बलवती होने लगी। आखिर इतने दिनों से मौसा मौसी की चुदाई देख रही थी और बहुत दिनों से मुझे किसी ने चोदा भी नहीं था।

मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया। मेरा अंग अंग वासना से भर रहा था। फिर उसका कड़क और मोटा लण्ड, लम्बा तो नहीं था, हाँ, मुझे लगा कि साढ़े पांच इन्च का मूसल तो होगा ही। मुझे कड़क लण्ड से चुदाई की बहुत इच्छा हो रही थी। चूत में से पानी चू पड़ा था। मौसा जी का कार्यक्रम समाप्त हो चुका था, पर हमारा कार्यक्रम परवान चढ़ रहा था।

मैंने शफ़ीक का लण्ड पकड़ लिया। हाय, एकदम कड़क, और प्यासा लग रहा था। बस उसे घुसा ही डालूँ चूत में!
पर वो तो मेरी पोन्द मारने पर तुला था। पोन्द यानि कि चूतड़!
‘बानो, तेरे चूचे बड़े प्यारे हैं, जरा कुर्ता तो ऊपर कर दे, थोड़ा मचका दूँ इन भेन चोदों को!’

‘चूचे मचकाना तुझे अच्छा लगता है क्या?’ मैंने कुर्ता उतारते हुए कहा।
मेरी चूचियाँ बाहर निकलते ही उछल पड़ी। मेरे चूचुक कड़े हो उठे।
उसने मेरी चूचियों को पकड़ कर दबा दिया।

‘पीठ मेरी तरफ़ कर ले, तेरी गाण्ड का मजा लूँ!’ उसने मुझे घुमा दिया और लौड़ा मेरी पोंद के बीच दबाने लगा।
‘मादर चोद! क्या मेरी फ़ाड़ डालेगा… धीरे दबा ना!’
‘शम्मो जान, पजामा उतार दे अब,… अब रहा नहीं जाता है, तेरी पोंद मरवा ले अब!’

मेरा पजामा उसने ही उतार दिया। चांदनी रात में मेरी गोल गोल गाण्ड चमक उठी। उसका उफ़नता हुआ लण्ड और भूरे रंग का सुपाड़ा चमक उठा, उसके लण्ड की खलड़ी कटी हुई थी, फ़ुफ़कार भरते हुए मेरी पोंद की दरारों के घुस पड़ा। छेद पर लण्ड को ऊपर नीचे रगड़ा, फिर अपनी अंगुली में थूक लगा कर मेरी गाण्ड के छेद पर मल दिया और लौड़े को छेद पर रख कर अन्दर घुसेड़ दिया, थोड़ा सा रगड़ खाता हुआ अन्दर घुस पड़ा।

गाण्ड मराने की मैं अभ्यस्त थी, गाण्ड का छेद भी गाण्ड मरवा कर बड़ा हो चुका था, सो मुझे तो मजा आ गया।
उसने लण्ड बाहर निकाला तो गाण्ड का छेद खुला ही रह गया। अन्दर मुझे हवा की ठण्डक सी लगी, लेकिन जल्दी ही लण्ड वापिस उसमें समा गया।
‘हाय, भाई जान, मोटा लौड़ा है, मजा आ गया!’ मैंने अपनी गाण्ड में मूसल जैसा लण्ड फ़न्सा हुआ महसूस किया।

‘शम्मो जान, ये तो रगड़ी हुई है, लगता है खूब लौड़े खाये है?’ उसके मूसल जैसे लण्ड की धचक अन्दर तक छा गई।
‘और क्या? माजिद चाचा तो जम के मेरी पोंद मारता है, हरामी हर दो तीन दिनों में लण्ड ठोक जाता है, पर मजा तो खूब दे जाता है!’ मैं उसके लण्ड का भरपूर मजा ले रही थी।

‘साला लण्ड तो यूं जा रहा है जैसे चिकनी चूत में जाता है, गाण्ड का छेद है या कोई आम रास्ता!!’ उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी। गाण्ड को रगड़ता हुआ लौड़ा फ़काफ़क अन्दर बाहर आ जा रहा था।
‘तो चूत ही मार दे ना, इस गाण्ड में क्या रखा है, सारा सुख तो इसी भोसड़े में है।’ मुझे चुदने की आस लगी थी।

‘अरे हम कनपुरिया हैं! गाण्ड देख कर ही मन डोलता है, वरना ये मादरचोद लौड़ा खड़ा ही नहीं होता है।’ मेरी गाण्ड में मीठा मीठा मजा आ रहा था। पर मुझे अब चूत का असली मजा चाहिये था।

मेरी गाण्ड खुली हवा में चुद रही थी। ठण्डी हवा बदन को सहला रही थी और बड़ा मीठा सा अहसास हो रहा था। मेरे चूचों को मल मल कर उसने लाल कर दिये थे। वो हरामी लण्ड पेले ही जा रहा था।

मैंने सहूलियत के लिये अपनी टांगे और चौड़ी कर दी ताकि लण्ड की चाल तूफ़ानी हो सके। अचानक उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और आह भरते हुए वीर्य छोड़ दिया।

‘भेनचोद सारा माल गाण्ड पर निकाल दिया, अब चल साफ़ कर अपनी बनियान से!’ मेरी चूत वासना से बेकाबू हो रही थी और इस मादरचोद साला हरामी ने अपना तो माल ही निकाल दिया। मैंने उससे कहा- अब चूतिये, मेरी चूत क्या तेरा भाई चोदेगा, रख दिया ना मेरी चूत को कुंवारी, देख कैसी चू रही है, साला हरामी!’

‘अरे तू क्या समझ रही है, मैं तुझे छोड़ दूंगा क्या, देख तेरे भोसड़े को कैसे मस्त करता हूँ चोद चोद कर!’ उसने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और सीढ़ियों के पास ही पत्थर की एक बैठने की बैन्च बना रखी थी, जिस पर बिस्तर बिछा कर शफ़ीक रात को सोता था, पर लेटा दिया। उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया।

मुझे चुदाना था सो उसका लौड़ा चूस चूस कर उसे फिर से खड़ा कर दिया। लण्ड खड़ा होते ही उसने बिस्तर पर से खींच कर किनारे कर लिया और प्यार से मेरी चिकनी चूत में लण्ड घिसने लगा।

मैंने उसकी बनियान से ही अपनी चूत का रस पोंछ लिया और अपनी चूत की कलियों को दोनों हाथों से पूरी खोल दी। उसने अपना कड़क लण्ड हाथ से पकड़ा और मेरी चूत में घुसा डाला, मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी।

चिकनाहट मैंने पोंछ दी थी सो लण्ड मेरी चूत को रगड़ता हुआ अन्दर चला गया, सूखी चूत में मजा आ गया। क्या मस्त रगड़ लगी कि मैं स्वर्ग में पहुंच गई।
‘अब चोद दे भाई जान, लगा दे पूरा जोर लौड़े का!’

उसने धक्के लगाने शुरू कर दिये। मैं मस्त हो उठी और अपनी पोंद नीचे से उछालने लगी। धच्च धच्च करके लौड़ा पूरी ताकत से अन्दर तक उतर रहा था। फिर वो मेरे चूचे को भी मल मल कर मुझे मस्त किये दे रहा था, मेरे चूचक को घुमा घुमा कर मसल रहा था।

चूत एक बार फिर लसलसा उठी, पानी छोड़ने लगी थी, अब चूत के पानी के साथ फ़च फ़च की आवाजें आने लगी थी।
‘मस्त चूत है बानो जान, मलाई है ये तो, हाय रे मेरी छिनाल, मेरी रंडी, ले ले मेरा पूरा लौड़ा घुसेड़ ले!’

‘पेल दे भेनचोद, मार दे मेरी चूत को, दे… दे… मार लण्ड को, फ़ाड़ दे हरामी को!’ मैं तो चुद कर मदहोश हुई जा रही थी। मेरे दिल की भड़ास भी निकली जा रही थी। मेरी चूत उसके लण्ड को अन्दर से लपेट रही थी। मेरी चूत के अन्दर की चमड़ी उसके लण्ड को जैसे चूस रही थी। मेरी चूत अब कसने लगी थी।

पानी निकालने ही वाला थी, उसे भी तेज मजा आने लगा था। उसके मुँह से एक से एक नई नई गालियाँ निकल रही थी। मेरी जबान तो गन्दी थी ही सो खूब गालियाँ दे देकर चूतड़ों की रफ़्तार बढ़ा दी। उसने अब मेरी चूत पर पूरा दबाव डाल दिया और लण्ड को जड़ तक दबा डाला।

‘माई री, भाई जान, गई मैं तो, मेरा तो निकला रे, हाय रे… आह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… ऊईऽऽऽऽऽ’ कहते हुए मेरी चूत में लहरें उठ पड़ी और पानी छूट गया। मैं झड़ने लगी।

अचानक उसका भी वीर्य निकल पड़ा और चूत के अन्दर ही भरने लगा। हम दोनों एक दूसरे को चूमते जा रहे थे और झड़ते जा रहे थे। कुछ ही देर हम सामान्य हो गये और उसी बिस्तर पर बैठ गये।

‘मां की लौड़ी, मस्त है रे तू, देख मेरा लौड़ा आज तो मस्त हो गया, कल भी चुदायेगी ना?’

‘अपनी मां को चोदना भोसड़ी के, अब कल किसी और का नम्बर है, अलग अलग लौड़े का मजा लेने में ही सुकून मिलता है, तू भी अलग अलग चूत और गाण्ड ट्राई किया कर!’

‘साली रण्डी, तेरी भोसड़ी मारूँ, मुझे चिढ़ाती है, अभी रुक तेरी गाण्ड एक बार फ़ाड़नी पड़ेगी।’ और वो मेरे पर लपक उठा।
मैं जल्दी से उठी और उसे अपना हाथ का लण्ड बना कर उसे चिढ़ाया और हंसती हुई भाग खड़ी हुई।

‘ले ले… मेरी भोसड़ी ले ले… अब कर अपने हाथ से… मुठ मार ले…!’ हंसी करते हुए छलांगें मारती हुई सीढ़ियाँ उतर कर मैंने अपनी दीवार फ़ांद ली। वो ऊपर छत से हंसते हुए हाथ हिला रहा था।

पति के सामने चूत चोदी

 

मेरा नाम कमल है, 24 साल का हूँ, और 3 साल से दिल्ली में कॉल-बॉय का काम कर रहा हूँ, कॉल-बॉय अब मेरी रोजी बन चुकी है। मैं अपना विज्ञापन समाचार-पत्रों और इन्टरनेट पर देता रहता हूँ। मेरी सर्विस बड़े-बड़े होटलों और ग्राहकों के घर पर होती है। मेरी सर्विस चाहे एक महिला को देनी हो या फिर अमीर महिलाओं की पार्टी में अपनी सर्विस देनी हो मेरा काम उन महिलाओं को खुश करने का होता है।

आज अन्तर्वासना की साईट पर मैं अपना एक अनुभव आप सभी के साथ बांटने जा रहा हूँ।

दो साल पहले का यह अनुभव मेरे लिए काफी मनोरंजक था, एक पुरुष रंजन, उम्र 35 साल, ने अपनी पत्नी सीमा, उम्र 30 साल, के लिए मेरी सर्विस ली थी। इस अनुभव के विषय में मैंने उनकी पहचान छिपाने के लिए नाम बदले दिए हैं।

नवम्बर के महीने में दोपहर के समय मुझे एक फ़ोन आया वह फ़ोन रंजन जी ने किया था, मैंने उनकी कॉल उठाई तो रंजन जी ने मुझे अपना नाम बताया और पूछा- क्या आप अपनी सेवाएँ घरेलू महिलाओं को भी देते हो?

मैंने कहा- हाँ मैं अपनी सर्विस घरेलू महिलाओं को भी देता हूँ।
फिर उन्होंने पूछा- क्या आप उनको अपनी सर्विस उनके घर पर भी देते हो?
मैंने कहा- हाँ।
उन्होंने पूछा- आप एक रात के कितना चार्ज करते हो?
तो मैंने कहा- पूरी रात अगर रुकना होगा तो मैं 1500 लेता हूँ।

रंजन जी कहा- ठीक है, मैं आपको आपकी सर्विस का चार्ज दे दूँगा लेकिन सर्विस अच्छी होनी चाहिए।
मैंने उनसे कहा- आप सर्विस की चिंता मत करिए, सर्विस अच्छी ही मिलेगी लेकिन आपको मेरी सर्विस किसके लिए चाहिए?
तो रंजन जी ने मुझसे कहा- मुझे आपनी सर्विस अपनी पत्नी के लिए चाहिए।

उनकी इस बात से मैं चौंक गया और हैरानी के साथ पूछा-आप मजाक तो नहीं कर रहे?

तो उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि मेरी सर्विस उन्हें अपनी पत्नी के लिए ही चाहिए।
मैंने फिर हैरानी से पूछा- आपके होते हुए आपको अपनी पत्नी के लिए मेरी सर्विस क्यों चाहिए?
तो रंजन जी ने बताया- मुझे अपनी पत्नी को दूसरे से चुदवाते हुए देखना बहुत पसंद है और मेरी पत्नी को गैर मर्दों से चुदवाना पसंद है।

थोड़ी देर तक मैं उनकी बात पर सोचता रहा लेकिन उनके विश्वास दिलाने पर मैंने उनकी बात पर यकीन कर लिया और मैंने उनसे मीटिंग करने के लिए समय पूछा तो उन्होंने कहा- आज शनिवार है और शनिवार और रविवार को घर पर और कोई नहीं होता।
मैंने कहा- ठीक है, लेकिन मुझे आना कहाँ होगा?
तो उन्होंने कहा- आप लाजपत नगर के बस-स्टॉप पर आ जाना, मैं आपको अपनी गाड़ी से लेने आऊँगा।
और उन्होंने गाड़ी का नंबर बताया पहचान के लिए।
मैंने कहा- ठीक है !

और मैंने अपनी पहचान के लिए उन्हें बताया कि मैं गुलाबी कमीज और क्रीम रंग की पैंट में आऊँगा।
उन्होंने कहा- ठीक है, मैं आपको 6 बजे बताई जगह पर लेने के लिए आ जाऊँगा।

मैं उनके बताये गए समय के अनुसार लाजपत नगर पहुँच गया, 15 मिनट के बाद एक स्विफ़्ट गाड़ी उस जगह से थोड़ी आगे जाकर रुकी और उसके दरवाजे का शीशा नीचे हुआ, उसमें बैठे आदमी ने अपना हाथ खिड़की से बाहर निकाल कर मेरी तरफ इशारा किया। मैं उस गाड़ी के पास गया, उस आदमी ने मुझसे मेरा नाम पूछा, मैंने अपना नाम बताया तो उन्होंने गाड़ी का शीशा ऊपर चढ़ाया और दरवाजा खोल दिया। मैं गाड़ी में उनके साथ बैठ गया। थोड़ी देर के बाद जब मैंने उनसे पूछा- क्या आप ही रंजन जी हैं?
तो उन्होंने बताया- हाँ मैं ही रंजन हूँ।

हम 10 मिनट बाद रंजन जी की कोठी पर पहुँच गए, उन्होंने गाड़ी से उतर कर खुद दरवाजा खोला और कोठी के अन्दर चलने को कहा।

मैं रंजन जी के साथ उनके पीछे चलने लगा। वे मुझे सीधा बैठक में ले गए जहाँ एक सुन्दर महिला पहले से ही सोफे पर बैठी थी। उन्होंने बताया कि यह उनकी पत्नी सीमा है।

मैंने उनकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए उनसे हेलो कहा और उन्होंने जवाब में मुस्कुराते हुए ‘हाय’ कहकर अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया। उनके हाथ का स्पर्श पाते ही मेरे मन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई।

उन्होंने उस समय लाल रंग का ब्लाउज और लाल बोर्डर वाली काली साड़ी पहनी हुई थी। मैं जितना सीमा जी को देख रहा था, मेरे अन्दर वासना उतनी ही बढ़ती जा रही थी। इतने में ही रंजन जी सीमा मैडम से वाइन के लिए तीन ग्लास लाने को कहा और सीमा जी रसोई की ओर चली गई।

मैंने रंजन जी को कहा- मैं ड्रिंक नहीं करता !
तो रंजन जी ने कहा- कोई बात नहीं, आप सोफ्ट ड्रिंक ले लेना।
मैंने हामी भर दी।

सीमा जी को देख कर मुझे ताज्जुब हुआ कि सीमा जी इतनी खूबसूरत हैं फिर भी इन्होंने मुझे बुलाया।
तभी सीमा जी कमरे में वापिस आ गई, उनके हाथ में 3 ग्लास थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
रंजन ने सीमा को कहा कि एक ग्लास में सोफ्ट ड्रिंक मुझे दे दे।

सीमा ने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए सोफ्ट ड्रिंक का ग्लास मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने ग्लास पकड़ा तो सीमा के गोरे हाथ का स्पर्श पाते ही मेरे मन में गुदगुदी होने लगी, मन तो कर रहा था कि सीमा के हाथों को पकड़ कर उनको अपनी बाहों में भर कर उनके होटों पर अपने होठों को चिपका दूँ लेकिन उनके पति के वहीं पर होने की वजह से मैं काफी शरमा रहा था।

सीमा और रंजन ने अपना-अपना ड्रिंक खत्म किया। हम सामान्य बातें कर रहे थे कि तभी रंजन ने मुझसे बातों ही बातों में पूछा- सीमा आपको कैसी लग रही है?
मुझे लगा कि शायद रंजन को ड्रिंक का खुमार हो गया है और ऐसा ही हाल मुझे सीमा का भी लग रहा था।
मैंने झिझकते हुए कहा- सीमा जी के अन्दर खूबसूरती कूट कूट कर भरी है।

तो रंजन ने इस पर कहा- आप सीमा के साथ जो करना चाहते हैं, आप वो सब कर सकते हैं, आपको शर्माने की जरुरत नहीं है।
मैंने सीमा की ओर देखा तो वह भी मुस्कुरा रही थी, मुझे उनकी मुस्कराहट में उनकी सहमति साफ नजर आ रही थी।

मेरी पैंट के उभार की ओर देखते हुए सीमा ने रंजन को आंखों ही आँखों में कुछ इशारा किया, मैं उस इशारे को नहीं समझ पाया लेकिन मैंने सीमा को रंजन की ओर इशारा करते हुए देख लिया था।
रंजन ने मुझसे कहा- सीमा को अपने मर्द होने के बारे में तसल्ली कराओ, अपना हथियार दिखाओ।
मुझे बात समझ में आ गई कि सीमा मेरा लिंग देखना चाहती थी। मुझे लगा कि अब मुझे भी शर्माना छोड़ देना चाहिए।

मैंने बैठे बैठे ही अपनी पैंट की जिप धीरे-धीरे नीचे करनी शुरू कर दी और फिर मैंने अपना हाथ पैंट के अन्दर डाला और अपने खड़े लंड को आजाद कर दिया। मैं पहले से ही जोश में था इसलिए मेरा लौड़ा पूरी तरह से अपनी उत्थित अवस्था में आ चुका था। सीमा की नजरे मेरे लौड़े के आगे वाले भाग पर टिकी थी जो एक मोटी वाली लाल लिपस्टिक की तरह लग रहा था और शायद एक बार के लिए रंजन की नजर भी मेरे लौड़े पर टिकी की टिकी रह गई।

अब मेरी झिझक काफी हद तक खुल चुकी थी, सीमा की वासना बढ़ाने के लिए अपने लंड के आगे वाले भाग को मस्ती के साथ उस पर अपने हाथ से हल्के हल्के से हिला रहा था। जब भी मैं ऐसा करता, सीमा जी की आँखें नशीली हो गई और होंठ हल्के हल्के थरथराने लगे।

अब मैंने अपनी तरफ से पहल की, मैंने रंजन के सामने सीमा के पीछे से अपना हाथ सीमा की कमर पर जमा दिया और उनकी कमर सहलाने लगा। ऐसा करते ही सीमा भी थोड़ा सा खिसक कर मेरे और समीप आ गई मैंने उनके गले और कंधे को चूमना शुरु कर दिया। सीमा भी मेरा साथ देने लगी, जब भी मैं उनके कंधे से गले की तरफ चूमता हुआ बढ़ता तो वो भी अपने गले को आँखें बंद कर के ऊपर की ओर उठा देती। हम दोनों के इस खेल का लुत्फ रंजन काफी मजे लेकर उठा रहे थे।

अब मैंने अपना हाथ सीमा जी के कमर से हटाया और ब्लाऊज़ के ऊपर से ही उनकी दोनों चूचियों पर अपने हाथ रख हल्के हल्के हाथों से उनकी चूचियों को सहलाने लगा जिसकी वजह से सीमा जी धड़कने काफी जोर से तथा उनकी सांसें काफी लम्बी हो गई। थोड़ी देर के बाद मैंने सीमा के ब्लाऊज़ के बटनों को खोलना शुरु कर दिया और सीमा के ब्लाऊज़ ने उनके बदन का साथ छोड़ दिया।

सीमा मेरे लंड को पकड़ कर ऊपर-नीचे हिलाने लगी तो मैंने सीमा के कान में कहा- मैंने आपको अपना हथियार दिखा भी दिया है और हाथ में भी दे दिया है लेकिन इस हथियार को रखने की जगह तो अपने दिखाई ही नहीं?

इस पर सीमा ने मेरे होटों को चूमते हुए कहा- जब हथियार अपने अपने हाथ से निकाला है तो इसको रखने की जगह भी आप अपने हाथ से ही देख लो !

यह सुनते ही मैंने पहले सीमा जी की ब्रा से उनकी चूचियों को आजाद कराया और फिर उनके पति के सामने उन्हें खड़ा कर पहले उनके पेटीकोट का नाड़ा खोला, खुलते ही सीमा का पेटीकोट लहराता हुआ उनके पैरों में जा गिरा और फिर मैंने अपनी दो उंगलियाँ उनकी पैंटी की साइड में डाली और धीरे-धीरे उनकी पेंटी जांघों से खिसकाते हुए उतार दी। अब वो अपने पति सामने किसी गैर मर्द से कपड़े उतरवा कर पूरी नंगी हो चुकी थी।

अब मैंने सीमा की चूत में उनके पति के सामने उंगली डालना शुरू किया और थोड़ी देर के बाद में अपना मुँह चूत पर टिकाया और जीभ को सीमा की चूत की दरार के बीच में घुसा दिया। कभी कभी उनके दाने को अपने होटों में हल्के से दबा देता तो मेरा ऐसे करने से वो और भी उतेजना में आ जाती। इतना करने के बाद मैंने सीमा को अपनी जेब से कंडोम निकाल क़र लौड़े पर चढ़ाने को कहा। उन्होंने अपने पति के सामने मेरे लंड के टोपे पर रख क़र कंडोम को मेरे लंड पर नीचे करते हुए मेरे लंड पर चढ़ा दिया।

मैंने सीमा को अपनी गोदी में उठा क़र बिस्तर में लिटा दिया और मैं उनके ऊपर आ गया और फिर उनकी चूत पर अपने लंड को उनके पति के सामने उनकी चूत के ऊपर रगड़ने लगा। काफी देर तक रगड़ने के बाद सीमा के पति ने मुझे सीमा की चूत में लंड घुसाने के लिए कहा।

मैंने पहले हल्के से सीमा जी के होटों को चूमा और फिर धीरे से सीमा की चूत पर अपने कूल्हे पीछे क़रके जोर से अपने लंड को सीमा की चूत में डाल दिया। सीमा के होटों से हल्की से सिसकारी निकली, हम दोनों की गर्म-गर्म सांसें आपस में एक दूसरे से टकरा रही थी और जितनी जोर-जोर से उनकी चूत में मैं अपना लंड ठोकता, सीमा अपनी बाहों का शिकंजा उतना मेरे बदन पर कस लेती।

आधे घण्टे चली इस चुदाई का अंत होने जा रहा था, हम दोनों पर हवस इस कदर हावी थी कि हमें एक बारगी यह याद नहीं रहा कि उस कमरे में हम दोनों के सिवा कोई और भी मौजूद है। हम दोनों तो एक दूसरे को भोग रहे थे, वीर्य के निकलते समय सीमा और मैं एक-दूसरे को आँखें बंद करके होटों पर चूम रहे थे, इस पूरी की पूरी घटना के साक्षी रंजन जी थे, जिन्होंने अपनी पत्नी का सम्भोग गैर मर्द के साथ देखा।

उस रात मैंने 3 कंडोम इस्तेमाल किये और सीमा जी और उनके पति को तीन बार अपना और सीमा जी का वीर्य निकाल क़र दिखाया।

सीमा मेरे से चुद क़र और रंजन मेरी चुदाई अपनी पत्नी सीमा के साथ देखकर काफी खुश थे। सुबह होने पर सीमा ने मुझे एक ग्लास दूध और कुछ मीठा खाने को दिया।

सीमा जी ने मुझे 1700 रुपए दिए और मेरा निजी नंबर लिया और कहा- मेरा जब भी मन करेगा तो मैं आपको बुला लूँगी।

मैंने कहा- मेरे चार्ज 1500 है और आप ने मुझे 1700 दिए हैं।
तो सीमा ने मुझसे कहा- ये 200 रुपए आपकी अच्छी सर्विस के हैं। ये मैं आपको खुश होकर दे रही हूँ।
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फूफा जी ने मेरी माँ चोद दी

 

मेरा नाम मोनू है। मैं 26 साल का लड़का हूँ। मैं सीकर का रहने वाला हूँ। मैं आज आपको मेरी मम्मी और मेरे फूफा जी के बारे में बताता हूँ। बात शायद 15-16 साल पुरानी है, मेरी मम्मी बड़ी ही सुंदर और गोरी हैं, देखने में बहुत ही मस्त लगती हैं। मुझे यह कहने में ही शर्म आ रही है, मगर क्या करूँ, मेरी मम्मी ने काम ही कुछ ऐसा किया था।

मेरी मम्मी बहुत ही लड़ाकू किस्म की महिला हैं। वो मेरे पापा और दादा-दादी से लड़ती रहती थीं। ऐसे ही एक बार मेरी मम्मी सब से लड़ कर मेरे नाना-नानी के घर पर आ गई थीं। हम लोग नाना-नानी के घर पर एक महीने से ज़्यादा समय से रह रहे थे।

एक दिन मेरे फूफा जी जो कि जयपुर में रहते हैं, हमारे घर आए। वो वहाँ पर किसी काम से आए थे और उन्हें 3-4 दिन वहीं पर ही रुकना था। उन्होंने खुद के लिए एक होटल में कमरा किराए पर ले रखा था। एक दिन वो हमारे घर आए। मेरे फूफा जी हमें बहुत अच्छे लगते हैं क्योंकि वो हमेशा हमारे लिए बहुत सा सामान लाते थे। मेरे फूफा जी 6 फुट लंबे गोरे और स्मार्ट हैं। उस समय उनकी उम्र 28 साल के लगभग रही होगी।

किस्मत से जिस दिन वो आए थे, उसी दिन मेरे नाना-नानी को बाहर काम से जाना था। जब फूफा जी हमारे घर आए तो वो हमारे लिए काफ़ी सामान लाए थे। आने के बाद वो नाना-नानी के साथ हॉल में बैठ कर बातें कर रहे थे। सारी बातों का केंद्र मेरे पापा और दादा-दादी थे। फूफा जी मेरे मम्मी को वापस चलने के लिए मना रहे थे।।

शाम को नाना-नानी फूफा जी को घर पर तीन दिन रुकने के लिए कह कर काम से चले गए थे। मैं, मेरी बहन और मेरी मम्मी फूफा जी के साथ हॉल में बैठे थे और बातें कर रहे थे। किसी बात पर मम्मी रोने जैसी हो गई थी और फूफा जी उन्हें समझा रहे थे।

तभी फूफा जी ने हमें यह कह कर बाहर खेलने भेज दिया कि बच्चों को ऐसी बातें नहीं बतानी चाहिए, इससे उनके मन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, पर मेरा मन तो मम्मी पर ही था। मैं वहाँ पर रुकना चाहता था और उनकी बातें सुनना चाहता था, पर मम्मी ने मुझे बाहर भेज दिया।

मैं और मेरी बहन घर के सामने पार्क में खेलने चले आए। पर मुझे उनकी बातें सुननी थीं तो मैं वापस घर आ गया और अंदर ना जाकर बाहर गेट के पास खड़ा हो कर उनकी बातें सुनने लगा।

मेरे फूफा जी कह रहे थे कि यह सब तो घर में चलता रहता है। इस पर घर छोड़ कर नहीं आते।

मम्मी- पर वो लोग मुझे पसंद नहीं करते हैं, मुझे परेशान करते हैं।
फूफा जी- भैया तो पसंद करते हैं ना ! आपको तो उनके साथ रहना है।

मम्मी- उनको मेरे साथ रहना होता तो मुझे लेने नहीं आते क्या?
फूफा जी- उन्होंने ही मुझे भेजा है।
ुमम्मी- नहीं, मुझे वहाँ नहीं जाना है। मैं वहाँ नहीं रह सकती!

और यह कह कर मम्मी रोने लगीं, फूफा जी उनको चुप कराने लगे, कभी उनके आँसू पोंछते कभी कुछ।

तभी मम्मी उनके गले से लग कर रोने लगीं। फूफा जी उनके सर पर हाथ फेर रहे थे। थोड़ी देर बाद मम्मी का रोना बंद हो गया पर मम्मी फूफा जी से चिपक कर ही खड़ी रहीं।

मम्मी और फूफा जी के हाथ दोनों की कमर पर फिर रहे थे। थोड़ी देर बाद फूफा जी मम्मी के होंठों को चूमने लगे। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। उस उम्र में मुझे सेक्स के बारे मे कुछ भी पता नहीं था।

फूफा जी ने मम्मी को सोफे पर पटक दिया और उनका ब्लाउज खोल कर उनके स्तनों को चूसने लगे। उसके बाद उन्होंने अपने पैंट और अंडरवियर भी नीचे सरका दी। मम्मी का घाघरा ऊपर करके उनकी पैंटी उतार दी। उन्होंने मम्मी को ऊपर-नीचे किया और अपना लंड मम्मी की चूत में डाल दिया।

मम्मी तो सोफे पर बस अपनी आँखे बंद कर के लेटी हुई थीं। मम्मी के हाथ फूफा जी की कमर पर थे। थोड़ी देर बाद ही मम्मी ने अपनी दोनों टाँगें फूफा जी की कमर से जकड़ दीं। अब फूफा जी मम्मी को हचक कर चोद रहे थे। मम्मी भी पूरी तरह से उनका साथ दे रही थीं।

करीब 10 मिनट के बाद फूफा जी ने मम्मी को औंधा करके कुतिया जैसा बना दिया और अब मम्मी के स्तन सोफे की तरफ झूल रहे थे और मम्मी की चूत फूफा जी की तरफ थी। फूफा जी ने मम्मी की चूत में लौड़ा डाल दिया। अब मम्मी घोड़ी बन कर चुदा रही थीं।

कुछ देर बाद फूफा जी ने मम्मी को फिर सीधा किया और उन पर चढ़ गए और तेज धक्के मारने चालू कर दिए।

मम्मी की मुँह से लगातार चीखें निकल रही थीं। थोड़ी देर बाद फूफा जी मम्मी की चूत में अपना लौड़ा घुसेड़ कर एकदम से अकड़ गए और फिर निढाल हो कर लेट गए।

मम्मी उठीं और अपनी पैंटी पहन कर कपड़े ठीक करके बोलीं- आज जाने कितने दिनों बाद चुदाई की है। मैं तो लाख कोशिश करने के बाद भी रुक नहीं पाई।

फूफा जी- मैं तो कबसे तुम्हें चोदने की सोच रहा था, पर आज मौका मिला है। रात को और मज़े से करेंगे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

रात को खाना खाने के बाद हम लोग टीवी देख रहे थे। मम्मी और फूफा जी पास-पास ही बैठे थे। फूफा जी के हाथ मम्मी की कमर पर थे और मम्मी बार बार हटा रही थीं और धीरे से कह रही थीं- बच्चे देख लेंगे।

मम्मी ने हमे सोने के लिए कहा, पर हम लोग टीवी देखने के लिए कह रहे थे। शायद दोनों से इंतजार नहीं हो पा रहा था।

तो मम्मी ने फूफा जी की तरफ देखते हुए हंस कर कहा- मैं रसोई में जाकर बर्तन साफ कर लेती हूँ। तुम टीवी देख कर सोने चले जाना।

और मम्मी रसोई मे चली गई। थोड़ी देर बाद फूफा जी भी उठे और कहा- मोनू, मैं तो सोने जा रहा हूँ।

फूफा जी को कमरा रसोई के पास वाला ही मिला था। थोड़ी देर बाद जब मैं चुपचाप रसोई की तरफ गया तो कुछ आवाजें आ रही थीं। मैंने देखने की सोची और मैं रसोई की खिड़की में से देखने लगा। मैंने देखा कि मम्मी किचन की स्लैब पर हाथ टिका कर खड़ी हैं और पीछे से फूफा जी उनका गाउन ऊपर कर के उनकी चूत में लंड डालने की कोशिश कर रहे थे।

कुछ देर बाद मम्मी ने कहा- हम लोग कमरे में चलते हैं।

फूफा जी ने कहा- अगर वो दोनों आ गए तो !

मम्मी- वो दोनों तो टीवी में बिज़ी हैं, नहीं आयेंगे, अब छोड़ो यार, एक राउंड तो कर लेते हैं, ऐसे छुप-छुप कर ही तो मज़ा आता है।

फूफा जी ने कहा- चलो !

और दोनों कमरे में चले गए। अंदर जाते ही दोनों ने दरवाजे की कुण्डी लगा दी कि कहीं हम ना आ जाएँ।

मैंने की-होल के छेद में से देखा तो फूफा जी मम्मी को अपना लंड चुसवा रहे थे और मम्मी चूस रही थीं। यह देख कर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।

थोड़ी देर बाद मम्मी पलंग पर अपनी टाँगें फैला कर लेट गईं और बोलीं- जल्दी से चोद लो मेरे राजा।

फिर फूफा जी ने लंड तुरंत मम्मी की चूत में डाल कर चुदाई चालू कर दी। फूफा जी जबरदस्त झटके मार रहे थे। मम्मी के मुँह से सीत्कारें निकल रही थीं। कमरे में से उन दोनों की धकापेल चुदाई की मादक ‘आहें’ और ‘फूउक्छ फॅक’ की आवाजें भी आ रही थीं।

मम्मी फूफा जी को धीरे करने के लिए कह रही थी कि कहीं हम ना सुन लें। मगर फूफा जी पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था। वो तो बस अपनी छिनाल सलहज को चोदने में लगे रहे और बाद में मम्मी भी उनका साथ देने लगीं।

करीब आधे घंटे के बाद फूफा जी मम्मी के ऊपर ढेर हो गए और ज़ोर से झटके मार कर झड़ने लगे। उसके बाद मम्मी उठी और गाउन ठीक करती हुई बोलीं- उन दोनों को सुला कर रात को आऊँगी।

मम्मी को बाहर आता देख मैं भी जल्दी से टीवी के पास जाकर बैठ गया। किस्मत से मेरी बहन टीवी देखते-देखते ही सो गई थी।

बाद में मम्मी ने मुझे और मेरी बहन को कमरे में ले जाकर सुला दिया और खुद फूफा जी के कमरे में चुदवाने चली गईं।

उसके बाद तो फूफा जी और मम्मी को जब भी मौका मिला उनने खूब चुदाई की। उन्होंने तो बाथरूम, किचन, हॉल, स्टोर, छत, हर जगह धकापेल चुदन-चुदाई की और हमारे घर पर लाते समय कार में भी मम्मी को लंड चुसवाते और चोदते हुए लाए।

हमारे घर पर पर भी जब भी आते, मम्मी की ढंग से चुदाई करते। यह सब मैं आपको बाद में बताऊँगा।

मैं उन्हें बता दूँ कि मैंने सिर्फ़ मेरी मम्मी को फूफा जी के साथ ही देखा है।

जयपुर आने के कई दिनों बाद तक फूफा जी हमारे घर नहीं आए थे।

मुझे नहीं पता कि किस कारण से नहीं आए थे, पर एक बार जब मेरे पापा, दादा, दादी को गाँव जाना था, वहाँ मेरे दादा जी की बहन बीमार थी और उनसे मिलने जाना था।

मैंने मम्मी को फ़ोन पर किसी से बात करते सुना कि वो सब तो गाँव चले जायेंगे, तुम आ जाना.. फिर हम अपना काम करेंगे… काफी दिन हो गए हैं।

मैं सोच में पड़ गया कि मम्मी किस से बात कर रही हैं, पर दोपहर को मेरा ये शक भी दूर हो गया।

पापा और दादा, दादी के जाने से कुछ वक्त पहले ही फूफा जी और बुआ अपने बेटे के साथ हमारे घर मिलने आ गए।
बुआ कह रही थीं- आप लोगों से मिले हुए काफी वक्त हो गया था, सो मिलने चली आई हूँ और इनको भी ले आई हूँ।

बुआ को देख कर हम सब लोग खुश हुए और उन्हें बताया कि हम सब बुआ जी से मिलने गाँव जा रहे हैं।

बुआ- पापा फिर तो आपके साथ हम लोग भी चलेंगे।

दादा- हाँ क्यों नहीं.. मैं भी सोच रहा था पर लगा कि तुम लोग व्यस्त होगे.. इस लिए नहीं कहा।

बुआ- कार में तो जगह है या हम हमारी कर ले कर चलें?

पापा- अरे नहीं हम तो तीन लोग ही जा रहे हैं.. तेरी भाभी नहीं जा रही और बच्चे हैं, तुम लोग भी बैठ जाओ।

बुआ ने फूफा जी से कहा- चलो.. हम भी चलते हैं।

तब फूफा जी ने कहा- मैं बहुत थक गया हूँ.. पिछले हफ्ते मैं बहुत व्यस्त रहा हूँ, तो मैं तो घर जाकर सोना चाहता हूँ और अगर तुम जाना चाहो तो चली जाओ..

तब बुआ बोली- चलो मैं चली जाती हूँ, आप घर जाकर सो जाना।

इस पर पापा दादा और दादी बोलीं- यह क्या घर नहीं है.. यहीं पर ही सो जाना.. इससे सीमा (मेरी मम्मी) को भी डर नहीं लगेगा और हम लोग भी चिंता नहीं करेंगे।

तब तक मैं समझ चुका था कि यह मम्मी और फूफा जी का प्लान है और इसमें सबसे ज्यादा चिंता है फूफा जी और मम्मी हमारे जाने के बाद कुछ तो करेंगे और मैं ये सब देखना चाहता था इसलिए मैंने भी जाने से मना कर दिया, यह कह कर कि मैं भी फूफा जी के पास ही रुकूँगा।

सबने इसे मेरा फूफा जी से लगाव माना और राजी हो गए।

इससे मम्मी और फूफा जी थोड़े अपसेट हो गए, पर कुछ नहीं बोले।

मेरे मना करते ही बुआ बोलीं- मेरी बहन और उनके बेटे को भी छोड़ जाते हैं, क्योंकि धूप भी है और गाँव में ये लोग बीमार हो जायेंगे।

यहाँ तो ये सब खेल ही लेंगे और और फूफा जी और मम्मी हमारा ध्यान भी रख लेंगे।

इस पर सब लोग राजी हो गए और पापा बुआ और दादा जी चले गए।

घर पर हम बच्चे और फूफाजी और मम्मी रह गए।

मेरा मन उदास था कि अब ये दोनों कुछ नहीं कर पायेंगे और मेरा रुकना बेकार ही गया।

फूफा जी और मम्मी भी अपसेट लग रहे थे, पर जाहिर नहीं कर रहे थे।

हम सब हॉल में बैठे टीवी पर कार्टून देख थे और फूफा जी अपना हाथ बार-बार खुद के लं

यौन-संसर्ग का सीधा प्रसारण

 मेरे साथ मेरे जीवन की घटित यह पहली घटना लगभग आठ वर्ष पहले की है जब मैंने दिल्ली से जुड़े राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक छोटे से शहर में एक प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने के लिए प्रवेश लिया था। छात्रावास में उपयुक्त स्थान न होने के कारण मेरे लिए उसमे प्रवेश की व्यवस्था नहीं हो सकी इसलिए मैंने कॉलेज के सामने की कॉलोनी में ही अपनी एक कक्षा सखी मोनिका के साथ मिल कर एक शयनकक्ष वाला फ्लैट किराये पर ले लिया और उसमें रहने लगी थी। उस फ्लैट में दो कमरे थे, हमने आगे वाले बड़े कमरे को बैठक बना दिया था और दूसरे कमरे को हम दोनों सखियों ने अपना शयनकक्ष बना लिया था।
पहले माह के शुरू में तो हम दोनों को वहाँ के माहौल में समायोजित होने में काफी असुविधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन माह के अंत होते होते हमने सभी कठिनाइयों का समाधान ढूंढ कर और उन सब पर विजय भी पा ली ! इसके बाद अगले दो माह में पढ़ाई का बहुत ही जोर रहा तथा हम दोनों अधिकतर उसी में उलझी रहती थी !
प्रवेश के बाद के पहले तीन माह की पढ़ाई समाप्त होते ही बीस दिन तक परीक्षाओं होती रही और उसके बाद ही जब हमें दस दिन की दशहरा की छुट्टियाँ हुई तभी हम अपने अपने घर जा सकी।
मैं तो छुट्टियों समाप्त होने से एक दिन पहले ही दोपहर के समय अपने फ्लैट में पहुँच गई थी और मोनिका के आने की प्रतीक्षा करने लगी, लेकिन मोनिका उस दिन रात्रि को लगभग नौ बजे पहुँची। मैं तो अपने घर से अकेले ही आई थी लेकिन मोनिका को घर से चलने में देर हो गई थी इसलिए उससे एक वर्ष छोटा उसका भाई रोहित उसे शहर छोड़ने के लिए उसके साथ ही आया था।
क्योंकि रात बहुत देर हो गई थी और रोहित को घर वापिस जाने के लिए कोई भी साधन नहीं था इसलिए वह रात के लिए बाहर बैठक में रखे तख्त पर बिस्तर लगा कर उसी पर सोने चला गया।
रात के दो बजे जब मेरी नींद खुली और मैं लघुशंका के लिए उठी तो मोनिका को अपने साथ वाले बिस्तर पर सोये हुए नहीं पाया तब मुझे कुछ अचम्भा हुआ लेकिन यह सोच कर कि शायद वह भी लघुशंका के लिए गई होगी इसलिए मैं अपने बिस्तर पर ही बैठी उसके गुसलखाने से बाहर आने की प्रतीक्षा करती रही। पाँच मिनट तक बैठे रहने के बाद भी जब मुझे गुसलखाने से कोई आहट नहीं आई तब मैंने उठ कर गुसलखाने के दरवाज़े को खटखटाने के लिए हाथ लगाया ही था कि दरवाज़ा खुल गया। गुसलखाने के अन्दर मोनिका को नहीं पाकर मुझे कुछ विस्मय तो हुआ लेकिन लघुशंका के दबाव के कारण मैं पहले उससे निपटने के लिए फ्लश पॉट पर बैठ गई और अपने मूत्राशय को खाली कर दिया।
लघुशंका के दबाव से राहत पाकर जब मैं गुसलखाने से बाहर आई तो मुझे मोनिका की याद आई और मैं उसे ढूँढने के लिए बैठक की ओर गई। जैसे ही मैं दरवाज़े तक पहुँच कर बैठक के अन्दर झाँका तो वहाँ का दृश्य देख कर अवाक रह गई।
मैंने देखा कि मोनिका और रोहित दोनों निर्वस्त्र लेटे हुए थे और रोहित का सिर मोनिका की दोनों जाँघों के बीच में था और वह अपने मुँह से मोनिका की योनि को चाट रहा था, उधर मोनिका का सिर भी रोहित की टांगों की ओर था और वह रोहित के लिंग को अपने मुँह ले कर चूस रही थी तथा अपना सिर हिला कर उसके साथ मुखमैथुन कर रही थी।
मैंने अपने आगे बढ़ते कदम वहीं दरवाज़े पर रोक दिए और वापिस अपने बिस्तर की ओर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि मुझे मोनिका के बोलने की आवाज़ सुनाई दी। मैं तुरंत पलट कर वापिस दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर बैठक में झाँका और उनकी बातें सुनने लगी। मोनिका रोहित से कर रही थी कि उसका तो दो बार पानी निकल चुका था और वह अब पुनः यौन संसर्ग के लिए बिल्कुल तैयार थी। तब मैंने देखा कि रोहित उठ कर सीधा होकर मोनिका के ऊपर झुक गया और मोनिका ने उसके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि के छिद्र पर लगा कर रोहित को अपने लिंग को उसके अन्दर डालने के लिए कहा।
मोनिका के मुख से यह निर्देश सुनते ही रोहित ने एक धक्का लगा दिया जिससे उसका आधा लिंग मोनिका की योनि के अन्दर चला गया। रोहित के लिंग के मोनिका की योनि में झटके से प्रवेश होते ही मोनिका की एक हल्की सी चीत्कार सुनाई दी और मैंने मोनिका को गुस्से से भरी आवाज़ में रोहित को डांटते हुए सुना- रोहित, मैंने तुझे कई बार समझाया है कि आराम से डाला कर ! तुझे जल्दी किस बात की होती है जो इतनी जोर से अन्दर धकेल देता है, अपनी टोंटी को? मैं कहीं भाग कर तो जा नहीं रही हूँ और यहाँ तो मम्मी और पापा भी नहीं है जिनका तुझे डर लग रहा हो !
मोनिका की बात सुन कर रोहित ने कहा- मोनी, तेरी सखी तो यहाँ है, अगर वह जाग गई और हमें इस हालत में देख लिया तो हमारा सारा भेद खुल जाएगा और मम्मी पापा को भी पता चल जाएगा !
तब मोनिका बोली- रोहित, मैंने तुम्हें कई बार बताया है कि जोर से करने और जल्दी जल्दी करने से मुझे आनन्द नहीं मिलता, इसलिए अगर आराम से कर सकता है तो कर नहीं तो अपना बाहर निकाल ले मैं उंगली कर के संतुष्टि पा लूंगी ! हाँ, अगर मेरी सखी ने हमें इस हालात में देख लिया तो मैं उसे भी तेरे साथ यह सब करने के लिए तैयार करा दूंगी !
तब रोहित ने मोनिका के होंटों पर अपने होंट रख कर उसका प्यार भरा चुम्बन लेने लगा और शरीर के नीचे के भाग में दबाव बढ़ा कर अपने लिंग को मोनिका की योनि के अन्दर धीरे धीरे धकेलने लगा ! देखते ही देखते रोहित का वह खंज़र मोनिका की योनि के रास्ते उसके जिस्म में गायब हो गया।
चूंकि मैं ऐसा दृश्य पहली बार देख रही थी इसलिए अचंभित सी आँखें फाड़ कर उस क्रीड़ा को देखने में मग्न हो कर सोच रही थी कि क्या लड़की के जिस्म में किसी लड़के का सात इंच लम्बा लिंग समा सकता है?
मेरी इस विचारधारा में अवरोध तब आया जब मैंने रोहित को मोनिका के होंटों से अपने होंट चिपका कर और नीचे से कुछ ऊँचा होकर अपने लिंग को मोनिका की योनि से थोड़ा बाहर निकाल कर फिर से अन्दर धकेल दिया !
इसके बाद रोहित यही क्रिया बार बार दोहराने लगा, पहले धीमी गति से और फिर मध्यम गति से! जब भी रोहित अपने लिंग को अन्दर की ओर धकेलता तभी मोनिका रोहित के लिंग का स्वागत करने के लिए अपने कूल्हे ऊपर को उठाती और उसे अपने में लुप्त कर लेती।
लगभग दस मिनट तक रोहित अपने लिंग को मोनिका की योनि के अन्दर बाहर करता रहा, कभी मध्यम गति से तथा कभी तीव्र गति से ! उन दस मिनट में मोनिका ने दो बार अपनी टाँगें भींची थी और उसका पूरा बदन भी अकड़ गया था !
उस समय मोनिका ने अह्ह… अह्ह्ह… उन्ह्ह्ह… उन्ह्ह्ह… की सिसकारियाँ भी निकाली थी और रोहित को गति तीव्र करने का आग्रह भी किया।
रोहित ने मोनिका के आग्रह को स्वीकार करते हुए अपने लिंग को मोनिका की योनि के अन्दर बाहर करने की गति को अत्यंत तीव्र कर दिया। फिर क्या था पूरे कमरे में मोनिका की सिसकारियों के साथ साथ उसकी योनि से निकल रही फच्च… फच्च… की आवाज़ का मधुर संगीत गूंजने लगा !
अब तो मोहित भी उस संगीत में अपनी हुंह… हुंहह… हुंहह… की सिसकारियों से जुगलबंदी करने लगा।कमरे का वातावरण बहुत ही संगीतमयी हो गया था और मैं भी उन मधुर क्षणों का आनन्द उठा रही थी जब मुझे अपने जीवन का एक सत्य पहली बार कुछ महसूस हुआ।
वह सत्य मेरी योनि में से निकल कर मेरी जाँघों को गीला करने लगा था, मैंने जब अपना हाथ अपनी जाँघों और योनि पर लगाया तो वहाँ के गीलेपन ने मुझे मेरी उत्तेजना का बोध कराया !
मैं मन ही मन अपने आप को मोनिका के स्थान पर देखना चाहती थी और मेरे वहाँ न होने के कारण मुझे मोनिका के सौभाग्य पर जलन की अनुभूति भी होने लगी थी !
तभी मोनिका और रोहित की आह्ह… आह्ह्ह… आह्ह्ह… आह्ह्हह… आह्ह्हह्… की सिस्कार ने मेरी तन्द्रा को तोड़ दिया, मैंने उन दोनों की ओर देखा तो पाया कि उन दोनों के बदन अकड़े हुए थे और वे दोनों पसीने में लथपथ हांफ रहे थे।
कुछ ही क्षणों में मैंने देखा की रोहित का सारा बदन ढीला पड़ गया और वह निढाल हो कर मोनिका के ऊपर लेट गया था ! मोनिका भी उस समय शांत लेटी हुई थी और शायद उस असीम संतुष्टि का पूर्ण आनन्द उठा रही थी !
तब मुझे एहसास होने लगा कि मुझे वहाँ से चली जाना चाहिए इसलिए मैं तुरंत मुड़ कर अपने बिस्तर पर जा कर लेट गई !
अपनी उत्तेजित वासना की तृप्ति को शांत करने के लिए आँखें बंद कर अपने पर नियंत्रण किया और निंद्रा के आगोश में खो गई !
जब बाहर के दरवाज़े की घंटी बजी तब मेरी निद्रा टूटी और मैंने घड़ी की ओर देखा तो छह बज चुके थे, मैंने उठ कर इधर उधर देखा लेकिन मुझे मोनिका कहीं दिखाई नहीं दी तो मैंने जा कर बाहर का दरवाज़ा खोला! बाहर मध्यम रोशनी में मोनिका को अपना सामान लिए खड़े पाया और वह मुझे देखते ही झल्ला कर बोली- दस मिनट से घंटी बजा रही हूँ क्या कर रही थी?
मैंने उत्तर में उसे कह दिया- मैं सो रही थी और तुम इतनी सुबह कहाँ गई थी?
मोनिका घर के अन्दर आती हुई बोली- पगली अभी सुबह कहाँ से हो गई? अभी तो रात होने वाली है और मैं तो अभी घर से आ रही हूँ ! कल से कॉलेज की कक्षा जो शुरू होने वाली हैं !
मोनिका की बात सुन कर मुझे बोध हुआ कि मैं दोपहर को अपने फ्लैट में पहुँच कर यात्रा की थकावट के कारण सो गई थी और मैंने जो भी देखा या एहसास किया था वह मेरी कल्पना का एक सुन्दर एवं मीठा सपना था !

ज्योतिषी बन कर भाभी को बच्चा दिया

  मेरे पास जॉब नहीं थी, मैं फर्जी ज्योतिषी बनकर हाथ देख कर कमाई करने लगा. एक भाभी मेरे पास बच्चे की चाह में आई. वह माल भाबी थी. भाभी की रंड...