जब भी कामांगों और सेक्स (लंड, चूत और चुदाई) का नाम जबान पर आता है तो पता नहीं ये तथाकथित समाज और धर्म के ठेकेदार क्यों अपनी नाक भोंहें सिकोड़ने लगते हैं और व्यर्थ ही हंगामा मचाने लग जाते हैं। मैं एक बात पूछना चाहता हूँ कि क्या इन्होंने कभी सेक्स नहीं किया या बच्चे पैदा नहीं किये ? सेक्स तो प्राणी मात्र की अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है तो फिर इस नाम और नैसर्गिक क्रिया से इतनी चिढ़ क्यों ?
…… सेक्स की प्रचलित भ्रांतियों और मिथकों को खोलती प्रेम गुरु की एक कहानी
दरअसल इस पवित्र और नैसर्गिक क्रिया का नाम ही गलत रखा गया है। इसका नाम तो सेक्स या चुदाई के स्थान पर केवल ‘प्रेम’ ही होना चाहिए। ब्रह्मांड के कण कण में प्रेम समाया हुआ है। चकोर चन्द्रिका से प्रेम करता है, मीन जल से, झरना नदी से और नदी सागर से आलिंगन बद्ध होने को भागी जा रही है। सागर की लहरें पूर्णिमा के चन्द्र को चूमने के लिए आकाश को छू लेना चाहती है। इनके पीछे प्रेम की मोहिनी शक्ति है। उर्जायें प्रेम की तरंगों से उद्वेलित होती हैं। वस्तुतः प्रेम ही जीवन का सार और सुखमय दाम्पत्य जीवन का आधार है।
वातस्यायन ने सच ही कहा है कि सृष्टि के रचना काल से ही नर नारी के सम्बन्ध चले आ रहे हैं। यदि ये सम्बन्ध नहीं होते तो इतना बड़ा संसार कहीं नज़र नहीं आता और यह संसार केवल पत्थरों, पहाड़ों, जंगलों और मरुस्थलों से अटा पड़ा होता। इस संसार की उत्पत्ति काम से हुई है और यह उसी के वशीभूत है। प्रकृति ने संसार का अस्तित्व जन्म प्रक्रिया द्वारा हमेशा बनाए रखने के लिए “काम” को जन्म दिया है और उसमें इतना आनंद भरा है। स्त्री पुरुष के मिलन के समय प्राप्त होने वाले आनंद को बार बार प्राप्त करने की मानवीय चाह ने संसार को विस्तार और अमरता दी है। जिस प्रकार भूख प्यास और निद्रा सभी प्राणियों की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं उसी प्रकार “काम” (सेक्स) भी एक अनिवार्य आवश्यकता है इसका दमन हानिप्रद होता है।
कोई जड़ हो या चेतन सभी किसी ना किसी तरह काम के वशीभूत हैं। क्या आप बता सकते है चकोर चाँद की ओर क्यों देखता रहता है ? नदियाँ सागर की ओर क्यों भागी जा रही हैं ? पपीहा पी कहाँ पी कहाँ की रट क्यों लगाए है ? मेघ पर्वतों की ओर क्यों भागे जा रहे हैं ? परवाने क्यों अपनी जान की परवाह किये बिना शमा की लो चूमने दौड़े चले आते हैं ? दरअसल ये सारी सृष्टि ही काम (प्रेम) से सराबोर है। तभी तो ये संसार ये सृष्टि और जीवन चक्र चल रहा है। व्यक्ति जैसे जैसे बड़ा होता है जीवन में तनाव और समस्याएं जीवन का अंग बन जाती हैं। इस तनाव को दूर करने का प्रकृति ने एक अनमोल भेंट काम (सेक्स) के रूप में मनुष्य को दी है। अगर वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो सेक्स की पूर्णता पर ओर्गास्म होने पर फेरोमोन नामक हारमोंस का शरीर में स्त्राव होता है जिसके कारण पूरा शरीर तरंगित हो जाता है और व्यक्ति तनावमुक्त और संतुष्ट हो जाता है। फिर ऐसे पवित्र कर्म या इसके नाम को गन्दा और अश्लील क्यों कहा जाए ? दरअसल यह तो नासमझ और गंदे लोगों की गन्दी सोच है।
मैंने अभी तक कोई 10-12 कहानियां तो जरूर लिख ही ली होंगी और आपने पढ़ी भी होंगी। मुझे अपने पाठकों और पाठिकाओं का भरपूर प्रेम और प्रशंन्सा मिली है। मेरी बहुत सी किशोर और यौवन की दहलीज़ पर खड़ी पाठिकाओं ने एक विशेष आग्रह किया था कि मैं एक ऐसी कहानी लिखूं जिसमें सेक्स की प्रचलित भ्रांतियों और मिथकों (Myths) के बारे में बताया जाए। मेरी उन सभी पाठिकाओं और पाठकों के लिए मेरा यह अनुभव प्रस्तुत है:
यह उस समय की बात है जब मैं उदयपुर में दसवीं में पढ़ता था। हमारे पड़ोस में एक नई आंटी रहने के लिए आई थी। वो आई तो दिल्ली से थी पर सुना था कि वो पंजाब के पटियाला शहर की रहने वाली थी। उनके माँ बाप बहुत सालों पहले कश्मीर से आकर पटियाला बस गए थे। नाम शायद सुषमा गुलचंदानी था पर उसकी देहयष्टि (फिगर) के हिसाब से तो उसे गुलबदन ही कहना ठीक होगा। अगर सच कहूँ तो मेरी पहली सेक्स गुरु तो ये आंटी गुलबदन ही थी। हालांकि हमारी चुदाई बहुत थोड़े दिनों ही चली थी पर उसने 7 दिनों में ही मुझे सेक्स के सात सबक सिखा कर प्रेम चन्द्र माथुर से “प्रेम गुरु” जरुर बन दिया था। जिस प्रकार की ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) उसने मुझे दी थी मुझे नहीं लगता कि उसके बाद अगर मैं आगे की जानकारी के लिए सेक्स में पी एच डी भी कर लूं तो मुझे मिल पाएगी।
उसकी उम्र कोई 32-33 साल की रही होगी। लम्बाई 5’ 7″ फिगर 36-30-38 पूरी पंजाबी पट्ठी लगती थी जैसे उस जमाने की सुस्मिता सेन हो। गोरा रंग, भरा हुआ बदन, मोटे मोटे नितम्ब और गोल गोल मस्त चुन्चियाँ सानिया मिर्जा की तरह। जैसे कोई दो टेनिस की गेंदें हों। जो मानो कह रही हों कि हमें आजाद करो चूसो और मसलो। काले लम्बे बालों की चोटी तो उसके नितम्बों को छूती ऐसे लगती थी जैसे कोई नागिन लहरा कर चल रही हो। उसके सिर के लम्बे घुंघराले बाल देख कर तो आप और मैं अन्दाज लगा सकते हैं कि उसकी चूत पर कैसे घने और घुंघराले बालों का झुरमुट होगा। चूड़ीदार पाजामे और कुरते में तो उसके नितम्ब कयामत ही ढाते थे। जब कभी वो स्लीवलेस ब्लाउज के साथ सफ़ेद साड़ी पहनती थी उसमें तो वो राजा दुश्यंत की शकुन्तला ही लगती थी। लाल लाल होंठ जैसे किसी का खून पीकर आई हो। सुतवां नाक, सुराहीदार गर्दन और मोटी मोटी बिल्लोरी आँखें तो किसी मृगनयनी का भ्रम पैदा कर दे। जब वो चलती तो उसके हिलते, बल खाते नितम्ब देखकर अच्छे अच्छों के लंड उसे सलाम बजाने लगते। वो तो पूरी गुलबदन ही थी। वो एक स्कूल में अध्यापिका थी। उनका अपने पति से कोई 2 साल पहले अलगाव हो गया था।
मार्च का महीना था पर गुलाबी ठण्ड अभी भी बनी थी। थोड़े दिनों बाद मेरी दसवीं की परीक्षा होने वाली थी। मैं उसके पास इंग्लिश और गणित की ट्यूशन पढ़ने जाता था। मेरे लंड का आकार अब तक 6″ का हो गया था। थोड़े थोड़े बाल अण्डों और लंड के चारों ओर आने लगे थे। हल्की सी काली धारी नाक के नीचे बननी शुरू हो गई थी। राहुल भी मेरे साथ ट्यूशन पढ़ता था। वह मेरी ही उम्र का था पर देखने में मरियल सा लगता था। जब भी वो बाथरूम में जाता तो बहुत देर लगाता। पहले मैं कुछ समझा नहीं पर बाद में मुझे पता लगा कि वो बाथरूम में जाकर आंटी की पैन्टी और ब्रा को सूंघता था और उसे हाथ में लेकर मुट्ठ भी मारता था। उसके बाद तो हम दोनों ही खुल गए और दोनों ही एक साथ शर्त लगा कर मुट्ठ मारते। यह अलग बात थी कि वो हर बार मुझसे पहले झड़ जाता और शर्त जीत जाता। कभी कभार हम मस्तराम की कहानियाँ भी पढ़ लिया करते थे। चुदाई के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था। हम दोनों ही साथ पढ़ने वाली सिमरन को चोदना चाहते थे पर वो पट्ठी तो हमें घास ही नहीं डालती थी। (सिमरन की कहानी “काली टोपी लाल रुमाल” पढ़ लें)
जब कभी हम दोनों मुट्ठ मारते तो कमरा बंद कर लिया करते थे पर कभी कभी मुझे शक सा होता कि आंटी हम लोगों को ऐसा करते कहीं देख रही है। वो हमें पढ़ाते समय गप्पें भी लगाती और कई बार तो वो चुटकले सुनाते समय मेरी पीठ और कभी कभी मेरी जाँघों पर धौल भी जमा देती थी तो मैं तो मस्त ही हो उठता था। मेरी लुल्ली भी झट से खड़ी होकर बीन बजाने लगती थी। अब तो उसे लुल्ली नहीं लंड कहा जा सकता था। 6 इंच लम्बे और 1.5 इंच मोटे हथियार को लुल्ली तो नहीं कहा जा सकता।
घर में अक्सर वो या तो झीनी नाइटी या फिर टाइट सलेक्स और खुला टॉप पहनती थी जिसमें से उसके बूब्स और चूत की दरारें साफ़ नजर आती थी। कई बार तो उसकी चूत के सामने वाला हिस्सा गीला हुआ भी नजर आ जाता था। जब वो घर पर होती तो शायद ब्रा और पैन्टी नहीं पहनती थी। उसके नितम्ब तो ऐसे लगते थे जैसे कोई दो चाँद या छोटे छोटे फ़ुटबाल आपस में जोड़ दिए हों। दोनों नितम्बों के बीच की खाई तो जैसे दो छोटी छोटी पहाड़ियों के बीच बहती नदी की घाटी ही हो। मांसल जांघें केले के तने की तरह। उरोज तो मोटे मोटे जैसे कंधारी अनार हों। दोनों उरोजों के बीच की घाटी तो जाहिदों (धर्मगुरु) को भी अपनी अपनी तौबा तोड़ने पर मजबूर कर दे।
कभी कभी जब आंटी मेरे हाथों से किताब लेकर अपनी गोद में रखती तो मेरा हाथ भी उसके साथ आंटी की गोद में चला जाता था और मेरे हाथ उनकी जाँघों से और कभी कभार तो चूत के पास छू जाता था। आंटी कोई परवाह नहीं करती थी। मुझे अपने हाथों में आंटी की चूत की गर्मी महसूस हो जाती थी। आप शायद विश्वास नहीं करेंगे आंटी की चूत से बहुत गर्मी निकलती थी और वो गर्मी मुझे किसी रूम हीटर से ज्यादा महसूस होती थी। वो जब कुछ लिखने के लिए झुकती तो उसके बूब्स का एरोला और मूंगफली के दाने जितने निप्पल्स तक दिख जाते थे और मेरा प्यारे लाल (लंड) तो हिलोरें ही मारने लग जाता था।
उस दिन राहुल पढ़ने नहीं आया था शायद बीमार था। आंटी बाथरूम में नहा रही थी। अन्दर से उनकी सुरीली आवाज आ रही थी। लगता था आंटी आज बहुत मूड में है। वो किसी पुरानी फिल्म का गाना गुनगुना रही थी :
तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं छाँव
तू बादल मैं बिजली, तू पंछी मैं पात …
मैं तो उनकी मीठी आवाज में राजस्थानी विरह गीत सुनकर जैसे सतरंगी दुनिया में ही खोया था। वो नहा कर बाहर आई तो गीले और खुले बाल, भीगे होंठ और टाईट जीन पैन्ट और खुला टॉप पहने किसी अप्सरा से कम तो नहीं लग रही थी। बालों से टपकती पानी की बूँदें तो किसी कुहासे भरी सुबह में घास पर पड़ी शबनम की बूंदों का धोखा दे रही थी। अच्छा मौका देखकर मैं बाथरूम में घुस गया। मेरी निगाह जैसे ही उस जानी पहचानी काली पैन्टी पर पड़ी मैंने उसे उठाकर दो तीन बार सूंघा। मेरा सारा स्नायु तंत्र एक मादक महक से सराबोर हो गया। पैन्टी के बीच में जहां चूत का छेद लगता है वहाँ पर कुछ लेसदार सा सफ़ेद चिपचिपा सा पानी लगा था। मैंने आज पहली बार उसे चाट कर देखा था। वाह क्या मजेदार खट्टा और नमकीन सा स्वाद था। पेशाब, पसीने और नारियल पानी जैसी खुशबू तो मुझे मस्त ही कर गई।
अब मैंने पास में पड़ी नाइटी उठाई और उसे हैंगर पर लगा दिया और पैन्टी को बीच में दो हेयर क्लिप्स के सहारे अटका दिया। अब तो वो नाइटी और पैन्टी ऐसे लग रही थी जैसे सचमुच आंटी गुलबदन ही मेरे सामने खड़ी हों। अब मैंने अपनी पैन्ट और चड्डी नीचे कर ली। मेरा प्यारे लाल तो पहले ही अटेनशन था। मैंने उसकी गर्दन पकड़ी और ऊपर नीचे करके उसे दाना खिलाने लगा। मेरे मुंह से सीत्कार निकलने लगी और मैं बुबुदाने लगा – आह. ईईईइ. य़ाआआ…… आह… मेरी गुलबदन ओह … मेरी जान… मेरी सिमरन हाय… मेरी आंटी… मेरी गुलबदन…
मुझे कोई 7-8 मिनट तो जरूर लगे होंगे। फिर मेरे लंड ने वीर्य की 5-6 पिचकारियाँ छोड़ दी। वीर्य की कुछ बूँदें आंटी की नाइटी और पैन्टी पर भी गिर गई थी। मैं अपने हाथ और लंड को साफ़ करके जैसी ही बाहर आया आंटी बाहर सोफे पर बैठी जैसे मेरा इन्तजार ही कर रही थी। उन्होंने मुझे इशारे से अपनी ओर बुलाया और अपने पास बैठा लिया।
“अच्छा चंदू एक बात बताओ ?” आंटी ने पूछा। आप भी सोच रहे होंगे चंदू … ओह मेरा पूरा नाम ‘प्रेम चन्द्र माथुर’ है ना। मैं प्रेमगुरु तो बाद में बना हूँ। मुझे घरवाले और जानने वाले बचपन में चंदू ही कहकर बुलाते थे।
“जी आंटी … ?” मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा।
“ये गुलबदन कौन है ?”
मैं चोंका “वो… वो … क… कोई नहीं …!”
“तो फिर बाथरूम में तुम यह नाम लेकर क्या बड़बड़ा रहे थे ?”
“वो… वो…” मैंने अपनी नजरें झुका ली। मैं तो डर के मारे थर थर कांपने लगा। मेरी चोरी आज पकड़ी गई थी।
“क्या राहुल भी ऐसा करता है ?”
मैं क्या बोलता ? पर जब आंटी ने दुबारा पूछा तो मैं होले से बोला “हाँ, कभी कभी !”
“देखो ये सब चीजें तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। अभी तुम बच्चे हो।”
मैं अपना सिर झुकाए बैठा रहा। आंटी ने कहना चालू रखा,”किसी विषय का उचित और पर्याप्त ज्ञान ना होने पर उस विषय में भ्रांतियां होना स्वाभाविक हैं। हमारे समाज में यौन शिक्षा का प्रचलन नहीं है इसे अशोभनीय माना जाता है इसलिए युवक-युवतियों के मन में उठने वाली जिज्ञासाओं का उचित समाधान नहीं हो पाता जिस से वे ग़लतफ़हमी के शिकार हो जाते हैं और कई यौन रोगों से भी पीड़ित हो जाते हैं। अब हस्तमैथुन के बारे में ही कितनी भ्रांतियां हैं कि हस्तमैथुन से दुर्बलता, कमजोरी, पुरुषत्व हीनता और नपुन्सकता आ जाती है। कुछ तो यह भी मानते हैं कि वीर्य की एक बूँद खून की 100 बूंदों से बनती है। यह गलत धारणा है। वीर्य और खून पूरी तरह शरीर के दो अलग अलग पदार्थ हैं जिनका आपस में कोई लेना देना नहीं होता। पर यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि अति तो हर जगह ही वर्जित होती है, ज्यादा हस्तमैथुन नहीं करना चाहिए”
“सॉरी … आंटी मैं फिर ऐसा नहीं करूंगा !” जैसे मेरी जान छूटी। उसे क्या पता अब मैं बच्चा नहीं, पूरा जवान नहीं तो कम से कम दो तीन बार तो किसी को भी चोदने लायक तो हो ही गया हूँ।
“अरे नहीं, जवान लड़के और लड़कियों का कभी कभार मुट्ठ मार लेना अच्छा रहता है। अगर मुट्ठ नहीं मारोगे तो रात को वीर्य अपने आप निकल जाता है जिसे स्वप्नदोष कहते हैं। तुम्हें भी होता है क्या ?”
“हाँ, कई बार रात को मेरी चड्डी गीली हो जाती है !” मैंने बताया।
“ओह… तुम एक काम करना ! एक ग्राम मुलेठी के चूर्ण को गाय के दूध में मिलाकर पी लिया करो फिर अधिक स्वप्नदोष नहीं होगा !”
वो अपने एक हाथ को अपनी दोनों जाँघों के बीच रखे हुए थी और वहाँ बार बार दबा रही थी। फिर अपनी जाँघों को भींचते हुए बोली,”मैं जानती हूँ तुम अब जवान होने जा रहे हो। सेक्स के बारे में तुम्हारी उत्सुकता को मैं अच्छी तरह समझती हूँ। तुम्हारे मन में सेक्स से सम्बंधित कई प्रश्न होंगे? है ना ?”
मैं चुपचाप बैठा उनकी बातें सुनता रहा। उसने आगे कहना जारी रखा :
“ठीक है इस समय अगर तुम्हें सही दिशा और ज्ञान नहीं मिला तो तुम गलत संगत में पड़कर अपनी सेहत और पढ़ाई दोनों चौपट कर लोगे !” आंटी ने एक जोर का सांस छोड़ते हुए कहा। वो कुछ देर रुकी, फिर मुझसे पूछा “तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड है ?”
वैसे तो मैं सिमरन को बहुत चाहता था पर मैंने उस समय कहा,”नहीं”
“अच्छा चलो बताओ तुम्हें कोई लड़की अच्छी लगती है?” मैं फिर चुप लगा गया।
आंटी ने फिर पूछा “सिमरन कैसी है ?”
मैं चौंक गया, मेरे लिए अब उलझन का समय था। मेरी हिचकिचाहट देख कर आंटी बोली,”देखो डरने की कोई बात नहीं है। मैं तो बस इसलिए पूछ रही हूँ कि तुम्हें ठीक से समझा सकूं !”
“हाँ मुझे सिमरन बहुत अच्छी लगती है !”
“ओह्हो …” आंटी ने एक लम्बा सांस लिया और फिर मुस्कुराते हुए बोली,”अच्छा यह बताओ कि तुम्हें सिमरन को देख कर क्या महसूस होता है ?”
“वो … वो … बस मुझे अच्छी लगती है ?” मेरे मुंह से बस इतना ही निकला। मेरे मन में तो आया कि कह दूं मुझे उसके नितम्ब और स्तन बहुत अच्छे लगते हैं, मैं उसे बाहों में लेकर चूमना और चोदना चाहता हूँ पर यह कहने की मेरी हिम्मत कहाँ थी।
“साफ़ साफ़ बताओ उसे देखकर क्या होता है ? शरमाओ नहीं…”
“वो… वो…. मुझे उसके नितम्ब और स्तन अच्छे लगते हैं !”
“क्यों ऐसा क्या है उनमें ?”
“वो बहुत बड़े बड़े और गोल गोल हैं ना ?”
“ओह … तो तुम्हें बड़े बड़े नितम्ब और उरोज अच्छे लगते हैं ?”
“हूँ …”
“और क्या होता है उन्हें देखकर ?”
मेरा मन तो कह रहा था कह दूं, ‘और मेरा लंड खड़ा हो जाता है मैं उसे चोदना चाहता हूँ’ पर मेरे मुंह से बस इतना ही निकला “मेरा मेरा … वो मेरा मतलब है … कि … मैं उन्हें … छूना चाहता हूँ !”
“बस छूना ही चाहते हो या… कुछ और भी ?”
“हाँ चूमना भी … और … और..”
“क्या सिमरन से कभी इस बारे में बात की ?
“नहीं… वो तो मुझे घास ही नहीं डालती !”
आंटी की हंसी निकल गई। माहौल अब कुछ हल्का और खुशनुमा हो चला था।
“अच्छा तो तुम उसका घास खाना चाहते हो? मतलब की … तुम उसे … ?”
आंटी के हंसने से मेरी भी झिझक खुल गई थी और मेरे मुंह से पता नहीं कैसे निकल गया “हाँ मैं उसे चोद… ना …” पर मैं बीच में ही रुक गया।
“चुप बदमाश ! शैतान कहीं का ?” आंटी ने मेरी नाक पकड़ कर दबा दी। मैं तो मस्त ही हो गया मैं तो बल्लियों उछलने लगा।
“अच्छा चलो ये बताओ कि तुम्हें सेक्स के बारे में क्या क्या मालूम है? एक लड़का या मर्द किसी लड़की या औरत के साथ क्या क्या करता है…?” आंटी ने पूछा।
“उसे बाहों में लेता है और चूमता है और फिर … चोदता है !” मैंने इस बार थोड़ी हिम्मत दिखाई।
“ओह्हो … तुम तो पूरे गुरु बन गए हो ?” आंटी ने आश्चर्य से मुझे देखा।
“आपका ही शागिर्द हूँ ना ?” मैंने भी मस्का लगा दिया।
“अच्छा क्या तुम पक्के प्रेम गुरु बनना चाहोगे ?”
“येस… हाँ …”
“ठीक है मैं तुम्हें पूरी ट्रेनिंग देकर पक्का ‘प्रेम गुरु’ बना दूँगी … पर मुझे गुरु दक्षिणा देनी होगी… क्या तुम तैयार हो ?”
“हाँ” मैं तो इस प्रस्ताव को सुनकर ख़ुशी के मारे झूम ही उठा।
“चलो आज से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू !”
“ठीक है !”
आंटी कुछ देर रुकी फिर उसने बताना चालू किया “देखो प्रेम या चुदाई का पहला सबक (पाठ) है कि सारी शर्म छोड़ कर इस जीवन का और सेक्स का पूरा आनंद लेना चाहिए। प्रेम में शरीर का कोई भी अंग या क्रिया कुछ भी गन्दा, बुरा, कष्टप्रद नहीं होता। यह तो गंदे लोगों की नकारात्मक सोच है। वास्तव में देखा जाए तो प्रेम जैसी नैसर्गिक और सदियों से चली आ रही इस क्रिया में विश्वास, पसंद, सम्मान, ईमानदारी, सुरक्षा और अंतरंगता होती है !”
आंटी ने बताना शुरू किया। मैं तो चुपचाप सुनता ही रहा। वो आगे बोली : सेक्स को चुदाई जैसे गंदे और घटिया नाम से नहीं बुलाना चाहिए। इसे तो बस प्रेम ही कहना चाहिए। अपनी प्रेमिका या प्रेमी के सामने अगर प्रेम अंगों का नाम लेने में संकोच हो तो इनके लिए बड़े सुन्दर शब्द हैं जिन्हें प्रयोग में लाया जा सकता है। जैसे लंड के लिए शिश्न, मिट्ठू, पप्पू, कामदण्ड, मनमोहन या फिर प्यारे लाल, चूत के लिए योनि, भग, मदनमंदिर, मुनिया और रानी। गांड के लिए गुदा, महारानी या मुनिया की सहेली। स्तन को अमृत कलश या उरोज और चूतडों के लिए नितम्ब कहना सुन्दर लगता है। हाँ चुदाई को तो बस प्रेम मिलन, यौन संगम या रति क्रिया ही कहना चाहिए। जब उन्होंने गुदा मैथुन का नाम गधापचीसी बताया तो मेरी हंसी निकल गई।
हातिमताई की तरह सेक्स (प्रेम) के भी सात सबक (पाठ) होते हैं जो कि लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए लगभग समान होते हैं। अब मैं तुम्हें प्रेम के सातों सबक सिलसिलेवार (क्रमशः) बताउंगी। ये इस प्रकार होते हैं :
1. आलिंगन 2. चुम्बन 3. उरोजों को मसलना और चूसना 4. आत्म रति (हस्त मैथुन- मुट्ठ मारना) 5. प्रेम अंगों को चूसना 6. सम्भोग (चुदाई नहीं प्रेम मिलन) 7. गुदा मैथुन (गांडबाज़ी)
मैं तो मुंह बाए सुनता ही रह गया। मैं तो सोचता था कि बस चूत में लंड डालो और धक्के लगाकर पानी निकाल दो। ओह … असली सेक्स की बारीकियां तो आंटी ने ही बताई हैं। आंटी आगे बोली,”देखो, एक एक सबक ध्यान से सुनना, तभी तुम पूरे सेक्स गुरु … नहीं… प्रेम गुरु बन पाओगे”
“ठीक है मैडम!”
“फिर गलत ? देखो प्रेम (सेक्स) में मैडम या मिस्टर नहीं होता। प्रेम (चुदाई) में अंतरंगता (निकटता) बहुत जरुरी होती है। अपने प्रेमी या प्रेयसी को प्रेम से संबोधित करना चाहिए। तुम मुझे अपनी गर्लफ्रेंड और प्रेमिका ही समझो और मैं भी ट्रेनिंग के दौरान तुम्हें अपना प्रेमी ही समझूंगी।”
“ठीक है गुरु जी … ओह … डार … डार्लिंग !”
“यह हुई ना बात … तुम मुझे चांदनी बुला सकते हो। हाँ तो शुरू करें ?”
“हाँ”
1. आलिंगन
आंटी ने बताना शुरू किया : आलिंगन का अपना ही सुख और आनंद होता है। जब रात की तन्हाई में अपने प्रेमी या प्रेमिका की याद सताती है तो बरबस तकिया बाहों में भर लेने को जी चाहता है। ऐसा करने से कितनी राहत और सुकून मिलाता है तुम अभी नहीं जान पाओगे। इसी आलिंगन के आनंद के कारण ही तो प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे की बाहों में जीने मरने की कसमें खाते हैं। पहली बार जब अपनी प्रेयसी को बाहों में भरना हो तो यह मत सोचो की बस उसे धर दबोचना है ? ना… कभी नहीं… कोई जोर जबरदस्ती नहीं… होले से उसे अपनी बाहों में भरना चाहिए ताकि वो अपने शेष जीवन में उस पहले आलिंगन को अपनी स्मृतियों में संजो कर रखे।
आंटी ने अपनी बाहें मेरी ओर बढ़ा दी। मैं तो जैसे जादू से बंधा उनकी बाहों में समा गया। उसके बदन की मादक महक से मेरा स्नायु-तंत्र जैसे सराबोर हो गया। हालांकि वो अभी अभी नहा कर आई थी पर उनके बदन की महक तो मुझे मदहोश ही कर गई। मैं उनकी छाती से चिपक गया। उनके गुदाज और मोटे मोटे उरोज ठीक मेरे मुंह के पास थे। उनके दोनों उरोज तो ऐसे लग रहे थे जैसे कोई दो कबूतर ही हों। और उनकी घुन्डियाँ तो ऐसे तीखी हो गई थी मानो पेंसिल की टिप हों। मेरा मन तो कर रहा था कि उनको चूम लूं पर आंटी के बताये बिना ऐसा करना ठीक नहीं था। उनकी कांख से आती तीखी और नशीली खुशबू तो जैसे मुझे बेहोश ही कर देने वाली थी। उनकी गर्म साँसें मुझे अपने चेहरे पर साफ़ महसूस हो रही थी। उनका एक हाथ मेरी पीठ सहला रहा था और दूसरा हाथ सिर के बालों पर।
मैंने भी अपना एक हाथ उनके नितम्बों पर फिराना चालू कर दिया। मोटे मोटे दो फ़ुटबाल जैसी नरम नाजुक कसे हुए नितम्ब गोल मटोल। मैंने अपने आप को उसकी गहरी खाई में भी अपनी अंगुलियाँ फिराने से नहीं रोक पाया। मेरा लंड तो तन कर पैन्ट में उधम ही मचाने लगा था। पता नहीं कितनी देर हम दोनों इसी तरह आँखें बंद किये जैसे किसी जादू से बंधे आपस में बाहों में जकड़े खड़े रहे। मैं अब तक इस रोमांच से अपरिचित ही था। मुझे तो लगा मैं तो सपनों की सतरंगी दुनिया में ही पहुँच गया हूँ। इस प्रेम आलिंगन की रस भरी अनुभूति का वर्णन करना मेरे लिए संभव नहीं है।
आंटी ने अपनी आँखें खोली और मेरे चहरे को अपने हाथों में ले लिया और मेरी आँखों में देखने लगी। मैंने देखा उनकी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे हैं।
वो बोली,”देखो चंदू आलिंगन का अर्थ केवल एक दूसरे को बाहों में भरना ही नहीं होता। यह दो शरीरों का नहीं आत्माओं के मिलन की तरह महसूस होना चाहिए। एक मजेदार बात सुनो- जैसे घोड़ा, फोड़ा और लौड़ा सहलाने से बढ़ते हैं उसी तरह वक्ष, चूतड़ और मर्ज दबाने से बढ़ते हैं। इसलिए अपनी साथी के सभी अंगों को दबाना और सहलाना चाहिए। शरीर के सारे अंगो को प्रेम करना चाहिए।”
सम्भोग के दौरान तो आलिंगन अपने आप हो जाता है और उसके अलावा भी यदि अपनी प्रेयसी के गुदाज़ बदन को बाहों में भर लिया जाए तो असीम आनंद की अनुभूति होती है। उस समय अपने प्रेमी या प्रेमिका का भार फूलों से भी हल्का लगता है।
थोड़ी देर बाद वो घूम गई और मैंने पीछे से उन्हें अपनी बाहों में जकड़ लिया। आह उनके गुदाज नितम्बों की खाई में मेरा मिट्ठू तो ठोकरें ही खाने लगा था। मैंने एक हाथ से उनके उरोज पकड़ रखे थे और दूसरा हाथ कभी उनके पेट, कभी कमर और कभी उनकी जाँघों के बीच ठीक उस जगह फिरा रहा था जहां स्वर्ग गुफा बनी होती है। उन्होंने अपने हाथ ऊपर करके मेरी गर्दन पर जैसे लपेट ही लिए। उनके बगलों और लम्बे बालों से आती मीठी महक ने तो मुझे मदहोश ही कर दिया। पता नहीं हम इसी तरह एक दूसरे से लिपटे कितनी देर खड़े रहे।
2. चुम्बन
पाश्चात्य देशों और संस्कृति में तो शादी के बाद प्रथम चुम्बन का विशेष महत्व है। भारतीय परंपरा में भी माथे और गालों का प्रेम भरा चुम्बन लिया ही जाता है।
आंटी बोली “देखो चंदू वैसे तो अपनी प्रेमिका और प्रेमी का ऊपर से लेकर नीचे तक सारे अंगों का ही चुम्बन लिया जाता है पर सबसे प्रमुख होता है अधरों (होंठों) का चुम्बन। लेकिन ध्यान रखो कि तुमने ब्रुश ठीक से कर लिया है और कोई खुशबूदार चीज अपने मुंह में रख ली है”
“चुम्बन प्रेम का प्यारा सहचर है। चुम्बन हृदय स्पंदन का मौन सन्देश है और प्रेम गुंजन का लहराता हुआ कम्पन है, प्रेमाग्नि का ताप और दो हृदयों के मिलन की छाप है। यह तो नवजीवन का प्रारम्भ है। अपने प्रेमी या प्रेमिका का पहला चुम्बन तो अपने स्मृति मंदिर में मूर्ति बना कर रखा जाता है।”
अब आंटी ने होले से अपने कांपते हुए अधरों को मेरे होंठों पर रख दिया। मिन्ट की मीठी और ठंडी खुशबू मेरे अन्दर तक समा गई। संतरे की फांकों और गुलाब की पत्तियों जैसे नर्म नाज़ुक रसीले होंठ मेरे होंठों से ऐसे चिपक गए जैसे कि कोई चुम्बक हों। फिर उन्होंने अपनी जीभ मेरे होंठों पर फिराई। पता नहीं कितनी देर मैं तो मंत्रमुग्ध सा अपने होश-ओ-हवास खोये खड़ा रहा। मेरा मुंह अपने आप खुलता गया और आंटी की जीभ तो मानो इसका इन्तजार ही कर रही थी। उन्होंने गप्प से अपनी लपलपाती जीभ मेरे मुंह में डाल दी। मैंने भी मिश्री और शहद की डली की तरह उनकी जीभ को अपने मुंह में भर लिया और किसी कुल्फी की तरह चूसने लगा। फिर उन्होंने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और मेरा ऊपर का होंठ अपने मुंह में भर लिया। ऐसा करने से उनका निचला होंठ मेरे मुंह में समा गया। जैसे किसी ने शहद की कुप्पी ही मेरे मुंह में दे दी हो। मैं तो चटखारे लेकर उन्हें चूसता ही चला गया। ऐसा लग रहा था जैसे हमारा यह चुम्बन कभी ख़त्म ही नहीं होगा।
एक दूसरे की बाहों में हम ऐसे लिपटे थे जैसे कोई नाग नागिन आपस में गुंथे हों। उनकी चून्चियों के चुचूकों की चुभन मेरी छाती पर महसूस करके मेरा रोमांच तो जैसे सातवें आसमान पर ही था। फिर उन्होंने मेरे गालों, नाक, ठोड़ी, पलकों, गले और माथे पर चुम्बनों की जैसे झड़ी ही लगा दी। अब मेरी बारी थी मैं भला पीछे क्यों रहता मैं भी उनके होंठ, गाल, माथे, थोड़ी, नाक, कान की लोब, पलकों और गले को चूमता चला गया। उनके गुलाबी गाल तो जैसे रुई के फोहे थे। सबसे नाज़ुक तो उनके होंठ थे बिल्कुल लाल सुर्ख। मैं तो इतना उत्तेजित हो गया था कि मुझे तो लगने लगा था मैं पैन्ट में ही झड़ जाऊँगा।
अचानक कॉल-बेल बजी तो हम दोनों ही चौंक गए और ना चाहते हुए भी हमें अलग होना पड़ा। अपने भीगे होंठों को लिए आंटी मेन-गेट की ओर चली गई।
आह … आज 14 साल के बाद भी मुझे उस का जादुई स्पर्श और प्रथम चुम्बन जब याद आता है मैं तो रोमांच से भर उठता हूँ।
3. उरोजों को मसलना और चूसना
शाम के कोई चार बजे होंगे। आज मैंने सफ़ेद पेंट और पूरी बाजू वाली टी-शर्ट पहनी थी। आंटी ने भी काली जीन पेंट और खुला टॉप पहना था। आज तीसरा सबक था। आज तो बस अमृत कलशों का मज़ा लूटना था। ओह… जैसे दो कंधारी अनार किसी ने टॉप के अन्दर छुपा दिए हों आगे से एक दम नुकीले। मैं तो दौड़ कर आंटी को बाहों में ही भरने लगा था कि आंटी बोली,”ओह .. चंदू…. जल्दबाजी नहीं ! ध्यान रखो ये प्रेमी-प्रेमिका का मिलन है ना कि पति पत्नी का। इतनी बेसब्री (आतुरता) ठीक नहीं। पहले ये देखो कोई और तो नहीं है आस पास ?”
“ओह … सॉरी…. गलती हो गई” मेरा उत्साह कुछ ठंडा पड़ गया। मैं तो रात भर ठीक से सो भी नहीं पाया था। सारी रात आंटी के खयालों में ही बीत गई थी कि कैसे कल… उसे बाहों में भर कर प्यार करूंगा और उसके अमृत कलशों को चूसूंगा।
“चलो बेडरूम में चलते हैं !”
हम बेडरूम में आ गए। अब आंटी ने मुझे बाहों में भर लिया और एक चुम्बन मेरे होंठों पर ले लिया। मैं भी कहाँ चूकने वाला था मैंने भी कस कर उनके होंठ चूम लिए।
“ओह्हो … एक दिन की ट्रेनिंग में ही तुम तो चुम्बन लेना सीख गए हो !” आंटी हंस पड़ी। जैसे कोई जलतरंग छिड़ी हो या वीणा के तार झनझनाएं हों। हंसते हुए उनके दांत तो चंद्रावल का धोखा ही दे रहे थे। उनके गालों पर पड़ने वाले गड्ढे तो जैसे किसी को कत्ल ही कर दें।
हम दोनों पलंग पर बैठ गए। आंटी ने कहा “तुम्हें बता दूं- कुंवारी लड़कियों के उरोज होते हैं और जब बच्चा होने के बाद इनमें दूध भर जाता है तो ये अमृत-कलश (बूब्स या स्तन) बन जाते हैं। दोनों को चूसने का अपना ही अंदाज़ और मज़ा होता है। सम्भोग से पहले लड़की के स्तनों को अवश्य चूसना चाहिए। स्तनों को चूसने से उनके कैंसर की संभावना नष्ट हो जाती है। आज का सबक है उरोजों या चुन्चियों को कैसे चूसा जाता है !”
कुदरत ने स्तनधारी प्राणियों के लिए एक माँ को कितना अनमोल तोहफा इन अमृत-कलशों के रूप में दिया है। तुम शायद नहीं जानते कि किसी खूबसूरत स्त्री या युवती की सबसे बड़ी दौलत उसके उन्नत और उभरे उरोज ही होते हैं।
काम प्रेरित पुरुष की सबसे पहली नज़र इन्हीं पर पड़ती है और वो इन्हें दबाना और चूसना चाहता है। यह सब कुदरती होता है क्योंकि इस धरती पर आने के बाद उसने सबसे पहला भोजन इन्हीं अमृत कलसों से पाया था। अवचेतन मन में यही बात दबी रहती है इसीलिए वो इनकी ओर ललचाता है।
“सुन्दर, सुडौल और पूर्ण विकसित स्तनों के सौन्दर्याकर्षण में महत्वपूर्ण योगदान है। इस सुखद आभास के पीछे अपने प्रियतम के मन में प्रेम की ज्योति जलाए रखने तथा सदैव उसकी प्रेयसी बनी रहने की कोमल कामना भी छिपी रहती है। हालांकि मांसल, उन्नत और पुष्ट उरोज उत्तम स्वास्थ्य व यौवन पूर्ण सौन्दर्य के प्रतीक हैं और सब का मन ललचाते हैं पर जहां तक उनकी संवेदनशीलता का प्रश्न है स्तन चाहे छोटे हों या बड़े कोई फर्क नहीं होता। अलबत्ता छोटे स्तन ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
कुछ महिलायें अपनी देहयष्टि के प्रति ज्यादा फिक्रमंद (जागरुक) होती हैं और छोटे स्तनों को बड़ा करवाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी करवा लेती हैं बाद में उन्हें कई बीमारियों और दुष्प्रभावों से गुजरना पड़ सकता है। उरोजों को सुन्दर और सुडौल बनाने के लिए ऊंटनी के दूध और नारियल के तेल का लेप करना चाहिए।
इरानी और अफगानी औरतें तो अपनी त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए ऊंटनी या गधी के दूध से नहाया करती थी। पता नहीं कहाँ तक सच है कुछ स्त्रियाँ तो संतरे के छिलके, गुलाब और चमेली के फूल सुखा कर पीस लेती हैं और फिर उस में अपने पति के वीर्य या शहद मिला कर चहरे पर लगाती हैं जिस से उनका रंग निखरता है और कील, झाइयां और मुहांसे ठीक हो जाते हैं !”
आंटी ने आगे बताया,”सबसे पहले धीरे धीरे अपनी प्रेमिका का ब्लाउज या टॉप उतरा जाता है फिर ब्रा। कोई जल्दबाजी नहीं आराम से। उनको प्यार से पहले निहारो फिर होले से छुओ। पहले उनकी घुंडियों को फिर एरोला को, फिर पूरे उरोज को अपने हाथों में पकड़ कर धीरे धीरे सहलाओ और मसलो मगर प्यार से। कुछ लड़कियों का बायाँ उरोज दायें उरोज से थोड़ा बड़ा हो सकता है। इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं होती। दरअसल बाईं तरफ हमारा दिल होता है इसलिए इस उरोज की ओर रक्तसंचार ज्यादा होता है।
यही हाल लड़कों का भी होता है। कई लड़कों का एक अन्डकोश बड़ा और दूसरा छोटा होता है। गुप्तांगों के आस पास और उरोजों की त्वचा बहुत नाजुक होती है जरा सी गलती से उनमें दर्द और गाँठ पड़ सकती है इसलिए इन्हें जोर से नहीं दबाना चाहिए। प्यार से उन पर पहले अपनी जीभ फिराओ, चुचुक को होले से मुंह में लेकर जीभ से सहलाओ और फिर चूसो।”
मैंने धड़कते दिल से उनका टॉप उतार दिया। उन्होंने ब्रा तो पहनी ही नहीं थी। दो परिंदे जैसे आजाद हो कर बाहर निकल आये। टॉप उतारते समय मैंने देखा था उनकी कांख में छोटे छोटे रेशम से बाल हैं। उसमें से आती मीठी नमकीन और तीखी गंध से मैं तो मस्त ही हो गया।
मेरा मिट्ठू तो हिलोरे ही लेने लगा। मुझे लगा तनाव के कारण जैसे मेरा सुपाड़ा फट ही जाएगा। मैं तो सोच रहा था कि एक बार चोद ही डालूं ये प्रेम के सबक तो बाद में पढ़ लूँगा पर आंटी की मर्जी के बिना यह कहाँ संभव था।
आंटी पलंग पर चित्त लेट गई और मैं घुटनों के बल उनके पास बैठ गया। अब मैंने धीरे से उनके एक उरोज को छुआ। वो सिहर उठी और उनकी साँसें तेज होने लगी। होंठ कांपने लगे। मेरा भी बुरा हाल था। मैं तो रोमांच से लबालब भरा था। मैंने देखा एरोला कोई एक इंच से बड़ा तो नहीं था। गहरे गुलाबी रंग का। निप्पल तो चने के दाने जितने जैसे कोई छोटा सा लाल मूंगफली का दाना हो। हलकी नीली नसें गुलाबी रंग के उरोजों पर ऐसे लग रही थी जैसे कोई नीले रंग के बाल हों। मैं अपने आप को कैसे रोक पता। मैंने होले से उसके दाने को चुटकी में लेकर धीरे से मसला और फिर अपने थरथराते होंठ उन पर रख दिए। आंटी के शरीर ने एक झटका सा खाया। मैंने तो गप्प से उनका पूरा उरोज ही मुंह में ले लिया और चूसने लगा। आह… क्या रस भरे उरोज थे। आंटी की तो सिस्कारियां ही कमरे में गूंजने लगी।
“अह्ह्ह चंदू और जोर से चूसो और जोर से …. आह… सारा दूध पी जाओ मेरे प्रेम दीवाने …. आह आज दो साल के बाद किसी ने …. आह… ओईई …माआअ ……” पता नहीं आंटी क्या क्या बोले जा रही थी। मैं तो मस्त हुआ जोर जोर से उनके अमृत कलसों को चूसे ही जा रहा था। मैं अपनी जीभ को उनकी निप्पल और एरोला के ऊपर गोल गोल घुमाते हुए परिक्रमा करने लगा। बीच बीच में उनके निप्पल को भी दांतों से दबा देता तो आंटी की सीत्कार और तेज हो जाती। उन्होंने मेरे सिर के बालों को कस कर पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबा दिया। उनकी आह… उन्ह … चालू थी। मैंने अब दूसरे उरोज को मुंह में भर लिया। आंटी की आँखें बंद थी।
मैंने दूसरे हाथ से उनका पहले वाला उरोज अपनी मुट्ठी में ले लिया और उसे मसलने लगा। मुझे लगा कि जैसे वो बिल्कुल सख्त हो गया है। उसके चुचूक तो चमन के अंगूर (पतला और लम्बा) बन गए हैं एक दम तीखे, जैसे अभी उन में से दूध ही निकल पड़ेगा। मेरे थूक से उनकी दोनों चूचियां गीली हो गई थी। मेरा लंड तो प्री-कम छोड़ छोड़ कर पागल ही हुआ जा रहा था। मेरा अंदाजा है कि आंटी की चूत ने भी अब तो पानी छोड़ छोड़ कर नहर ही बना दी होगी पर उसे छूने या देखने का अभी समय नहीं आया था। आंटी ने अपने जांघें कस कर बंद कर रखी थी। जीन पेंट में फसी चूत वाली जगह फूली सी लग रही थी और कुछ गीली भी। जैसे ही मैंने उनके चुचूक को दांतों से दबाया तो उन्होंने एक किलकारी मारी और एक ओर लुढ़क गई। मुझे लगा की वो झड़ (स्खलित) गई है।
4. आत्मरति (हस्तमैथुन-मुट्ठ मारना)
किसी ने सच ही कहा है “सेक्स एक ब्रिज गेम की तरह है ; अगर आपके पास एक अच्छा साथी नहीं है तो कम से कम आपका हाथ तो बेहतर होना चाहिए !”
सेक्स के जानकार बताते हैं कि 95 % स्वस्थ पुरुष और 50 % औरतें मुट्ठ
जरूर मारते हैं। जब कोई साथी नहीं मिलता तो उसको कल्पना में रख कर ! बस यही
तो एक उपाय या साधन है अपनी आत्मरति और काम क्षुधा (भूख) को मिटाने का। और
मैं और आंटी भी तो इसी जगत के प्राणी थे, मुट्ठ मारने की ट्रेनिंग तो सबसे
ज्यादा जरूरी थी। आंटी ने बताया था कि जो लोग किशोर अवस्था में ही
हस्तमैथुन शुरू कर देते हैं वे बड़ी आयु तक सम्भोग कार्य में सक्षम बने
रहते हैं। उन्हें बुढ़ापा भी देरी से आता है और चेहरे पर झुर्रियाँ भी कम
पड़ती हैं।
कई बार लड़के आपस में मिलकर मुट्ठ मारते हैं वैसे ही लड़कियां भी आपस में
एक दूसरे की योनि को सहला देती हैं और कई बार तो उसमें अंगुली भी करती हैं।
मुझे बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार तो प्रेमी-प्रेमिका
(पति-पत्नी भी) आपस में एक दूसरे की मुट्ठ मारते हैं। मेरे पाठकों और
पाठिकाओं को तो जरूर अनुभव रहा होगा ? एक दूसरे की मुट्ठ मारने का अपना ही
आनंद और सुख होता है। कई बार तो ऐसा मजबूरी में किया जाता है। कई बार जब नव
विवाहिता पत्नी की माहवारी चल रही हो और वो गांड मरवाने से परहेज करे तो
बस यही एक तरीका रह जाता है अपने आप को संतुष्ट करने का।
खैर ! अब चौथे सबक की तैयारी थी। आंटी ने बताया था कि अगर अकेले में मुट्ठ मारनी हो तो हमेंशा शीशे के सामने खड़े होकर मारनी चाहिए और अगर कोई साथी के साथ करना हो तो पलंग पर करना अच्छा रहता है। अब आंटी ने मेरी पेंट उतार दी। आंटी के सामने मुझे नंगा होने में शर्म आ रही थी। मेरा 6 इंच लम्बा लंड तो 120 डिग्री पर पेट से चिपकाने को तैयार था। उसे देखते ही आंटी बोली,”वाह…. तुम्हारा मिट्ठू तो बहुत बड़ा हो गया है ?”
“पर मुझे तो लगता है मेरा छोटा है। मैंने तो सुना है कि यह 8-9 इंच का होता है ?”
“अरे नहीं बुद्धू आमतौर पर हमारे देश में इसकी लम्बाई 5-6 इंच ही होती है। फालतू किताबें पढ़ कर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। एक बात तुम्हें सच बता रही हूँ- यह केवल भ्रम ही होता है कि बहुत बड़े लिंग से औरत को ज्यादा मज़ा आएगा। योनि के अन्दर केवल 3 इंच तक ही संवेदनशील जगह होती है जिसमें औरत उत्तेजना महसूस करती है। औरत की संतुष्टि के लिए लिंग की लम्बाई और मोटाई कोई ज्यादा मायने नहीं रखती। सोचो जिस योनि में से एक बच्चा निकल सकता है उसे किसी मोटे या पतले लिंग से क्या फर्क पड़ेगा। लिंग कितना भी मोटा क्यों ना हो योनि उसके हिसाब से अपने आप को फैलाकर लिंग को समायोजित कर लेती है। तुमने देखा होगा गधे का लंड कितना बड़ा होता है लेकिन गधी उसे भी बिना किसी रुकावट के ले पूरा अन्दर ले लेती है।”
“फिर भी एक बात बताओ- अगर मुझे अपना लिंग और बड़ा और मोटा करना हो तो मैं क्या करूं ? मैंने कहीं पढ़ा था कि अपने लिंग पर रात को शहद लगा कर रखा जाए तो वो कुछ दिनों में लम्बा और सीधा भी हो जाता है। मेरा लिंग थोड़ा सा टेढ़ा भी तो है ?”
“देखो कुदरत ने सारे अंग एक सही अनुपात में बनाए हैं। जैसे हर आदमी का कद (लम्बाई) अपनी एक बाजू की कुल लम्बाई से ढाई गुना बड़ा होता है। हमारे नाक की लम्बाई हमारे हाथ के अंगूठे जितनी बड़ी होती है। आदमी और लिंग की लम्बाई वैसे तो वंशानुगत होती है पर लम्बाई बढ़ाने के लिए रस्सी कूदना और हाथों के सहारे लटकाना मदद कर सकता है। लिंग की लम्बाई बढाने के लिए तुम एक काम कर सकते हो- नारियल के तेल में चुकंदर का रस मिलकर मालिश करने से लिंग पुष्ट हो जाता है। और यह शहद वाली बात तो मिथक है। यह टेढ़े लिंग वाली बात तुम जैसे किशोरों की ही नहीं, हर आयु वर्ग में पाई जाने वाली भ्रान्ति है। लिंग टेढ़ा होना कोई बीमारी नहीं है। कुदरती तौर पर लिंग थोड़े से टेढ़े हो सकते हैं और उसका झुकाव ऊपर नीचे दाईं या बाईं ओर भी हो सकता है। सम्भोग में इन बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता। ओह… तुम भी किन फजूल बातों में फंस गए ?”
और फिर आंटी ने भी अपनी जीन उतार दी। अब तो वो नीले रंग की एक झीनी सी पैंटी में थी। ओह … डबल रोटी की तरह एक दम फूली हुई आगे से बिलकुल गीली थी। पतली सी पैंटी के दोनों ओर काली काली झांट भी नज़र आ रही थी। गोरी गोरी मोटी पुष्ट जांघें केले के पेड़ की तरह। जैसे खजुराहो के मंदिरों में बनी मूर्ति हो कोई। मैं तो हक्का बक्का उस हुस्न की मल्लिका को देखता ही रह गया। मेरा तो मन करने लगा था कि एक चुम्बन पैंटी के ऊपर से ही ले लूं पर आंटी ने कह रखा था कि हर सबक सिलसिलेवार (क्रमबद्ध) होने चाहियें कोई जल्दबाजी नहीं, अपने आप पर संयम रखना सीखो। मैं मरता क्या करता अपने होंठों पर जीभ फेरता ही रह गया।
आंटी ने बड़ी अदा से अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखे और अपनी पैंटी को नीचे खिसकाने लगी।
गहरी नाभि के नीचे का भाग कुछ उभरा हुआ था। पहले काले काले झांट नजर आये और फिर स्वर्ग के उस द्वार का वो पहला नजारा। मुझे तो लगा जैसे मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आ जाएगा। मैं तो उनकी चूत को देखता ही रह गया। काले घुंघराले झांटों के झुरमुट के बीच मोटे मोटे बाहरी होंठों वाली चूत रोशन हो गई। उन फांकों का रंग गुलाबी तो नहीं कहा जा सकता पर काला भी नहीं था। कत्थई रंग जैसे गहरे रंग की मेहंदी लगा रखी हो। चूत के अन्दर वाले होंठ तो ऐसे लग रहे थे जैसे किसी चिड़िया की चोंच हो। जैसे किसी ने गुलाब की मोटी मोटी पंखुड़ियों को आपस में जोड़ दिया हो। दोनों फांकों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ। चूत का चीरा कोई 4 इंच का तो जरूर होगा। मुझे आंटी की चूत की दरार में ढेर सारा चिपचिपा रस दिखाई दे रहा था जो नीचे वाले छेद तक रिस रहा था। उन्होंने पैंटी निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दी। पहले तो मैं कुछ समझा नहीं फिर मैंने हंसते हुए उनकी पैंटी को अपनी नाक के पास ले जा कर सूंघा। मेरे नथुनों में एक जानी पहचानी मादक महक भर गई। जवान औरत की चूत से बड़ी मादक खुशबू निकलती है। मैंने कहीं पढ़ा था कि माहवारी आने से कुछ दिन पहले और माहवारी के कुछ दिनों बाद तक औरत के पूरे बदन से बहुत ही मादक महक आती है जो पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करती है। हालांकि यह चूत कुंवारी नहीं थी पर अभी भी उसकी खुशबू किसी अनचुदी लौंडिया या कुंवारी चूत से कतई कम नहीं थी।
हम दोनों पलंग पर बैठ गए। अब आंटी ने मेरे लंड की ओर हाथ बढ़ाया। मेरे शेर ने उन्हें सलामी दी। आंटी तो उसे देख कर मस्त ही हो गई। मेरा लंड अभी काला नहीं पड़ा था। आप तो जानते हैं कि लंड और चूत का रंग लगातार चुदाई के बाद ही काला पड़ता है। उन्होंने पलंग के पास रखे स्टूल पर पड़ी एक शीशी उठाई और उसे खोल कर उस में से एक लोशन सा निकाला और मेरे लंड पर लगा दिया। मुझे ठंडा सा अहसास हुआ। आंटी ने बताया कि कभी भी मुट्ठ मारते समय क्रीम नहीं लगानी चाहिए। थूक या तेल ही लगाना चाहिए या फिर कोई पतला लोशन। मेरे कुछ समझ में नहीं आया पर आंटी तो पूरी गुरु थी और मेरी ट्रेनिंग चल रही थी मुझे तो उनका कहना मानना ही था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी चूत की फांकों पर भी लगाया और अंगुली भर कर अन्दर भी लगा लिया। एक हाथ की दोनों अँगुलियों से उन्होंने अपनी चूत की फांकों को चौड़ा किया। तितली के पंखों की तरह दोनों पंखुड़ियां खुल गई। अन्दर से एक दम लाल काम रस से सराबोर चूत ऐसे लग रही थी जैसे कोई छोटी सी बया (एक चिड़िया) ने अपने नन्हे पंख खोल दिए हों। मटर के दाने जितनी लाल रंग की मदनमणि के एक इंच नीचे मूत्र छिद्र टूथपिक जितना बड़ा। उसके ठीक नीचे स्वर्ग का द्वार तो ऐसे लग रहा था जैसे कस कर बंद कर दिया हो काम रस में भीगा हुआ। जब उन्होंने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई तो उनकी गांड का बादामी रंग का छेद भी नज़र आने लगा वह तो कोई चव्वनी के सिक्के से ज्यादा बड़ा कत्तई नहीं था। वह छेद भी खुल और बंद हो रहा था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी गांड के छेद पर भी लगाया। जब उन्होंने थोड़ा सा लोशन मेरी भी गांड पर लगाया तो मैं तो उछल ही पड़ा।
आंटी ने बाद में समझाया था कि मुट्ठ मारते समय गांड की अहम् भूमिका होती है जो बहुत से लोगों को पता ही नहीं होती। अब मेरे हैरान होने की बारी थी। उन्होंने बताया कि चूत में अंगुल करते समय और लंड की मुट्ठ मारते समय अगर एक अंगुली पर क्रीम या तेल लगा कर गांड में भी डाली जाए तो मुट्ठ मारने का मज़ा दुगना हो जाता है। मैंने तो ये पहली बार सुना था।
पहले मेरी बारी थी। उन्होंने मुझे चित्त लेटा दिया और अपना एक पैर ऊपर की ओर मोड़ने को कहा। फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने नाजुक हाथों में ले लिया। मेरा जी कर रहा था कि आंटी उसे एक बार मुंह में ले ले तो मैं धन्य हो जाऊं। पर आंटी तो इस समय अपनी ही धुन में थी। उन्होंने मेरे लंड के सुपाड़े की टोपी नीचे की और प्यार से नंगे सुपाड़े को सहलाया। उन्होंने बे-काबू होते लंड की गर्दन पकड़ी और ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। वो मेरे पैरो के बीच अपने घुटने मोड़ कर बैठी थी। दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर थोड़ा सा लोशन लगाकर धीरे से मेरी गांड के छेद पर लगा दी। पहले अपनी अंगुली उस छेद पर घुमाई फिर दो तीन बार थोड़ा सा अन्दर की ओर पुश किया। मैंने गांड सिकोड़ ली। आंटी ने बताया कि गांड को बिलकुल ढीला छोड़ दो तुम्हें बिलकुल दर्द नहीं होगा। और फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। 3-4 हलके पुश के बाद तो जैसे मेरी गांड रवां हो गई। उनकी पूरी की पूरी अंगुली मेरी गांड के अन्दर बिना किसी रुकावट और दर्द के चली गई। मैं तो अनोखे रोमांच से जैसे भर उठा। दूसरे हाथ की नाज़ुक अँगुलियों से मेरे लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे करती जा रही थी। मैं तो बस आँखें बंद किये किसी स्वर्ग जैसे आनंद में सराबोर हुआ सीत्कार पर सीत्कार किये जा रहा था। सच पूछो तो मुझे लंड की बजाय गांड में ज्यादा मज़ा आ रहा था। इस अनूठे आनंद से मैं अब तक अपरिचित था। आंटी ने अपना हाथ रोक लिया।
“ओह … आंटी अब रुको मत जोर जोर से करो … जल्दी …हईई।… ओह …”
“क्यों … मज़ा आया ?” आंटी ने पूछा। उनकी आँखों में भी अनोखी चमक थी।
“हाँ … बहुत मज़ा आ रहा है प्लीज रुको मत !”
आंटी फिर शुरू हो गई। कोई 5-6 मिनट तो जरूर लगे होंगे पर समय की किसे परवाह थी। मुझे लगा कि अब मेरा पानी निकलने वाला है। आंटी ने एक हाथ से मेरे दोनों अंडकोष जोर से पकड़ लिए। मुझे तो लगा जैसे किसी ने पानी की धार एक दम से रोक ही दी है। ओह … कमाल ही था। मेरा स्खलन फिर 2-3 मिनट के लिए जैसे रुक गया। आंटी का हाथ तेज तेज चलने लगा और जैसे ही उन्होंने मेरे अंडकोष छोड़े मेरे लंड ने पिचकारी छोड़ दी। पहली पिचकारी इतनी जोर से निकली थी कि सीढ़ी आंटी में मुंह पर पड़ी। उन्होंने अपनी जीभ से उसे चाट लिया। और फिर दन-दन करता मेरा तो जैसे लावा ही बह निकला। मेरे पेट और जाँघों को तर करता चला गया। इस आनंद का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता केवल महसूस ही किया जा सकता है।
और अब आंटी की मुट्ठ मारने की बारी थी। आंटी ने बताया कि चूत की मुट्ठ मारते समय हाथों के नाखून कटे होने चाहियें और हाथ साबुन और डिटोल पानी से धुले। मैंने बाथरूम में जाकर अच्छे से सफाई की। नाखून तो कल ही काटे थे। जब मैं वापस आया तो आंटी पलंग पर उकडू बैठी थी। मुझे बड़ी हैरानी हुई। मेरा तो अंदाज़ा था कि वो चित लेटी हुई अपनी चूत में अंगुली डाले मेरा इंतज़ार कर रही होगी।
मुझे देख कर आंटी बोली,”अपने एक हाथ में थोड़ा सा लोशन लगा कर मेरी मुनिया को प्यार से सहलाओ !”
मैंने एक हाथ की अंगुलियों पर ढेर सारा लोशन लगा लिया और उकडू बैठी आंटी की चूत पर प्यार से फिराने लगा। जैसे कोई शहद की कटोरी में मेरी अंगुलियाँ धंस गई हों। चूत एक दम पनियाई हुई थी। रेशमी, मुलायम, घुंघराले, घने झांटों से आच्छादित चूत ऐसे लग रही थी जैसे कोई ताज़ा खिला गुलाब का फूल दूब के लान के बीच पड़ा हो। मैंने ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर अंगुली फिराई। किसी चूत को छूने का मेरा ये पहला अवसर था। सच पूछो तो मैंने अपने जीवन में आज पहली बार के इतनी नज़दीक से किसी नंगी चूत का दर्शन और स्पर्श किया था। मुझे हैरानी हो रही थी कि आंटी ने अपनी झांटे क्यों नहीं काटी ? हो सकता है इसका भी कोई कारण रहा होगा।
मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मेरा लंड फिर कुनमुनाने लगा था। मेरा जी किया एक चुम्बन इस प्यारी सी चूत पर ले ही लूं। मैं जैसे ही नीचे झुका आंटी बोली “खबरदार अभी चुम्मा नहीं !”
मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैंने सेक्सी कहानियों में पढ़ा था कि औरतें अपनी चूत का चुम्मा देकर तो निहाल ही हो जाती है पर आंटी तो इसके उलट जा रही है। खैर कोई बात नहीं जैसा आंटी चाहेंगी वैसा ही करने की मजबूरी है। मैंने उसकी मदनमणि (भगनासा) को जब छुआ तो आंटी को एक झटका सा लगा और उनके मुंह से सीत्कार सी निकल गई। मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था। मैं पूरी तरह उनकी चूत को नहीं देख पा रहा था। आंटी अब चित लेट गई और उन्होंने एक घुटना थोड़ा मोड़ कर ऊपर उठा लिया। मैं उनकी दोनों जाँघों के बीच आ गया और उनका एक पैर अपने कन्धों पर रख लिया। उन्होंने एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया था। हाँ अब ठीक था।
मैंने पहले उनकी चूत को ऊपर से सहलाया और फिर धीरे धीरे उनकी पंखुड़ियों के चौड़ा किया। काम रस से सराबोर रक्तिम फांके फूल कर मोटी मोटी हो गई थी। मैंने धीरे से एक अंगुली उनकी चूत के छेद में डाल दी। आंटी थोड़ा सा चिहुंकी। अंगुली पर लोशन लगा होने और चूत गीली होने के कारण अन्दर चली गई। आंटी की एक मीठी सीत्कार निकल गई और मैं रोमांच से भर उठा।
मैंने धीरे धीरे अंगुली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी। आंटी ओईइ … या।… हाय।.. ईई … करने लगी। उनकी चूत से चिकनाई सी निकल कर गांड के भूरे छेद को भी तर करती जा रही थी। मुझे लगा आंटी को जरूर गांड पर यह मिश्रण लगने से गुदगुदी हो रही होगी। मैंने धीरे से अपनी अंगुली चूत से बाहर निकाली और जैसे ही उनकी गांड के छेद पर फिराई तो आंटी ने अपना पैर मेरे कंधे से नीचे कर लिया और जोर से चीखी,”ओह … चंदू ! ये अंगुली वहाँ नहीं ! रुको, मुझे पूछे बिना कोई हरकत मत करो !” बड़ी हैरानी की बात थी कि आंटी ने तो खुद बताया था कि मुट्ठ मारते समय एक अंगुली गांड में भी डालनी चाहिए अब मना क्यों कर रही हैं ?
“अपना दूसरा हाथ इस्तेमाल करो और देखो उस अंगुली में लोशन नहीं अपना थूक लगाओ। थूक लगाने से अपनापन और प्रेम बढ़ता है।”
अब मेरे समझ में आ गया। मैंने अपने दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर ढेर सारा थूक लगाया। उनकी गांड पर तो पहले से ही लोशन लगा था। हलके हलके 3-4 पुश किये तो मेरी अंगुली आंटी की नरम गांड में चली गई। वह क्या खुरदरी सिलवटें थी। मेरी अंगुली जाते ही फ़ैल कर नरम मुलायम हो गई बिलकुल रवां। धीरे धीरे अपनी अंगुली उनकी गांड में अन्दर बाहर करने लगा। एक अनोखा आनंद मिल रहा था मुझे भी और आंटी को भी। वो तो अब किलकारियाँ ही मारने लगी थी। इस चक्कर में मैं तो उनकी चूत को भूल ही गया था। आंटी ने जब याद दिलाया तब मुझे ध्यान आया। अब तो मेरी हाथों की दोनों अंगुलियाँ आराम से उनके दोनों छेदों में अन्दर बाहर हो रही थी। बीच बीच में मैं उनकी मदनमणि के दाने को भी अपनी चिमटी में पकड़ कर भींच और मसल रहा था। आंटी का शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और उन्होंने एक किलकारी मारी। मुझे लगा कि उनकी चूत और ज्यादा गीली हो गई है। अब मैंने दो अंगुलियाँ उनकी चूत में डाल दी। मेरी दोनों अंगुलियाँ गीली हो गई थी। मेरा जी तो कर रहा था कि मैं अपनी अंगुली चाट कर देखूं कि उसका स्वाद कैसा है पर मजबूरी थी। बिना आंटी की इजाजत के यह नहीं हो सकता था। आंटी की आँखें बंद थी। मैंने चुपके से एक अंगुली अपने मुंह में डाल ली। ओह … खट्टा मीठा और नमकीन सा स्वाद तो तकरीबन वैसा ही था जो मैंने 2-3 दिन पहले उनकी पैंटी से चखा था।
मैंने अक्सर सेक्स कहानियों में पढ़ा था कि औरतों की चूत से भी काफी पानी निकलता है। पर आंटी की चूत तो बस गीली सी हो गई थी कोई पानी-वानी नहीं निकला था। आंटी ने मुझे बाद में समझाया था कि औरत जब उत्तेजित होती हैं तो योनि मार्ग में थोड़ी चिकनाहट सी आ जाती है। और जब चरमोत्कर्ष पर पहुँचती हैं तो उन्हें केवल पूर्ण तृप्ति की अनुभूति होती है। पुरुषों की तरह ना तो गुप्तांग में कोई संकुचन होता है और ना कोई वीर्य जैसा पदार्थ निकलता है।
आंटी ने मुझे बाद में बताया कि कई बार करवट के बल लेट कर (69 पोजीशन) में भी एक दूसरे की मुट्ठ मारी जा सकती है। इसमें दोनों को ही बड़ा आनंद मिलता है।
चौथा सबक पूरा हो गया था। मैंने और आंटी ने अपने अंग डिटोल और साबुन से धोकर कपड़े पहन लिए। हाँ हम दोनों ने ही एक दूसरे के अंगों को साफ़ किया था। आंटी ने मुझे शहद मिला गर्म दूध पिलाया और खुद भी पीया। उन्होंने बताया था कि ऐसा करने से खोई ताकत आधे घंटे में वापस मिल जाती है। अगला सबक दूसरे दिन था। शाम के 7 बज रहे थे मैं घर आ गया।
5. प्रेम अंगों को चूमना और चूसना
आंटी ने पहले ही बता दिया था कि प्रेम (सेक्स) में कुछ भी गन्दा नहीं होता। मानव शरीर के सारे अंग जब परमात्मा ने ही बनाए हैं तो इनमें कोई गन्दा कैसे हो सकता है। मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओं, अब मुनिया और मिट्ठू (लंड और चूत) की चुसाई का सबक सीखना था। मेरी बहुत सी पाठिकाएं तो शायद नाक-भोंह सिकोड़ रही होंगी। छी … छी … गंदे बच्चे…. पर मेरा दावा है कि इस सबक को मेरे साथ पढ़ लेने के बाद आप जरूर इसे आजमाना चाहेंगी।
हर बच्चे की एक जन्मजात आदत होती है जो चीज उसे अच्छी और प्यारी लगती है उसे मुंह में ले लेता है। फिर इन काम अंगों को मुंह में लेना कौन सी बड़ी बात है। यह तो नैसर्गिक क्रिया है। आंटी ने तो बताया था कि वीर्य पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण तो यही है कि अपने किसी वैश्या (गणिका) को चश्मा लगाये नहीं देखा होगा। शास्त्रों में तो इसे अमृत तुल्य कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो वीर्य और कामरस में कई धातुएं और विटामिन्स होते हैं तो फिर ऐसी चीज को भला व्यर्थ क्यों जाने दें। अगर शुरू शुरू में लंड चूसने में थोड़ी ग्लानि सी महसूस हो या अच्छा ना लगे तो लंड और चूत पर पर शहद या आइसक्रीम लगा कर चूसना चाहिए। ऐसा करने से इनका रंग भी काला नहीं पड़ता। उरोजों पर शहद लगा कर चूसने से उनका आकार सुडौल बनता है। यह ऐसा ही है जैसे गांड मरवाने से नितम्ब चौड़े और सुडौल बनते हैं।
ज्यादातर महिलायें मुख मैथुन पसंद करती हैं। इन में गुप्तांग भी शामिल हैं पर स्त्री सुलभ लज्जा के कारण वो पहल नहीं करती। वो इस कृत्य को बहुत ही अन्तरंग और आत्मीय नज़रिए से देखती हैं। इसलिए पूर्ण प्रेम के दौरान इसका बहुत महत्व है। प्रेमी को यह जानने की कोशिश करते रहना चाहिए कि उसकी प्रेमिका को कौन सा अंग चुसवाने में अधिक आनंद मिलता है।
आंटी ने बताया था कि गुप्तांगों की चुसाई करते समय इनकी सफाई और स्वछता का ध्यान रखना बहुत जरुरी है। झांट अच्छी तरह कटे हों और डिटोल और साबुन से इन्हें अच्छी तरह धो लिया गया हो। मेरे तो खैर रोयें ही थे मैंने पहली बार अपने झांट तरीके से काटे थे। आज हमें नाईट शिफ्ट में काम करना था। घर पर बता दिया था कि मैं 3-4 दिन रात में आंटी के पास ही पढ़ाई करूंगा। परीक्षा सिर पर है और सबक (पाठ) बहुत मुश्किल हैं। घरवाले बेचारे मेरी इस पढ़ाई के बारे में क्या जानते थे ?
रात के कोई 10 बजे होंगे। मैं और आंटी दोनों नंग धडंग पलंग पर लेटे थे। हमने अपने गुप्तांगो को अच्छे से धो लिया था। और हलका सा सरसों का तेल भी लगा लिया था। मेरे सुपाड़े पर आंटी ने शहद लगा दिया था और अपनी चूत पर थोड़ी सी आइसक्रीम। वैसे मुझे आइसक्रीम की कोई जरुरत नहीं थी। आप समझ ही रहे होंगे। आंटी की चूत का जलवा तो आज देखने लायक था। बिलकुल क्लीन शेव। जो चूत कल तक काली सी लग रही थी आज तो चार चाँद लग रही थी। बिलकुल गोरी चिट्टी गुलाबी। ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने मोटे अक्षरों में अंग्रेजी का डब्लू (w) लिख दिया हो। उसके होंठ जरूर थोड़े श्यामल रंग के लग रहे थे पर इस जन्नत के दरवाजे के रंग से मुझे क्या लेना देना था। स्वाद तो एक जैसा ही मिलेगा फिर रंग काला हो या गोरा क्या फर्क पड़ता है।
आंटी ने बताया लिंग या योनि को चूसने के कई आसन और तरीके होते हैं पर अगर लिंग और योनि दोनों की एक साथ चुसाई करनी हो तो 69 की पोजिशन ही ठीक रहती है। यह 69 पोजिशन भी दो तरह की होती है। एक तो आमने सामने करवट के बल लेट कर और दूसरी प्रेमी नीचे और प्रेमिका उसके मुंह पर अपनी योनि लगा कर अपना मुंह उसके पैरों की ओर लिंग के ठीक सामने कर लेती है। इस आसन में दोनों को दुगना मज़ा आता है। अरे भाई प्रेमिका की महारानी (गांड) भी तो ठीक उसकी आँखों के सामने होती है ना ? उसके खुलते बंद होते छेद का दृश्य तो जानमारू होता ही है कभी कभार उसमें भी अगर अंगुली कर दी जाए तो मज़ा दुगना क्या तिगुना हो जाता है।
आइये अब चूत का प्रथम चुम्बन लेते हैं। आंटी ने मुझे चित्त लेट जाने को कहा। आंटी ने बड़ी अदा से अपने दोनों घुटने मेरे सिर के दोनों ओर कर दिए और अपना मुंह मेरे लंड के ठीक ऊपर कर लिया। मैंने उनकी मोटी मोटी संगेमरमर जैसी कसी हुई जाँघों को कस कर पकड़ लिया। चूत कोई 2″ ही तो दूर रह गई थी मेरे होंठों से। आंटी ने बताया था कि कोई जल्दी नहीं। मैंने होले से अपनी जीभ की टिप उसकी फांकों पर रख दी। आंटी की तो एक सीत्कार क्या हलकी चीख ही निकल गई। किसी मर्द की जीभ का दो साल के बाद उनकी चूत पर यह पहला स्पर्श था। मैंने नीचे से ऊपर अपनी जीभ फिराई गांड के सुनहरे छेद तक और फिर ऊपर से नीचे तक।
मेरा मिट्ठू तो किसी चाबी वाले खिलौने की तरह उछल रहा था। उसने तो प्री-कम के टुपके छोड़ने शुरू कर दिए थे। आंटी ने पहले मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और फिर अदा से अपने सिर के बालों को एक झटका दिया। बाल एक ओर हो गए तो उन्होंने सुपाड़े पर आये प्री-कम पर अपनी जीभ टिकाई। शहद और कम दोनों को उन्होंने चाट लिया। फिर अपनी जीभ सुपाड़े पर फिराई। ठीक मेरे वाले अंदाज़ में लंड के ऊपर से नीचे तक। फिर जब उन्होंने मेरे अन्डकोषों को चाटा तो मैंने भी उनकी गांड के सुनहरे छेद पर अपनी जीभ की नोक लगा दी। गांड का छेद तो कभी खुल रहा था कभी बंद हो रहा था। वो तो जैसे मुझे ललचा ही रहा था। मैंने थूक से उसे तर कर दिया था। मैंने अपनी एक अंगुली उसमें डालने की कोशिश की पर वो मुझे असुविधाजनक लगा तो मैंने अपने अंगूठे पर थूक लगा कर गच्च से आंटी की गांड के छेद में डाल दिया।
ऊईइ माँ….. कहते हुए आंटी ने मेरे दोनों अन्डकोशों को अपने मुंह में भर लिया। थे भी कितने बड़े जैसे दो लिच्चियाँ हों। आईला….. इस परम आनंद को तो मैं मरते दम तक नहीं भूल पाऊंगा। फिर उन्होंने उन गोलियों को मुंह के अन्दर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया। मेरे लंड का बुरा हाल था। बेचारा मुर्गे की गर्दन की तरह आंटी के बिल्ली जैसे पंजों में दबा था। अब आंटी ने उसका सुपाड़ा अपने होंठों में लेकर दबाया। एक बार दांत गड़ाए जैसे मुझे इशारा कर रही हो कि तुम भी ऐसा ही करो।
मैं भला क्यों चूकता। मैंने उनकी दोनों फांकों को (छोटी छोटी सोने की बालियों समेत) गप्प से अपने मुंह में भर कर एक जोर की चुस्की लगाई। आंटी तो ऐसे जोर लगा रही थी जैसे पूरी चूत ही मेरे मुंह में घुसा देना चाहती हो। आंटी का सारा शरीर ही रोमांच से कांपने लगा था। मैंने होले से जब अपने दांत उनकी फांकों में गड़ाए तो उनकी एक किलकारी ही निकल गई और उसके साथ ही उनकी चूत से नमकीन और लिजलिजा सा रस मेरे मुंह में भर गया। आइसक्रीम में मिला उनका खट्टा, मीठा और कसैला सा कामरस मैं तो चाटता ही चला गया। आह.. क्या मादक गंध और स्वाद था मैं तो निहाल ही हो गया।
आंटी ने मेरे लंड को मुंह में भर लिया और लोलीपोप की तरह चूसने लगी। मैंने अपनी जीभ से उनकी चूत की फांकों को चौड़ा किया और उनकी मदनमणि को टटोला। जैसे कोई मोटा सा अनार या किशमिश का फूला हुआ सा दाना हो। मैंने उस पर पहले तो जीभ फिराई बाद में उसे दांतों से दबा दिया। आंटी की हालत तो पहले से ही ख़राब थी। उन्होंने कहा “ओह चंदू…. जोर से चूसो… ओह… मैं तो गई। ऊईई… माँ ……………”
और उसके साथ ही उनकी चूत फिर गीली हो गई। मेरी तो जैसे लाटरी ही लग गई। उस अमृत को भला मैं व्यर्थ कैसे जाने देता। मैं तो चटखारे लेता हुआ उसे चाटता ही चला गया। आंटी धम्म से एक ओर लुढ़क गई। उनकी आँखें बंद थी और साँसें जोर जोर से चल रही थी। मैं हक्का बक्का उन्हें देखता ही रह गया। पता नहीं ये क्या हो गया।
कोई 3-4 मिनट के बाद आंटी ने आँखें खोली और मुझे से लिपट गई। मेरे होंठों पर तड़ातड़ 4-5 चुम्बन ले लिये “ओह मेरे चंदू ! मेरे प्रेम ! मेरे राजा ! तुमने तो कमाल ही कर दिया। आज मैं तो तृप्त ही हो गई। उन्ह… पुच …” एक और चुम्मा लेकर वो फिर मेरे मुंह के ऊपर अपनी चूत लगा कर बैठ गई। उन्होंने अपनी चूत की दोनों फांकों पर लगी सोने की बालियों को दोनों हाथों से चौड़ा किया और अपनी चूत मेरे होंठों पर रख दी। मैं तो इस नए अनूठे अनुभव से जैसे निहाल ही हो गया। चूत के अन्दर से आती पसीने, पेशाब और जवानी की खुशबू से मैं तो सराबोर ही हो गया। मैंने अपनी जीभ को नुकीला किया और गच्च से उनकी चूत के छेद में डाल दिया और अन्दर बाहर करने लगा। आंटी तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी और अपने नितम्ब उछाल उछाल कर जोर जोर से बड़बड़ा रही थी,”हाई … जानू ऐसे ही चूसो … या…. ओह …. और जोर से और जोर से …”
कोई 4-5 मिनट तक मैं तो मजे ले ले कर उनकी चूत को चूसता ही रहा। बीच बीच में उनके नितम्बों को सहलाता कभी उनकी गांड के छेद पर अंगुली फिराता। अब आंटी कितना ठहरती। एक बार फिर उनको चरमोत्कर्ष हुआ और फिर वो एक ओर लुढ़क गई।
थोड़ी देर वो आँखें बंद किये लेटी रही और फिर मेरे पैरो के बीच में आ गई। पहले तो मैं कुछ समझा नहीं बाद में मुझे होश आया कि अब आंटी नई अदा से मेरा लंड चूसेगी। मैं चित्त लेटा था। आंटी के खुले बाल मेरे पेट और जाँघों पर गुदगुदी कर रहे थे। पर आंटी इन सब बातों से बे परवाह मेरे लंड को गप्प से पूरा अन्दर लेकर चूसने लगी। मैंने सुना था कि ज्यादातर औरतें लंड को पूरा अपने मुंह में नहीं लेती पर आंटी तो उसे जड़ तक अन्दर ले रही थी। पता नहीं उसने कहाँ से इसका अभ्यास किया था। कभी वो मेरे लंड को पूरा बाहर निकाल देती और उस पर जीभ फिराती कभी पूरा मुंह में ले लेती। कभी वो सुपाड़े को दांतों से दबाती और फिर उसे चूसने लगती। कभी मेरे लंड को अपने मुंह से बाहर निकाल कर मेरे अन्डकोशों को अपने मुंह में ले लेती और उन्हें चूम लेती और फिर दोनों अण्डों को पूरा मुंह में लेकर चूसने लगती। साथ में मेरे लंड पर हाथ ऊपर नीचे फिराती। मेरे आनंद का पारावार ही नहीं था।
पता नहीं इस चूसा चुसाई में कितना समय बीत गया। हाल में लगी घड़ी ने जब 11 बार टन्न टन्न किया तब हमें ध्यान आया कि हमें पूरा एक घंटा हो गया है। मैं भला कितनी देर ठहरता। मैंने आंटी को कहा कि मैं अब जाने वाला हूँ तो वो एक ओर हट गई। मैं कुछ समझा नहीं। मुझे लगा वो मेरा जूस नहीं पीना चाहती। पर मेरा अंदाज़ा गलत था। वो झट से चित लेट गई और मेरे लंड को अपने मुंह की ओर खींचने लगी। मैं उकडू होकर उनके मुंह के ऊपर आ गया। मेरे नितम्ब अब उनकी छाती पर थे और उनके नाजुक उरोजों को दबा रहे थे। मैंने आंटी के बालों को पकड़ लिया और और उसके सिर को दबाते हुए अपना लंड उसके मुंह में ठेलने की कोशिश करने लगा। मेरा लंड उसके गले तक जा पंहुचा था। आंटी को शायद सांस लेने में तकलीफ हो रही थी मगर फिर भी उसने मेरे लंड को अपने मुंह में समायोजित कर कर लिया और खूब जोर जोर से मेरे आधे से अधिक लंड को अपने मुंह में भर कर मेरे अन्डकोशों की गोलियों के साथ खेलते हुए चूसने लगी। वो कभी उन्हें सहलाती और कभी जोर से भींच देती। मेरी सीत्कार निकलने लगी थी। “ऊईइ … मेरी जा… आ… न… मेरी चान्दनी…. ईईइ…. और जोर से चूसो और जोर से ओईइ …… या आ …… ” और उसे साथ ही मेरे मिट्ठू ने भी पिछले एक घंटे से उबलते लावे को आंटी के मुंह में डालना शुरू कर दिया। आंटी ने मेरे अण्डों को छोड़ कर मेरे नितम्ब ऐसे भींच लिए कि अगर मैं जरा सा भी इधर उधर हिला तो कहीं एक दो बूँद नीचे ना गिर जाएँ। आंटी तो पूरी गुरु थी। पूरा का पूरा जूस गटागट पी गई।
फिर लाईट बंद करके एक दूसरे को बाहों में जकड़ कर हम दोनों सो गए। पता नहीं चला कब नींद के आगोश में चले गए।
6. सम्भोग (प्रेम मिलन)
काम विज्ञान के अनुसार सम्भोग का अर्थ होता है समान रूप से भोग अर्थात स्त्री और पुरुष दोनों सक्रिय होकर सामान रूप से एक दूसरे का भोग करें। नियमित रूप से सुखद सम्भोग करने से बुढ़ापा जल्दी नहीं आता और स्त्रियों में रजोनिवृति देरी से होती है और हड्डियों बीमारियाँ भी नहीं होती। दाम्पत्य जीवन में मधुर मिलन की पहली रात को सुहागरात कहते हैं। इस रात के मिलन की अनेक रंगीन व मधुर कल्पनाएँ दोनों के मन में होती है। और आज तो जैसे हमारा मधुर मिलन ही था। आंटी ने बताया था कि आज की रात हमारे ख़्वाबों की रात होगी जैसे तुम किसी परी कथा के राज कुमार होगे और मैं तुम्हारे ख़्वाबों की शहजादी। मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे आज की रात दीवानों की तरह प्रेम करो। मैं तुम्हारे आगोश में आकर सब कुछ भूल जाना चाहती हूँ मेरे प्रियतम। ये चांदनी तो तुम्हारे प्रेम के बिना मर ही जायेगी। आंटी ने बताया था कि इस संगम को हम चुदाई जैसे गंदे नाम से कदापि नहीं बोलेंगे हम इसे अपना मधुर मिलन ही कहेंगे। अब मैं यह सोच रहा था कि इसे सुहागरात कहो या प्रेम मिलन होनी तो चूत की चुदाई ही है, क्या फर्क पड़ता है।
आज तो घूँघट उठाना था। अरे बाबा सिर का नहीं चूत का। मैं तो चाहता था कि बस जाते ही उन्हें दबोच कर अपना मिट्ठू उनकी मुनिया में डाल ही दूं। पर आंटी ने बताया था कि सम्भोग मात्र शरीर व्यापार नहीं है। स्त्री पुरुष के सच्चे यौन संबंधों का अर्थ मात्र दो शरीरों का मिलन ही नहीं दो आत्माओं का भावनात्मक प्रेम और लगाव भी अति आवश्यक होता है।
मैंने आज सिल्क का कामदार कुरता और चूड़ीदार पाजामा पहना था। आंटी तो पूरी दुल्हन ही बनी पलंग पर बैठी थी। सुर्ख लाल जोड़े में वो किसी नवविवाहिता से कम नहीं लग रही थी। कलाइयों में 9-9 चूड़ियाँ , होंठों पर लिपस्टिक, हाथों में मेहंदी, बालों में गज़रा। पूरे कमरे में गुलाब के इत्र की भीनी भीनी महक और मध्यम संगीत। पलंग के पास रखी स्टूल पर थर्मोस में गर्म दूध, दो ग्लास , प्लेट में मिठाई और पान की गिलोरियां रखे थे। पलंग पर गुलाब और चमेली के फूलों की पत्तियाँ बिखरी थी। 3-4 तकिये और उनके पास 2 धुले हुए तौलिये। क्रीम और तेल की शीशी आदि। मुझे तो लगा जैसे सचमुच मेरी शादी ही हो गई है और मेरी दुल्हन सुहाग-सेज पर मेरा इन्तजार कर रही है। उन्होंने बताया था कि सुहागरात में चुदाई पूरी तसल्ली के साथ करनी चाहिए। कोई जल्दबाजी नहीं। यह मधुर मिलन है इसे ऐसे मनाओ जैसे कि जैसे ये नए जीवन की पहली और अंतिम रात है। हर पल को अनमोल समझ कर जीओ। जैसे इस प्रेम मिलन के बाद कोई और हसरत या ख़्वाहिश ही बाकी ना रहे।
कुछ मूर्ख तो सुहागरात में इसी फिक्र में मरे जाते हैं कि पत्नी की योनि से खून निकला या नहीं। यदि रक्तस्त्राव नहीं हुआ तो यही सोचते हैं कि लड़की कुंवारी नहीं है जरूर पहले से चुदी होगी। जबकि लड़की के कौमार्य का यह कोई पैमाना नहीं है। लड़की का योनिपटल एक पतली झिल्ली की तरह होता है जो योनि को बेक्टीरिया और हानिकारक रोगाणुओं से बचाता है। कई बार खेल के दौरान, साइकिल चलाने, घुड़सवारी या तैराकी आदि से यह टूट जाता है इसका अर्थ यह नहीं है कि लड़की ने अपना कौमार्य खो दिया है।
मैं उनके पास आकर बैठ गया। उन्होंने चुनरी का पल्लू थोड़ा सा नीचे कर रखा था। मैंने आज की रात आंटी को देने के लिए एक हल्का सा सोने का लोकेट खरीदा था। मैंने यह लोकेट अपने साल भर के बचा कर रखे जेब खर्च से खरीदा था। मैंने अपने कुरते की जेब से उसे निकाला और आंटी के गले में पहनाने के लिए अपने हाथ बढ़ाते हुए कहा,”मेरी चांदनी के लिए !”
आंटी ने अपनी झुकी पलकें ऊपर उठाई। उफ … क्या दमकता रूप था। आज तो आंटी किसी गुलबदन और अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। नाक में नथ, कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ, आँखों में काजल, थरथराते लाल गुलाबी होंठ। उन्होंने अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपनी बंद पलकें खोली। मैंने देखा उनकी आँखें सुर्ख हो रही हैं जैसे नशे में पुरख़ुमार हों। लगता है वो कल रात जैसे सोई ही नहीं थी। मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी कि वो आज चुप क्यों हैं। उनकी आँखें तो जैसे डबडबा रही थी। होंठ कांप रहे थे वो तो जैसे बोल ही नहीं पा रही थी। उसने अपनी आँखें फिर बंद कर ली।
मैंने उसके गले में वो लोकेट पहना दिया तब उन्होंने थरथराती सी आवाज में कहा,”धन्यवाद ! मेरे प्रेम ! मेरे काम देव !”
उसकी आँखों से आंसू निकल कर उसके गालों पर लुढ़क आये। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसने अपना सिर मेरे सीने से लगा दिया। मैं उसके सिर और पीठ पर पर हाथ फिराता रहा। फिर मैंने उसके आंसू पोंछते हुए पूछा,” क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं यह तो प्रेम और ख़ुशी के आंसू हैं।”
शायद उन्हें अपनी पहली सुहागरात याद हो आई थी। ओह… मैं तो आज क्या क्या रंगीन सपने लेकर आया था। यहाँ तो सारा मामला ही उलटा हो रहा था। पर इससे पहले कि मैं कुछ करूँ आंटी ने अपने सिर को एक झटका सा दिया और मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ कर अपने कांपते होंठ मेरे जलते होंठों पर रख कर चूमने लगी। वो साथ साथ बड़बड़ाती भी जा रही थी,” ओह… मेरे प्रेम ! मेरे कामदेव ! मेरे चंदू मुझे आज इतना प्रेम करो कि मैं तुम्हारे प्रेम के अलावा सब कुछ भूल जाऊं !” और तड़ातड़ा कई चुम्बन उसने मेरे गालों और होंठों पर ले लिए।
“हाँ हाँ मेरी चांदनी… आज की रात तो हमारे प्रेम मिलन की रात है मेरी प्रियतमा !” मैंने कस कर उसे अपनी बाहों में भर लिया। पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे। मैं पलंग पर टेक सी लगा कर बैठ गया और आंटी मेरी गोद में सिर रख कर लेट गई। उसकी आँखें बंद थीं और मैं उसके चेहरे पर अपने हाथ फिरा रहा था, कभी गालों पर, कभी होंठों पर कभी माथे पर।
“चांदनी आज तो हमारा प्रेम मिलन है और आज तुम रो रही हो ?”
“हाँ चंदू ! आज मुझे अपना पहला प्रेम याद आ गया था। मैं कल सारी रात उसे याद करके रोती रही थी। तुम नहीं जानते मैंने अपने दूसरे पति को भी कितना चाहा था पर उसे तो पता नहीं उस दो टके की छोकरी में ऐसा क्या नज़र आया था कि उसके अलावा वो सब कुछ ही भूल गया।”
उसने आगे बताया था कि उनकी पहली शादी चार साल के लम्बे प्रेम के बाद 25 साल की उम्र में हुई थी। एक साल कब बीत गया पता ही नहीं चला। पर होनी को कौन टाल सकता है। एक सड़क दुर्घटना में उनके पहले पति की मौत हो गई। घर वालों के जोर देने पर दूसरी शादी कर ली। उस समय उसकी उम्र कोई 28-29 साल रही होगी। नीरज भी लगभग 32-33 का रहा होगा पर मैंने कभी पूछा ना कभी इस मसले पर बात हुई थी। पर बाद में मुझे लगा कि कहीं ना कहीं उसके मन में एक हीन भावना पनप गई थी कि उन्हें एक पहले से चुदी हुई पत्नी मिली है। उसने कहीं पढ़ा था कि अगर कोई बड़ी उम्र का आदमी किसी कमसिन और कुंवारी लड़की के साथ और कोई बड़ी उम्र की औरत किसी किशोर लड़के के साथ सम्भोग करे तो उसके सेक्स की क्षमता दुगनी हो जाती है। ये तो निरा पागलपन और बकवास है। वैसे ये जो मर्दजात है सभी एक जैसी होती है। मुझे बाद में पता लगा उनका अपनी सेक्रेट्री के साथ भी सम्बन्ध था जो उम्र में लगभग उनसे आधी थी। पता नहीं इन छोटी और अनुभवहीन लौंडियों के पीछे ये सारे मर्द क्यों मरे जाते हैं। जो मज़ा और आनंद एक जानकार और अनुभवी स्त्री से मिल सकता है भला उन अदना सी लड़कियों में कहाँ ? पर इन मर्दों को कौन समझाए ? ओह….. चंदू… छोडो इन फजूल बातों को। आज हमारी सुहागरात है इस का मज़ा लो। आंटी ने अपने आंसू पोंछ लिए।
“चांदनी… मेरी चंदा ! मेरी प्रियतमा ! अब छोड़ो उन बातों को। क्यों ना हम फिर से नया जीवन शुरू करें ?”
“क्या मतलब ?”
“क्यों ना हम शादी कर लें ?”
“ओह… नहीं मेरे प्रेम यह नहीं हो सकता ? मैं नहीं चाहती कि तुम भी थोड़े सालों के बाद ऐसा ही करो। बस इन संबंधों को एक ट्रेनिंग ही समझो और बाकी बातें भूल जाओ !”
“क्यों ? ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?”
“तुम अभी बहुत छोटे हो इन बातों को नहीं समझोगे। हम इस मसले पर बाद में बात करेंगे। आज तो बस तुम मुझे प्रेम करो ! बस” और उसने अपनी बाहें ऊपर कर मेरे गले में डाल दीं।
मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में जकड़ लिया और फिर उसके होंठों को चूमने लगा। उसने अपनी जीभ मेरे मुंह डाल दी। किसी रस भरी कुल्फी की तरह मैंने उसे चूसने लगा। मेरा मिट्ठू तो लोहे की रॉड ही बना था जैसे। उसका तनाव तो इतना ज्यादा था कि मुझे लगने लगा था कि अगर जल्दी ही कुछ नहीं किया तो इसका सुपाड़ा तो आज फट ही जाएगा। चुम्बन के साथ साथ मैं अब उसके उरोजों को दबाने लगा। उसकी साँसें तेज होने लगी तो उसने मुझे कपड़े उतारने का इशारा किया। मैं जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगा तो वो हँसते हुए बोली,” अरे बुद्धू अपने नहीं एक एक करके पहले मेरे उतारो !”
मेरे तो हंसी ही निकल गई। मैं तो उनका पूरा आज्ञाकारी बना था। मैंने पहले उसकी चुनरी फिर ब्लाउज और फिर धीरे से उनका घाघरा उतार दिया। अब वो केवल ब्रा और पैंटी में थी। संगेमरमर सा तराशा सफ्फाक बदन अब ठीक मेरे सामने था। ऐसे ही बदन वाली औरतों को गुलबदन कहा जाता है आज मैंने पहली बार महसूस किया था। अब मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए। केवल एक चड्डी के सिवा मेरे शरीर पर कुछ भी नहीं था। और फिर उछल कर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। वो एक ओर लुढ़क गई। मैं ठीक उसके ऊपर था। मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया। आंटी ने भी मुझे चूमना शुरू कर दिया। अब मैं एक हाथ से उसके उरोजों को ब्रा के ऊपर से ही मसलना चालू कर दिया और दूसरे हाथ से उसकी मुनिया को पैंटी के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ लिया। मेरा शेर तो जैसे दहाड़ें ही मारने लगा था।
आंटी एक झटके से उठ बैठी और उसने मेरी चड्डी निकाल फेंकी। मैं चित्त लेटा था। अब तो मिट्ठू महाराज उसे सलाम ही बजाने लगे। आंटी ने अपनी नाज़ुक अँगुलियों के बीच उसे दबा लिया। उसके ऊपर प्री-कम की बूँद चमक रही थी। उसने एक चुम्बन उस पर ले लिया। प्री-कम उसके होंठों पर फ़ैल गया। मैं तो सोच रहा था की वो उसे गच्च से अपने मुंह में भर लेगी। पर उसने कोई जदबाजी नहीं दिखाई। मिट्ठू तो झटके पर झटके खा रहा था। उसने साइड में पड़ी स्टूल पर रखी तेल की शीशी उठाई और मेरे मिट्ठू को जैसे नहला ही दिया। अब एक हाथ से मेरे अंडकोष पकड़ लिए और दूसरे हाथ से मिट्ठू को नाच नचाने लगी। मैं तो आ … उन्ह … ओईईइ … करता मीठी सित्कारें मारने लगा। आंटी तेजी से हाथ चलाने लगी। मुझे लगा इस तरह तो मैं झड़ ही जाऊँगा। मैंने उसे रोकना चाहा पर उसने मुझे इशारे से मन कर दिया और मेरे अंडकोष जल्दी जल्दी हाथ से मसलते हुए लंड को ऊपर नीचे करने लगी। मैं जोर से उछला और उसके साथ ही मेरी पिचकारी फूट गई। सारा वीर्य उसके हाथों और जाँघों और मेरे पेट पर फ़ैल गया।
मुझे अपने आप पर बड़ी शर्म सी आई। इतनी जल्दी तो मैं पहले कभी नहीं झड़ा था। आज पता नहीं क्या हुआ था कि मैं तो 2 मिनट में ही खलास हो गया। मुझे मायूस देख कर वो बोली,” चिंता करने की कोई बात नहीं है। मैं जानती थी तुम पहली बार में जल्दी झड़ जाओगे। इस लिए यह करना जरुरी था। अब देखना, तुम बड़ी देर तक अपने आप को रोक पाओगे। मैं नहीं चाहती थी कि हमारे प्रथम मिलन में तुम जल्दी झड़ जाओ और ठीक से मज़ा ना ले पाओ !”
“पर मैंने तो सुना है कि लोग आधे घंटे तक चुदाई करते रहते हैं और वो नहीं झड़ते ?”
“पता नहीं तुमने कहाँ कहाँ से यह सब गलत बातें सुन रखी हैं। सच्चाई तो यह है कि योनि में लिंग प्रवेश करने के बाद बिना रुके सेक्स करने पर स्खलन का औसत समय 3 से 10 मिनट का ही होता है। यह अलग बात है कि लोग कई बार सेक्स के दौरान अपने घर्षण और धक्कों को विराम दे कर स्खलन का समय बढ़ा लेते हैं !”
“वैसे कुछ लोग दूसरे टोटके भी आजमाते हैं ;
मूली के बीजों को या कबूतर की बीट को तेल में पका कर उस तेल से अपने लिंग पर मालिश की जाए तो इस से स्तम्भन शक्ति बढ़ती है। अगर सम्भोग करते समय निरोध लगा लिया जाए या अपने लिंग पर रबर का छल्ला पहन लिया जाए तो भी वीर्य देरी से स्खलित होता है। प्याज (ओनियन) का रस और शहद मिलाकर रोज़ खाने से पुरुष शक्ति बढती है। काले चने खाने और उरद की दाल खाने से घोड़े जैसी ताकत मिलती है और वीर्य गाढ़ा होता है। महुवे, सतावर, अश्वगंधा और चमेली के फूलों का सेवेन करने से वीर्य में वृद्धि होती है।”
मैंने बाथरूम में जाकर अपने मिट्ठू, पेट, जाँघों और हाथों को अच्छी तरह धोये और जब बाहर आया तो आंटी दूध भरा गिलास लिए मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। जब तक मैंने केशर बादाम मिला गर्म दूध पीया वो बाथरूम से अपने हाथ साफ़ करके बाहर आ गई। बड़ी अदा से अपने कुल्हे और नितम्ब मटकाती वो पलंग के पास आकर खड़ी हो गई। उसका गदराया बदन देख कर तो मेरा शेर फिर से कुनमुनाने लगा था।
मैंने उठ खड़ा हुआ और उसे अपनी बाहों में भर कर चूम लिया। वो तो जैसे कब की तरस रही थी। उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मैंने उसे पलंग पर चित्त लेटा दिया और उसके ऊपर आ गया। मैंने उसके गालों, होंठों, पलकों, गले और उरोजों की घाटियों पर चुम्बनों की झड़ी ही लगा दी। वो भी मुझे चूमे ही जा रही थी। मैंने उसकी पीठ सहलानी चालू कर दी अचानक मेरा हाथ उसकी ब्रा की डोरी से टकराया। मैंने उसे खींच दिया। दोनों कबूतर जैसे आजाद हो गए। आह… मोटे मोटे गोल कंधारी अनार हों जैसे। एरोला लाल रंग का और चूचक तो बस मूंगफली के दाने जितने गुलाबी रंग के। मैंने झट से एक अमृत कलश को अपने मुंह में भर लिया। आंटी ने मेरा सिर पकड़ लिया और एक मीठी सीत्कार लेकर बोली “चंदू इसे धीरे धीरे चूसो। चूचक को कभी कभी दांतों से दबाते रहो पर काटना नहीं …आह …”
“देखो सम्भोग से पहले पूर्व काम क्रीड़ा का बहुत महत्व होता है। प्रेम को स्थिर रखने के लिए सदैव सम्भोग से पहले पूर्व रति क्रीड़ा बहुत जरुरी होती है। पुरुष की उत्तेजना दूध के उफान या ज्वालामुखी की तरह होती है जो एक दम से भड़कती है और फिर ठंडी पड़ जाती है। परंतू स्त्री की उत्तेजना धीरे धीरे बढती है जैसे चाँद धीरे धीरे अपनी पूर्णता की ओर बढ़ता है लेकिन उनकी उत्तेजना का आवेग और समय ज्यादा होता है और फिर वो उत्तेजना धीरे धीरे ही कम होती है। इसके अलावा महिलाओं में उत्तेजना को प्राप्त करनेवाले अंग पुरुषों कि अपेक्षा ज्यादा होते हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार महिलाओं की मदनमणि (भागनासा) में जितनी ज्यादा संख्या संवेदन शील ग्रंथियों की होती है उतनी पुरुषों के लिंग के सुपाड़े में होती हैं। इसी लिए पुरुष जल्दी चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाते हैं। तुम्हें शायद पता नहीं होगा कि पूर्णिमा के दिन समुद्र का ज्वार सब से ज्यादा ऊंचा होता है। यही स्थिति स्त्री की होती है। चंद्रमा के घटने बढ़ने के साथ साथ ही स्त्री का काम ज्वर घटता बढ़ता रहता है उसके ऋतुचक्र में कुछ दिन ऐसे आते हैं जब उसके मन में सम्भोग की तीव्र इच्छा होती है। माहवारी के कुछ दिन पहले और माहवारी ख़तम होने के 3-4 दिन बाद स्त्री का कामवेग अपने उठान पर होता है। बाद में तो यह चन्द्र कला की तरह घटता बढ़ता रहता है। इसलिए हर स्त्री को अलग अलग दिन अलग अलग अंगों को छूना दबाना और चूमना अच्छा लगता है।”
एक और बात सुनो,” सम्भोग करने से पहले अपनी प्रेयसी को गर्म किया जाता है। उसके सारे अंगों को सहलाया और चूमा चाटा जाता है कोई जल्दबाजी नहीं, आराम से धीरे धीरे। पहले सम्भोग में पुरुष उत्तेजना के कारण जल्दी झड़ जाता है और सम्भोग का पूरा आनंद नहीं ले पाता इसलिए अगर सुहागरात को पहले दिन में एक बार मुट्ठ मार ली जाए तो अच्छा रहता है। मैंने इसी लिए तुम्हारा पानी एक बार पहले निकाल दिया था। एक और बात यदि सम्भोग करते समय लिंग पर निरोध (कंडोम) लगा लिया जाए तो वीर्य जल्दी नहीं स्खलित होता और अनचाहे गर्भ से भी बचा जा सकता है।”
अब मैंने उसे अपनी बाहों में जोर से भर कर उन अमृत कलशों को जोर जोर से चूसना चालू कर दिया। आंटी की तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी। बारी बारी दोनों उरोजों को चूस कर अब मैंने उनकी घाटियाँ और पेट को भी चूमना चालू कर दिया। अब मैंने उसकी नाभि और पेट को खूब अच्छी तरह से चाटा। नाभि के गोलाकार 1 इंच छेद में अपनी जीभ को डाल कर घुमाते हुए मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ही हाथ फिराना शुरू कर दिया और अपने हाथों को उसकी जाँघों के बीच ले जा कर उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर मसलने लगा। उसकी चूत एक दम गीली हो गई थी इसका अहसास मुझे पैंटी के ऊपर से भी हो रहा था। मैंने उसकी मक्खन सी मुलायम जाँघों को भी खूब चाटा और चूमा। जब मैं हाथ बढ़ा कर उनकी पैंटी हटाने लगा तो आंटी ने अपनी पैंटी की डोरी खुद ही खोल दी।
हालांकि आंटी की मुनिया मैं पहले देख चुका था पर आज तो इसका रंग रूप और नज़ारा देखने लायक था। गुलाबी रंग के फांकें तो जैसे सूज कर मोटी मोटी हो गई थी। चूत की फांकें और बीच की लकीर कामरस से सराबोर हो रही थी। मदनमणि तो किसी किसमिस के फूले दाने जितनी बड़ी लग रही थी। मैंने एक चुम्बन उस पर ले लिया। आंटी की तो एक किलकारी ही निकल गई। फिर वो बोली,”ओह … चंदू जल्दबाजी नहीं, ठहरो !”
उन्होंने अपनी दोनों टाँगे चौड़ी कर के फैला कर अपना खज़ाना ही जैसे खोल दिया। मैं उसकी टांगो के बीच में आ गया। उसने अपनी चूत की फांकों पर लगी सोने की बालियों को दोनों हाथों से पकड़ कर चौड़ा किया और मुझे बोली,” हाँ, अब इसे प्यार करो !”
मैं इस प्यार का मतलब अच्छी तरह जानता था। उसकी मोटी केले के तने जैसी मांसल और गोरी जाँघों के बीच गुलाबी चूत चाँद के जैसे झाँक रही थी। उसकी चूत के गुलाबी होंठ गीले थे और ट्यूब लाईट की दुधिया रौशनी में चमक रहे थे। उसकी जाँघों को हलके से दांत से काटते हुए मैं जीभ से चाटने लगा। मैं चूत के चाटते हुए अपनी जीभ को घुमा भी रहा था। उसका नमकीन और कसैला स्वाद मुझे पागल बना रहा था। मैं तो धड़कते दिल से उस शहद की कटोरी को चूसे ही चला गया। मेरा शेर फिर दहाड़ें मारने लगा था। आंटी की सीत्कार पूरे कमरे में गूंजने लगी थी “उईईइ।.. बहुत अच्छे, बहुत खूब, ऐसे ही, ओह…. सीईईईईईइ….. ओह मैं तुम्हें पूरा गुरु बना दूंगी आज। ओह … ऐसे ही चूसते रहो…. ओईईइ ….”
मैंने अब उसके मदनमणि के दाने को अपनी जीभ से टटोला। मैंने उसे जीभ से सहलाया और फिर एक दो बार दांतों के बीच लेकर दबा दिया। आंटी तो अपने पैर ही पटकने लगी। उसने अपनी जांघें मेरी गर्दन के गिर्द लपेट ली और मेरा सिर पकड़ कर अपनी जाँघों की ओर दबा सा दिया। मैं तो मस्त हुआ उसे चाटता और चूसते ही चला गया। थोड़ी देर बाद उसने अपने पैर नीचे कर लिए और अपनी जाँघों की जकड़न थोड़ी सी ढीली कर दी। अब मैंने भी अपनी जीभ से उसकी चूत को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फिराया। उसकी सोने की बालियाँ मुंह में लेकर होले से चूसा। फिर उन बालियों को दोनों हाथों से पकड़ कर चौड़ा किया और अपनी जीभ को नुकीला करके उसके गुलाबी छेद पर लगा कर होले होले अन्दर बाहर करने लगा। उसने एक जोर की सीत्कार की और मुझे कुछ नमकीन सा पानी जीभ पर फिर महसूस हुआ। शायद उसकी मुनिया ने कामरस फिर छोड़ दिया था।
जब मैंने अपना सिर ऊपर उठाया और फिर से उसके उरोजों की ओर आने लगा तो उसने मेरा सिर पकड़ लिया और मेरे होंठों को चूम लिया। मेरे होंठों पर लगे उसका कामरस का स्वाद उसे भी मिल ही गया होगा। अब उसने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे मिट्ठू को पकड़ लिया। मिट्ठू तो बेचारा कब का इंतज़ार कर रहा था। उसने उसकी गर्दन पकड़ ली और उसे मसलना चालू कर दिया। उसने पास पड़ी क्रीम मेरे मिट्ठू पर लगा दी। मैंने भी उनकी चूत पर अपना थूक लगा दिया। और फिर एक अंगुली से उनकी चूत का छेद टटोला। ओह कितना मस्त कसा हुआ छेद था। अब देरी की कहाँ गुन्जाइस थी। मैंने अपने मिट्ठू को उनकी चूत के नरम नाजुक छेद पर लगा दिया। मैं उसके ऊपर ही तो था। मैंने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगा लिया और दूसरा हाथ उसकी कमर के नीचे। उसने अपनी जांघें चौड़ी कर ली। और फिर मैं एक धक्का जोर से लगा दिया। मेरा मिट्ठू तो एक ही धक्के में अन्दर चला गया। आह… क्या नर्म और गुदाज अहसास था। मिट्ठू तो मस्त ही हो गया। मैंने दो तीन धक्के तेजी से लगा दिए। आंटी तो बस उईई।… मा… करती ही रह गई।
मुझे लगा जैसे मुझे कुछ जलन सी हो रही है। मैंने सोच शायद पहली बार किसी को चोद रहा हूँ इस लिए ऐसा हो रहा है पर यह तो मुझे बाद में पता चला था कि मेरे लिंग के नीचे का धागा टूट गया है और मेरे लंड का कुंवारापन जाता रहा है।
मैंने धक्के चालू रखे। उसे चूमना और उरोजों को मसलना भी जारी रखा। अब चूत पूरी रवां हो चुकी थी। आंटी बोली “नहीं चंदू ऐसे जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। चलो मेरी मुनिया ने तो पता नहीं कितनी बार अन्दर लिया होगा और तुम्हारा भी ले लिया पर अगर कोई कुंवारी लड़की हो तो इतनी जोर से धक्का लगाने से उसकी तो हालत ही ख़राब हो जायेगी। कभी भी पहला धक्का जोर का नहीं, बिल्कुल धीरे धीरे प्यार से लगाना चाहिए।”
मैंने अपनी मुंडी हिला दी। अब मैंने उनके होंठ चूमने शुरू कर दिए। उनके उरोज मेरी छाती से लग कर दब रहे थे उनके कड़े हो चले चुचूकों का आभास तो मुझे तरंगित ही कर रहा था। मैं कभी उनके होंठ चूमता कभी कपोलों को। अब आंटी ने अपने पैर ऊपर उठा दिए। आह… अब तो मज़ा ही ओर था। मुझे लगा जैसे किसी ने अन्दर से मेरा लंड कस लिया है और जैसे कोई दूध दुह रहा है। अनुभवी औरतें जब अपनी चूत को अन्दर से इस तरह सिकोड़ती हैं तो ऐसा कसाव अनुभव होता है जैसे कोई 16 साल की कमसिन चूत हो। मैंने अपने धक्के चालू रखे। उसने अपने पैरों की कैंची बना कर मेरी कमर के गिर्द लगा ली। अब धक्के के साथ ही उसके नितम्ब भी ऊपर नीचे होने लगे। मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए। आंटी ने एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया और पैर नीचे कर दिए। ओह … अब तो जैसे मुझे आजादी ही मिल गई। मैंने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी।
अपने जीवन में किसी चूत में अपना लंड डालने का यह मेरा पहला मौका था। यह ख़याल आते ही मेरे लंड की मोटाई शायद बढ़ गई थी और मैं अपने आप को बहुत जयादा उत्तेजित महसूस कर रहा था। लंड को उसके चूत की तह तक पेलते हुए मैं अपने पेडू से उनकी मदनमणि को भी रगड़ रहा था। मेरे तीखे नुकीले छोटे छोटे झांट उसे चुभ रहे थे और इस मीठी चुभन से उसे और भी रोमांच हो रहा था। उसकी तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी।
कोई 10 मिनट की धमाकेदार चुदाई के बाद मैं हांफने लगा। उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। उनका शरीर कुछ अकड़ा और फिर उसने एक जोर की किलकारी मारी। शायद वो झड़ गई थी। मैं रुक गया। उनकी साँसें जोर जोर से चल रही थी। कुछ देर ऐसे ही पड़ी रहने के बाद वो बोली,”चंदू क्या मैं ऊपर आ जाऊं ?”
मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता था। अब हमने एक पलटी मारी और आंटी ठीक मेरे ऊपर थी। अब सारी कमान जैसे उसी के हाथों में थी। उसका अपनी चूत को अन्दर से सिकोड़ना और मेरे लंड को अन्दर चूसना तो मुझे मस्त ही किये जा रहा था। यह तो उसने पहले ही मेरा पानी एक बार निकाल दिया था नहीं तो इतनी गर्मी और उत्तेजना के मारे मैं कब का झड़ जाता।
उसने अपने नितम्ब घुमाते हुए धक्के लगाने चालू कर दिए। वो थोड़ी झुक कर अपनी कोहनियों के बल बैठी धक्के लगने लगी। मैंने हाथ बढ़ा कर उसके उरोजों को पकड़ लिया और चूसने लगा। एक हाथ से उसके नितम्ब सहला रहा था और कभी कभी उसकी पीठ या कमर भी सहला रहा था। मैं तो मदहोश ही हुआ जा रहा था। जैसे ही उसके नितम्ब नीचे आते तो गच्च की आवाज आती जिसे सुनकर हम दोनों ही मस्त हो जाते। उसने बताया,”जब तुम्हें लगे की अब निकलने वाला है तो इस घड़ी की टिकटिक पर ध्यान लगा लेना, फिर तुम 5-6 मिनट तक नहीं झड़ोगे। जब झड़ने लगो तो मुझे बता देना !”
हम दोनों अब पूरी तरह से मदहोश होकर मजे की दुनिया में उतर चुके थे। अब मैं भी कितनी देर रुकता। मैंने जोर जोर से धक्के लगाने चालू कर दिए। अभी मैंने 4-5 धक्के ही लगाये थे कि मुझे लगा उसकी चूत ने संकोचन करना चालू कर दिया है। ऐसा महसूस होते ही मेरी पिचकारी और आंटी की सीत्कार दोनों एक साथ निकल गई। उसकी चूत मेरे गाढ़े गर्म वीर्य से लबालब भर गई। आंटी ने मुझे अपनी बाहों में इतनी जोर से जकड़ा कि उसके हाथों की 4-5 चूड़ियाँ ही चटक गई। पता नहीं कब तक हम इसी तरह एक दूसरे की बाहों में लिपटे पड़े रहे। आंटी ने बताया था कि स्खलन के बाद लिंग को तुरंत योनि से बाहर नहीं निकलना चाहिए कुछ देर ऐसे ही अन्दर पड़े रहने देना चाहिए इससे पौरुष शक्ति फिर से मिल जाती है।
रात भी बहुत हो चुकी थी और इतनी जबरदस्त चुदाई के बाद हम दोनों में से किसी को होश नहीं था, मैं आंटी के ऊपर से लुढ़क कर उसके बगल में लेट गया। वह भी अपनी आँखें बंद किये अपनी सांसो को सँभालने में लग गई। एक दूसरे की बाहों में लिपटे हमें कब नींद ने अपने आगोश में भर लिया पता ही नहीं चला।
सुबह कोई 8 बजे हम दोनों की नींद खुली। मैं एक बार उस परम सुख को फिर से भोग लेना चाहता था। जब आंटी बाथरूम से बाहर आई तो मैंने अपनी बाहें उसकी ओर फैलाई तो बोली,” नहीं चंदू ….. अब कुछ नहीं… गड़बड़ हो गई है ?”
“क … क.. क्या हुआ ?”
“लाल बाई आ गई है !”
“ये लाल बाई कौन है ?” मैंने हैरानी से पूछा।
“अरे बुद्धू महीने में एक बार हर जवान स्त्री रजस्वला होती है। और 3-4 दिन योनि में रक्त स्त्राव होता रहता है ताकि फिर से गर्भ धारण के लिए अंडा बना सके ?”
“ओह …” मेरा तो सारा उत्साह ही ठंडा पड़ गया।
“हालांकि इन दिनों में भी हम सम्भोग कर सकते हैं पर मुझे इन तीन दिनों में यह सब करना अच्छा नहीं लगता। कुछ विशेष परिस्थितियों में (जैसे नई शादी हुई हो या पति पत्नी कई दिनों बाद मिले हों) माहवारी के दौरान भी सम्भोग किया जा सकता है पर साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए नहीं तो योनि में संक्रमण हो सकता है। कुछ दंपत्ति तो माहवारी के दौरान इसलिए सेक्स करना पसंद करते हैं कि वो समझते हैं कि इस दौरान सेक्स करने से गर्भ नहीं ठहरेगा। जबकि कई बार माहवारी के दिनों में सेक्स करने से भी गर्भ ठहर सकता है। मेरे साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है, तुम घबराओ मत अब तो बस एक सबक ही और बचा है वो 3 दिनों के बाद तुम्हें सिखाउंगी !” आंटी ने समझाया।
मैं अपने कपड़े पहनते हुए यह सोच रहा था कि चुदाई के बाद अब और कौन सा सबक बाकी रह गया है।
है और उसकी लज्जत बरकरार रहती है क्योंकि उसमें लचीलापन नहीं होता। इसलिए गुदा-मैथुन में अधिक आनंद की अनुभूति होती है।
एक और कारण है। एक ही तरह का सेक्स करते हुए पति पत्नी दोनों ही उकता जाते हैं और कोई नई क्रिया करना चाहते हैं। गुदा-मैथुन से ज्यादा रोमांचित करने वाली कोई दूसरी क्रिया हो ही नहीं सकती। पर इसे नियमित तौर पर ना करके किसी विशेष अवसर के लिए रखना चाहिए जैसे कि होली, दिवाली, नववर्ष, जन्मदिन, विवाह की सालगिरह या वो दिन जब आप दोनों सबसे पहले मिले थे। अपने पति को वश में रखने का सबसे अच्छा साधन यही है। कई बार पत्नियां अपने पति को गुदा-मैथुन के लिए मना कर देती हैं तो वो उसे दूसरी जगह तलाशने लग जाता है। अपने पति को भटकने से बचाने के लिए और उसका पूर्ण प्रेम पाने के लिए कभी कभी गांड मरवा लेने में कोई बुराई नहीं होती।
प्रेम आश्रम वाले गुरुजी कहते हैं कि औरत को भगवान् ने तीन छेद दिए हैं और तीनों का ही आनंद लेना चाहिए। इस धरती पर केवल मानव ही ऐसा प्राणी है जो गुदा-मैथुन कर सकता है। जीवन में अधिक नहीं तो एक दो बार तो इसका अनुभव करना ही चाहिए। सुखी दाम्पत्य का आधार ही सेक्स होता है पर अपने प्रेम को स्थिर रखने के लिए गुदा-मैथुन भी कभी कभार कर लेना चाहिए। इस से पुरुष को लगता है कि उसने अपनी प्रियतमा को पूर्ण रूप से पा लिया है और स्त्री को लगता है कि उसने अपने प्रियतम को सम्पूर्ण समर्पण कर दिया है।
खैर मैं 4 दिनों के सूखे के बाद आज रात को ठीक 9.00 बजे आंटी के घर पहुँच गया। मुझे उस दिन वाली बात याद थी इसलिए आज मैंने सुबह एक मार मुट्ठ मार ली थी। मैंने पैंट और शर्ट डाल रखी थी पर अन्दर चड्डी जानकर ही नहीं पहनी थी। आंटी ने पतला पजामा और टॉप पहन रखा था। उसके नितम्बों पर कसा पजामा उसकी चूत और नितम्बों का भूगोल साफ़ नज़र आ रहा था लगता था उसने भी ब्रा और पैंटी नहीं पहनी है।
मैंने दौड़ कर उसे बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा तो आंटी बोली,”ओह … चंदू फिर जल्दबाजी ?”
“मेरी चांदनी मैंने ये 4 दिन कैसे बिताये हैं मैं ही जानता हूँ !” मैंने उसके नितम्बों पर अपने हाथ सहलाते हुए जोर से दबा दिए।
“ओह्हो ?” उसने मेरी नाक पकड़ते हुए कहा।
एक दूसरे की बाहों में जकड़े हम दोनों बेडरूम में आ गए। पलंग पर आज सफ़ेद चादर बिछी थी। साइड टेबल पर वैसलीन, बोरोप्लस क्रीम, नारियल और सरसों के तेल की 2-3 शीशियाँ, एक कोहेनूर निरोध (कंडोम) का पैकेट, धुले हुए 3-4 रुमाल और बादाम-केशर मिला गर्म दूध का थर्मोस रखा था। मुझे इस बात की बड़ी हैरानी थी कि एक रबर की लंड जैसी चीज भी टेबल पर पड़ी है। पता नहीं आंटी ने इसे क्यों रखा था। इससे पहले कि मैं कुछ पूछता, आंटी बोली,”हाँ तो आज का सबक शुरू करते हैं। आज का सबक है गधापचीसी। इसे बैक-डोर एंट्री भी कहते हैं और जन्नत का दूसरा दरवाज़ा भी। तुम्हें हैरानी हो रही होगी ना ?”
मैं जानता तो था पर मैंने ना तो हाँ कहा और ना ही ना कहा। बस उसे देखता ही रह गया। मैं तो बस किसी तरह यह चाह रहा था कि आंटी को उल्टा कर के बस अपने लंड को उनकी कसी हुई गुलाबी गांड में डाल दूं।
“देखो चंदू सामान्यतया लडकियां पहली बार गांड मरवाने से बहुत डरती और बिदकती हैं। पता नहीं क्यों ? पर यह तो बड़ा ही फायदेमंद होता है। इसमें ना तो कोई गर्भ धारण का खतरा होता है और ना ही शादी से पहले अपने कौमार्य को खोने का डर। शादीशुदा औरतों के लिए परिवार नियोजन का अति उत्तम तरीका है। कुंवारी लड़कियों के लिए यह गर्भ से बचने का एक विश्वसनीय और आनंद दायक तरीका है। माहवारी के दौरान अपने प्रेमी को संतुष्ट करने का इस से बेहतर तरीका तो कुछ हो ही नहीं सकता। सोचो अपने प्रेमी को कितना अच्छा लगता है जब वो पहली बार अपनी प्रेमिका की अनचुदी और कोरी गांड में अपना लंड डालता है।”
मेरा प्यारे लाल तो यह सुनते ही 120 डिग्री पर खड़ा हो गया था और पैंट में उधम मचाने लगा था। मैं पलंग की टेक लगा कर बैठा था और आंटी मेरी गोद में लेटी सी थी। मैं एक हाथ से उसके उरोजों को सहला रहा था और दूसरे हाथ से उसकी चूत के ऊपर हाथ फिरा रहा था ताकी वो जल्दी से गर्म हो जाए और मैं जन्नत के उस दूसरे दरवाज़े का मज़ा लूट सकूं।
आंटी ने कहना जारी रखा,”कहने में बहुत आसान लगता है पर वास्तव में गांड मारना और मरवाना इतना आसान नहीं होता। कई बार ब्लू फिल्मों में दिखाया जाता है कि 8-9 इंच लम्बा और 2-3 इंच मोटा लंड एक ही झटके में लड़की की गांड में प्रवेश कर जाता है और दोनों को ही बहुत मज़ा लेते दिखाई या जाता है। पर वास्तव में इनके पीछे कैमरे की तकनीक और फिल्मांकन होता है। असल जिन्दगी में गांड मारना इतना आसान नहीं होता इसके लिए पूरी तैयारी करनी पड़ती है और बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है।”
मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी भला गांड मारने में क्या ध्यान रखना है। घोड़ी बनाओ और पीछे से ठोक दो ? पर मैंने पूछा “किन बातों का ?”
“सबसे जरुरी बात होती है लड़की को इस के लिए राज़ी करना ?”
“ओह …”
“हाँ सबसे मुश्किल काम यही होता है। इस लिए सबसे पहले उसे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करना जरुरी होता है। भगवान् या कुदरत ने गांड को सम्भोग के लिए नहीं बनाया है। इसकी बनावट चूत से अलग होती है। इसमें आदमी का लंड उसकी मर्ज़ी के बिना प्रवेश नहीं कर सकता। इसके अन्दर बनी मांसपेशियाँ और छल्ला वो अपनी मर्ज़ी से ढीला और कस सकती हैं। ज्यादातर लडकियां और औरतें इसे गन्दा और कष्टकारक समझती हैं। इसलिए उन्हें विश्वास दिलाना जरुरी होता है कि प्रेम में कुछ भी गन्दा और बुरा नहीं होता। उसका मूड बनाने के लिए कोई ब्लू फिल्म भी देखी जा सकती है। उसे गुदा-मैथुन को लेकर अपनी कल्पनाओं के बारे में भी बताओ। उसे बताओ कि उसके सारे अंग बहुत खूबसूरत हैं और नितम्ब तो बस क़यामत ही हैं। उसकी मटकती गांड के तो तुम दीवाना ही हो। अगर एक बार वो उसका मज़ा ले लेने देगी तो तुम जिंदगी भर उसके गुलाम बन जाओगे। उसे भी गांड मरवाने में बड़ा मज़ा आएगा और यह दर्द रहित, रोमांचकारी, उत्तेजक और कल्पना से परिपूर्ण तीव्रता की अनुभूति देगा। और अगर जरा भी कष्ट हुआ और अच्छा नहीं लगा तो तुम उससे आगे कुछ नहीं करोगे।
एक बात ख़ासतौर पर याद रखनी चाहिए कि इसके लिए कभी भी जोर जबरदस्ती नहीं करनी चाइये। कम से कम अपनी नव विवाहिता पत्नी से तो कभी नहीं। कम से कम एक साल बाद ही इसके लिए कहना चाहिए।”
“हूँ ….”
“उसके मानसिक रूप से तैयार होने के बाद भी कोई जल्दबाज़ी नहीं। उसे शारीरिक रूप से भी तो तैयार करना होता है ना। अच्छा तो यह रहता है कि उसे इतना प्यार करो कि वो खुद ही तुम्हारा लंड पकड़ कर अपनी गांड में डालने को आतुर हो जाए। गुदा-मैथुन से पूर्व एक बार योनि सम्भोग कर लिया जाए अच्छा रहता है। इस से वो पूर्ण रूप से उत्तेजित हो जाती है। ज्यादातर महिलायें तब उत्तेजना महसूस करती हैं जब पुरुष का लिंग उनकी योनि में घर्षण कर रहा होता है। इस दौरान अगर उसकी गांड के छेद को प्यार से सहलाया जाए तो उसकी गांड की नसें भी ढीली होने लगेंगी और छल्ला भी खुलने बंद होने लगेगा। साथ साथ उसके दूसरे काम अंगों को भी सहलाओ, चूमो और चाटो !”
“और जब लड़की इसके लिए तैयार हो जाए तो सबसे पहले अपने सारे अंगों की ठीक से सफाई कर लेनी चाहिए। पुरुष को अपना लंड साबुन और डिटोल से धो लेना चाहए और थोड़ी सी सुगन्धित क्रीम लगा लेनी चाहिए। मुंह और दांतों की सफाई भी जरुरी है। नाखून और जनन अंगों के बाल कटे हों। लड़कियों को भी अपनी योनि, गुदा नितम्ब, उरोजों और अपने मुंह को साफ़ कर लेना चाहिए। गुदा की सफाई विशेष रूप से करनी चाहिए क्यों कि इसके अन्दर बहुत से बेक्टीरिया होते हैं जो कई बीमारियाँ फैला सकते हैं। दैनिक क्रिया से निपट कर एक अंगुली में सरसों का तेल लगा कर अन्दर डाल कर साफ़ कर लेनी चाहिए। गुदा-मैथुन रात को ही करना चाहिए। और जिस रात गुदा-मैथुन करना हो दिन में 3-4 बार गुदा के अन्दर कोई एंटीसेफ्टिक क्रीम लगा लेनी चाहिए। कोई सुगन्धित तेल या क्रीम अपने गुप्तांगों और शरीर पर लगा लेनी चाहिए। पास में सुगन्धित तेल, क्रीम, छोटे तौलिये और कृत्रिम लिंग (रबर का) रख लेना चाहिए।”
“ओह …” मेरे मुंह से तो बस इतना ही निकला।
“चलो अब शुरू करें ?”
“ओह… हाँ…”
मैंने नीचे होकर उसके होंठ चूम लिए। उसने भी मुझे बाहों में कस कर पकड़ लिया। और बिस्तर पर लुढ़क गए। आंटी चित्त लेट गई। मेरा एक पैर उसकी जाँघों के बीच था लगभग आधा शरीर उसके ऊपर था। उसकी बाहों के घेरे ने मुझे जकड़ रखा था। मैंने उसके गालों पर होंठों पर गले और माथे पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। साथ साथ कभी उसके उरोज मसलता कभी अपना हाथ पजामे के ऊपर से ही उसकी मुनिया को सहला और दबा देता। उसकी मुनिया तो पहले से ही गीली हो रही थी।
अब हमने अपने कपड़े उतार दिए और फिर एक दूसरे को बाहों में भर लिया। मैं उसके ऊपर लेटा था। पहले मैंने उसके उरोजों को चूसा और फिर उसके पेट नाभि, पेडू को चूमते चाटते हुए नीचे तक आ गया। एक मीठी और मादक सुगंध मेरे नथुनों में भर गई। मैंने गप्प से उसकी मुनिया को मुंह में भर लिया। आंटी ने अपने पैर चौड़े कर दिया। मोटी मोटी फांकें तो आज फूल कर गुलाबी सी हो रही थी। मदनमणि तो किसमिस के फूले दाने जैसी हो रही थी। मैं अपनी जीभ से उसे चुभलाने लगा। उसकी तो सीत्कार ही निकल गई। कभी उसकी तितली जैसी पतली पतली अंदरुनी फांकें चूसता कभी उस दाने को दांतों से दबाता। साथ साथ उसके उरोजों को भी दबा और सहला देता।
आंटी ने अपने घुटने मोड़ कर ऊपर उठा लिए। मैंने एक तकिया उसके नितम्बों के नीचे लगा दिया। आंटी ने अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी कर दी। अब तो उसकी चूत और गांड दोनों के छेद मेरी आँखों के सामने थे। गांड का बादामी रंग का छोटा सा छेद तो कभी खुलता कभी बंद होता ऐसे लग रहा था जैसे मुंबई की मरीन ड्राइव पर कोई नियोन साइन रात की रोशनी में चमक रहा हो। मैंने एक चुम्बन उस पर ले लिया और जैसे ही उस पर अपनी जीभ फिराई तो आंटी की तो किलकारी ही निकल गई। उसकी चूत तो पहले से ही गीली हुई थी। फिर मैंने स्टूल पर पड़ी वैसलीन की डब्बी उठाई और अपनी अंगुली पर क्रीम लगाई और अंगुली के पोर पर थोड़ी सी क्रीम लगा कर उसके खुलते बंद होते गांड के छेद पर लगा दी। दो तीन बार हल्का सा दबाव बनाया तो मुझे लगा आंटी ने बाहर की ओर जोर लगाया है। उसकी गांड का छेद तो ऐसे खुलने लगा जैसे कोई कमसिन कच्ची कलि खिल रही हो। मेरा एक पोर उसकी गांड के छेद में चला गया। आह… कितना कसाव था। इतना कसाव महसूस कर के मैं तो रोमांच से भर उठा। बाद में मुझे लगा कि जब अंगुली में ही इतना कसाव महसूस हो रहा है तो फिर भला मेरा इतना मोटा लंड इस छोटे से छेद में कैसे जा पायेगा ?
मैंने आंटी से पूछा “चांदनी, एक बात पूछूं ?”
“आह … हूँ । ?”
“क्या तुमने पहले भी कभी गांड मरवाई है ?”
“तुम क्यों पूछ रहे हो ?”
“वैसे ही ?”
“मैं जानती हूँ तुम शायद यह सोच रहे होगे कि इतना मोटा लंड इस छोटे से छेद में कैसे जाएगा ?”
“हूँ …?”
“तुम गांड रानी की महिमा नहीं जानते। हालांकि इस में चूत की तरह कोई चिकनाई नहीं होती पर अगर इसे ढीला छोड़ दिया जाए और अन्दर ठीक से क्रीम लगा कर तर कर लिया जाए तो इसे मोटा लंड अन्दर लेने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। पर तुम जल्दबाज़ी करोगे तो सब गुड़ गोबर हो जाएगा !”
“क्या मतलब?”
मेरे पति ने एक दो बार मेरी गांड मारने की कोशिश की थी पर वो अनाड़ी था। ना तो मुझे तैयार किया और ना अपने आप को। जैसे ही उसने अपना लंड मेरे नितम्बों के बीच डाला अति उत्तेजना में उसकी पिचकारी फूट गई और वो कुछ नहीं कर पाया ? पर तुम चिंता मत करो मैं जैसे समझाऊँ वैसे करते जाओ। सब से पहले इसे क्रीम लगा कर पहले रवां करो “
“ओके …”
अब मैंने बोरोप्लस की ट्यूब का ढक्कन खोल कर उसकी टिप को गांड के छेद पर लगा दिया। ट्यूब का मुंह थोड़ा सा गांड के छेद में चला गया। अब मैंने उसे जोर से पिचका दिया। लगभग ट्यूब की आधी क्रीम उसकी गांड के अन्दर चली गई। आंटी थोड़ा सा कसमसाई। लगता था उसे गुदगुदी और थोड़ी सी ठंडी महसूस हुई होगी। मैंने अपनी अंगुली धीरे धीरे अन्दर खिसका दी। अब तो मेरी अंगुली पूरी की पूरी अन्दर बाहर होने लगी। आह… मेरी अंगुली के साथ उसका छल्ला भी अन्दर बाहर होने लगा। अब मुझे लगने लगा था की छेद कुछ नर्म पड़ गया है और छल्ला भी ढीला हो गया है। मैंने फिर से उसकी चूत को चूसना चालू कर दिया। आंटी के कहे अनुसार मैंने यह ध्यान जरूर रखा था कि गांड वाली अंगुली गलती से उसकी चूत के छेद में ना डालूं।
आंटी की मीठी सीत्कार निकलने लगी थी। आंटी ने अब कहा “उस प्यारे लाल को भी उठाओ ना ?”
“हाँ वो तो कब का तैयार है जी !” मैंने अपने लंड को हाथ में लेकर हिला दिया।
“अरे बुद्धू मैं टेबल पर पड़े प्यारे लाल की बात कर रही हूँ !”
“ओह …”
अब मुझे इस प्यारे लाल की उपयोगिता समझ आई थी। मैंने उसे जल्दी से उठाया और उस पर वैसलीन और क्रीम लगा कर धीरे से उसके छेद पर लगाया। धीरे धीरे उसे अन्दर सरकाया। आंटी ने बताया था कि धक्का नहीं लगाना बस थोड़ा सा दबाव बनाना है। थोड़ी देर बाद वो अपने आप अन्दर सरकना शुरू हो जाएगा।
धीरे धीरे उसकी गांड का छेद चौड़ा होने लगा और प्यारे लाल जी अन्दर जाने लगे। गांड का छेद तो खुलता ही चला गया और प्यारे लाल 3 इंच तक अन्दर चला गया। आंटी ने बताया था कि अगर एक बार सुपाड़ा अन्दर चला गया तो बस फिर समझो किला फतह हो गया है। मैं 2-3 मिनट रुक गया। आंटी आँखें बंद किये बिना कोई हरकत किये चुप लेटी रही। अब मैंने धीरे से प्यारे लाल को पहले तो थोड़ा सा बाहर निकला और फिर अन्दर कर दिया। अब तो वह आराम से अन्दर बाहर होने लगा था। मैंने उसे थोड़ा सा और अन्दर डाला। इस बार वो 5-6 इंच अन्दर चला गया। मेरा लंड भी तो लगभग इतना ही बड़ा था। अब तो प्यारे लाल जी महाराज आराम से अन्दर बाहर होने लगे थे।
3-4 मिनट ऐसा करने के बाद मुझे लगा कि अब तो उसका छेद बिलकुल रवां हो गया है। मेरा लंड तो प्री-कम छोड़ छोड़ कर पागल ही हो रहा था। वो तो झटके पर झटके मार रहा था। मैंने एक बार फिर से उसकी मुनिया को चूम लिया। थोड़ी देर उसकी मुनिया और मदनमणि हो चूसा और दबाया। उसकी मुनिया तो कामरस से लबालब भरी थी जैसे। आंटी ने अपने पैर अब नीचे कर के फैला दिए और मुझे ऊपर खींच लिया। मैंने उसके होंठों को चूम लिया।
“ओह … मेरे चंदू … आज तो तुमने मुझे मस्त ही कर दिया !” आंटी उठ खड़ी हुई। “क्या अब तुम इस आनंद को भोगने के लिए तैयार हो ?”
“मैं तो कब से इंतज़ार कर रहा हूँ ?”
“ओह्हो … क्या बात है ? हाईई।.. मैं मर जावां बिस्कुट खा के ?” आंटी कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती थी।
“देखो चंदू साधारण सम्भोग तो किसी भी आसन में किया जा सकता है पर गुदा-मैथुन 3-4 आसनों में ही किया जाता है। मैं तुम्हें समझाती हूँ। वैसे तुम्हें कौन सा आसन पसंद है ?”
“वो… वो… मुझे तो डॉगी वाला या घोड़ी वाला ही पता है या फिर पेट के बल लेटा कर …?”
“अरे नहीं… चलो मैं समझाती हूँ !” बताना शुरू किया।
पहली बार में कभी भी घोड़ी या डॉगी वाली मुद्रा में गुदा-मैथुन नहीं करना चाहिए। पहली बार सही आसन का चुनाव बहुत मायने रखता है। थोड़ी सी असावधानी या गलती से सारा मज़ा किरकिरा हो सकता है और दोनों को ही मज़े के स्थान पर कष्ट होता है।
देखो सब से उत्तम तो एक आसन तो है जिस में लड़की पेट के बल लेट जाती है और पेट के नीचे दो तकिये लगा कर अपने नितम्ब ऊपर उठा देती है। पुरुष उसकी जाँघों के बीच एक तकिये पर अपने नितम्ब रख कर बैठ जाता है और अपना लिंग उसकी गुदा में डालता है। इस में लड़की अपने दोनों हाथों से अपने नितम्ब चौड़े कर लेती है जिस से उसके पुरुष साथी को सहायता मिल जाती है और वो एक हाथ से उसकी कमर या नितम्ब पकड़ कर दूसरे हाथ से अपना लिंग उसकी गुदा में आराम से डाल सकता है। लड़की पर उसका भार भी नहीं पड़ता।
एक और आसन है जिसमें लड़की पेट के बल अधलेटी सी रहती है। एक घुटना और जांघ मोड़ कर ऊपर कर लेती है। पुरुष उसकी एक जांघ पर बैठ कर अपना लिंग उसकी गुदा में डाल सकता है। इस आसन का एक लाभ यह है कि इसमें दोनों ही जल्दी नहीं थकते और धक्के लगाने में भी आसानी होती है। जब लिंग गुदा में अच्छी तरह समायोजित हो जाए तो अपनी मर्ज़ी से लिंग को अन्दर बाहर किया जा सकता है। गांड के अन्दर प्रवेश करते लंड को देखना और उस छल्ले का लाल और गुलाबी रंग देख कर तो आदमी मस्त ही हो जाता है। वह उसके स्तन भी दबा सकता है और नितम्बों पर हाथ भी फिरा सकता है। सबसे बड़ी बात है उसकी चूत में भी साथ साथ अंगुली की जा सकती है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि धक्का मारते या दबाव बनाते समय लड़की आगे नहीं सरक सकती इसलिए लंड डालने में आसानी होती है।
एक और आसन है जिसे आमतौर पर सभी लड़कियां पसंद करती है। वह है पुरुष साथी नीचे पीठ के बल लेट जाता है और लड़की अपने दोनों पैर उसके कूल्हों के दोनों ओर करके उकडू बैठ जाती है। उसका लिंग पकड़ कर अपनी गुदा के छल्ले पर लगा कर धीरे धीरे नीचे होती है। लड़की अपना मुंह पैरों की ओर भी कर सकती है। इस आसन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सारी कमांड लड़की के हाथ में होती है। वो जब चाहे जितना चाहे अन्दर ले सकती है। कुछ महिलाओं को यह आसन बहुत पसंद आता है। यह आसन पुरुषों को भी अच्छा लगता है क्योंकि इस दौरान वे अपने लिंग को गुदा के अन्दर जाते देख सकते हैं। पर कुछ महिलायें शर्म के मारे इसे नहीं करना चाहती।
इसके अलावा और भी आसन हैं जैसे गोद में बैठ कर या सोफे या पलंग पर पैर नीचे लटका कर लड़की को अपनी गोद में बैठा कर गुदा-मैथुन किया जा सकता है। पसंद और सहूलियत के हिसाब से किसी भी आसन का प्रयोग किया जा सकता है।
“ओह… तो हम कौन सा आसन करेंगे ?”
“मैं तुम्हें सभी आसनों की ट्रेनिंग दूँगी पर फिलहाल तो करवट वाला ही ठीक रहेगा ”
“ठीक है।” मैंने कहा।
मुझे अब ध्यान आया मेरा प्यारे लाल तो सुस्त पड़ रहा है। ओह … बड़ी मुश्किल थी। आंटी के भाषण के चक्कर में तो सारी गड़बड़ ही हो गई। आंटी धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी। उसने कहा,” मैं जानती हूँ सभी के साथ ऐसा ही होता है। पर तुम चिंता क्यों करते हो ? मेरे पास इसका ईलाज है।”
अब वो थोड़ी सी उठी और मेरे अलसाए से लंड को हाथ में पकड़ लिया वो बोलीं,”इसे ठीक से साफ़ किया है ना ?”
“जी हाँ”
अब उसने मेरा लंड गप्प से अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। मुंह की गर्मी और लज्जत से वो फिर से अकड़ने लगा। कोई 2-3 मिनट में ही वो तो फिर से लोहे की रोड ही बन गया था।
उसने पास रखे तौलिए से उसे पोंछा और फिर पास रखे निरोध की ओर इशारा किया। मुझे हैरानी हो रही थी। आंटी ने बताया कि गुदा-मैथुन करते समय हमेशा निरोध (कंडोम) का प्रयोग करना चाहिए। इससे संक्रमण नहीं होता और एड्स जैसी बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
अब मैंने अपने लंड पर निरोध चढ़ा लिया और उस पर नारियल का तेल लगा लिया। आंटी करवट के बल हो गई और अपना बायाँ घुटना मोड़ कर नीचे एक तकिया रख लिया। अब उसके मोटे मोटे गुदाज नितम्बों के बीच उसकी गांड और चूत दोनों मेरी आँखें के सामने थी। मैंने अपना सिर नीचे झुका कर एक गहरा चुम्बन पहले तो चूत पर लिया और फिर उसकी गांड के छेद पर। अब मैंने फिर से बोरोप्लस के क्रीम की ट्यूब में बाकी बची क्रीम उसकी गांड में डाल दी। आंटी ने अपने बाएं हाथ से अपने एक नितम्ब को पकड़ कर ऊपर की ओर कर लिया। अब तो गांड का छेद पूरा का पूरा दिखने लगा। उसके छल्ले का रंग सुर्ख लाल सा हो गया था। अब एक बार प्यारे लाल की मदद की जरुरत थी। मैंने उस पर भी नारियल का तेल लगाया और फिर से उसकी गांड में डाल कर 5-6 बार अन्दर बाहर किया। इस बार तो आंटी को जरा भी दर्द नहीं हुआ। वो तो बस अपने उरोजों को मसल रही थी। मैं उसकी दाईं जाँघ पर बैठ गया और अपने लंड के आगे थोड़ी सी क्रीम लगा कर उसे आंटी की गांड के छेद पर टिका दिया।
मेरा दिल उत्तेजना और रोमांच के मारे धड़क रहा था। लंड महाराज तो झटके ही खाने लगे थे। उसे तो जैसे सब्र ही नहीं हो रहा था। मैंने अपने लंड को उसके छेद पर 4-5 बार घिसा और रगड़ा, फिर उसकी कमर पकड़ी और अपने लंड पर दबाव बनाया। आंटी थोड़ा सा आगे होने की कोशिश करने लगी पर मैं उसकी जाँघ पर बैठा था इसलिए वो आगे नहीं सरक सकती थी। मैंने दबाव बनाया तो मेरा लंड थोड़ा सा धनुष की तरह मुड़ने लगा। मुझे लगा यह अन्दर नहीं जा पायेगा जरूर फिसल जाएगा। इतने में मुझे लगा आंटी ने बाहर की ओर जोर लगाया है। फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। पूरा सुपाड़ा अन्दर हो गया। मैं रुक गया। आंटी का शरीर थोड़ा सा अकड़ गया। शायद उसे दर्द महसूस हो रहा था। मैंने उसके नितम्ब सहलाने शुरू कर दिए। प्यार से उन्हें थपथपाने लगा। गांड का छल्ला तो इतना बड़ा हो गया था जैसे किसी छोटी बच्ची की कलाई में पहनी हुई कोई लाल रंग की चूड़ी हो। उसकी चूत भी काम रस से गीली थी। मैंने अपने बाएं हाथ की अँगुलियों से उसकी फांकों को सहलाना शुरू कर दिया।
2-3 मिनट ऐसे ही रहने के बाद मैंने थोड़ा सा दबाव और बनाया तो लंड धीरे धीरे आगे सरकाना शुरू हो गया। अब तो किला फ़तेह हो ही चुका था और अब तो बस आनंद ही आनंद था। मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर अन्दर सरका दिया। आंटी तो बस कसमसाती सी रह गई। मेरे लिए तो यह किसी स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था। एक नितांत कोरी और कसी हुई गांड में मेरा लंड पूरा का पूरा अन्दर घुसा हुआ था। मैंने एक थपकी उसके नितम्बों पर लगाईं तो आंटी की एक मीठी सीत्कार निकल गई।
“चंदू अब धीरे धीरे अन्दर बाहर करो !” आंटी ने आँखें बंद किये हुए ही कहा। अब तक लंड अच्छी तरह गांड के अन्दर समायोजित हो चुका था। बे रोक टोक अन्दर बाहर होने लगा था। छल्ले का कसाव तो ऐसा था जैसे किसी ने मेरा लंड पतली सी नली में फंसा दिया हो।
“चांदनी तुम्हें दर्द तो नहीं हो रहा ?”
“अरे बावले, तुम्हारे प्रेम के आगे ये दर्द भला क्या मायने रखता है। मेरी ओर से ये तो नज़राना ही तुम्हें। तुम बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है ?”
“मैं तो इस समय स्वर्ग में ही हूँ जैसे। तुमने मुझे अनमोल भेंट दी है। बहुत मज़ा आ रहा है।” और मैंने जोर से एक धक्का लगा दिया।
“ऊईई … माआअ … थोड़ा धीरे …”
“चांदनी मैंने कहानियों में पढ़ा है कि कई औरतें गांड मरवाते समय कहती हैं कि और तेजी से करो … फाड़ दो मेरी गांड… आह… बड़ा मज़ा आ रहा है ?”
“सब बकवास है… आम और पर औरतें कभी भी कठोरता और अभद्रता पसंद नहीं करती। वो तो यही चाहती हैं कि उनका प्रेमी उन्हें कोमलता और सभ्य ढंग से स्पर्श करे और शारीरिक सम्बन्ध बनाए। यह तो उन मूर्ख लेखकों की निरी कल्पना मात्र होती है जिन्होंने ना तो कभी गांड मारी होती है और ना ही मरवाई होती है। असल में ऐसा कुछ नहीं होता। जब सुपाड़ा अन्दर जाता है तो ऐसे लगता है जैसे सैंकड़ों चींटियों ने एक साथ काट लिया हो। उसके बाद तो बस छल्ले का कसाव और थोड़ा सा मीठा दर्द ही अनुभव होता है। अपने प्रेमी की संतुष्टि के आगे कई बार प्रेमिका बस आँखें बंद किये अपने दर्द को कम करने के लिए मीठी सीत्कार करने लगती है। उसे इस बात का गर्व होता है कि वो अपने प्रेमी को स्वर्ग का आनंद दे रही है और उसे उपकृत कर रही है !”
आंटी की इस साफगोई पर मैं तो फ़िदा ही हो गया। मैं तो उसे चूम ही लेना चाहता था पर इस आसन में चूमा चाटी तो संभव नहीं थी। मैंने उसकी चूत की फांकों और दाने को जोर जोर से मसलना चालू कर दिया। आंटी की चूत और गांड दोनों संकोचन करने लगी थी। मुझे लगा कि उसने मेरा लंड अन्दर से भींच लिया है। आह… इस आनंद को शब्दों में तो बयान किया ही नहीं जा सकता।
लंड अन्दर डाले मुझे कोई 10-12 मिनट तो जरूर हो गए थे। आमतौर पर इतनी देर में स्खलन हो जाता है पर मैंने आज दिन में मुट्ठ मार ली थी इसलिए मैं अभी नहीं झड़ा था। लंड अब आराम से अन्दर बाहर होने लगा था।
आंटी भी आराम से थी। वो बोली,” मैं अपना पैर सीधा कर रही हूँ तुम मेरे ऊपर हो जाना पर ध्यान रखना कि तुम्हारा प्यारे लाल बाहर नहीं निकले। एक बार अगर यह बाहर निकल गया तो दुबारा अन्दर डालने में दिक्कत आएगी और हो सकता है दूसरे प्रयाश में अन्दर डालने से पहले ही झड़ जाओ ?”
“ओके।..”
अब आंटी ने अपना पैर नीचे कर लिया और अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। तकिया उसके पेट के नीचे आ गया था। मैं ठीक उसके ऊपर आ गया और मैंने अपने हाथ नीचे करके उसके उरोज पकड़ लिए। उसने अपनी मुंडी मोड़ कर मेरी ओर घुमा दी तो मैंने उसे कस कर चूम लिया। मैंने अपनी जांघें उसके चौड़े नितम्बों के दोनों ओर कस लीं। जैसे ही आंटी अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो मैं एक धक्का लगा दिया।
आंटी की मीठी सीत्कार सुनकर मुझे लग रहा था कि अब उसे मज़ा भले नहीं आ रहा हो पर दर्द तो बिलकुल नहीं हो रहा होगा। मुझे लगा जैसे मेरा लंड और भी जोर से आंटी की गांड ने कस लिया है। मैं तो चाहता था कि इसी तरह मैं अपना लंड सारी रात उसकी गांड में डाले बस उसके गुदाज बदन पर लेटा ही रहूँ। पर आखिर शरीर की भी कुछ सीमाएं होती हैं। मुझे लग रहा था कि मेरा लंड थोड़ा सा फूलने और पिचकने लगा है और किसी भी समय पिचकारी निकल सकती है। आंटी ने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। मैंने एक हाथ से उसकी चूत को टटोला और अपने बाएं हाथ की अंगुली चूत में उतार दी। आंटी की तो रोमांच और उत्तेजना में चींख ही निकल गई। और उसके साथ ही मेरी भी पिचकारी निकलने लगी।
“आह।.. य़ाआआ……” हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला। दो जिस्म एकाकार हो गए। इस आनंद के आगे दूसरा कोई भी सुख या मज़ा तो कल्पनातीत ही हो सकता है। पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह लिपटे पड़े रहे।
मेरा प्यारे लाल पास होकर बाहर निकल आया था। हम दोनों ही उठ खड़े हुए और मैंने आंटी को गोद में उठा लिया और बाथरूम में सफाई कर के वापस आ गए। मैंने आंटी को बाहों में भर कर चूम लिया और उसका धन्यवाद किया। उसके चहरे की रंगत और ख़ुशी तो जैसे बता रही थी कि मुझे अपना सर्वस्व सोंप कर मुझे पूर्ण रूप से संतुष्ट कर कितना गर्वित महसूस कर रही है। मुझे पक्का प्रेम गुरु बनाने का संतोष उसकी आँखों में साफ़ झलक रहा था।
उस रात हमने एक बार फिर प्यार से चुदाई का आनंद लिया और सोते सोते एक बार गधापचीसी का फिर से मज़ा लिया। और यह सिलसिला तो फिर अगले 8-10 दिनों तक चला। रात को पढ़ाई करने के बाद हम दोनों साथ साथ सोते कभी मैं आंटी के ऊपर और कभी आंटी मेरे ऊपर ………
मेरी प्यारी पाठिकाओं ! आप जरूर सोच रही होंगी वाह।.. प्रेम चन्द्र माथुर प्रेम गुरु बन कर तुम्हारे तो फिर मज़े ही मज़े रहे होंगे ?
नहीं मेरी प्यारी पाठिकाओं ! जिस दिन मेरी परीक्षा ख़त्म हुई उसी दिन मुझे आंटी ने बताया कि वो वापस पटियाला जा रही है। उसने जानबूझ कर मुझे पहले नहीं बताया था ताकि मेरी पढ़ाई में किसी तरह का खलल (विघ्न) ना पड़े। मेरे तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई। मैंने तो सोच था कि अब छुट्टियों में आंटी से पूरे 84 आसन सीखूंगा पर मेरे सपनों का महल तो जैसे किसी ने पूरा होने से पहले तोड़ दिया था।
जिस दिन वो जाने वाली थी मैंने उन्हें बहुत रोका। मैं तो अपनी पढ़ाई ख़त्म होने के उपरान्त उससे शादी भी करने को तैयार था। पर आंटी ने मना कर दिया था पता नहीं क्यों। उन्होंने मुझे बाहों में भर कर पता नहीं कितनी देर चूमा था। और कांपती आवाज में कहा था,”प्रेम, मेरे जाने के बाद मेरी याद में रोना नहीं… अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं। मैं तो बस बुझती शमा हूँ। तुम्हारे सामने तो पूरा जीवन पड़ा है। तुम अपनी पढ़ाई अच्छी तरह करना। जिस दिन तुम पढ़ लिख कर किसी काबिल बन जाओगे हो सकता है मैं देखने के लिए ना रहूँ पर मेरे मन को तो इस बात का सकून रहेगा ही कि मेरा एक शिष्य अपने जीवन के हर क्षेत्र में कामयाब है !”
मैंने छलकती आँखों से उन्हें विदा कर दिया। मैंने बाद में उन्हें ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की पर उनसे फिर कभी मुलाकात नहीं हो सकी। आज उनकी उम्र जरूर 45-46 की हो गई होगी पर मैं तो आज भी अपना सब कुछ छोड़ कर उनकी बाहों में समा जाने को तैयार हूँ। आंटी तुम कहाँ हो अपने इस चंदू के पास आ जाओ ना। मैं दिल तो आज 14 वर्षों के बाद भी तुम्हारे नाम से ही धड़कता है और उन हसीं लम्हों के जादुई स्पर्श और रोमांच को याद करके पहरों आँखें बंद किये मैं गुनगुनाता रहता हूँ :
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको
मेरी बात ओर है, मैंने तो मोहब्बत की है।
मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओं आंटी के बनाए इस प्रेम गुरु को क्या आप एक मेल भी नहीं करोगे ?
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